शनिवार, 9 अगस्त 2008
देश और जनता
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की अपनी एक गति होती है, अपनी रफ्तार होती है देश भी इसके अपवाद नहीं। कोई भी देश अपने नागरिकों से ही बनता है जैसे नागरिक होंगे देश भी वैसा ही होगा। अपने निष्ठावान नागरिकों की बदौलत ही जापान जैसा छोटा देश आर्थिक महाशक्ति है , vahइन हम विशाल क्षमता के होते हुए भी गरीब और पिछडे हैं । क्या हमारा भारत सचमुच मुर्दों का देश है। निरी भौतिकता और निरी आधात्मिकता दोनों ही घातक हैं और हमे इन दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा। हमारा भौतिकता की और दौड़ हमे बर्बादी की और ही ले जायेगी और कहीं नहीं.
रविवार, 3 अगस्त 2008
मीडिया और घोराशाही
मैंने बचपन में एक लेख पढ़ा था मैथिलीशरण गुप्ता के अनुज सियारामशरण गुप्ता का लिखा हुआ घोराशाही. जिसमे कहा गया था की मशीनें आदमी को अपनी ओर खींचती हैं, शोषण के लिए. और आदमी बाध्य है वह न चाहते हुए भी पहुँच जाता है अपने शोषण के लिए. पटना में मीडिया कर्मियों की भी वही स्थिति है. वह यह जानते हुए भी की उसका शोषण किया जा रहा अपना शोषण करवा रहा है. इस उम्मीद में की शायद कल आज की तरह न हो. कोई इसका अपवाद नहीं है. योग्यता से अधिक यहाँ चापलूसी की क़द्र है.
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