मैंने बचपन में एक लेख पढ़ा था मैथिलीशरण गुप्ता के अनुज सियारामशरण गुप्ता का लिखा हुआ घोराशाही. जिसमे कहा गया था की मशीनें आदमी को अपनी ओर खींचती हैं, शोषण के लिए. और आदमी बाध्य है वह न चाहते हुए भी पहुँच जाता है अपने शोषण के लिए. पटना में मीडिया कर्मियों की भी वही स्थिति है. वह यह जानते हुए भी की उसका शोषण किया जा रहा अपना शोषण करवा रहा है. इस उम्मीद में की शायद कल आज की तरह न हो. कोई इसका अपवाद नहीं है. योग्यता से अधिक यहाँ चापलूसी की क़द्र है.
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