ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। संस्कृत में ऐसी बेशुमार शिक्षाप्रद कहानियाँ
हैं जिनसे हम वर्तमान जीवन में भी सीख ले सकते हैं। कभी कांग्रेस का भी
संस्कृत और भारतीय संस्कृति से लगाव हुआ करता था लेकिन अब तो कांग्रेस के
कर्णधार अमेरिका-इंग्लैंड से पढ़कर आते हैं सो वे अपने संस्कृत वांग्मय से
पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं उनसे शिक्षा लेने की बात तो दूर ही रही।
हमने बचपन में अपनी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक में एक कथा पढ़ी थी-नक-वकुल कथा। कथा एक बगुले की है जो एक पेड़ की कोटर में परिवार सहित रहता है। उसके कोटर से एक बिल जाता है जो एक साँप के बिल तक जाता है। परिणाम यह होता है कि जब भी मादा बगुला अंडा देती है और उनके बच्चे होते हैं साँप आकर उनका भक्षण कर जाता है। इस तरह बगुला दम्पति परेशान रहता है कि आगे हमारा संतति कैसे चलेगी। फिर एक दिन बगुला पेड़ के पास एक नेवले को देखता है और साँप को मारने की फुलप्रुफ योजना बनाता है। वह नदी से मछली पकड़कर लाता है और उसके टुकड़े करके नेवले के बिल से लेकर साँप के बिल तक बिछा देता है। नेवला भी ठहरा मांसाहारी सो मछलियों के टुकड़ों को खाता-खाता अंत में साँप के बिल तक पहुँचता है और साँप को मार देता है। लेकिन अब बगुले के समक्ष एक नई समस्या खड़ी हो जाती है। साँप को मारने के बाद नेवला वहीं से वापस नहीं हो जाता बल्कि पेड़ पर बिल से और ऊपर चढ़ता हुआ नेवला बगुले के कोटर तक पहुँच जाता है और उसके सारे अंडों और बच्चों को खा जाता है। इस तरह बगुले की समस्या जस-की-तस बनी रह जाती है। साँप का तो ईलाज उसने कर दिया अब नेवले का ईलाज कहाँ से लाए?
मेरा मानना है कि अगर कांग्रेसियों ने यह नीति-कथा पढ़ी होती तो आज उनके समक्ष और देश के सामने भी अरविन्द केजरीवाल एंड गिरोह की समस्या नहीं खड़ी हुई होती। माना कि अरविन्द केजरीवाल मोदी-रथ को आगे बढ़ने से रोक देगा लेकिन उसके बाद वो देश में जो अराजकता फैलाएगा जिस तरह कि इन दिनों दिल्ली में फैला रहा है तो उसका ईलाज कांग्रेस और देश कहाँ से लाएगा? यह आदमी मिनट-मिनट पर झूठ बोलता है,पैंतरे बदलता है। आज यह न्यायिक जाँच और न्यायपालिका पर अविश्वास प्रकट करते हुए मांग नहीं मानने पर गणतंत्र दिवस जो भारत की अस्मिता का प्रतीक है को बाधित करने की धमकी दे रहा है कल कहेगा कि वो खुद नया संविधान बनाएगा क्योंकि पूरे देश में सिर्फ उसी के पास दिमाग है और पूरे देश को उस संविधान पर चलना पड़ेगा। आज वो संवैधानिक पद पर रहते हुए खुलेआम,बेशर्मी से कानून तोड़ रहा है,निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर रहा है और कांग्रेस उसको गिरफ्तार करने के बदले सिर्फ मुँहजबानी आलोचना कर रही है कल वो कहेगा कि मैं जो कहता हूँ वही कानून है और सबको न चाहते हुए भी उसी के कानून को मानना पड़ेगा तब कांग्रेस के साथ-साथ पूरे देश के सामने जो समस्या खड़ी होगी क्या उसका हल है कांग्रेस के पास? जिस आदमी को कश्मीरी अलगाववाद,वामपंथी उग्रवाद के समर्थन के आरोप में जेल में होना चाहिए उसे कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया? अगर