मित्रों,पछताना हम नौजवानों की नियति में ही लिखा है.जिन्होंने शादी का लड्डू चाभ लिया है वे भी पछता रहे हैं और जिन्हें अभी इसका स्वाद नहीं चखा है वे भी पछ्ता रहे हैं.हममें से कुछ लोग अपवाद भी होंगे जिन्होंने इस लड्डू का स्वाद भी ले लिया है फिर भी मजे में हैं.इस समय मैं भी भयभीत और आशंकित हूँ.असल में बात यह है कि इसी १२ तारीख को मेरी शादी होने जा रही है.मैं अब तक इस क़यामत के दिन को टालता आ रहा था लेकिन क्या करूँ फिर भी वह दिन आ ही गया.
मित्रों,किसकी बात मानूँ और किसकी नहीं बड़ी विकट समस्या है.इसलिए मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया है.दिल तो बच्चा है जी इसलिए हो सकता है कि यह कुछ गलतियाँ कर जाए.मैंने फैसला किया है कि प्रेम और विश्वास हमारे दाम्पत्य जीवन की नींव होंगे और सादगी उसकी दीवारें.सत्य उसकी छत होती औ उसमें सामंजस्य की खिड़कियाँ लगी होंगी.हम दोनों में से सिर्फ एक को ही एक बार में नाराज होने की अनुमति होगी.एक जब क्रोधित होगा तो दूसरे को चुप्पी साध लेनी होगी.हम एक-दूसरे के प्रति अतिसंवेदनशील होंगे.जब एक को चोट लगेगी तो दर्द दूसरे को भी होगा.मैं नहीं मानता कि हमारा जीवन फूलों की सेज साबित होने जा रहा है.जब यह चमत्कार अबतक नहीं हुआ तो आगे ऐसा होने की उम्मीद ही क्यों करूँ?लेकिन अब मुझे न तो रास्ते की चिंता है और न ही मंजिल की.रास्ता चाहे कितना भी लम्बा और पथरीला हो;मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो जब दो लोग साथ-साथ चलते हैं तब थकान खुद-ब-खुद ऊर्जा में बदल जाती है.हमारे बीच मतभेद भी होंगे लेकिन मनभेद नहीं होगा.हम दोनों एक-दूसरे के प्रतियोगी नहीं होंगे वरन पूरक होंगे.कोई भी निर्णय उसका या मेरा नहीं होगा अपितु सारे निर्णय हमारे होंगे.
मित्रों,मैं नहीं जानता और न ही यह जानना ही चाहता हूँ कि मेरे मित्रों में से जो मित्र विवाहित हैं उनका अनुभव कैसा रहा है.हो सकता है कि मेरा वैवाहिक जीवन ठीक वैसा नहीं हो जैसा कि मैंने सोंच रखा है लेकिन उसके ज्यादा-से-ज्यादा निकट जरूर होगा,ऐसा मेरा अटूट विश्वास है.आखिर सबकुछ सिर्फ मुझ पर ही तो निर्भर नहीं करेगा.आगे मेरी आराध्य भगवती दुर्गा की मर्जी जिनसे मैंने सिवाय इस बात के कभी कुछ नहीं मांगा-पत्नीं मनोरमाम देहि मनोवृत्तानुसारिणिम;तारिणीमदुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम.
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