मित्रों,दिल्ली, 2014, इंडिया कप टुर्नामेंट का सेमीफाइनल दौर समाप्त हो चुका है। भाजपा ने कांग्रेस को और मोदी ने राहुल को इसमें 4-0 से करारी पटखनी दी है। राजस्थान में तो मोदी नाम के राजनैतिक तूफान ने इतना जोर पकड़ा कि कांग्रेस का तंबू ही उखड़ गया। वहीं मध्य प्रदेश में भी कांग्रेसी खेमा पूरी तरह से नष्ट व बर्बाद गया है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शामियाना पूरी तरह से उखड़़ा तो नहीं लेकिन उसे मोदी नामक तूफान ने भारी क्षति जरूर पहुँचाई है। भारत के दिल दिल्ली में जरूर स्थिति अलग रही जहाँ कांग्रेस को तूफान से जितना नुकसान हुआ उससे कहीं ज्यादा क्षति उसको अरविन्द केजरीवाल नामक बगुला भगत के हाथों उठानी पड़ी और एक तरह से उसका सफाया ही हो गया।
मित्रों,जहाँ तीनों राज्यों के परिणामों से मैं अतिप्रसन्न हूँ वहीं दिल्ली के नतीजों से मुझे हर्षमिश्रित दुःख हो रहा है। दुःख इसलिए क्योंकि बड़ी-बड़ी बातों के मसीहा अरविन्द केजरीवाल का न तो साध्य ही पवित्र है और न तो साधन ही। कहने को तो यह व्यक्ति राजनीतिज्ञों को राजनीति सिखाने आया था परन्तु कर वही रहा है जो पहले से अन्य लोग करते रहे हैं। गांधीजी कहा करते थे कि न सिर्फ साध्य की पवित्रता जरूरी है बल्कि साधन की पवित्रता उससे कहीं अधिक आवश्यक है। अरविंद ने यह जीत बरेली दंगों के आरोपी तौकीर रजा और इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रतीक बुखारी के समर्थन से पाई है,उसने यह जीत अमर शहीद मोहनचंद शर्मा की शहादत को कलंकित करके पाई है और उसने यह जीत ईमानदारी का नकली मुखौटा जनता को दिखाकर पाई है।
मित्रों,अरविंद के चुनाव जीत जाने से यह साबित नहीं हो जाता कि अरविंद केजरीवाल सच्चे,देशभक्त और ईमानदार हैं। अगर चुनाव इस बात की कसौटी हो सकती है तो लालू, मुलायम ,माया ,मनमोहन,पवार,राजा,कलमाडी आदि तो दर्जनों बार चुनाव जीत चुके हैं और इनमें से कईयों ने तो कई-कई बार विभिन्न राज्यों पर शासन भी किया है। इसलिए मैंने या अनुरंजन झा ने या किसी अन्य चुनाव परिणामों के आने से पहले केजरीवाल की विश्सनीयता पर जो प्रश्न-चिन्ह लगाए थे वे अब भी अपनी जगह बने हुए हैं और मैं समझता हूँ कि आप पार्टी की शानदार सफलता के बाद उनका महत्त्व और प्रासंगिकता पहले से और भी ज्यादा हो गई है। मैं इस बात के लिए जरूर अरविन्द को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने बाँकी पार्टियों के नेताओं को बता दिया है कि एसी में बैठने से अब काम नहीं चलनेवाला। अब उनको जनता का पास जाकर उनकी समस्याओं को समझना होगा और उनके लिए सड़कों पर भी संघर्ष करना होगा,मुकदमे झेलने पड़ेंगे,जेल भी जाना होगा। (पढ़ें आलेख झूठों का सरताज अरविन्द केजरीवाल)
मित्रों,अंत में मैं चारों राज्यों विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान की सभी हिन्दू जनता का अभिनंदन करता हूँ कि उनमें से 90-95 प्रतिशत ने देश की वस्तुस्थिति को समझा। यह उनकी चट्टानी एकजुटता का ही परिणाम है कि जो लोग चुनाव के दौरान मोदी लहर से लगातार इन्कार कर रहे थे अब सन्निपात के शिकार हो गए हैं। इसमें संदेह नहीं कि इन दोनों राज्यों में भाजपा को वोट देकर मुसलमानों के एक बड़े हिस्से ने छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी ठगों के भ्रष्टाचार से लाल-लाल फूले-फूले गालों पर करारा तमाचा जड़ा है। मैं उम्मीद करता हूँ कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भारत की जनता न सिर्फ कांग्रेस बल्कि आम आदमी पार्टी समेत सारी छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी बगुला भगत पार्टियों के वजूद को ही मिटाकर रख देगी और भारतीय राजनीति के रुपहले क्षितिज पर नरेंद्र मोदी नामक ऐसा सूरज चमकेगा जिसकी चमक से चीन तो क्या अमेरिका और यूरोप की आँखें भी चौंधिया जाएंगी।
मित्रों,जहाँ तीनों राज्यों के परिणामों से मैं अतिप्रसन्न हूँ वहीं दिल्ली के नतीजों से मुझे हर्षमिश्रित दुःख हो रहा है। दुःख इसलिए क्योंकि बड़ी-बड़ी बातों के मसीहा अरविन्द केजरीवाल का न तो साध्य ही पवित्र है और न तो साधन ही। कहने को तो यह व्यक्ति राजनीतिज्ञों को राजनीति सिखाने आया था परन्तु कर वही रहा है जो पहले से अन्य लोग करते रहे हैं। गांधीजी कहा करते थे कि न सिर्फ साध्य की पवित्रता जरूरी है बल्कि साधन की पवित्रता उससे कहीं अधिक आवश्यक है। अरविंद ने यह जीत बरेली दंगों के आरोपी तौकीर रजा और इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रतीक बुखारी के समर्थन से पाई है,उसने यह जीत अमर शहीद मोहनचंद शर्मा की शहादत को कलंकित करके पाई है और उसने यह जीत ईमानदारी का नकली मुखौटा जनता को दिखाकर पाई है।
मित्रों,अरविंद के चुनाव जीत जाने से यह साबित नहीं हो जाता कि अरविंद केजरीवाल सच्चे,देशभक्त और ईमानदार हैं। अगर चुनाव इस बात की कसौटी हो सकती है तो लालू, मुलायम ,माया ,मनमोहन,पवार,राजा,कलमाडी आदि तो दर्जनों बार चुनाव जीत चुके हैं और इनमें से कईयों ने तो कई-कई बार विभिन्न राज्यों पर शासन भी किया है। इसलिए मैंने या अनुरंजन झा ने या किसी अन्य चुनाव परिणामों के आने से पहले केजरीवाल की विश्सनीयता पर जो प्रश्न-चिन्ह लगाए थे वे अब भी अपनी जगह बने हुए हैं और मैं समझता हूँ कि आप पार्टी की शानदार सफलता के बाद उनका महत्त्व और प्रासंगिकता पहले से और भी ज्यादा हो गई है। मैं इस बात के लिए जरूर अरविन्द को धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने बाँकी पार्टियों के नेताओं को बता दिया है कि एसी में बैठने से अब काम नहीं चलनेवाला। अब उनको जनता का पास जाकर उनकी समस्याओं को समझना होगा और उनके लिए सड़कों पर भी संघर्ष करना होगा,मुकदमे झेलने पड़ेंगे,जेल भी जाना होगा। (पढ़ें आलेख झूठों का सरताज अरविन्द केजरीवाल)
मित्रों,अंत में मैं चारों राज्यों विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान की सभी हिन्दू जनता का अभिनंदन करता हूँ कि उनमें से 90-95 प्रतिशत ने देश की वस्तुस्थिति को समझा। यह उनकी चट्टानी एकजुटता का ही परिणाम है कि जो लोग चुनाव के दौरान मोदी लहर से लगातार इन्कार कर रहे थे अब सन्निपात के शिकार हो गए हैं। इसमें संदेह नहीं कि इन दोनों राज्यों में भाजपा को वोट देकर मुसलमानों के एक बड़े हिस्से ने छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी ठगों के भ्रष्टाचार से लाल-लाल फूले-फूले गालों पर करारा तमाचा जड़ा है। मैं उम्मीद करता हूँ कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भारत की जनता न सिर्फ कांग्रेस बल्कि आम आदमी पार्टी समेत सारी छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी बगुला भगत पार्टियों के वजूद को ही मिटाकर रख देगी और भारतीय राजनीति के रुपहले क्षितिज पर नरेंद्र मोदी नामक ऐसा सूरज चमकेगा जिसकी चमक से चीन तो क्या अमेरिका और यूरोप की आँखें भी चौंधिया जाएंगी।
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