ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। आपने ड्रामें तो बहुत सारे देखे होंगे लेकिन माँ
कसम इतना बड़ा और हाई वोल्टेज ड्रामा कभी नहीं देखा होगा। दिल्ली की पूरी
सरकार सारे नियमों-कानूनों को रौंदती हुई,शपथ-ग्रहण के समय खाई हुई सारी
शपथों पर थूकती हुई निषेधाज्ञा का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करती हुई खुद ही
धरने पर बैठ गई है। चोरी और सीनाजोरी ऐसा उदाहरण शायद ही फिर से कभी देखने
को मिले। जिन्होंने समर्थन देकर सरकार बनवाई यह उनकी ही सरकार के खिलाफ एक
दूसरी सरकार का आंदोलन है। कई विदेशी महिलाओं को इनके मंत्री ने आधी रात
में नाजायज तरीके से बंदी बना लिया। यहाँ तक कि सबके सामने ही
मूत्र-विसर्जन करने के लिए बाध्य किया और खुद ही पीड़ित बनकर अब धरने पर जा
बैठे हैं।
यह सही है कि दिल्ली पुलिस भ्रष्ट है। दिल्ली पुलिस क्या सारे राज्यों की पुलिस भ्रष्ट है। मगर क्या इस तरह पूरी दिल्ली को जाम कर देने,चार-चार मेट्रो स्टेशनों को बंद कर देने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? क्या निर्दोष विदेशी महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने से,उनको नाजायज तरीके से हिरासत में रखने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? गृह-मंत्री द्वारा पैसे लेकर थाना बेचने का आरोप तो पूर्व गृह सचिव व भाजपा नेता आर.के. सिंह ने भी लगाए थे जो कदाचित् सही भी हैं तो क्या चार वांछित लोगों का तबादला कर देने से गृह-मंत्री ईमानदार हो जाएंगे? कल हो सकता है कि केंद्र इनकी मांग मान भी ले क्योंकि इनका रिमोट तो कांग्रेस के पास ही है तो आज जो जनता को परेशानी हुई वो वापस हो जाएगी? क्या अरविन्द केजरीवाल की चांडाल चौकड़ी उसको वापस कर सकती है? सरकार चलाना और आंदोलन करना दो अलग-अलग काम हैं,बिल्कुल अलग-अलग तरीके के काम हैं। अन्ना अच्छे आंदोलनकारी हैं लेकिन कोई जरूरी नहीं कि मौका मिलने पर वे अच्छा शासन भी कर सकें। हो सकता है कि वे इस मामले में टांय-टांय फिस्स हो जाएँ। अरविन्द भी अच्छे आंदोलनकारी हैं,कहीं उससे अच्छे रंगमंच-कलाकार भी हो सकते हैं लेकिन उनका 20 दिन का काम बताता है कि वे शासक अच्छे नहीं हैं बल्कि बुरे हैं। वे ड्रामा कर सकते हैं,हंगामा भी कर सकते हैं लेकिन अच्छी सरकार नहीं दे सकते। कभी इसी कारण से ब्रिटेन की जनता ने उनको द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत दिलानेवाले प्रधानमंत्री चर्चिल को पदमुक्त कर दिया था क्योंकि चर्चिल युद्ध के दिनों के लिए तो इस पद के लिए उपयुक्त थे परंतु निर्माण-काल के लिए अनुपयुक्त।
केजरीवाल को समझना चाहिए कि दिल्ली की सरकार को शासन का पूरा अधिकार नहीं है क्योंकि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और आगे भी रहना चाहिए अन्यथा कल को बिहार-यूपी वालों के साथ भी वही सलूक होगा जो मुम्बई में अक्सर होता है। मैं तो मांग करता हूँ कि मुम्बई को भी केंद्रशासित प्रदेश ही होना चाहिए। फिर भी दिल्ली सरकार के हाथों में काफी अधिकार है जिनका इस्तेमाल करके वो चाहे तो दिल्लीवालों का काफी भला कर सकती है। इस समय दिल्ली की सड़कों पर सर्वाहारा वर्ग के लोग ठंड के मारे दम तोड़ रहे हैं और सरकार गायब है। अरविन्द और उनकी सरकार को वहाँ होना चाहिए न कि धरने पर। दिल्ली की सरकार को तेज गति से उन वादों को पूरा करने के लिए मुस्तैद होना चाहिए जो उसने चुनाव-परिणाम आने से पहले किए थे न कि धरने पर। दिल्ली सरकार को पहले उन नौ लाख लोगों की चिंता करनी चाहिए थी जिन्होंने उनलोगों की बातों में आकर पिछले एक साल से बिजली और पानी का बिल उनके इस वादे पर भरोसा करके नहीं भरा कि हमारी सरकार आने पर हम उनका सारा-का-सारा बिल माफ कर देंगे। उनको उन दिल्लीवासियों की चिंता करनी चाहिए जिनको उनके द्वारा पानी और बिजली पर दी जानेवाली छूट से कोई फायदा नहीं होनेवाला है बल्कि बढ़ी हुई दरों से नुकसान होनेवाला है। शायद ऐसे ही किसी मौके पर किसी दूरदराज के गांव में यह कहावत गढ़ी गई होगी-नाच न जाने आंगन टेढ़ा। करो,करते रहो आंगन को सीधा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
यह सही है कि दिल्ली पुलिस भ्रष्ट है। दिल्ली पुलिस क्या सारे राज्यों की पुलिस भ्रष्ट है। मगर क्या इस तरह पूरी दिल्ली को जाम कर देने,चार-चार मेट्रो स्टेशनों को बंद कर देने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? क्या निर्दोष विदेशी महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने से,उनको नाजायज तरीके से हिरासत में रखने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? गृह-मंत्री द्वारा पैसे लेकर थाना बेचने का आरोप तो पूर्व गृह सचिव व भाजपा नेता आर.के. सिंह ने भी लगाए थे जो कदाचित् सही भी हैं तो क्या चार वांछित लोगों का तबादला कर देने से गृह-मंत्री ईमानदार हो जाएंगे? कल हो सकता है कि केंद्र इनकी मांग मान भी ले क्योंकि इनका रिमोट तो कांग्रेस के पास ही है तो आज जो जनता को परेशानी हुई वो वापस हो जाएगी? क्या अरविन्द केजरीवाल की चांडाल चौकड़ी उसको वापस कर सकती है? सरकार चलाना और आंदोलन करना दो अलग-अलग काम हैं,बिल्कुल अलग-अलग तरीके के काम हैं। अन्ना अच्छे आंदोलनकारी हैं लेकिन कोई जरूरी नहीं कि मौका मिलने पर वे अच्छा शासन भी कर सकें। हो सकता है कि वे इस मामले में टांय-टांय फिस्स हो जाएँ। अरविन्द भी अच्छे आंदोलनकारी हैं,कहीं उससे अच्छे रंगमंच-कलाकार भी हो सकते हैं लेकिन उनका 20 दिन का काम बताता है कि वे शासक अच्छे नहीं हैं बल्कि बुरे हैं। वे ड्रामा कर सकते हैं,हंगामा भी कर सकते हैं लेकिन अच्छी सरकार नहीं दे सकते। कभी इसी कारण से ब्रिटेन की जनता ने उनको द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत दिलानेवाले प्रधानमंत्री चर्चिल को पदमुक्त कर दिया था क्योंकि चर्चिल युद्ध के दिनों के लिए तो इस पद के लिए उपयुक्त थे परंतु निर्माण-काल के लिए अनुपयुक्त।
केजरीवाल को समझना चाहिए कि दिल्ली की सरकार को शासन का पूरा अधिकार नहीं है क्योंकि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और आगे भी रहना चाहिए अन्यथा कल को बिहार-यूपी वालों के साथ भी वही सलूक होगा जो मुम्बई में अक्सर होता है। मैं तो मांग करता हूँ कि मुम्बई को भी केंद्रशासित प्रदेश ही होना चाहिए। फिर भी दिल्ली सरकार के हाथों में काफी अधिकार है जिनका इस्तेमाल करके वो चाहे तो दिल्लीवालों का काफी भला कर सकती है। इस समय दिल्ली की सड़कों पर सर्वाहारा वर्ग के लोग ठंड के मारे दम तोड़ रहे हैं और सरकार गायब है। अरविन्द और उनकी सरकार को वहाँ होना चाहिए न कि धरने पर। दिल्ली की सरकार को तेज गति से उन वादों को पूरा करने के लिए मुस्तैद होना चाहिए जो उसने चुनाव-परिणाम आने से पहले किए थे न कि धरने पर। दिल्ली सरकार को पहले उन नौ लाख लोगों की चिंता करनी चाहिए थी जिन्होंने उनलोगों की बातों में आकर पिछले एक साल से बिजली और पानी का बिल उनके इस वादे पर भरोसा करके नहीं भरा कि हमारी सरकार आने पर हम उनका सारा-का-सारा बिल माफ कर देंगे। उनको उन दिल्लीवासियों की चिंता करनी चाहिए जिनको उनके द्वारा पानी और बिजली पर दी जानेवाली छूट से कोई फायदा नहीं होनेवाला है बल्कि बढ़ी हुई दरों से नुकसान होनेवाला है। शायद ऐसे ही किसी मौके पर किसी दूरदराज के गांव में यह कहावत गढ़ी गई होगी-नाच न जाने आंगन टेढ़ा। करो,करते रहो आंगन को सीधा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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