सोमवार, 23 मार्च 2009
कर्म और उसका फल
आज देश चुनावों की चपेट में है। चारों ओर जीत हार के चर्चे हो रहे हैं। लेकिन क्या मानव के लिए जीत और हार की व्याख्या इतनी आसान है। नहीं। कई बार हम जिसे अपनी जीत मानते हैं वही हमारे लिए सबसे बड़ी हार होती है। जब फल हमारे हाथों में है ही नहीं तो फिर जीत और हार कैसी। निष्काम भाव से कर्म करना ही हमारे हाथों में है।
शनिवार, 14 मार्च 2009
मानव गलतियों का पुतला
आज भी मुझे समझ में नहीं आता कि mई जो कर रहा हूँ वह कहाँ तक सही है। जीवन की सही व्याख्या करने का प्रयास मानव सदियों से कर रहा है लेकिन यह प्रयास आजतक पूर्णता तक नहीं पहुंचा। यह काम जितना आसान दिखता है उतना हैं भी नहीं। फिर मैं अपने जीवन को किस कसौटी पर कसूं। इसलिए मेरा मानना है कि इस झमेले में परिये ही नहीं और मान लीजिये कि हमने अब तक जिस तरह जीवन जिया है वही सही है। कुछ गलतियां हुई हैं पर गलती करना तो मानव के स्वाभाव में है।
शुक्रवार, 13 मार्च 2009
जीवन एक दोराहे पर
मेरी बीपीएससी परीक्षा को पटना हाई कोर्ट ने रोक दिया है और मैं अपने-आपको फिर से दोराहे पर खरा पा रहा हूँ । जीवन भी कैसे-कैसे इम्तिहान लेता है। परिणाम यह हुआ की मुझे फिर से पटना हिंदुस्तान ज्वाइन करना परा । कभी-कभी न चाहते हुए भी हमें बहुत कुछ स्वीकार करना परता है । मेरा मानना है की जब तक संघर्ष है तभी तक जीवन है । मैं आगे भी जब अवसर आएगा संघर्ष से मुंह नहीं मोरुंगा। कर्म करता जाउंगा बिना फल की चिंता किए। मैं जानता हूँ की सब माया है। इसीलिए मैं सुख के पीछे नही भागता .
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