21-06-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,मैं पहले के कई आलेखों में
अपनी ससुराल के गांव यानि वैशाली जिले के देसरी प्रखंड के कुबतपुर
(भिखनपुरा) का जिक्र कर चुका हूँ। इन आलेखों में आपको मैंने बताया है कि इस
गांव की बिजली सुशासन बाबू के शासन की शुरुआत में ही चली गई। वजह यह थी कि
ट्रांसफार्मर जल गया था और ठेकेदार रंजन सिंह 20000 रु. घूस में मांग रहा
था। बाद में मेरे लिखने के बाद ठेकेदार और जूनियर इंजीनियर गांव आए। दोनों
ने इसी साल 1 मई को खंभों पर से तार उतरवा दिया और जब मैंने जेई को फोन
करके पूछा तो उन्होंने बताया कि अब इस तार की जरुरत नहीं है क्योंकि गांव
में अब तीन फेजवाली बिजली आएगी। बाद में ट्रांसफार्मर भी लगा दिया गया
लेकिन पोलों पर से तार अभी भी गायब है।
मित्रों,कभी ठेकेदार और जेई कहते हैं कि छोटे ट्रांसफार्मरों द्वारा बिजली आपूर्ति की जाएगी जैसा कि राजीव गांधी विद्युतीकरण परियोजना के अंतर्गत किया जाता है तो भी कभी कहते हैं कि बड़े ट्रांसफार्मर पर से बिजली दी जाएगी। इस बीच वे खंभों पर से दौड़ाने के लिए उपभोक्ताओं से ही तार मांग रहे हैं। कई उपभोक्ता तार खरीदकर उनका इंतजार भी कर रहे हैं लेकिन पिछले दो सप्ताह से उनका कोई अता-पता नहीं है। इस बीच जब मैंने जेई से उसी नंबर पर संपर्क करना चाहा जिस नंबर पर 1 मई को बात हुई थी तो उस नंबर से जो कोई भी फोन उठाता है रांग नंबर कहकर फोन काट देता है। इतना ही नहीं जिले के कार्यपालक अभियंता रामेश्वर सिंह का नंबर भी अब नहीं लग रहा है और डायल करने पर उधर से घोषणा सुनाई देती है कि इस नंबर से कॉल डाईवर्ट कर दिया गया है और फिर फोन कट जाता है। पता ही चल रहा है क्या किया जाए और किससे बात की जाए। बिजली मंत्री को फोन करिए तो पीए कभी कहता है कि साहब हाउस में हैं तो कभी कहता है कि मीटिंग कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल वर्ष 2006 में तक माखनलाल पत्रकारिता विश्ववि. के नोएडा परिसर का था जब मैंने वहाँ नामांकन लिया है। वहाँ के निदेशक अशोक टंडन हमेशा स्टाफ की मीटिंग करते रहते लेकिन विश्ववि. में कोई सुधार नहीं हो रहा था। तब मैं छात्रों के साथ मीटिंग में ही घुस गया था और कहा था कि कभी हमारी भी तो सुनिए ऐसे मीटिंग से क्या लाभ? फिर तो जो हुआ वह इतिहास है। परिसर बदला और फिर बहुत कुछ बदल गया।
मित्रों,सुशासन बाबू तो चले गए और अब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इनके शासन-काल में भी कुबतपुर के लोगों को बिजली नसीब हो पाएगी। कहीं कोई सुननेवाला नहीं है। तंत्र के संचालक अधिकारी जैसे मन होता है वैसे काम करते हैं। राज्य का सबसे भ्रष्ट विभाग बिजली विभाग राज्य के लोगों को सहूलियत नहीं देता बल्कि झटके देता है। बिना रिश्वत दिए शहर के घरों में भी बिजली नहीं आती है तो फिर कुबतपुर में कैसे आएगी?मैं समझता हूँ कि कुबतपुर में बिजली आपूर्ति नीतीश जी के शासन का भी लिटमस टेस्ट था और मांझी जी के शासन का भी लिटमस टेस्ट है। देखना है कि मांझी सरकार इस टेस्ट में पास होती है या नहीं। इस गांव में बिना रिश्वत दिए बिजली आती है या नहीं। कुबतपुर में बिजली का आना या न आ पाना सिर्फ इस बात का फैसला नहीं करेगा कि राज्य में सुशासन है या नहीं बल्कि इस बात का भी निर्णय करेगा कि राज्य में शासन नाम की कोई चीज है भी या नहीं या फिर निरी अराजकता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,कभी ठेकेदार और जेई कहते हैं कि छोटे ट्रांसफार्मरों द्वारा बिजली आपूर्ति की जाएगी जैसा कि राजीव गांधी विद्युतीकरण परियोजना के अंतर्गत किया जाता है तो भी कभी कहते हैं कि बड़े ट्रांसफार्मर पर से बिजली दी जाएगी। इस बीच वे खंभों पर से दौड़ाने के लिए उपभोक्ताओं से ही तार मांग रहे हैं। कई उपभोक्ता तार खरीदकर उनका इंतजार भी कर रहे हैं लेकिन पिछले दो सप्ताह से उनका कोई अता-पता नहीं है। इस बीच जब मैंने जेई से उसी नंबर पर संपर्क करना चाहा जिस नंबर पर 1 मई को बात हुई थी तो उस नंबर से जो कोई भी फोन उठाता है रांग नंबर कहकर फोन काट देता है। इतना ही नहीं जिले के कार्यपालक अभियंता रामेश्वर सिंह का नंबर भी अब नहीं लग रहा है और डायल करने पर उधर से घोषणा सुनाई देती है कि इस नंबर से कॉल डाईवर्ट कर दिया गया है और फिर फोन कट जाता है। पता ही चल रहा है क्या किया जाए और किससे बात की जाए। बिजली मंत्री को फोन करिए तो पीए कभी कहता है कि साहब हाउस में हैं तो कभी कहता है कि मीटिंग कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल वर्ष 2006 में तक माखनलाल पत्रकारिता विश्ववि. के नोएडा परिसर का था जब मैंने वहाँ नामांकन लिया है। वहाँ के निदेशक अशोक टंडन हमेशा स्टाफ की मीटिंग करते रहते लेकिन विश्ववि. में कोई सुधार नहीं हो रहा था। तब मैं छात्रों के साथ मीटिंग में ही घुस गया था और कहा था कि कभी हमारी भी तो सुनिए ऐसे मीटिंग से क्या लाभ? फिर तो जो हुआ वह इतिहास है। परिसर बदला और फिर बहुत कुछ बदल गया।
मित्रों,सुशासन बाबू तो चले गए और अब जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इनके शासन-काल में भी कुबतपुर के लोगों को बिजली नसीब हो पाएगी। कहीं कोई सुननेवाला नहीं है। तंत्र के संचालक अधिकारी जैसे मन होता है वैसे काम करते हैं। राज्य का सबसे भ्रष्ट विभाग बिजली विभाग राज्य के लोगों को सहूलियत नहीं देता बल्कि झटके देता है। बिना रिश्वत दिए शहर के घरों में भी बिजली नहीं आती है तो फिर कुबतपुर में कैसे आएगी?मैं समझता हूँ कि कुबतपुर में बिजली आपूर्ति नीतीश जी के शासन का भी लिटमस टेस्ट था और मांझी जी के शासन का भी लिटमस टेस्ट है। देखना है कि मांझी सरकार इस टेस्ट में पास होती है या नहीं। इस गांव में बिना रिश्वत दिए बिजली आती है या नहीं। कुबतपुर में बिजली का आना या न आ पाना सिर्फ इस बात का फैसला नहीं करेगा कि राज्य में सुशासन है या नहीं बल्कि इस बात का भी निर्णय करेगा कि राज्य में शासन नाम की कोई चीज है भी या नहीं या फिर निरी अराजकता है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें