मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

मैं कुतिया हूँ!


मैं दुनिया की कथित रूप से सबसे सभ्य प्रजाति आदमी की भाषा में एक कुतिया हूँ। मैं जानती हूँ कि उनकी भाषा में यह एक गाली है यानि मैं दुनिया के लिए एक गाली हूँ। इंसानों को क्या पता कि मेरा जीवन कितना दुःखमय रहा है। जबसे पैदा हुई जाड़ा,गर्मी और बरसात सब मैंने नीले आसमान के तले गुजारी है। कभी किसी ने रोटी दे दी तो किसी ने लात मार दी। रोटी देनेवाले को मैंने पूँछ हिलाकर हमेशा शुक्रिया कहा मगर लात मारनेवाले को कभी काटा नहीं। मैं खुदमुख्तार और आजाद हूँ इसलिए भी मुझे दुःख के थपेड़ों का ज्यादा सामना करना पड़ा। कई बार इंसान हम जैसे स्वतंत्रता पसंद कुत्तों को आवारा भी कह डालते हैं लेकिन हम आवारा नहीं हैं हम तो समय के मारे हैं। इतना कष्ट उठाने के बावजूद मुझे अपनी जिंदगी को लेकर तब तक कोई शिकायत नहीं थी जब तक कि मैं माँ नहीं बनी थी।
                        यही कोई एक महीना पहले मैंने 8 छोटे-छोटे बच्चों को जन्म दिया। 5 काले,दो भूरे और एक चितकबरा। उनमें से चितकबरे को मेरे निवास-स्थान यानि जिस खुले मैदान में मैं रहती हूँ के सामनेवाले घर ने अपना लिया और इस तरह मेरे पास बच गए 7 बच्चे। जब भी कोई इंसान हमारे बच्चों को अपनाता है तो एक साथ हमें दुःख और सुख दोनों होता है। दुःख होता है अपने बच्चे से बिछुड़ने का और सुख होता है यह सोंचकर कि मेरे एक बच्चे का जीवन अब सुरक्षित हो गया। उसी घर के बगल के घर में एक बुढ़िया रहती है जो जब-तब मेरे बच्चों को डंडे और लात से मारती रहती है। बच्चों का क्या वे चले ही जाते हैं उसके कैंपस में रोटी के लालच में।
                                           अभी दस दिन भी नहीं बीते थे मुझे माँ बने कि ठंड पड़नी शुरू हो गई। आप इंसान तो रजाई ओढ़कर आराम से ठंड गुजार लेते हो हम पर इस मौसम में क्या बीतती है यह हमीं जानते हैं। गाँव में तो बुझे हुए अलाव के गड्ढ़ों में बैठकर या घास-भूसे के ढेर में घुसकर हमारे रिश्तेदार गर्मी प्राप्त कर लेते हैं परंतु शहरों में तो खुले आसमान के तले ठिठुरने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं बचता। अकेली थी तो कोई चिंता नहीं थी लेकिन इस बार 7-7 बच्चे भी तो थे। मैं सातों बच्चों को अपने तन से ढँक लेती और रातभर अपने शरीर की गर्मी देती रहती जिससे उनको ठंड न लगे और उनकी मृत्यु न हो। सुबह होते ही फिर पेट भरने की जद्दोजहद। अगर खाना न खाऊँ तो दूध कैसे बने और बच्चों को क्या पिलाऊँ? यकीन मानिए मैं कभी अपने अपने बच्चों को अकेले नहीं छोड़ना चाहती मगर एक तो मेरे पेट की आग और फिर बच्चों को भी दूध चाहिए इसलिए जहाँ-जहाँ इंसान कूड़े फेंकता है मैं भटकती रहती हूँ कि कुछ अवशिष्ट-जूठन मिल जाए।
                                            इसी तरह एक दिन मैं बच्चों के पास नहीं थी। बच्चों को आपस में खेलता-कूदता छोड़कर दूर निकल गई थी कि अचानक इंसानों के तीन-चार शरारती बच्चे आए और मेरे एक काले रंगवाले बच्चे को पूँछ से पकड़कर उठाकर ले गए। मैं दूर से ही सबकुछ देख रही थी। फिर उन्होंने उसको जूठी सब्जियों के रस से भरे गड्ढ़े में डूबा दिया। बेचारा तड़प उठा एक तो भीषण ठंड उस पर मिर्च-मसालों की जलन। उन बच्चों का दिल इतने से ही नहीं माना और वे उस पर पत्थर भी बरसाने लगे। तभी उस पर एक देवदूत सरीखे इंसान की नजर पड़ी और उन्होंने बच्चों को भगाकर मेरे बच्चे को अपने हाथों से बाहर निकाला। जब वह देवदूत बच्चे को अन्य बच्चों के पास छोड़ने आ रहा था तब गलतफहमी में मैं उस पर गुर्राई भी थी मगर उसने कुछ भी बुरा नहीं माना। फिर मैं उस बच्चे को देर तक चाटती रही जिससे उसका तन तो सूख ही जाए उसकी थरथराहट भी दूर हो जाए। खैर किसी तरह मेरा वह प्यारा बच्चा जीवित बच गया।
                          लेकिन वो कहते हैं न कि जब विपदा आती है तो अकेली नहीं आती। कल होकर वही क्रूर बच्चे फिर से आए और मेरे एक भूरेवाले बच्चे को साथ लेकर चले गए। उसी दिन शाम में मैंने उसकी लाश बगल के चौराहे पर पड़ी हुई देखी। वो मेरा सबसे बड़ा बच्चा था। भोला था,तुरंत इंसानों पर विश्वास कर लेता था और थोड़ा-सा पुचकारने पर पीछे-पीछे चल देता था। मैं उसके मृत शरीर को दूर से ही देखती रही और रोती रही,अकेली,चुपचाप। फिर भी मैं उन शरारती बच्चों को शाप नहीं दूंगी मैं इंसान थोड़े ही हूँ कि बदले की भावना रखूँ।
                              यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे निवास के पास एनएच नहीं है अन्यथा मेरे कई बच्चे अब तक सड़क-दुर्घटना के शिकार हो चुके होते और इंसानों की मौत मर चुके होते। आज कई दिनों के बाद आसमान पर चटख धूप खिली हुई है। रातभर मेरे छहों बच्चे मुझसे चिपककर ठंड के मारे कराहते रहे लेकिन अभी आपस में खेल-कूद रहे हैं। उनमें से कुछ इतने बड़े हो गए हैं कि खड़े-खड़े ही मेरा दूध पी लेते हैं और मुझे उनको दूध पिलाने के लिए झुकना या बैठना नहीं पड़ता। लगभग सारे-के-सारे बच्चे अब भोजन की तलाश में खुद ही कूड़ों का चक्कर भी लगाने लगे हैं। मैं क्या करूँ बड़ा होने के साथ उनका पेट भी तो बढ़ने लगा है और सिर्फ मेरे दूध से उनकी भूख नहीं मिट पा रही। इंसानों ने भी अब बचा हुआ भोजन फेंकना कम कर दिया है और जो कुछ भी बचता है वे उसे फ्रिज में रख देते हैं। पता नहीं आनेवाले समय में मेरे बच्चों का जीवन कैसे कटेगा? वैसे भी दिन-प्रतिदिन इंसानों का नैतिक पतन होता जा रहा है। वे अब अपनों को भी नहीं बख्श रहे। हमारे बच्चों को भी तो रहना आखिर इंसानों की दुनिया में ही है। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)    
पुनश्च-11-01-2014, मित्रों कल रात से ही हाजीपुर में बरसात हो रही है। मेरी पड़ोसन कुतिया के तीन काले वाले बच्चे रात की बारिश और ठंड को झेल नहीं सके और रात में ही दम तोड़ दिया। खुले मैदान में वो जीवित रह भी कैसे सकते थे जबकि सबकुछ जमा देनेवाली ठंड पड़ रही हो? सुबह अपने बचे हुए बच्चों को लेकर वो कई परिसरों में गई कि कोई तो ऐसा दयालु इंसान होगा जो उसे और उसके बचे हुए तीनों बच्चों को आश्रय दे देगा लेकिन कहीं तो उस पर डंडों की बरसात की गई तो कहीं लात-जूतों की। बरसात अभी भी जारी है और ठंड लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन वो बेचारी कुतिया अपने बच्चों के साथ लगातार वर्षा में भींग रही है।                  

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

नो वन किड्नैप्ड नवरुणा


मुजफ्फरपुर से अपने घर से सोते समय खिड़की तोड़ कर 18 सितंबर,2012 की रात में अपहृत कर ली गई नवरुणा के मामले में उस समय दिलचस्प मोड़ आ गया जब केन्द्रीय जाँच एजेंसी सीबीआई ने मामले की जाँच के बिहार सरकार के अनुरोध को ठुकराते हुए केस से संबंधित कागजात वापस कर दिए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अब इस मामले का होगा क्या? क्या इस मामले का भी हश्र वही होने जा रहा जो कभी जेसिका हत्याकांड का हुआ था कि नो वन हैव किल्ड जेसिका? अगर अपहरण हुआ तो लड़की गई कहाँ और अगर नहीं हुआ तो लड़की कहाँ है? जब तीन-चार घंटे में निर्भया के साथ दुष्कर्मी दरिंदगी की प्रत्येक हद को तोड़ सकते हैं तो अपहर्त्ताओं ने 12 साल के उस मासूम के साथ इतने दिनों में कितनी दरिंदगी की होगी यह सोंचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
नवरुणा अपहरण कांड न सिर्फ बिहार पुलिस,सीआईडी बल्कि पूरी बिहार सरकार की कार्यक्षमता पर लगा हुआ एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह है। इस अपहरण कांड और उसके उद्भेदन में बिहार सरकार के तंत्र की विफलता से यह आशंका भी जन्म लेती है कि इसके पीछे कहीं-न-कहीं बहुत-ही प्रभावशाली लोगों का हाथ है। वे कदाचित मुजफ्फरपुर में पीढ़ियों से बसे बंगालियों को भगाकर उनकी बहुमूल्य जमीन पर कब्जा जमाना चाहते हैं। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि पिछले दिनों कई बंगालियों पर मुजफ्फरपुर में जानलेवा हमले हो चुके हैं। ये लोग इतने अधिक प्रभावशाली हैं कि शायद इनकी सीधी पहुँच न सिर्फ पटना बल्कि दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठानों तक भी है। संदेह तो यह भी उत्पन्न हो रहा है कि क्या सचमुच बिहार सरकार या पुलिस जाँच को लेकर गंभीर है या फिर जाँच का ढोंग मात्र कर रही है? सीबीआई ने हालाँकि जाँच से इन्कार करके बिहारवासियों व नवरुणा के परिजनों को निराश किया है तथापि उसको इसलिए कर्त्तव्यविमुखता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कानून-व्यवस्था मूल रूप से राज्य का विषय होता है न कि केंद्र का। (हाजीपुर टाईम्स से साभार)

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

कहीं यह कांग्रेस-केजरीवाल का फिक्स मैच तो नहीं?

मित्रों,अभी कुछ दिन जब अरविन्द केजरीवाल अपने कथित पूजनीय गुरू अन्ना हजारे पर कांग्रेस के हाथों की कठपुतली होने और दोनों के बीच सबकुछ पूर्वनिर्धारित होने का आरोप लगा रहे थे तब मैं यह सोंचने में लगा था कि कहीं कांग्रेस और केजरीवाल के बीच फिक्स मैच तो नहीं चल रहा है? वरना ऐसा न तो पहले देखा गया था और न ही सुना गया था कि कोई पार्टी उसी पार्टी की सरकार को बिना शर्त समर्थन दे जिसने उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न-चिन्ह लगा दिया हो और कांग्रेस जैसी धूर्त पार्टी ऐसा महामूर्खता तो बिना वजह के कर ही नहीं सकती।
                    मित्रों,जहाँ तक मुझे लगता है कि आप पार्टी कांग्रेस की प्रयोगशाला में तैयार तजुर्बा है जो मोदी रथ को रोकने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। याद कीजिए कि केजरीवाल को प्रमोट किसने किया-केंद्र की कांग्रेस सरकार ने। अन्ना हों या केजरीवाल दोनों ही कांग्रेस द्वारा फिक्स किए गए मैच को खेल रहे हैं। कहना न होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का आप पार्टी प्रयोग बेहद सफल रहा है। सत्ता का जाम भाजपा के होठों तक पहुँचते-पहुँचते दूर हो गया है। सोंचिए,कल्पना कीजिए कि अगर कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन देकर आप को सत्ता में आने का अवसर नहीं दिया होता तो क्या होता? तब केजरीवाल अभी तक मीडिया से सिरे से गायब हो चुके होते और यह चर्चा शुरू ही नहीं होती कि क्या केजरीवाल अब मोदी का रथ रोकेंगे? जाहिर है कि अगर दिल्ली विधानसभा की तरह ही लोकसभा चुनावों में भी त्रिशंकु की स्थिति बनती है तो सबसे ज्यादा संतोष कांग्रेस को होगा। चाहे मुख्यमंत्री केजरीवाल हों या शीला दीक्षित या फिर प्रधानमंत्री अरविन्द केजरीवाल हों या मनमोहन सोनिया गांधी परिवार को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण सहित अधिकांश मुद्दों पर आप और कांग्रेस की विचारधारा एक है। कांग्रेस को अगर नफरत है तो सिर्फ हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व से जिसके उभार को रोकने के लिए वो केजरीवाल तो क्या ड्रैकुला से भी हाथ मिला सकती है। जो मित्र केजरीवाल के बार-बार जनता के पास जाने और हर काम को जनता की ईच्छा बताकर करने को नई तरह की राजनीति की शुरुआत मान रहे हैं उनको मैं हिटलर का इतिहास पढ़ने की सलाह दूंगा जो केजरीवाल की ही तरह जनता की ईच्छा बताकर बुरे-से-बुरे काम को अंजाम दिया करता था। जनलोकप्रियता की राजनीति हमेशा अच्छा परिणाम नहीं देती बल्कि कई बार शासन को देश-प्रदेश के हित में जनाकांक्षाओं की अनदेखी भी करनी पड़ती है।
                               मित्रों,इस बीच आप पार्टी के नेताओं के सुर भी आरोपों और वादों को लेकर बदलने लगे हैं। पहले जहाँ ये स्वयंभू-स्वघोषित ईमानदार बिजली कंपनियों से कमीशन खाकर कांग्रेस सरकार पर बिजली के दर बढ़ाने के आरोप लगा रहे थे और यह दावा भी कर रहे थे कि वे बिजली कंपनियों का ऑडिट करवाएंगे और अगर जरूरी हुआ तो उनको हटाकर नई कंपनियों को राष्ट्रीय राजधानी में बिजली वितरण का ठेका देंगे अब सरकारी खजाने से सब्सिडी देकर बिजली बिल को आधा करने और प्रत्येक परिवार को 750 लीटर पानी मुफ्त में देने की बातें कर रहे हैं। मियाँ जब सब्सिडी देकर ही वादों को पूरा करना था जो कि एक छोटा-सा बच्चा भी कर सकता है तो फिर चुनाव से पहले हथेली पर दूब जमा देने के वादे किए ही क्यों थे? ये लोग फरमाते हैं कि जनता का पैसा जनता के ऊपर ही खर्च कर देंगे। मगर यह खर्च करना तो हुआ नहीं लुटा देना हुआ जो बाँकी दल पहले से ही टीवी-लैपटॉप-साईकिल जनता के बीच बाँटकर कर रहे हैं। क्या केजरीवाल एंड कंपनी यह बताएगी कि 36000 करोड़ रुपए के कुल वार्षिक बजटवाले दिल्ली राज्य के लिए वो 20-तीस हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी के लिए पैसे कहाँ से लाएगी? इस 36000 करोड़ रुपए में से भी कुछ राशि योजनागत व्यय के लिए होगी जिसमें से वे राशि डाईवर्ट कर नहीं सकते ऐसे में दिल्ली के विकास,नए निर्माण, मेंटनेंस और वेतन के लिए पैसा कहाँ से आएगा? ऐसे में लगता है कि आप पार्टी सरकार बनाने से पहले ही यानि परीक्षा शुरू होने से पहले ही अनुत्तीर्ण हो गई है। केजरीवाल जी चुनाव में मुद्दा बिजली-पानी था न कि यह कि मुख्यमंत्री या विधायकों-मंत्रियों को जेड श्रेणी की सुरक्षा और अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए या नहीं। (हाजीपुर टाईम्स पर भी एक साथ प्रकाशित)

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

चाहते क्या हैं केजरीवाल और अन्ना?

मित्रों,प्रसंग महाभारत से है। तब पांडव और द्रौपदी अज्ञातवास में राजा विराट के यहाँ शरण लिए हुए थे। कौरव सेनानायक सुशर्मा ने दक्षिण दिशा से हमला कर विराट को बंदी बना लिया था। अर्जुन को राजमहल में छोड़कर बाँकी पांडव उनको छुड़ाने जा चुके थे तभी सूचना मिली कि उत्तर से विशाल कौरव सेना ने आक्रमण कर दिया है। रनिवास में मारे भय के सन्नाटा छा गया। तभी विराटकुमार उत्तर जिनके अभी दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे जोश से भर उठे और रथ लेकर युद्धभूमि में पहुँच गए। बृहन्नला बने अर्जुन उनके सारथी थे। जैसे ही बालक उत्तर ने भीष्म,द्रोण,कर्णादि से सुसज्जित कौरव सेना देखी उसके हाथ-पाँव भूल गए और वो रथ से उतरकर भागने लगे। लगता है यही हालत इन दिनों आप पार्टी के अरविन्द केजरीवाल की हो रही है। उन्होंने चुनावों में असंभव वादे कर तो दिए परन्तु अब उनको पूरा करने की सोंचकर ही उनको पसीना आ रहा है और सत्ता की चाबी हाथ में होते हुए भी वे सरकार बनाने से भाग रहे हैं।
               मित्रों,सत्ता की चाबी से एक और प्रसंग याद आ रहा है। वर्ष 2005 में फरवरी में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। जनता ने कुछ इसी तरह का जनादेश दिया। रामविलास पासवान के 32 विधायक थे और बिना उनको समर्थन दिए या उनसे समर्थन लिए कोई भी सरकार नहीं बननी थी। इसी तरह रामविलास जी अड़ गए थे कि हम न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे बल्कि हम तो फिर से चुनाव चाहते हैं। उनको लगा कि दोबारा चुनाव होने पर उनको अकेले बहुमत मिल जाएगा लेकिन जनता ने नवंबर में हुए चुनावों में उनसे सत्ता की चाबी ही छीन ली और तब से बेचारे की हालत दिन-ब-दिन पतली ही होती गई। यह संदर्भ ज्यादा पुराना नहीं है और केजरीवाल अगर चाहें तो इससे शिक्षा ले सकते हैं।
                              मित्रों,इस समय यह पता नहीं चल रहा कि केजरीवाल चाहते क्या हैं। अगर वे दिल्ली में जनलोकायुक्त लाना चाहते हैं या जनता को सचमुच बिजली,पानी और दाल-सब्जियों की महँगाई से राहत दिलवाना चाहते हैं,अगर उनको मुद्दों की राजनीति करनी है तो उनको सरकार बनानी चाहिए। अन्यथा अगर उनको सिर्फ सत्ता की राजनीति करनी है तो फिर करें। कुछ लोग कह सकते हैं कि सरकार तो भाजपा भी बना सकती है उनको मैं बता दूँ कि भाजपा किसी भी स्थिति में सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं है। केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि वे न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे। कांग्रेस भी भाजपा को समर्थन नहीं देगी। अन्य दो को अगर भाजपा अपने साथ ले भी आती है तब भी उसकी संख्या मात्र 34 तक पहुँचती है जबकि केजरीवाल को कांग्रेस बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है और भाजपा भी कह रही है कि यदि केजरीवाल उनसे समर्थन मांगते हैं तो वह जरूर उस पर विचार करेगी इसलिए इस समय दिल्ली अगर किसी की सरकार बन सकती है तो वो है आप पार्टी। माना कि केजरीवाल दिल्ली में फिर से चुनाव चाहते हैं परन्तु अगर चुनावों के बाद भी संख्या-समीकरण नहीं बदलता है तब क्या होगा? तब वे क्या कहेंगे और करेंगे? तब क्या वे यह कहेंगे कि वे तीसरी बार चुनावों में जाना चाहते हैं? फिर चुनावों में जो व्यय होगा उसका बोझ कौन उठाएगा?
                            मित्रों,केजरीवाल ने उन सभी ईमानदार नेताओं को जो अपने मूल दल में घुटन महसूस कर रहे हैं को आप पार्टी में आमंत्रित किया है। तो क्या केजरीवाल को सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार चाहिए,राजनीति में शुचिता और पवित्रता नहीं चाहिए? क्या केजरीवाल की पार्टी में आ जानेभर से कोई ईमानदार हो जाएगा या हो जाता है? इसी बीच कुछ सर्वेक्षणवीरों ने दिल्ली की 7-8 सौ जनता के बीच इस बात पर सर्वेक्षण किया है कि क्या केजरीवाल को वर्तमान स्थिति में सरकार बनाने के प्रयास करने चाहिए या नहीं। जब चुनावरूपी महासर्वेक्षण से यह पता नहीं चला कि दिल्ली की जनता चाहती क्या है तो फिर 7-8 सौ लोगों का सर्वेक्षण करने से क्या पता लगेगा? ये भाई लोग दरअसल पहले नतीजे सेट करते हैं और फिर बाद में सर्वेक्षण करते हैं।
                              मित्रों,इन दिनों अन्ना हजारे संसद के वर्तमान सत्र में जो कि इसका अंतिम सत्र भी है में जनलोकपाल पारित करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे हैं। उनका लक्ष्य पवित्र है लेकिन उनकी कार्यशैली विचित्र है। कभी उनको अतिभ्रष्ट नीतीश शासन स्वच्छ नजर आता है तो कभी वे अपने पुराने चेले अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ नजर आते हैं तो अगले ही पल उनको अरविन्द अच्छे लगने लगते हैं। पता ही नहीं चलता कि अन्ना चाहते क्या हैं? अब तो केंद्र सरकार ने कह भी दिया है कि वर्तमान सत्र में ही लोकपाल विधेयक को पारित करवाया जाएगा इसलिए अब अन्ना के अनशन का कोई मतलब नहीं रह जाता। अन्ना कभी कहते हैं कि उनके मंच पर कोई राजनीतिज्ञ नहीं आएगा फिर महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री से मिलते भी हैं और तब कहते हैं कि उनके मंच पर सबका स्वागत है। इसलिए मैं अन्ना से निवेदन करता हूँ कि पहले वे अपने चित्त को स्थिर कर लें फिर चाहे तो आंदोलन करें,जनजागरण या फिर आमरण अनशन।

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

केजरीवाल की जीत जनता की हार

 मित्रों,दिल्ली, 2014, इंडिया कप टुर्नामेंट का सेमीफाइनल दौर समाप्त हो चुका है। भाजपा ने कांग्रेस को और मोदी ने राहुल को इसमें 4-0 से करारी पटखनी दी है। राजस्थान में तो मोदी नाम के राजनैतिक तूफान ने इतना जोर पकड़ा कि कांग्रेस का तंबू ही उखड़ गया। वहीं मध्य प्रदेश में भी कांग्रेसी खेमा पूरी तरह से नष्ट व बर्बाद गया है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शामियाना पूरी तरह से उखड़़ा तो नहीं लेकिन उसे मोदी नामक तूफान ने भारी क्षति जरूर पहुँचाई है। भारत के दिल दिल्ली में जरूर स्थिति अलग रही जहाँ कांग्रेस को तूफान से जितना नुकसान हुआ उससे कहीं ज्यादा क्षति उसको अरविन्द केजरीवाल नामक बगुला भगत के हाथों उठानी पड़ी और एक तरह से उसका सफाया ही हो गया।
                          मित्रों,जहाँ तीनों राज्यों के परिणामों से मैं अतिप्रसन्न हूँ वहीं दिल्ली के नतीजों से मुझे हर्षमिश्रित दुःख हो रहा है। दुःख इसलिए क्योंकि बड़ी-बड़ी बातों के मसीहा अरविन्द केजरीवाल का न तो साध्य ही पवित्र है और न तो साधन ही। कहने को तो यह व्यक्ति राजनीतिज्ञों को राजनीति सिखाने आया था परन्तु कर वही रहा है जो पहले से अन्य लोग करते रहे हैं। गांधीजी कहा करते थे कि न सिर्फ साध्य की पवित्रता जरूरी है बल्कि साधन की पवित्रता उससे कहीं अधिक आवश्यक है। अरविंद ने यह जीत बरेली दंगों के आरोपी तौकीर रजा और इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रतीक बुखारी के समर्थन से पाई है,उसने यह जीत अमर शहीद मोहनचंद शर्मा की शहादत को कलंकित करके पाई है और उसने यह जीत ईमानदारी का नकली मुखौटा जनता को दिखाकर पाई है।
                                  मित्रों,अरविंद के चुनाव जीत जाने से यह साबित नहीं हो जाता कि अरविंद केजरीवाल सच्चे,देशभक्त और ईमानदार हैं। अगर चुनाव इस बात की कसौटी हो सकती है तो लालू, मुलायम ,माया ,मनमोहन,पवार,राजा,कलमाडी आदि तो दर्जनों बार चुनाव जीत चुके हैं और इनमें से कईयों ने तो कई-कई बार विभिन्न राज्यों पर शासन भी किया है। इसलिए मैंने या अनुरंजन झा ने या किसी अन्य चुनाव परिणामों के आने से पहले केजरीवाल की विश्सनीयता पर जो प्रश्न-चिन्ह लगाए थे वे अब भी अपनी जगह बने हुए हैं और मैं समझता हूँ कि आप पार्टी की शानदार सफलता के बाद उनका महत्त्व और प्रासंगिकता पहले से और भी ज्यादा हो गई है। मैं इस बात के लिए जरूर अरविन्द को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने बाँकी पार्टियों के नेताओं को बता दिया है कि एसी में बैठने से अब काम नहीं चलनेवाला। अब उनको जनता का पास जाकर उनकी समस्याओं को समझना होगा और उनके लिए सड़कों पर भी संघर्ष करना होगा,मुकदमे झेलने पड़ेंगे,जेल भी जाना होगा। (पढ़ें आलेख झूठों का सरताज अरविन्द केजरीवाल)
                               मित्रों,अंत में मैं चारों राज्यों विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान की सभी हिन्दू जनता का अभिनंदन करता हूँ कि उनमें से 90-95 प्रतिशत ने देश की वस्तुस्थिति को समझा। यह उनकी चट्टानी एकजुटता का ही परिणाम है कि जो लोग चुनाव के दौरान मोदी लहर से लगातार इन्कार कर रहे थे अब सन्निपात के शिकार हो गए हैं। इसमें संदेह नहीं कि इन दोनों राज्यों में भाजपा को वोट देकर मुसलमानों के एक बड़े हिस्से ने छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी ठगों के भ्रष्टाचार से लाल-लाल फूले-फूले गालों पर करारा तमाचा जड़ा है। मैं उम्मीद करता हूँ कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भारत की जनता न सिर्फ कांग्रेस बल्कि आम आदमी पार्टी समेत सारी छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी बगुला भगत पार्टियों के वजूद को ही मिटाकर रख देगी और भारतीय राजनीति के रुपहले क्षितिज पर नरेंद्र मोदी नामक ऐसा सूरज चमकेगा जिसकी चमक से चीन तो क्या अमेरिका और यूरोप की आँखें भी चौंधिया जाएंगी।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

हाजीपुर टाईम्स यशस्वी भव

मित्रों,एक आम बिहारी मेधावी छात्र की तरह बचपन से मैंने बस एक ही सपना देखा था आईएएस बनने का परंतु होनी को मंजूर नहीं था। न जाने क्यों जब भी मेरी प्रतियोगिता परीक्षा होती मैं बीमार पड़ जाता या अन्य किसी कारण से उसमें उपस्थित नहीं हो पाता और सिविल सेवा परीक्षा के दौरान भी ऐसा ही हुआ। खैर उसके बाद मैंने सोंचा कि तंत्र को भीतर घुसकर साफ नहीं कर पाया तो क्या हुआ अब पत्रकार बनकर बाहर से हल्ला मचाकर ही साफ करूंगा परंतु कई-कई अखबारों में काम करने के बाद मैंने पाया कि सारे-के-सारे मीडिया संस्थान तो सरकारी विज्ञापन की बीन पर नाचते हैं। फिर मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया और जमकर लिखा भी। लेकिन इसमें भी समस्या थी। कभी किसी अखबार ने मनमाफिक पाया तो ले लिया वरना छोड़ दिया। फिर पेट भरने की समस्या भी सामने थी।
                         मित्रों,इसलिए काफी सोंच-समझकर मैंने इस वेबसाईट हाजीपुर टाईम्स की शुरुआत की है। मैं जानता हूँ कि किसी भी साधन का सदुपयोग भी हो सकता है और दुरूपयोग भी। मैं आपलोगों को भरोसा दिलाता हूँ कि मैं इसका सिर्फ-और-सिर्फ सदुपयोग ही करूंगा। मैं ऐसा इसलिए कर सकता हूँ क्योंकि मैं साईं इतना दीजिए जामे कुटुम्ब समाय में विश्वास रखता हूँ। मेरे लिए पैसा कमाने मूल लक्ष्य न तो कभी रहा है और न ही आगे रहनेवाला है। धनालाभ होना तो चाहिए लेकिन मुख्य उत्पाद के रूप में नहीं सहउत्पाद के रूप में। मेरी यह वेबसाईट साधन बनेगी वैशाली से भ्रष्टाचार के समूल उन्मूलन का और आवाज बनेगी आम आदमी की पीड़ा का। इसके तेवर वही रहेंगे जो मेरे ब्लॉग ब्रज की दुनिया के थे या हैं। हमने यह वेबसाईट मौजूदा ढर्रे पर पत्रकारिता करने के लिए स्थापित नहीं किया है बल्कि संपूर्ण पत्रकारिता जगत को यह बताने के लिए किया है कि पत्रकारिता कैसे की जानी चाहिए। मैं अब तक सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चला हूँ और आगे भी चलता रहूंगा। सरकारी नौकरी अगर मुझे पानी रहती तो मैं रामविलास पासवान के रेलमंत्री रहते हुए सेटिंग करके रेलवे में घुस गया होता। मैं जानता हूँ कि मेरा पथ अग्निपथ है। कदम-कदम पर मुझे मरणांतक पीड़ा झेलनी पड़ेगी परंतु मेरे हौंसले हमेशा की तरह बुलंद हैं।
                                  मित्रों,एक बात और। हो सकता है कि मेरी वेबसाईट का नाम हाजीपुर टाईम्स देखकर आपको लग रहा हो कि इसका परास सिर्फ हाजीपुर शहर या ज्यादा-से-ज्यादा वैशाली जिला रहनेवाला है। ऐसा हरगिज नहीं होने जा रहा है। जैसा न्यूयार्क टाईम्स मतलब केवल न्यूयार्क नहीं होता या वाशिंगटन पोस्ट का अर्थ केवल वाशिंगटन भर नहीं होता वैसे ही हाजीपुर टाईम्स नाम होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इसमें सिर्फ हाजीपुर से समाचार ही शामिल होंगे या हाजीपुर या वैशाली की घटनाओं की ही विवेचना की जाएगी बल्कि इसकी जद में पूरी दुनिया होगी,पूरी मानवता होती। हाँ,उसका परिकेंद्र जरूर हाजीपुर में होगा। अंत में मैं आप सभी शुभेच्छुओं से अपने इस नवजात शिशु के लिए आशीर्वाद की कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि आपलोग मुझे निराश नहीं करेंगे।