मित्रों,यह लम्ब दंड गोल पिंड धर-पकड़ का खेल भी अजीब है.कोई नहीं जानता कि कब किस गेंद पर चौका-छक्का पड़ जाए या फिर कब किस गेंद पर कोई खिलाडी आउट हो जाए.अपने बाबा रामदेव को ही लीजिए.किस शानो-शौकत से ग्लब-पैड लगाकर मैदान पर आए थे.भारत सरकार के चार-चार मंत्रियों ने उनकी आरती उतारी थी.शुरू से आक्रामक बल्लेबाजी करके अपनी मंशा भी जाहिर कर दी लेकिन सरकारी गुगली के आगे उनकी एक न चली.थोड़े से असावधान क्या हुए खेल से संन्यास लेने की नौबत ही आ गयी.अब बेचारे घर (पतंजलि योगपीठ) में बैठकर सोंच रहे हैं कि हमसे क्या भूल हुई जिसकी सजा हमका मिली.बेचारे ने सोंचा था इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हो रहे राष्ट्रीय टूर्नामेंट में सरकार को हराकर ही दम लेंगे.शायद ऐसा हो भी जाता लेकिन तभी सरकारी सटोरिये जो टीम के अहम सदस्य भी थे बाबा को फिक्स करने के लिए सक्रिय हो उठे.बाबा उनकी नीयत को समझ नहीं सके और फिक्स हो भी गए.यही गलती उन पर भारी पड़ गयी और सटोरियों ने मामले को जगजाहिर कर दिया.इतना ही नहीं मैदान (रामलीला मैदान) से मारपीट कर बाहर भी निकाल दिया.इस तरह बेचारे रामदेव बिना पूरी पारी खेले ही बाहर कर हो गए.चूंकि आम आदमी की काठ की हांड़ी (नेताओं को इस मामले में अपवाद माना जा सकता है) आग पर दोबारा नहीं चढ़ती है इसलिए खेलप्रेमियों को निराशाजनक उम्मीद है कि बाबा फिर से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर होनेवाले किसी भी मैच में आगे से नहीं खेल पाएँगे.भौतिक जीवन से तो उन्होंने बहुत पहले ही संन्यास ले लिया था अब न चाहते हुए भी एंटी-करप्शन क्रिकेट से भी उन्हें संन्यास लेना पड़ रहा है.
मित्रों,हालाँकि हम भ्रष्टाचार विरोधियों को बाबा के मैदान से बाहर हो जाने से काफी निराशा हुई है परन्तु हमारे लिए यह अब भी बड़े ही ख़ुशी की बात है कि हमारे सबसे अनुभवी खिलाड़ी मास्टर-ब्लास्टर हरफनमौला अन्ना हजारे ने बखूबी एक छोर को संभल रखा है.उनके अंदाज से लग रहा है कि वे लम्बी पारी खेलने के मूड में हैं और उन्हें कोई जल्दीबाजी नहीं है.सरकार ने अभी लोकपाल मसविदा के मुद्दे पर अन्ना और देश को अंगूठा दिखाकर एक यार्कर लेंथ की बहुत ही खतरनाक गेंद डाली है.गेंद पर तेज प्रहार करने के इरादे से अन्ना फ्रंट फुट पर आ गए हैं.बल्ला हवा में है.गेंद धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है.अन्ना ने इस समय फिर से अनशन की लकड़ी से बना बल्ला हाथों में ले रखा है.यह बल्ला उनके लिए पहले भी काफी भाग्यशाली रहा है.उन्होंने इसके बल पर कई बार धुआंधार पारियां खेली है.अन्ना अच्छे गेंदबाज भी हैं.उनकी गेंदबाजी के कई प्रत्यक्ष गवाह पूर्व मंत्री इस समय महाराष्ट्र में मौजूद हैं जिनको अन्ना ने आउट किया था.अब हमें देखना है कि इस गेंद पर छक्का पड़ता है या फिर अन्ना भी बाबा की तरह पेवेलियन में बैठे नजर आते हैं.बड़ा ही रोमांचक क्षण है.लेकिन इन क्षणों में भी दर्शकों की ख़ामोशी काट खाने को दौड़ रही है.सबकी धडकनें तेज हैं,सबकी निगाहें मैदान पर टिकी हैं लेकिन बदतमीज और बदमाश विरोधी टीम के डर से कुछेक को छोड़कर कोई अन्ना का प्रकट रूप में समर्थन नहीं कर पा रहा है.विपक्षी टीम के पास धूर्त गेंदबाजों की कोई कमी नहीं है.वहीं बल्लेबाज अन्ना को अपनी सच्चाई पर पूरा भरोसा है.सच और झूठ के इस टेस्ट मैच में पहली और ६० साल लम्बी पारी में अधर्म ने भारी बढ़त हासिल कर रखी है.देखना है कि अन्ना उस बढ़त को कम करते हुए कैसे अपनी टीम को जीत दिलवाते हैं.विपक्षी टीम के पास दिग्गी,सिब्बल,मुखर्जी और कप्तान सोनिया जैसे शातिर खिलाडी हैं इसलिए अन्ना को अपना प्रत्येक शॉट सोंच-समझकर खेलना होगा.
मित्रों,जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया है कि मैच इस समय काफी रोमांचक स्थिति में है.अन्ना टीम असमंजस में है.समस्त रणनीतियों और संभावनाओं पर विचार-विमर्श का दौर जारी है.अभी कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी कि इस मैच का क्या परिणाम होगा.अन्ना और उनकी टीम को प्रत्येक शॉट को काफी संभलकर खेलना होगा.इस समय बाबा के मैदान और खेल से बाहर हो जाने के बाद अन्ना पूरे भारत की आशाओं के केंद्र बने हुए हैं.सबकुछ उनकी सूझबूझ और रणनीति पर निर्भर करता है.जीत इसलिए भी कठिन लग रही है क्योंकि विपक्षी टीम जीत के लिए बल-प्रयोग और धक्कामुक्की करने के लिए तैयार बैठी है.और इस खेल का सबसे निराशाजनक पहलू तो यह है कि अम्पायर (जो हम हैं) सारी सच्चाई जानते हुए भी मूकदर्शक और तटस्थ बना हुआ है और यही वो ख़ामोशी है जो बेईमानों के मनोबल को बढ़ा रही है.देखना है कि अम्पायर कब तक चुपचाप रहता है.मैच का परिणाम सबसे ज्यादा अम्पायर पर ही निर्भर करता है यह तो आपको भी पता है.
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