बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

शिखंडी नहीं अर्जुन है टीम अन्ना

मित्रों,जबसे हिसार लोकसभा उपचुनाव में अन्ना टीम ने कांग्रेस उम्मीदवार को वोट नहीं देने की अपील की है भ्रष्टाचार समर्थक पार्टियों के नेताओं और उनके चमचा पत्रकारों के खाना-ए-दिल में शोर बरपा है.कारण इसके अलावे और कुछ नहीं हो सकता कि इन धूर्त लोगों को अपने पांव तले से राजनीतिक जमीन खिसकती हुई मालूम हो रही है.झूठ और भय का जो तिलिस्म इन्होंने बरसों-बरस से कायम कर रहा था अब टूटने लगा है.इनमें से कोई अन्ना टीम को राह से भटका हुआ बता रहा है तो कोई सीधे-सीधे अन्ना टीम के कांग्रेस को वोट नहीं देने की अपील करने के नैतिक अधिकार को ही कटघरे में खड़ा करने में जुटा है.
          मित्रों,अन्ना टीम ने जो कुछ भी हिसार में किया वो बिलकुल सही था.कहीं कुछ भी गलत नहीं था उनकी कथनी और करनी में.अन्ना टीम भारत के प्रबुद्ध समाज के अतिप्रबुद्ध लोगों द्वारा निर्मित है और हम उनसे कम-से-कम यह उम्मीद तो नहीं ही कर सकते हैं कि जब भारतमाता का भ्रष्टाचारियों के हाथों सरेआम चीर-हरण हो रहा हो तब वे उसी तरह मूकदर्शक बने रहें जैसे कभी साम्राज्ञी और कुलवधू द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म,द्रोणादि महावीर बने रहे थे.अब तक कांग्रेस का जनलोकपाल और भ्रष्टाचार के मामले में जो टालू,चालू और शंकालू रवैया रहा है उसे देखते हुए उस पर जन लोकपाल के लिए लगातार दबाव बनाए रखते हुए बढ़ाते रहना चाहिए.कुछ लोग टीम अन्ना के हिसार में काम करने के तरीके की तुलना महाभारत के शिखंडी के कृत्य से कर रहे हैं.उनका ऐसा करना और कहना तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है.महाभारत के युद्ध में छिपकर वाण शिखंडी ने नहीं चलाया था बल्कि महान धनुर्धर अर्जुन ने चलाया था.छिपकर वाण तो मर्यादापुरुषोत्तम राम को भी चलाना पड़ा था बालि पर और उनका ऐसा करना तत्कालीन परिस्थितियों में अनुचित भी नहीं था.
                मित्रों,मैं मानता हूँ कि हिसार उपचुनाव में टीम अन्ना सीधे-सीधे अपना उम्मीदवार उतार भी सकती थी.ऐसा करना असंभव नहीं था लेकिन आसान भी नहीं था.चुनाव लड़ने के लिए सबसे पहले जरूरी होता है पार्टी संगठन,फिर पैसा और अंत में एकनिष्ठ उम्मीदवार.आप जानते हैं कि इनमें से पहले दोनों तत्त्व अन्ना टीम के पास नहीं है.पार्टी संगठन बनाने में कम जटिलता नहीं है.इस अविश्वास और अनास्था के युग में क्या पता कौन पार्टी में ऊंचा पद प्राप्त कर लेने के बाद आस्तीन का सांप निकल जाए.स्वामी अग्निवेश का उदहारण हमारी आँखों के सामने है.हम यह भी जानते हैं कि आधुनिक युग में चुनाव पैसों के बल पर लड़े और जीते जाते हैं.जाहिर है अन्ना टीम को पैसा प्राप्त करने के लिए कई तरह के नापाक समझौते;अपवित्र उद्देश्य वाले लोगों के साथ-साथ अपने मूल्यों व सिद्धांतों के साथ भी करने पड़ते.अंत में बारी आती है ईमानदार उम्मीदवार की तो आप भी जानते हैं कि अब तक ऐसी कोई मशीन बनी नहीं है जिससे किसी व्यक्ति की ईमानदारी का शत-प्रतिशत प्रामाणिक परीक्षण किया जा सके.समाज में रंगे सियारों की कोई कमी नहीं है और इस मामले में भी टीम अन्ना धोखा खा सकती है.यहाँ आप जेपी के साथ १९७७ और उसके बाद के वर्षों में जो कुछ हुआ को याद कर सकते हैं.
                  मित्रों,इसलिए देश,काल और परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए टीम अन्ना ने जो कुछ भी किया वह पूरी तरह से सही है.अगर बाहर से ही फूँक मारने से कालिख उड़ जाए तो क्या जरुरत है काजल की कोठरी में उतरने की?अन्ना द्वारा वोट न देने की अपील करने मात्र से ही अगर सरकार दबाव में आ जाती है अथवा दबाव में नहीं आने पर चुनाव हार जाती है तो बिना चुनाव लड़े सरकार के खिलाफ में प्रचार करने से अच्छा कोई विकल्प हो ही नहीं सकता-हर्रे लगे न फिटकिरी रंग भी चोखा होए.एक बात और.अगर अन्ना टीम बाजाप्ता पार्टी गठित करके चुनाव लड़ती है तो वही लोग जो अभी उसकी तुलना शिखंडी से कर रहे हैं सीधे-सीधे यह आरोप लगेंगे कि हम न कहते थे कि इनलोगों का छिपा हुआ राजनीतिक एजेंडा है.
              मित्रों,टीम अन्ना की अपील का हिसार के मतदाताओं पर जो कुछ असर हुआ.उससे आप सभी वाकिफ हैं.उनकी अपील में जो असर है उसे पैदा करने के लिए खुद सरकार भी कम दोषी नहीं है.सरकार और कांग्रेस पार्टी का भ्रष्टाचार के प्रति रवैया हमेशा से संदिग्ध रहा है.उसकी नीयत अभी भी साफ़ नहीं है.अच्छा होता कि ये लोग अन्ना टीम के इक़बाल को मिटाने का प्रयास करने के बजाए भ्रष्टाचार को मिटाने पर ध्यान केन्द्रित करते तब जनता को भी यह यकीन हो जाता कि दाल तो काली नहीं ही है,दाल में कुछ काला भी नहीं है.अंत में कांग्रेस पार्टी से एक अपील-अब से भी संभल जाओ कांग्रेसवालों तुम्हारी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में,नहीं संभले मिट जाओगे अगले चुनावों में;तुम्हारी दास्ताँ तक न मिलेगी दास्तानों में.शुक्रिया,शुक्रिया.        
                    

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