केजरीवाल की जगह कोई आम आदमी होता और उसने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया होता तो कब की पुलिस उसे वहाँ से गिरफ्तार कर हटा चुकी होती फिर स्वघोषित आम आदमी केजरीवाल के साथ वीआईपी जैसा व्यवहार क्यों? देश रहेगा,संविधान रहेगा,कानून रहेगा तभी कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने की संभावना भी रहेगी लेकिन अगर एक अराजकतावादी को कांग्रेस साजिशन देश का भाग्य-विधाता बन जाने देगी तो न तो देश रहेगा न ही देश का बाबा साहेब का बनाया संविधान और न ही कानून का राज। एक पागल दिन-रात जनता की ईच्छा के नाम पर उल्टे-सीधे आदेश दिया करेगा और लोग उत्तर कोरिया के नागरिकों की तरह न चाहते हुए उन पर अमल करने को बाध्य होंगे। तब उस नेवले का ईलाज कांग्रेस के बगुले कहाँ से लाएंगे? तब क्या उन कांग्रेसी घुनों के साथ-साथ देश की गेहूँ रूपी जनता भी अराजकता और एक पागल की प्रलाप रूपी चक्की में नहीं पिस जाएगी?
मुझे याद आता है अपना पढ़ा एक प्रसंग। तब कांग्रेस नेता सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। उनके पति आचार्य कृपलानी कांग्रेस छोड़ चुके थे और लखनऊ में कांग्रेस-सरकार के खिलाफ ही आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने भी निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया। डीजीपी ने सुचेता जी से पूछा कि क्या करें? सुचेता जी ने बेहिचक गिरफ्तार करने का आदेश दिया। शाम में वे खुद थाने में जमानत देने भी पहुँची तो आचार्य कृपलानी ने नाराजगी दिखाते हुए पूछा कि यह सब क्या है? पहले गिरफ्तार करवाया अब जमानत दे रही हो तब सुचेता जी ने कहा था कि गिरफ्तार करवाना एक मुख्यमंत्री का कर्त्तव्य था और अब जमानत देना एक पत्नी का फर्ज है। कहाँ गई कांग्रेसियों की वो नैतिकता? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
हमने बचपन में अपनी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक में एक कथा पढ़ी थी-नक-वकुल कथा। कथा एक बगुले की है जो एक पेड़ की कोटर में परिवार सहित रहता है। उसके कोटर से एक बिल जाता है जो एक साँप के बिल तक जाता है। परिणाम यह होता है कि जब भी मादा बगुला अंडा देती है और उनके बच्चे होते हैं साँप आकर उनका भक्षण कर जाता है। इस तरह बगुला दम्पति परेशान रहता है कि आगे हमारा संतति कैसे चलेगी। फिर एक दिन बगुला पेड़ के पास एक नेवले को देखता है और साँप को मारने की फुलप्रुफ योजना बनाता है। वह नदी से मछली पकड़कर लाता है और उसके टुकड़े करके नेवले के बिल से लेकर साँप के बिल तक बिछा देता है। नेवला भी ठहरा मांसाहारी सो मछलियों के टुकड़ों को खाता-खाता अंत में साँप के बिल तक पहुँचता है और साँप को मार देता है। लेकिन अब बगुले के समक्ष एक नई समस्या खड़ी हो जाती है। साँप को मारने के बाद नेवला वहीं से वापस नहीं हो जाता बल्कि पेड़ पर बिल से और ऊपर चढ़ता हुआ नेवला बगुले के कोटर तक पहुँच जाता है और उसके सारे अंडों और बच्चों को खा जाता है। इस तरह बगुले की समस्या जस-की-तस बनी रह जाती है। साँप का तो ईलाज उसने कर दिया अब नेवले का ईलाज कहाँ से लाए?
मेरा मानना है कि अगर कांग्रेसियों ने यह नीति-कथा पढ़ी होती तो आज उनके समक्ष और देश के सामने भी अरविन्द केजरीवाल एंड गिरोह की समस्या नहीं खड़ी हुई होती। माना कि अरविन्द केजरीवाल मोदी-रथ को आगे बढ़ने से रोक देगा लेकिन उसके बाद वो देश में जो अराजकता फैलाएगा जिस तरह कि इन दिनों दिल्ली में फैला रहा है तो उसका ईलाज कांग्रेस और देश कहाँ से लाएगा? यह आदमी मिनट-मिनट पर झूठ बोलता है,पैंतरे बदलता है। आज यह न्यायिक जाँच और न्यायपालिका पर अविश्वास प्रकट करते हुए मांग नहीं मानने पर गणतंत्र दिवस जो भारत की अस्मिता का प्रतीक है को बाधित करने की धमकी दे रहा है कल कहेगा कि वो खुद नया संविधान बनाएगा क्योंकि पूरे देश में सिर्फ उसी के पास दिमाग है और पूरे देश को उस संविधान पर चलना पड़ेगा। आज वो संवैधानिक पद पर रहते हुए खुलेआम,बेशर्मी से कानून तोड़ रहा है,निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर रहा है और कांग्रेस उसको गिरफ्तार करने के बदले सिर्फ मुँहजबानी आलोचना कर रही है कल वो कहेगा कि मैं जो कहता हूँ वही कानून है और सबको न चाहते हुए भी उसी के कानून को मानना पड़ेगा तब कांग्रेस के साथ-साथ पूरे देश के सामने जो समस्या खड़ी होगी क्या उसका हल है कांग्रेस के पास? जिस आदमी को कश्मीरी अलगाववाद,वामपंथी उग्रवाद के समर्थन के आरोप में जेल में होना चाहिए उसे कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया? अगर केजरीवाल की जगह कोई आम आदमी होता और उसने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया होता तो कब की पुलिस उसे वहाँ से गिरफ्तार कर हटा चुकी होती फिर स्वघोषित आम आदमी केजरीवाल के साथ वीआईपी जैसा व्यवहार क्यों? देश रहेगा,संविधान रहेगा,कानून रहेगा तभी कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने की संभावना भी रहेगी लेकिन अगर एक अराजकतावादी को कांग्रेस साजिशन देश का भाग्य-विधाता बन जाने देगी तो न तो देश रहेगा न ही देश का बाबा साहेब का बनाया संविधान और न ही कानून का राज। एक पागल दिन-रात जनता की ईच्छा के नाम पर उल्टे-सीधे आदेश दिया करेगा और लोग उत्तर कोरिया के नागरिकों की तरह न चाहते हुए उन पर अमल करने को बाध्य होंगे। तब उस नेवले का ईलाज कांग्रेस के बगुले कहाँ से लाएंगे? तब क्या उन कांग्रेसी घुनों के साथ-साथ देश की गेहूँ रूपी जनता भी अराजकता और एक पागल की प्रलाप रूपी चक्की में नहीं पिस जाएगी?
मुझे याद आता है अपना पढ़ा एक प्रसंग। तब कांग्रेस नेता सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। उनके पति आचार्य कृपलानी कांग्रेस छोड़ चुके थे और लखनऊ में कांग्रेस-सरकार के खिलाफ ही आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने भी निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया। डीजीपी ने सुचेता जी से पूछा कि क्या करें? सुचेता जी ने बेहिचक गिरफ्तार करने का आदेश दिया। शाम में वे खुद थाने में जमानत देने भी पहुँची तो आचार्य कृपलानी ने नाराजगी दिखाते हुए पूछा कि यह सब क्या है? पहले गिरफ्तार करवाया अब जमानत दे रही हो तब सुचेता जी ने कहा था कि गिरफ्तार करवाना एक मुख्यमंत्री का कर्त्तव्य था और अब जमानत देना एक पत्नी का फर्ज है। कहाँ गई कांग्रेसियों की वो नैतिकता? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें