मित्रों, कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यानि खाली बैठने पर अच्छा-खासा आदमी भी शैतानी करने के लिए स्वयं अपने ही दिमाग द्वारा दुष्प्रेरित होने लगता है। परन्तु जब कोई शैतान खाली-खाली बैठा हो,तब? तब तो फिर भगवान ही पीड़ित की रक्षा करें? और जब उस शैतान के हाथों में काफी ज्यादा शक्तियां भी हों तब तो जो बर्बादी होती है उसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इन दिनों हमारे दुर्भाग्य से हमारी मनमोहिनी-जनमोहिनी-नित्यमहाघोटालाकरनी-भ्रष्टाचारसम्पोषिनी-महंगाईवर्द्धिनी-जनाकांक्षामर्दिनी-नित्यअसत्यसंभाषिणी-.......... केंद्र सरकार खाली बैठी है,बिलकुल निठल्ली। कोई निर्णय नहीं ले पा रही और अगर निर्णय ले भी ले रही है तो सिर्फ लेने के लिए ले रही है अमल नहीं हो पा रहा। सारा काम-काज ठप्प। जैसे मंत्रिपरिषद किसी अघोषित हड़ताल पर हो। ऐसा सिर्फ हम ही नहीं नहीं कह रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार श्री कौशिक बसु के भी कुछ ऐसे ही पुनीत विचार हैं। इतना ही नहीं भारत के कई लब्धप्रतिष्ठित उद्योगपतियों का भी कुछ ऐसा ही मानना है।
मित्रों,आपने कभी खाली बैठे किराना दुकानदार को देखा है। अगर हाँ तब आपने यह भी देखा होगा कि ऐसे वक़्त को वह काटता कैसे है? वह ऐसे में ज्यादा कुछ नहीं करता बस इस डिब्बे के दाल-चावल को उस डिब्बे में और उस डिब्बे के आटा-शक्कर को इस डिब्बे में करता रहता है। और जब कोई सरकार खाली बैठी हो तब? तब वह घोटाले-पर-घोटाले-पर-घोटाले........घोटाले करती रहती है। हमरी न मानो तो ललुआ से पूछो और अब 'मनमोहना बड़े झूठे' से भी पूछ सकते हो। इनकी सरकार ने भी अपने दूसरे कार्यकाल में सिवाय घोटालों के और कुछ नहीं किया है और शायद अपने बचे हुए दो सालों में भी वो सिवाय घोटालों के और कुछ भी नहीं करने जा रही है। घोटाला-पर-घोटाला,घोटाला-दर-घोटाला। हर प्रजाति का,हर आकार का, हर प्रकार का घोटाला। इस मनमोहन सरकार ने इतने बड़े-बड़े घोटाले इस अल्पावधि में किए हैं किए हैं कि इनमें से प्रत्येक को दुनिया के आठवें आश्चर्य के रूप में आसानी से स्थान मिल सकता है। पहले राष्ट्रमंडल घोटाला १५००० करोड़ रूपये का,फिर २जी घोटाला १७५००० करोड़ रूपये का, उसके बाद उससे भी बड़ा देवास घोटाला और अब अब तक का सबसे बड़ा कोयला घोटाला १०.५ लाख करोड़ रूपये का।
मित्रों,आपने देखा कि यहाँ सिर्फ एक शैतान ही खाली-खाली बैठा हुआ नहीं है बल्कि उसकी एक पूरी मंडली या टीम ही खाली बैठी है जिसे हम कांग्रेस पार्टी या केंद्र सरकार दोनों में से किसी भी नाम से संबोधित कर सकते हैं। दोनों दो होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं। कुछ समय पहले तक आसमान छूती भारतीय अर्थव्यवस्था आज "चिड़िया की जान जाए और बच्चों का खिलौना" की तर्ज पर नेस्तनाबूत होने के कगार पर पहुँच चुकी है। अर्थव्यवस्था की दुरावस्था की मैं यहाँ विस्तार से चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि वह तो आप रोजाना अख़बारों में पढ़ते ही होंगे। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? जिम्मेदार है केंद्र सरकार का निठल्लापन और ऊपर से घोटालापन। यहाँ घोटालापन एक नितांत नया शब्द है लेकिन है बड़ा सार्थक। घोटालापन यानि घोटाला करने की प्रवृत्ति। इस सरकार में भ्रष्टाचार इस कदर चरमसीमा पर पहुँच चुका है कि ऊपर वर्णित घोटालों में से बाद के दोनों घोटालों में प्रधानमंत्री कार्यालय भी सीधे-सीधे शामिल है। पहले वर्णित दोनों घोटालों में भी उसकी भूमिका संदेह पर परे नहीं है। अब आप ही बताईए कि जब प्रधानमंत्री ही संलिप्त हो गया तो बचा क्या? कुछ बचा क्या? कहने का तात्पर्य यह है कि इस शैतानी सरकार का प्रदर्शन तो ख़राब है ही इसका दर्शन भी गड़बड़ है,विचारधारा ही भ्रष्ट है। फिर भ्रष्टाचार क्यों न हो और क्यों न बढे? रही राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय शाख की बात तो वह तो इन परिस्थितियों में स्वाभाविक तौर पर नीचे जाएगी ही और जा भी रही है।
मित्रों, यह शैतानों से भरी टीम इंडिया सिर्फ शैतान ही नहीं है थेथर भी है। यह थेथर बिहार-यू.पी. में स्वतः उग जानेवाला एक पौधा होता है जिसे आप जितना भी काट दीजिए वह फिर से पनप आता है। इसे समूल नष्ट किया ही नहीं जा सकता। थोड़ी-सी भी जड़ जमीन में छूटी नहीं कि यह फिर से पनप आएगा। ठीक इसी तरह कांग्रेस और उसकी वर्तमान केंद्र सरकार पर किसी भी लानत-मलामत का कोई असर नहीं हो रहा है। ये लोग उस थेथर की तरह थेथर हैं जो एक क्षण में मार खाता है और दूसरे ही क्षण में इस तरह से पेश आता है मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। एक तो इसे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं करना है और अगर किसी ने इनकी आलोचना कर दी तो ये उस पर ततैये के झुण्ड की तरह पिल जाते हैं और डंक मार-मार कर उसकी सूरत ही बिगाड़कर रख देते हैं (मेरा मतलब असत्याधारित चरित्र-हनन से है)। आपने देखा होगा कि किस तरह इन लोगों ने पहले तो सीधे अन्ना हजारे पर ही मनगढ़ंत आरोप लगा दिए। आरोप क्या लगाए आरोपों की झड़ी ही लगा दी और जब उनके झूठ के पाँव उखाड़ने लगे तो टीम अन्ना के बाँकी सदस्यों पर अनर्गल आरोप लगाने शुरू कर दिए जिसका सिलसिला आज भी जारी है। ऐसा ही कुछ इन्होंने बाबा रामदेव के साथ भी किया।
मित्रों, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पी. नारायणस्वामी ने हाल ही में टीम अन्ना के पत्र के उत्तर में अपने अद्भुत प्रतिउत्पन्नमतित्व का परिचय देते हुए आरोप लगाया है कि अन्ना हजारे देशद्रोहियों से घिरे हैं। इन सत्तामार्का ऐनकधारी श्रीमान के सड़ियल दिमाग के अनुसार किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल भी देशद्रोही हैं। अपनी पुलिस की नौकरी के दौरान समाजसेवा,ईमानदारी और समाजसुधार के नए मानदंड स्थापित करनेवाली भारत की पहली महिला आई.पी.एस. किरण बेदी देशद्रोही हैं और देशद्रोही हैं देशसेवा के लिए अपनी भारतीय राजस्व सेवा की अतिकमाऊ नौकरी को क्षणभर में लात मार देनेवाले अरविन्द केजरीवाल। तो फिर भारत में देशभक्त कौन है? क्या टीम मनमोहन? इस पूरे मंत्रिपरिषद में ऐसे कितने लोग हैं जो देशभक्ति को सोनिया-भक्ति से ऊपर मानते हैं और तदनुसार आचरण भी करते हैं? कितने?? क्या जो सोनियाभक्त हैं केवल वही देशभक्त हैं या हो सकते है या फिर होने की योग्यता को धारण करते हैं? इसका मतलब तो यही है कि जो लोग सोनियाभक्त नहीं हैं वे देशद्रोही हैं. देशभक्ति की ऐसी घटिया अव्याप्ति दोष से युक्त परिभाषा सिर्फ और सिर्फ नारायण स्वामी जैसे चापलूस और स्वार्थी लोग ही गढ़ सकते हैं जिन्हें वास्तव में पता ही नहीं है कि देशभक्ति किस शह का नाम है। देशभक्ति घोटालों के द्वारा देश को बेच देना नहीं है बल्कि देश पर और देश के लिए मर-मिटने का नाम देशभक्ति है। सुभाष,गाँधी और भगत के मार्ग पर चलने का नाम देशभक्ति है और मैं नहीं समझता कि हम विशुद्ध देशभक्तों और टीम अन्ना को देशभक्त होने के लिए किसी नारायण स्वामी जैसे गुलाम और स्वार्थी मानसिकतावाले व्यक्ति के प्रमाण-पत्र की कोई आवश्यकता पहले कभी थी और आगे ही कभी होगी।
मित्रों,देश की जो वर्तमान राजनैतिक हालत है उसमें लगता तो यही है कि अगले लोकसभा चुनावों तक हमें इस शैतान सरकार और इसकी शैतानी करतूतों को झेलना ही पड़ेगा। फिर फैशन के इस दौर में इस बात की गारंटी भी तो नहीं दी जा सकती है कि अगली सरकार भलेमानुषों की ही होगी इसलिए हमारे लिए यानि नारायण स्वामी की नजर में जो लोग भी देशद्रोही हैं उनके लिए मुफीद यही होगा कि हम पूरे दमखम के साथ अन्ना हजारे का समर्थन करें। टीम अन्ना से भी हमारी विनती होगी कि वह कृपया अपना एजेंडा सिर्फ व्यवस्था-परिवर्तन तक ही सीमित रखे जिसका एक भाग सत्ता परिवर्तन भी हो क्योंकि भारतीय लोकतंत्र के अपने ६५ साला अनुभव से हम यह जानते हैं कि भारत में सत्ता का बदलना हमेशा नाकाफी रहा है। इस प्रक्रिया में एक भ्रष्ट हटता है और उसकी जगह दूसरा भ्रष्ट ले लेता है। इस प्रकार स्थिति सुधरने के बदले बिगडती चली गयी है। इसलिए अब वक़्त आ गया है कि सिर्फ सत्ता को बदलने के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था को बदल देने के लिए आन्दोलन चलाया जाए। किसी एक पार्टी की सरकारों को नहीं बल्कि सभी पार्टियों की भ्रष्ट सरकारों को निशाना बनाया जाए। पहले व्यवस्था बदलेगी,विधान-संविधान बदलेगा। फिर भारत भी बदलेगा। जय हिंद,जय भारत!!!
मित्रों,आपने कभी खाली बैठे किराना दुकानदार को देखा है। अगर हाँ तब आपने यह भी देखा होगा कि ऐसे वक़्त को वह काटता कैसे है? वह ऐसे में ज्यादा कुछ नहीं करता बस इस डिब्बे के दाल-चावल को उस डिब्बे में और उस डिब्बे के आटा-शक्कर को इस डिब्बे में करता रहता है। और जब कोई सरकार खाली बैठी हो तब? तब वह घोटाले-पर-घोटाले-पर-घोटाले........घोटाले करती रहती है। हमरी न मानो तो ललुआ से पूछो और अब 'मनमोहना बड़े झूठे' से भी पूछ सकते हो। इनकी सरकार ने भी अपने दूसरे कार्यकाल में सिवाय घोटालों के और कुछ नहीं किया है और शायद अपने बचे हुए दो सालों में भी वो सिवाय घोटालों के और कुछ भी नहीं करने जा रही है। घोटाला-पर-घोटाला,घोटाला-दर-घोटाला। हर प्रजाति का,हर आकार का, हर प्रकार का घोटाला। इस मनमोहन सरकार ने इतने बड़े-बड़े घोटाले इस अल्पावधि में किए हैं किए हैं कि इनमें से प्रत्येक को दुनिया के आठवें आश्चर्य के रूप में आसानी से स्थान मिल सकता है। पहले राष्ट्रमंडल घोटाला १५००० करोड़ रूपये का,फिर २जी घोटाला १७५००० करोड़ रूपये का, उसके बाद उससे भी बड़ा देवास घोटाला और अब अब तक का सबसे बड़ा कोयला घोटाला १०.५ लाख करोड़ रूपये का।
मित्रों,आपने देखा कि यहाँ सिर्फ एक शैतान ही खाली-खाली बैठा हुआ नहीं है बल्कि उसकी एक पूरी मंडली या टीम ही खाली बैठी है जिसे हम कांग्रेस पार्टी या केंद्र सरकार दोनों में से किसी भी नाम से संबोधित कर सकते हैं। दोनों दो होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी दो हैं। कुछ समय पहले तक आसमान छूती भारतीय अर्थव्यवस्था आज "चिड़िया की जान जाए और बच्चों का खिलौना" की तर्ज पर नेस्तनाबूत होने के कगार पर पहुँच चुकी है। अर्थव्यवस्था की दुरावस्था की मैं यहाँ विस्तार से चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि वह तो आप रोजाना अख़बारों में पढ़ते ही होंगे। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? जिम्मेदार है केंद्र सरकार का निठल्लापन और ऊपर से घोटालापन। यहाँ घोटालापन एक नितांत नया शब्द है लेकिन है बड़ा सार्थक। घोटालापन यानि घोटाला करने की प्रवृत्ति। इस सरकार में भ्रष्टाचार इस कदर चरमसीमा पर पहुँच चुका है कि ऊपर वर्णित घोटालों में से बाद के दोनों घोटालों में प्रधानमंत्री कार्यालय भी सीधे-सीधे शामिल है। पहले वर्णित दोनों घोटालों में भी उसकी भूमिका संदेह पर परे नहीं है। अब आप ही बताईए कि जब प्रधानमंत्री ही संलिप्त हो गया तो बचा क्या? कुछ बचा क्या? कहने का तात्पर्य यह है कि इस शैतानी सरकार का प्रदर्शन तो ख़राब है ही इसका दर्शन भी गड़बड़ है,विचारधारा ही भ्रष्ट है। फिर भ्रष्टाचार क्यों न हो और क्यों न बढे? रही राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय शाख की बात तो वह तो इन परिस्थितियों में स्वाभाविक तौर पर नीचे जाएगी ही और जा भी रही है।
मित्रों, यह शैतानों से भरी टीम इंडिया सिर्फ शैतान ही नहीं है थेथर भी है। यह थेथर बिहार-यू.पी. में स्वतः उग जानेवाला एक पौधा होता है जिसे आप जितना भी काट दीजिए वह फिर से पनप आता है। इसे समूल नष्ट किया ही नहीं जा सकता। थोड़ी-सी भी जड़ जमीन में छूटी नहीं कि यह फिर से पनप आएगा। ठीक इसी तरह कांग्रेस और उसकी वर्तमान केंद्र सरकार पर किसी भी लानत-मलामत का कोई असर नहीं हो रहा है। ये लोग उस थेथर की तरह थेथर हैं जो एक क्षण में मार खाता है और दूसरे ही क्षण में इस तरह से पेश आता है मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। एक तो इसे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं करना है और अगर किसी ने इनकी आलोचना कर दी तो ये उस पर ततैये के झुण्ड की तरह पिल जाते हैं और डंक मार-मार कर उसकी सूरत ही बिगाड़कर रख देते हैं (मेरा मतलब असत्याधारित चरित्र-हनन से है)। आपने देखा होगा कि किस तरह इन लोगों ने पहले तो सीधे अन्ना हजारे पर ही मनगढ़ंत आरोप लगा दिए। आरोप क्या लगाए आरोपों की झड़ी ही लगा दी और जब उनके झूठ के पाँव उखाड़ने लगे तो टीम अन्ना के बाँकी सदस्यों पर अनर्गल आरोप लगाने शुरू कर दिए जिसका सिलसिला आज भी जारी है। ऐसा ही कुछ इन्होंने बाबा रामदेव के साथ भी किया।
मित्रों, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पी. नारायणस्वामी ने हाल ही में टीम अन्ना के पत्र के उत्तर में अपने अद्भुत प्रतिउत्पन्नमतित्व का परिचय देते हुए आरोप लगाया है कि अन्ना हजारे देशद्रोहियों से घिरे हैं। इन सत्तामार्का ऐनकधारी श्रीमान के सड़ियल दिमाग के अनुसार किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल भी देशद्रोही हैं। अपनी पुलिस की नौकरी के दौरान समाजसेवा,ईमानदारी और समाजसुधार के नए मानदंड स्थापित करनेवाली भारत की पहली महिला आई.पी.एस. किरण बेदी देशद्रोही हैं और देशद्रोही हैं देशसेवा के लिए अपनी भारतीय राजस्व सेवा की अतिकमाऊ नौकरी को क्षणभर में लात मार देनेवाले अरविन्द केजरीवाल। तो फिर भारत में देशभक्त कौन है? क्या टीम मनमोहन? इस पूरे मंत्रिपरिषद में ऐसे कितने लोग हैं जो देशभक्ति को सोनिया-भक्ति से ऊपर मानते हैं और तदनुसार आचरण भी करते हैं? कितने?? क्या जो सोनियाभक्त हैं केवल वही देशभक्त हैं या हो सकते है या फिर होने की योग्यता को धारण करते हैं? इसका मतलब तो यही है कि जो लोग सोनियाभक्त नहीं हैं वे देशद्रोही हैं. देशभक्ति की ऐसी घटिया अव्याप्ति दोष से युक्त परिभाषा सिर्फ और सिर्फ नारायण स्वामी जैसे चापलूस और स्वार्थी लोग ही गढ़ सकते हैं जिन्हें वास्तव में पता ही नहीं है कि देशभक्ति किस शह का नाम है। देशभक्ति घोटालों के द्वारा देश को बेच देना नहीं है बल्कि देश पर और देश के लिए मर-मिटने का नाम देशभक्ति है। सुभाष,गाँधी और भगत के मार्ग पर चलने का नाम देशभक्ति है और मैं नहीं समझता कि हम विशुद्ध देशभक्तों और टीम अन्ना को देशभक्त होने के लिए किसी नारायण स्वामी जैसे गुलाम और स्वार्थी मानसिकतावाले व्यक्ति के प्रमाण-पत्र की कोई आवश्यकता पहले कभी थी और आगे ही कभी होगी।
मित्रों,देश की जो वर्तमान राजनैतिक हालत है उसमें लगता तो यही है कि अगले लोकसभा चुनावों तक हमें इस शैतान सरकार और इसकी शैतानी करतूतों को झेलना ही पड़ेगा। फिर फैशन के इस दौर में इस बात की गारंटी भी तो नहीं दी जा सकती है कि अगली सरकार भलेमानुषों की ही होगी इसलिए हमारे लिए यानि नारायण स्वामी की नजर में जो लोग भी देशद्रोही हैं उनके लिए मुफीद यही होगा कि हम पूरे दमखम के साथ अन्ना हजारे का समर्थन करें। टीम अन्ना से भी हमारी विनती होगी कि वह कृपया अपना एजेंडा सिर्फ व्यवस्था-परिवर्तन तक ही सीमित रखे जिसका एक भाग सत्ता परिवर्तन भी हो क्योंकि भारतीय लोकतंत्र के अपने ६५ साला अनुभव से हम यह जानते हैं कि भारत में सत्ता का बदलना हमेशा नाकाफी रहा है। इस प्रक्रिया में एक भ्रष्ट हटता है और उसकी जगह दूसरा भ्रष्ट ले लेता है। इस प्रकार स्थिति सुधरने के बदले बिगडती चली गयी है। इसलिए अब वक़्त आ गया है कि सिर्फ सत्ता को बदलने के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था को बदल देने के लिए आन्दोलन चलाया जाए। किसी एक पार्टी की सरकारों को नहीं बल्कि सभी पार्टियों की भ्रष्ट सरकारों को निशाना बनाया जाए। पहले व्यवस्था बदलेगी,विधान-संविधान बदलेगा। फिर भारत भी बदलेगा। जय हिंद,जय भारत!!!
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