गुरुवार, 28 अगस्त 2014

बिहार सरकार की वेबसाईट पर मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों के गलत नंबर हैं दर्ज

28 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,बिहार सरकार के मंत्रियों की हरकतों पर अगर नजर डालें तो वे लोग ऑन लाईन गवर्नमेंस का खूब जिक्र करते हैं। अभी कल-परसों ही जब दिल्ली में प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया पर राज्यों के आईटी मंत्रियों की बैठक बुलाई थी तो बिहार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री शाहिद अली खान इस तरह से बिहार सरकार के डिजिटलाईजेशन पर बोल रहे थे मानो इस मामले में बिहार ने बाँकी राज्यों पर मीलों की बढ़त हासिल कर ली हो लेकिन हकीकत तो यह है कि बिहार सरकार की अधिकृत वेबसाईट पर मुख्यमंत्री का फोन नंबर ही गलत दिया गया है। अगर आपने बिहार सरकार की वेबसाईट पर से कोई नंबर नोट किया है तो कृपया जाँच लीजिए कि वह नंबर काम कर भी रहा है कि नहीं।
मित्रों,बिहार सरकार के प्रशासन में न सिर्फ तृणमूल स्तर पर अव्यवस्था का वातावरण है बल्कि उच्च स्तर पर ऐसी ही स्थिति है और बिहार सरकार की वेवसाईट भी इसका अपवाद नहीं है। उदाहरण के लिए बिहार सरकार की मुख्य वेबसाईट पर बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के कार्यालय के जो दो फोन नंबर 0612-2223886 और 2224784 दिए गए हैं वे दोनों ही नंबर गलत हैं और काम नहीं करते हैं। इसी तरह बिहार सरकार में पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की वेबसाईट पर विभागीय मंत्री वैद्यनाथ सहनी का जो नंबर दिया गया है 0612-2230496 भी गलत नंबर है तो भवन निर्माण विभाग की वेबसाईट पर भवन निर्माण मंत्री दामोदर राऊत और कला संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री विनय बिहारी का नंबर ही नहीं दिया गया है लगता है कि मंत्रीजी गोपनीयता में कुछ ज्यादा ही विश्वास रखते हैं।
मित्रों,परिवहन विभाग की वेबसाईट पर विभागीय मंत्री रमई राम का जो नंबर दिया गया है उस पर सेवा अस्थायी रूप से बंद है तो इतिहास में अपना ऊँचा स्थान रखने वाले बिहार के पर्यटन विभाग की वेबसाईट रहस्यमय परीकथा की तरह प्रतीत होती है जिस पर फोटो-ही-फोटो है लेकिन इस विभाग का मंत्री कौन है और उसका नंबर क्या है का कहीं अता-पता नहीं है।
मित्रों,वाणिज्य कर विभाग की तो वेबसाईट खुलती ही नहीं है। बड़े ही दिलचस्प तरीके से सहकारिता मंत्री जय कुमार सिंह  के कार्यालय का वही नंबर दिया गया है जो मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का है 0612-2224784 और जो काम भी नहीं करता। इसी तरह वित्त विभाग की वेबसाईट पर वित्त मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव का जो नंबर दिया गया है वही नंबर मुख्यमंत्री मांझी का भी है-0612-2223886 तो ऊर्जा विभाग की वेबसाईट पर विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का जो नंबर दिया गया है वह भी गलत है और लगाने पर यह नंबर मौजूद नहीं है की घोषणा सुनाई देती है। इसी तरह खनन और भूतत्व विभाग के मंत्री रामलखन राम रमन का भी वही नंबर बताया गया है जो मुख्यमंत्री का है जो गलत भी है-2223886।
मित्रों,उद्योग मंत्री भीम सिंह का एक नंबर 0612-2215430 गलत है तो दूसरा नंबर 2215431 सही है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की वेबसाईट से विभाग का मंत्री कौन है का पता ही नहीं लगता। पहले इंफॉरमेशन और फिर अबाउट अस पर क्लिक करने पर पता चलता है विभाग के सचिव के रूप में प्रत्यय अमृत हैं। पता नहीं यह जानकारी सही है या गलत लेकिन उनका जो फोन नंबर-0612-2212390 दिया गया वह जरूर गलत है।
मित्रों,सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की वेबसाईट पर कॉन्टैक्ट पर क्लिक करने पर जो पेज खुलता है उस पर सर्च में ऑनरेबल मिनिस्टर डालने पर फिर से वही पेज खुल जाता है और बार-बार कोशिश करने पर भी फिर से खुलता रहता है मगर नंबर नहीं मिलता। संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार का तो विभाग की वेबसाईट पर नंबर ही नहीं दिया गया है और वेबसाईट पर दी गई फोन डाइरेक्ट्री का लिंक भी काम नहीं करता है।
मित्रों,पंचायती राज विभाग की वेबसाईट पर विभाग के मंत्री विनोद प्रसाद यादव का नंबर नहीं दिया गया है और न ही यहाँ दिया गया कॉन्टैक्ट्स लिंक ही काम करता है। हाँ वेबसाईट के डाटाबेस लिंक पर क्लिक करके आप राज्य की किसी भी पंचायत,जिला परिषद या पंचायत समिति प्रतिनिधि का नाम और फोन नंबर जरूर प्राप्त कर सकते हैं।
मित्रों,अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग की वेबसाईट पर विभाग का मंत्री कौन है का पता ही नहीं चलता,Directory पर क्लिक करने पर विभागीय सचिव हुकुम सिंह मीणा का नंबर प्राप्त होता है जो गलत है। इसी तरह की अव्यवस्था की शिकार समाज कल्याण मंत्रालय की वेबसाईट भी है जहाँ महिला मंत्री की तस्वीर तो लगी हुई है लेकिन नाम तक नहीं बताया गया है फोन नंबर तो दूर की बात रही। इसी वेबसाईट पर उपलब्ध एक लिंक मीट द मिनिस्टर पर जाने पर भी न तो मंत्री के नाम का और न ही नंबर का ही पता चल पाता है। वैसे इस विभाग को इन दिनों श्रीमती लेसी सिंह संभाल रही हैं। बिजली विभाग की मनमानी से पूरे बिहार की बिहार की जनता परेशान हैं लेकिन बिहार सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं। तभी तो ऊर्जा विभाग और बीएसपीएचसीएल की वेबसाईट पर विभागीय मंत्री श्री जीतनराम मांझी और विभागीय सचिव अमृत प्रत्यय दोनों के ही नंबर गलत हैं। न तो ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाईट पर,न तो बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड और न ही नॉर्थ बिहार पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड की वेबसाईट पर ही उपभोक्ताओं के लिए कोई कस्टमर केयर की सुविधा दी गई है। एनबीपीडीसीएल की वेबसाईट पर एक नंबर दिया भी गया है मगर उस पर सिर्फ ट्रांसफार्मर के जलने या काम नहीं करने की ही शिकायत की जा सकती है।
मित्रों,कुल मिलाकर बिहार में किस तरह से शासन-प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का सदुपयोग किया जा रहा है का सबसे अच्छा उदाहरण है बिहार सरकार की वेबसाईट। बिहार सरकार में इन दिनों हर स्तर पर हर विभाग में कहीँ भी व्यवस्था नाम की चीज नहीं है। ऐसा हो भी क्यों नहीं जो सरकार अपनी वेबसाईट तक को दुरूस्त नहीं रख पाती हो वो राज्य को कैसे दुरूस्त करेगी और रखेगी?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बिहार के उपचुनाव भाजपा के लिए सबक?!

26 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,वैसे तो बिहार में जो दस सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं उनका कोई मतलब नहीं था। इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़नेवाला था और मुझे नहीं लगता कि वर्तमान विधानसभा के बचे हुए एक साल में जीतनेवाले 10 उम्मीदवार अपने क्षेत्र के लिए कुछ खास कर पाएंगे लेकिन फिर भी चुनाव तो चुनाव होते हैं। मैच चाहे लीग स्तर का हो या नॉक आउट,20-20 हो या टेस्ट, जीत जीत होती है और हार हार।
मित्रों,इस साल के लोकसभा चुनावों में जिस तरह एनडीए ने बिहार में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था लगता है कि भाजपा के बिहारी नेता उससे कुछ ज्यादा ही फूल गए। उनको लगा कि बिहार की जनता ने सिर्फ उनको ही वोट दिया है और उसके सामने विकल्पहीनता की स्थिति है। वास्तविकता तो यह है कि उस समय बिहार की जनता ने बिहार की जनता की तरह नहीं बल्कि भारत की जनता के रूप में वोट दिया था। वास्तविकता यह भी है कि उस समय भी एनडीए के पक्ष में कम विपक्ष में ज्यादा मत पड़े थे। फिर उस चुनाव में भाजपा के पास एक मजबूत,प्रतिभासम्पन्न और प्रखर सेनापति मौजूद था। उस समय भाजपा का प्रचार अभियान भी काफी सुव्यवस्थित और सुसंगठित तरीके से चला था।
मित्रों,लगता है कि एनडीए ने इन उपचुनावों को गंभीरता से लिया ही नहीं जबकि महागठबंधन ने इस अपने अस्तित्व का प्रश्न बना लिया था। शायद यह कारण भी था कि भाजपा समर्थक मतदाताओं ने मतदान में कम संख्या में भाग लिया जिसका प्रभाव कुल मतदान की संख्य़ा पर भी पड़ा। 10 सीटों में से 9 सीटों पर सिर्फ भाजपा चुनाव लड़ रही थी और लोजपा ने सिर्फ एक सीट पर और रालोसपा ने तो किसी भी सीट पर लड़ने में अपनी रूचि ही नहीं दिखाई शायद इसलिए उसको अपने बाँकी दो सहयोगी दलों के समर्थकों का मत भी पूरी तरह से नहीं मिल सका। रही-सही कसर टिकट-वितरण में की गई गड़बड़ी ने पूरी कर दी जिससे पार्टी को लगभग हरेक सीट पर बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए मोहिउद्दीननगर में हमेशा राजद का वोट बैंक ज्यादा मुखर और सशक्त रहा है फिर भी वहाँ भाजपा ने बाहरी उम्मीदवार को खड़ा कर दिया। मतलब भाजपा को अभी भी निचले स्तर तक स्थानीय व जिताऊ उम्मीदवार तलाशने में परेशानी हो रही है जैसा कि 2010 के विधानसभा चुनावों में भी हुआ था और यह निश्चित रूप से पार्टी के लिए चिंता का विषय है। जब किसी पार्टी के पक्ष में लहर चल रही होती है तब ऐरे-गैरे नत्थू खैरे भी जीत जाया करते हैं लेकिन जब लहर नहीं चल रही होती है तब मतदाता उम्मीदवार को भी देखता है और भाजपा ने कई सीटों पर उम्मीदवार चयन में गलतियाँ कीं। इतना ही नहीं पार्टी ने जदयू के बागियों की ताकत को आँकने में भी गलती की और लगातार बेवजह अनाप-शनाप बयान देती रही।
मित्रों,इन उपचुनावों में प्रदेश भाजपा नेतृत्व बिखरा हुआ दिख रहा था। इसी तरह प्रचार अभियान में भी बिखराव था और अव्यवस्था थी। बिहार की जनता यह जानना भी चाहती है कि बिहार के अगले मुख्यमंत्री के लिए भाजपा किसको अपना उम्मीदवार बनाएगी। बिहार में ऐसा कौन-सा भाजपा नेता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह सीना ठोंककर यह कह सके कि मैं न तो खाऊंगा और न ही खाने दूंगा? है कोई नेता जो कह सके कि मैं न तो सोऊंगा और न ही सोने दूंगा? भाजपा नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी लाख गलतियों के बावजूद भी बिहार की जनता ने उनको दस में से चार यानि सबसे ज्यादा सीटें दी हैं और मत प्रतिशत के मामले में भी वह अकेली सबसे आगे है इसलिए पूरी तरह से हार मान लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है एक सशक्त और तेजस्वी नेतृत्व के हाथों में बिहार भाजपा का सेनापतित्व सौंपने की और फिर सुसंगठित और सुव्यवस्थित तरीके से गहन चुनाव प्रचार करने की। सोशल मीडिया से लेकर जनता से डोर-टू-डोर सीधा संवाद करके उसे बताना होगा कि उसकी झोली में बिहार के लिए कौन-सी योजनाएँ हैं और उन योजनाओं को कैसे प्रभावी तरीके से वह लागू करेगी,कैसे बिहार में वास्तविक सुशासन,पारदर्शिता और ईमानदार शासन-प्रशासन की स्थापना करेगी,कैसे अव्यवस्था,अराजकता और रिश्वतखोरी के प्रति जीरो टॉलरेंसे की नीति अपनाएगी और इन बुराइयों को पूरी तरह से दूर करेगी। इसके लिए बिहार प्रदेश भाजपा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क कर सकती है लेकिन चूँकि बिहार पूरे भारत के लिए हमेशा से कुत्ते की दुम रहा है इसलिए योजनाओं के क्रियान्वयन और शासन से भ्रष्टाचार और घूसखोरी की समाप्ति के लिए उनको विशेष बिहारी उपाय खोजने होंगे और जनता को विश्वास में लेना होगा। हम जानते हैं कि बिहार भारत के सबसे युवा प्रदेशों में से है। बिहार का युवा आज भी अपने परिवार से हजारों किलोमीटर दूर जाकर नौकरी करने को विवश है,आज भी बिहार सिर्फ श्रमिकों की आपूर्ति करने का काम कर रहा है। कौन ऐसा बिहारी युवा होगा जो अपने घर में परिवार के साथ रहकर रोजी-रोटी कमाना नहीं चाहेगा? बस भाजपा बिहारी युवाओं को विश्वास दिलाए कि हम बिहार को औद्योगिक प्रदेश बनाएंगे और कैसे बनाएंगे बताए।
मित्रों,फाईनल में टक्कर एक बार फिर से काँटे की होनेवाली है इसलिए इंतजाम अभी से ही करने होंगे। बिहार के युवा अभी भी भ्रष्ट व जातिवादी ताकतों के हाथों का खिलौना बनने को तैयार नहीं हैं बशर्ते उनके पास बेहतर और बेहतरीन विकल्प हो और वह विकल्प इस समय सिर्फ भाजपा ही दे सकती है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 25 अगस्त 2014

बिहार में इंटर परीक्षा का अंतिम परिणाम कभी आएगा भी?

25 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,बिहार के बारे में विशेषज्ञ लगातार अपनी राय रखते रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि बिहार एक बीमार मानसिकता का नाम है तो कुछेक कहते हैं कि बिहार एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई ईलाज किसी के पास भी नहीं है। चूँकि मैं एक विशेषज्ञ नहीं हूँ इसलिए मानता हूँ कि बिहार नामक बीमारी भले ही 40-50 साल पुरानी हो,भले ही पिछले कई दशकों से बिहार में सरकार और प्रशासन नाम की चीज नहीं रह गई है,भले ही बिहार आज भी दूसरे राज्यों को सिर्फ श्रम की आपूर्ति करनेवाला राज्य बना हुआ है,भले ही बिहार में परीक्षा के नाम पर मजाक होता हो,भले ही बिहार में अंग्रेजी के शिक्षक संस्कृत की और हिन्दी के शिक्षक अंग्रेजी की कॉपियाँ जाँचते हों लेकिन बिहार फिर भी सुधर सकत है,स्वस्थ हो सकता है लेकिन ऐसा इस सरकार में तो कभी नहीं होगा। इसके लिए व्यवस्था परिवर्तन के लिए सत्ता-परिवर्तन करना होगा। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस समय भी बिहार में जन्म लेना बिहारियों के लिए अभिशाप ही बना हुआ है।

मित्रों,बिहार के करीब डेढ़ लाख विद्यार्थी ऐसे हैं जो बिहार में जन्म लेने और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित इंटर की परीक्षा देने का दंड भुगत रहे हैं। हुआ यह कि इस साल जब इंटर का रिजल्ट आया तो बड़ी संख्या में छात्र फेल कर दिए गए थे। उनमें से कुछ छात्र तो ऐसे थे जो देश की शीर्षस्थ इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों की नामांकन परीक्षाओं में टॉप किया था। रिजल्ट आते ही पूरे राज्य में छात्रों ने हंगामा खड़ा कर दिया। जगह-जगह आगजनी होने लगी। तत्कालीन शिक्षा मंत्री पीके शाही ने कहा कि कॉपियाँ फिर से जाँची जाएंगी और छात्रों के साथ न्याय होगा।

मित्रों,जब से पुनर्मूल्यांकन अर्थात् स्क्रूटनी का काम शुरू हुआ बिहार सरकार और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को परीक्षक मिल ही नहीं रहे। डेढ़ लाख छात्रों की 8 लाख कापियों की जाँच के लिए मात्र 125 परीक्षक रखे गए हैं। ऐसे में जो होना चाहिए था वही हुआ। देश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में नामांकन समाप्त हो चुके हैं। नए सत्र की पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है लेकिन रिजल्ट का अभी भी कहीं अता-पता नहीं है। सूत्र बता रहे हैं कि अभी भी कम-से-कम एक छात्रों की कॉपियों की जाँच होनी बाँकी है। ऐसे में छात्रों को जिनका कि एक साल बर्बाद हो चुका है अब जिंदगी खराब होने का खतरा मंडराने लगा है।

मित्रों, जब इन कॉपियों की जाँच की गई थी तब तो सरकार को पर्याप्त संख्या में शिक्षक मिल गए थे फिर अब क्यों नहीं मिल रहे हैं? क्या तब दूसरे विषय के शिक्षकों से दूसरे विषय की कॉपियाँ जँचवाई गई थीं या फिर परीक्षकों ने धड़ल्ले से बिना पढ़े ही नंबर दे दिये? अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर तब इतनी तेजी में कैसे कॉपियों की जाँच हो गई और अब इतनी धीमी गति से क्यों हो रही है? छात्रों को प्राप्त बेतुके अंकों से भी क्या मेरी यह आशंका सत्य साबित नहीं हो रही है?

मित्रों,एक सप्ताह पहले बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के वर्तमान अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद ने दावा किया था कि 10 दिन में परिणाम घोषित कर दिये जाएंगे लेकिन जबकि एक परीक्षक एक दिन में अधिकतम 30 कॉपियों की ही जाँच कर सकता है तो फिर कैसे दस दिन में 5-6 लाख कॉपियों की जाँच हो सकेगी? क्या फिर से उसी तरह से धड़ल्ले से कॉपियों को बिना पढ़े ही जाँच देने की योजना बनाई गई है जैसे कि पहली बार में किया गया था? फिर स्क्रूटनी का मतलब ही क्या है?

मित्रों, अभी भी कॉपियों को स्ट्रांग रूम में मैनेज वे में नहीं रखा गया है जिससे कि एक-एक को निकालने में काफी समय लग रहा है। बीच में समर वैकेशन के कारण लगभग एक महीने बंद रहा था स्कूल जिसके चलते भी कॉपियों की जाँच की गति धीमी पड़ गई। बोर्ड के पास कॉपी चेक कराने के लिए स्पेस की कमी है।
स्कूल एवं कॉलेज खुले होने के कारण बड़ी संख्या में टीचर्स को एग्जामिनर्स बनाने से क्लासेस बंद हो जाएंगे इसके चलते भी समस्या आ रही है। सरकार अगर अमल करना चाहे तो हम सुझाव देते हैं कि सरकार को स्पेशियस सरकारी या प्राइवेट भवन किराए पर लेना चाहिए जहाँ कि ज्यादा संख्या में परीक्षक कॉपियों की जाँच कर सकें। परीक्षकों की संख्या बढ़ाई जाए। जरुरत के हिसाब से हर जिले में री-चेकिंग सेंटर बने और आगे से इंटर और मैट्रिक की परीक्षाओं से कदाचार को तो समाप्त किया ही जाए कॉपियों की जाँच की प्रक्रिया को भी इस तरह से चुस्त-दुरूस्त किया जाए कि बिहार में जन्म लेना और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पर विश्वास करना अभिशाप नहीं बन पाए।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 24 अगस्त 2014

आइडिया इंटरनेट जब लगाविंग,आइडिया तुमको उल्लू बनाविंग

24 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,विज्ञापन की दुनिया बड़ी आकर्षक है। अच्छे-अच्छे समझदार भी इनके झाँसे में आने से नहीं बच पाते। उदाहरणार्थ,आइडिया कंपनी कहती है कि आइडिया इंटरनेट जब लगाविंग,नो उल्लू बनाविंग,नो उल्लू बनाविंग अर्थात् जब आप आइडिया इंटरनेट लगा लेते हैं तो कोई आपको उल्लू नहीं बना सकता लेकिन कंपनी यह नहीं बताती कि हम तो आपको उल्लू बना ही सकते हैं और जरूर बनाएंगे।
मित्रों,हुआ यूँ कि रक्षाबंधन यानि 10 अगस्त से एक-दो दिन पहले मैं अपने मित्र नरेश राय जिनकी मोबाईल रिचार्चिंग की दुकान में बैठा था तभी मेरी नजर दुकान में चिपकाए गए आइडिया के पोस्टर पर पड़ी जिसमें बताया गया था आइडिया मात्र 197 रुपये में एक महीने के लिए अनलिमिटेड इंटरनेट उपयोग की सुविधा देती है। मैंने तत्काल आइडिया का एक सिम ले लिया जो 8 तारीख को चालू भी हो गया। नंबर है 9507489439। नौ अगस्त को मैं बक्सर जिले के छतनवार गांव गया जहां कि मेरी बड़ी बहन रहती है। वहाँ जाकर पता चला कि वहाँ आइडिया का टावर था इसलिए आइडिया ही सबसे अच्छा काम करता था। मैंने तत्काल नरेश जी को फोन किया और कहा कि 197 वाला पैकेज डाल दीजिए। सचमुच वहाँ आइडिया काफी अच्छा काम कर रहा था।
मित्रों,मैं 11 तारीख को हाजीपुर वापस आ गया। कल मैं जब एसएमएस चेक कर रहा था तो मैंने पाया कि मेरा 50 एमबी जीपीआएस डाटा आइडिया कंपनी पर बकाया है। मैंने तुरंत बताए गए नंबर पर फोन कर दिया। करीब आधे घंटे में 50 एमबी डाटा समाप्त हो गया परंतु यह क्या उसके बाद आइडिया इंटरनेट ने काम करना ही बंद कर दिया। मैं परेशान हो गया कि यह क्या हुआ। फिर मैंने 198 पर कस्टमर केयर पर कॉल किया तो फोन उठानेवाली महिला ने बताया कि चूँकि आपने 50 एमबी फ्री डाटा लिया है इसलिए आपकी सेवा बंद कर दी गई है। मैंने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है मुझे तो एक महीने का वादा किया गया था तो उसने कहा कि कंपनी का यही नियम है इसलिए ऐसा किया गया है। यानि फ्री के फेर में पड़े तो पेड भी गया।
मित्रों,फ्री डाटा वाले एसएमएस में यह कहीं नहीं कहा गया था कि ऐसा भी हो सकता है और मैं उल्लू बनाया जा सकता हूँ लेकिन सच्चाई तो यही है कि जिस कंपनी ने पूरे भारत को ठगी से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है उसी ने मुझे ठग लिया। सावधान रहिएगा ऐसा आपके साथ भी हो सकता है क्योंकि इन कंपनियों का कोई ईमान नहीं होता। यह बोलतीं कुछ है और करतीं कुछ और। खुद ही इंडिया को उल्लू बनाती हैं और कहती हैं कि हम आपको उल्लू बनने नहीं देंगे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शनिवार, 23 अगस्त 2014

भंते, बिहार सरकार में बुद्धि की कमी है!

23 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपने का वर्षा जब कृषि सुखानि वाली कहावत तो सुनी होगी लेकिन हमें पूरी तरह से यकीन है कि इस पर कभी अमल नहीं किया होगा लेकिन हमारे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी इस पर न सिर्फ यकीन रखते हैं बल्कि इस पर अमल भी करते हैं। तभी तो उन्होंने कहा है कि बरसात के बाद बिहार उन सभी बांधों की मरम्मत करवाई जाएगी जिनकी पिछली कई वर्षों या महीनों से मरम्मत नहीं हुई। वाह कमाल है! क्या तरीका है शासन चलाने का। मुजफ्फरपुर में बागमती नदी पर बने बांध के टूटने से लेकर यहाँ बिहार में रोज कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी नदी का बांध टूट रहा है। कल भी सीवान में सरयू नदी पर बना मिर्जापुर बांध टूटा है। नीतीश कुमार जी उर्फ सुशासन बाबू के गृह जिले नालंदा में तो अब शायद ही कोई बांध टूटने से बच गया हो। इस साल बाढ़ से सबसे ज्यादा वही नालंदा जिला प्रभावित हुआ है जिसके बारे मैंने जबसे होश संभाला है नहीं सुना कि वहाँ बाढ़ भी आती है और बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री बिहार की जनता को भरोसा दे रहे हैं कि घबराईए नहीं बस कुछ ही दिनों की बात है। कुछ दिन और कष्ट बर्दाश्त कर लीजिए फिर बरसात के रुकते ही सरकार सारे तटबंधों की मरम्मत करवा देगी। मगर उससे क्या फायदा होगा और किसको फायदा होगा? ठेकेदार दस-बीस टोकरी मिट्टी डालकर काम पूरा कर लेंगे और इंजीनियर कमीशन पाकर लिख देंगे कि फलां ठेकेदार ने इतने करोड़ का काम किया और अगले साल फिर से वही बांध टूट जाएंगे। मुख्यमंत्री खुद कहते हैं कि ओवर एस्टिमेट बनाकर अधिकारी-कर्मचारी सरकारी खजाने को चूना लगा रहे हैं। क्या उनका कह देना भर काफी है? इस लूट को रोकेगा कौन? कई जिलों से रिपोर्ट आई है कि उनके यहाँ कोई बांध नहीं है जबकि उन्हीं जिलों में जमींदारी बांधों की देखभाल के नाम पर करोड़ों रुपयों के वारे-न्यारे कर दिये गए। ईट हैप्पेन्स ऑनली ईन बिहार।

मित्रों,राजधानी पटना में तो कोई बांध नहीं टूटा फिर वहाँ क्यों बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं? पटना में भी हर साल बरसात में जलनिकासी प्रणाली फेल हो जाती है और लोगों के घरों तक में पानी घुस जाता है क्या उसके लिए बिहार सरकार के पास कोई कार्ययोजना है? पिछले 9 सालों में पूरे पटना में नालियों का निर्णाण करवाया गया फिर भी हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? क्यों करोड़ों रुपये नालियों के निर्माण और रखरखाव के नाम पर नालियों में बहा दिए गए?

मित्रों,बिहार की सरकार को किसने रोका था,किसने जबर्दस्ती उसके हाथ-पांव बांध रखे थे बरसात से पहले ही बांधों की मरम्मत करने से? क्या बरसात के बाद बांधों की मरम्मत की जाती है अगर हुई तो और मांझी को अपना यह अद्भुत वादा याद रह गया तो? क्या इस तरह चलती है सरकार? इससे पहले जब राज्य में सूखे से आसार बन रहे थे तब पता चला कि राज्य के 99 प्रतिशत सरकारी नलकूल कई सालों से बंद पड़े हैं और इस साल भी सरकार उनमें से एक को भी चालू नहीं करवा पाई। क्या इस तरह की जाती है प्राकृतिक आपदा से निबटने की तैयारी कि सूखा आए तो सारे नलकूप खराब और बाढ़ आए तो एक-एक कर सारे बांध टूट जाएँ? क्या बिहार सरकार के पास अब कामचलाऊ बुद्धि भी नहीं रह गई है? साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने तो अपनी कविता में कोशल के बारे में कहा था कि कोशल ज्यादा दिन टिक नहीं सकता क्योंकि वहाँ विचारों की कमी है लेकिन यहाँ तो बिहार सरकार में बुद्धि की ही कमी हो गई है विचार तो फिर भी दूर की कौड़ी हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

कमाल खान इन्सान हैं या पत्रकार या सिर्फ मुसलमान?

19 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इसमें कोई संदेह नहीं कि एनडीटीवी के रिपोर्टर कमाल खान कमाल के रिपोर्टर हैं। उनके बोलने का लहजा और शब्दों का चयन दोनों ही लाजवाब है लेकिन आज जब मैं फैजाबाद सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से,तड़पा-तड़पा कर एक लड़की की हत्या के मामले में उनकी रिपोर्ट देख रहा था तो लगा कि भले ही इन दोनों मामलों में कमाल खान कमाल हैं लेकिन वे कदाचित् इंसान हैं ही नहीं।
मित्रों,जहाँ तक मेरी परिभाषा का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ कि इंसान वही है जो सीने पर बंदूक टिकी होने पर भी,तोप के आगे बांध दिए जाने के बाद भी पीड़ितों का पक्ष ले न कि पीड़कों का और आज की अपनी रिपोर्ट में कमाल खान सीधे-सीधे पीड़कों का पक्ष ले रहे थे। श्री खान का मानना था कि यह मामला एक व्यक्तिगत मामला है क्योंकि पीड़क व दरिंदा नदीम बता रहा है कि हिन्दू लड़की उससे प्यार करती थी और उसकी मोबाईल की दुकान पर बराबर पैसा भरवाने आती थी। इधर कुछ दिनों से लड़की उस पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी इसलिए उसने उससे छुटकारा पाने के लिए उसकी हत्या कर दी और बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। तो हमारे कमाल के धर्मनिरपेक्ष कमाल खान ने बिना किसी हीला-हवाली के इस दरिंदे की बात पर विश्वास कर लिया और अपना निर्णय सुना दिया कि यह मामला सांप्रदायिक तो है ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत है।
मित्रों,दूसरी तरफ दिवंगत पीड़िता ने पुलिस को अपने अंतिम बयान में कहा था कि फलां-फलां चार मुसलमान लड़कों ने मेरा जबर्दस्ती अपहरण किया फिर सामूहिक बलात्कार किया और बाद में उसके सारे बाल उखाड़ डाले,सारे दाँत तोड़ दिए और रीढ़ की हड्डी के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया लेकिन कमाल खान जी को पीड़िता की बातों पर किंचित भी भरोसा नहीं है। क्यों? क्या इसलिए क्योंकि पीड़िता हिन्दू थी और हिन्दू तो झूठ ही बोलते हैं सच तो सिर्फ मुसलमान बोलते हैं? अब आप खुद भी निर्णय ले सकते हैं कि मेरी परिभाषा के अनुसार कमाल खान इंसानियत से कोसों दूर हैं। तो फिर कमाल खान हैं क्या? क्या वे पत्रकार हैं? लेकिन पत्रकार तो प्रत्येक मामले को सिर्फ गुण-दोष के आधार पर देखता है तो इस तरह तो कमाल खान जी तो पत्रकार भी नहीं रहे। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि यह मेरी परिभाषा है अब उनकी परिभाषा में पत्रकार को कैसा होना चाहिए यह तो वही बता सकते हैं।
मित्रों,हमारे कमाल खान जी वास्तव में न तो पत्रकार हैं और न ही इंसान वे तो सिर्फ मुसलमान हैं और मुसलमान भी कैसे? वे सूफी परंपरा वाले मंसूर बिन हल्लाज किस्म के मुसलमान नहीं हैं जिनको सऊदी अरब में अन हलक अर्थात् ब्रह्मास्मि की रट लगाने के चलते जिन्दा आग में झोंक दिया गया था,श्री खान इमाम हुसैन की तरह के मुसलमान भी नहीं हैं जिन्होंने पीड़ितों का पक्ष लेते हुए कर्बला के मैदान में बेनजीर शहादत दी थी। बल्कि श्री कमाल खान तो तालिबान,बोको हराम और आईएस किस्म के मुसलमान हैं जिनके अनुसार मुसलमान (खासकर सुन्नी) जो करे वही सही है और सिर्फ वही सही है। अन्यथा श्री खान को पीड़िता के दर्द के प्रति स्वानुभूति तो दूर सहानुभूति तो होती। उनके बोलने के लहजे से और बॉडी लैंग्वेज से तो यही लग रहा था कि पीड़िता जो कि एक प्रेंमिका भी थी (सिर्फ दरिंदे नदीम और महान पत्रकार कमाल खान के अनुसार) को शादी के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं था और चूंकि उसने यह अक्षम्य अपराध किया इसलिए नदीम का कर्त्तव्य था कि वो निहारत बहसीपना करके उसकी हत्या कर दे और सो उसने अपना कर्त्तव्य निभाया। फिर तो नदीम को राजकीय सम्मान मिलना चाहिए। है न कमाल खान जी?
मित्रों,मैं कमाल खान जी से पूछना चाहता हूँ कि अगर ऐसी हरकत किसी हिन्दू चांडाल चौकड़ी ने किसी मुसलमान लड़की के साथ किया होता तब भी क्या यह व्यक्तिगत मामला होता? वैसे मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि महिला चाहे हिन्दू हो या मुसलमान और पीड़क चाहे हिन्दू हो मुसलमान मेरा मानना है कि हर महिला का दर्द एकसमान होता है और हर पीड़क को सिर्फ एक ही दंड देना चाहिए-सड़क पर खड़ा करके पत्थरों से मार देना चाहिए और ऐसा होने पर पहला पत्थर मैं मारूंगा। तो मैं कह रहा था कमाल खान जी महाराष्ट्र सदन में रोटी खिलाने की घटना तो कमाल खान जी की नजरों में सांप्रदायिक थी लेकिन फैजाबाद का इंसानियत को शर्मसार कर देनेवाली घटना व्यक्तिगत है? हिन्दू लड़कियों को घर से निकलने से पहले लाख बार सोंचने को मजबूर और भयभीत कर देनेवाली घटना व्यक्तिगत है? वाह रे हमारे धर्मनिरपेक्ष चैनल,धर्मनिरपेक्ष पत्रकार और उनकी धर्मनिरपेक्षता। एक बात और आगे से जब भी किसी हिन्दू लड़की के साथ मुसलमानों द्वारा सामूहिक बलात्कार होगा तो धर्मनिरपेक्ष मीडिया,यूपी पुलिस और दरिंदे मिलकर यही कहेंगे कि लड़की लड़के से प्यार करती थी और ऐसे प्यार का अंजाम जो होना चाहिए वही हुआ। मतलब कि बलात्कार तो हुआ ही नहीं वह तो प्यार था यह बात अलग है कि इसे कई मानवता प्रेमी प्रेमियों ने मिलकर अंजाम दिया। यह ज्ञान आज मुझे श्री कमाल खान की रिपोर्टिंग देखकर ही प्राप्त हुआ है जिसके लिए मैं उनका बहुत-बहुत-बहुत-बहुत आभारी हूँ। तहेदिल से!


(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

पारस को खोजती पूरे एक महीने बाद पहुँची पुलिस घटनास्थल पर

08-08-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हमने कुछ महीने पहले पढ़ा था कि अमेरिका में किसी की लिखी हुई चिट्ठी अपने गन्तव्य तक लगभग 100 साल बाद पहुँची लेकिन हमारी बिहार पुलिस और खासकर वैशाली पुलिस तो उस चिट्ठी से भी ज्यादा सुस्त है। हमने 16 जुलाई को लिखा था कि एफआईआर दर्ज करा के पछता रहा है पारस और बताया था कि 11 जुलाई की रात को चोरी हुई और 16 तारीख तक पुलिस का कहीं अता-पता नहीं था जबकि पारस का पड़ोसी होने के नाते मैं कई-कई बार वैशाली के पुलिस अधीक्षक सुरेश प्रसाद चौधरी से बात कर चुका था। हमने आपको यह भी बताया था कि संभावित चोर नत्थू साह पारस को सपरिवार जान से मारने की धमकी दे रहा था जिसके चलते उसने चोरी के बाद 15 दिनों तक डर के मारे दुकान तक नहीं खोली थी। बाद में मेरे द्वारा हिम्मत देने के बाद बेचारे ने दुकान खोलना शुरू किया।

मित्रों,यह बड़े ही हर्ष का विषय है कि आज हमारी उम्मीद के विपरीत घटना के पूरे एक महीने के बाद हाजीपुर नगर थाना की पुलिस प्रकट हुई। इससे पहले कल ही मुझे पारस ने बता दिया था कि थाने से उसके मोबाईल पर फोन आया था। दुर्भाग्यवश जब पुलिस आई तब मैं घर पर नहीं था वरना मुझे भी नगर थाना के देवतुल्य पुलिसवालों का देवदुर्लभ दर्शन प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हो जाता। मैंने तो समझा था कि अब पुलिस चोरी की तफ्तीश करने कभी आएगी ही नहीं लेकिन आश्चर्य कि पुलिस आई। आकर पूछताछ की। किस पर शक है पूछा और संभावित चोर नत्थू साह के घर की ओर रवाना हो गई फिर क्या हुआ क्या पता क्या खबर!? होगा क्या यह जरूर हमें पता है कि कुछ भी नहीं। अब चोरी के एक महीने बाद पुलिस को न तो कोई सबूत नहीं मिलेगा और न ही कोई चोरी का सामान। अब तक तो चोर ने कब का नगदी को ठिकाना लगा दिया होगा और बिस्कुट,पावरोटी और दालमोट खा गया होगा और साबुनों से नहा गया होगा। 

मित्रों,सवाल उठता है कि फिर पुलिस आई ही क्यों? पारस ने आज शाम मुझे बताया कि उसने भी अनुसंधान अधिकारी से यही सवाल पूछा था तो वह बोला कि उसे तो पता ही नहीं था कि आपके यहाँ चोरी भी हुई है। हद हो गई पारस ने 12 जुलाई को एफआईआर के लिए आवेदन दिया और 13 जुलाई को केस नं.-575/14 दर्ज भी कर लिया गया,14 जुलाई के हिन्दुस्तान अखबार में समाचार प्रकाशित भी हुआ,खुद मैंने पहले थाने को और बाद में एसपी को फोन कर तत्परता दिखाने का अनुरोध किया फिर भी दारोगा जी को कल तक पता ही नहीं चला कि चोरी हुई है। फिर किसी भी घटना के बाद उनको कैसे तत्काल पता चलवाया जाए? बड़ी उलझन है। क्या आप पाठकों के पास कोई उपाय है,कोई युक्ति है?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाए वरना इस्तीफा दे मोदी सरकार

05 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यह सत्य है कि जब हम किसी भी सरकार को चुनते हैं तो उसको 60 महीने का समय देते हैं मगर कभी-कभी जब संविधान से लेकर आम आदमी की जान,माल और ईज्जत तक पर खतरा उत्पन्न हो जाए तब हम पाँच साल तक का ईंतजार नहीं कर सकते। उत्तर प्रदेश में भी जनता ने 5 साल के लिए सरकार को चुना था लेकिन वहाँ बहुत जल्दी स्थिति सरकारविहीनता की तो आ ही गई सरकार के मंत्री ही स्वयं असामाजिक कार्यों को बढ़ावा देते हुए देखे और पाए जाने लगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आज यूपी की जो हालत है उसको देखते हुए राज्य में संविधान और कानून का शासन पुनर्स्थापित करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार कब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाएगी?
मित्रों,लखनऊ से लेकर मुजफ्फरनगर तक पिछली केंद्र सरकार के शासन के दौरान यूपी में सैंकड़ों सांप्रदायिक दंगे हुए। गौरतलब है कि ये सारे दंगे तभी हुए जब 2012 में वहाँ समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में आ चुकी थी। मुजफ्फरनगर के दंगों में तो मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन से इस बात का खुलासा भी हुआ कि समाजवादी सरकार के कद्दावर मंत्री और सुपर चीफमिनिस्टर कहे जाने वाले आजम खान के चलते यह दंगा हुआ। समाजवादी सरकार के दौरान यूपी में एक तरफ तो लगातार दंगे होते रहे वहीं दूसरी तरफ बलात्कार की भी बाढ़ आ गई। यूपी की हालत पर न सिर्फ भारत का उच्चतम न्यायालय बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ तक ने भी चिंता जाहिर की। उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के बाद तो तब केंद्र में विपक्ष में रहे और अब भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने टिप्पणी के मद्देनजर यूपी सरकार से इस्तीफा भी मांगा था और केंद्र से राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग भी की थी।
मित्रों,जबसे अच्छे दिन के वादे के साथ केंद्र में सत्ता में आई मोदी सरकार का गठन हुआ है तबसे यूपी के लोगों के लिए हर आनेवाला दिन पिछले दिन की अपेक्षा ज्यादा बुरा ही सिद्ध हो रहा है। सहारनपुर में ऐन ईद के दिन जिस तरह से बिना किसी उकसावे के सिक्खों की दुकानों वाले पटियाला रोड की सारी दुकानों को दिनदहाड़े मुसलमानों ने जलाकर राख कर दिया और बाद में दंगाइयों का मुख्य नेतृत्वकर्ता मोहर्रम अली अखिलेश यादव का नजदीकी निकला उसके बाद इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं रह गया है कि दंगाई कौन हैं और उनको किनका समर्थन मिल रहा है। वे कौन-से लोग हैं जो यूपी को पाकिस्तान बना देना चाहते हैं? इसी प्रयास की अगली कड़ी तब सामने आई जब कट्टरपंथी मुसलमानों के शिकंजे से भागी एक हिन्दू लड़की ने बताया कि उसका अपहरण करके उसके साथ बलात्कार किया गया है और बाद में जब उसके पेट में दर्द होने लगा तो ऑपरेशन करके एक मुस्लिम डॉक्टर ने उसका गर्भाशय निकाल दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार जब गर्भ गर्भाशय के बदले फैलोपियन ट्यूब में ही निषेचित हो जाता है तब पेट में दर्द जैसी स्थिति बन जाती है। हो सकता है कि सामूहिक बलात्कार के कारण इस मासूम के साथ भी ऐसा ही हुआ हो।
मित्रों,इतना ही नहीं उस लड़की ने बताया कि बाद में उसका जबरन धर्मान्तरण भी करवा दिया गया और शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करवाय़े गए। इस्लामिक कट्टरपंथियों के कब्जे से किसी तरह से जान बचाकर भागनेवाली लड़की ने बताया है कि दरिंदों के कब्जे में कम-से-कम दो दर्जन और भी हिन्दू लड़कियाँ कैद हैं और जल्दी ही उनको अरब देशों में देह-व्यापार के लिए बेच दिया जाएगा। इस खुलासे के बाद प्रश्न उठता है कि क्या भारत पर गोरी,कासिम,तैमूर,अब्दाली या नादिरशाह का हमला हुआ है जो हमलों के बाद पकड़ में आनेवाली महिलाओं को भी वस्तु के रूप में ही गिनते थे और साथ ले जाकर बगदाद,तेहरान,बसरा,सिकंदरिया और काबुल के बाजारों में सोने-चाँदी के सिक्कों के बदले में बेच डालते थे? फिर तो उन हिन्दुस्तानी महिलाओं की पूरी जिन्दगी ही नर्क बनकर रह जाती थी।
मित्रों,क्या फिर से भारत की हिन्दू लड़कियों और महिलाओं के साथ वही सब होनेवाला है? क्या यही हैं मोदी सरकार के अच्छे दिन? विपक्ष में होते हुए लगातार सपा सरकार से इस्तीफा और केंद्र सरकार से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करनेवाले राजनाथ सिंह अब किस बात का इंतजार कर रहे हैं? क्या यूपी समेत पूरे भारत के हिन्दुओं ने भाजपा को इसलिए वोट दिया था कि उनकी बहू-बेटियाँ बसरा,रियाद,दुबई और बगदाद के चकलाघरों की शोभा बढ़ाए? हिन्दुओं के जिस जबरन धर्मपरिवर्तन के समाचार हमें अबतक पाकिस्तान से मिल रहे थे वही समाचार अब भारत में देखने,सुनने और पढ़ने को मिलें? क्या भारत के संविधान में अनुच्छेद 25 के अंतर्गत जो धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है वह केवल मुसलमानों के लिए है? देश की सबसे बड़ी आबादी जब तक यूपी में परेशान रहेगी तबतक देश में कैसे अच्छे दिन लाए जा सकते हैं? अगर केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 का प्रयोग किसी भी स्थिति में,बुरी-से-बुरी और बद-से-बदतर स्थिति में भी करना ही नहीं है तो फिर इनका संविधान में क्या काम है?
मित्रों,मैं अंत से मोदी जी से अर्ज करना चाहता हूँ कि श्रद्धेय मोदीजी हम हिन्दुओं ने एकजुट होकर आपको इसलिए वोट नहीं दिया था कि आप काशी से लेकर काठमांडू तक के मंदिरों में घंटी बजाते फिरें बल्कि इसलिए दिया था कि आप देश में न तो हिन्दुओं का और न ही मुसलमानों का बल्कि संविधान और कानून का शासन स्थापित करेंगे और मुझे नहीं लगता जबतक यूपी में सपा की,दानवराज अखिलेश और नराधम आजम खान की सरकार सत्ता में है ऐसा हो पाएगा। अगर आपकी सरकार अगले विधानसभा चुनाव तक का इंतजार करती है तो अगले तीन सालों में ये लोग यूपी के प्रत्येक गांव,प्रत्येक शहर और प्रत्येक घर को जलाकर राख कर देंगे। इतना ही नहीं ये लोग भारत के संविधान और आईपीसी का भी गला घोंट देंगे फिर भरते रहिएगा इनके किए गड्ढ़ों को,जलाते रहिएगा आनेवाले समय में दरिंदगी की शिकार होनेवाली मासूम लड़कियों की चिताएँ और बुझाते रहिएगा अनंत काल तक घरों,दुकानों और झोपड़ियों से उठनेवाली गगनचुंबी आग की लपटों को। मोदी जी आपने भी महाभारत पढ़ी है और देखा है कि द्वापर में एक महिला द्रौपदी की ईज्जत से हुए खिलवाड़ पर तटस्थ रह जानेवाले सम्राट धृतराष्ट्र,भीष्म,द्रोण और पूरे भारतवर्ष के पुरूषों को किस तरह अपनी जान गंवानी पड़ी थी या बुरे दिन देखने पड़े थे। फिर आज तो यूपी में हजारों स्त्रियों के साथ बलात् दुष्कर्म हो रहे हैं जिनका दंड सिर्फ दुर्योधन या दुश्शासन को ही नहीं बल्कि समय आने पर राजा धृतराष्ट्र को भी चुकाना पड़ेगा। और अगर यूपी में धर्म और न्याय की संस्थापना आपके बस का रोग नहीं है तो आप तत्काल इस्तीफा दीजिए जनता अन्य विकल्पों पर विचार कर लेगी।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

खरखौदा पर चुप क्यों हैं धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार मीडिया,नेता और कार्यकर्ता?

05 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अभी कुछ ही दिन हुए आड़ी से भी न काटी जा सकनेवाली रोटी खाते-खाते महाराष्ट्र सदन में रुके शिवसेना के कुछ सांसद क्रोधित हो उठे थे और उन्होंने अनजाने में कैंटीन मैनेजर रोजेदार मुसलमान के होठों से रोटी सटा दी थी यह कहते हुए कि तुम खुद ही खाकर देखो कि क्या यह इंसानों के खाने लायक है। फिर तो जैसे सारे मीडियाकर्मियों,नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की चाय की प्यालियों में तूफान आ गया। भारत के संविधान का मूल ढांचा और अनुच्छेद 25 खतरे में पड़ गए। उस रोजेदार के धर्म की रक्षा को जैसे सबने अपना धर्म बना लिया। टेलीवीजन से लेकर संसद तक हड़कंप मच गया।

मगर मित्रों,पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में मुसलमानों ने सिक्खों के एक पूरे बाजार को दिनदहाड़े आग के हवाले कर दिया तब इन ढोंगियों ने अपना मुँह तक खोलना लाजिम नहीं समझा। जहां एक को रोटी खिलानेभर से गांधी,मार्क्स और लोहिया के अनुयायियों की धर्मनिरपेक्षता हिलोरे मारने लगीं वहीं दुसरी ओर हजारों सिखों के मुँह की रोटी छिन जाने पर इनलोगों की संवेदना सोती रही। हद तो अब हो गई है जब मेरठ जिले के खरखौदा थाने की एक हिन्दू की लड़की को मुसलमानों ने पहले अपहृत किया,फिर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया,फिर उसका धर्म-परिवर्तन करवाया गया और फिर उसका गर्भाशय निकाल दिया गया। लड़की किसी तरह जान बचाकर भागी और तब जाकर उनके साथ हुए अन्याय को पूरी दुनिया ने जाना लेकिन अभी भी भारत के धर्मनिरपेक्षता के रक्षक मीडिया के दल्ले और गणिकाएँ,नेतागण और सामाजिक कार्यकर्तागण चुपचाप हैं। जैसे कि इन लोगों को साँप सूंघ गया हो,जैसे कि गांधी,मार्क्स और लोहिया इनसे कहकर गए थे कि चेलों जब मुसलमानों पर हिन्दू अत्याचार करें तभी उसे पाप मानना और जब मुसलमान हिन्दुओं की बेटियों की ईज्जत के साथ खिलवाड़ करें तो उसे पुण्य का काम समझना।

मित्रों,इस तरह का दोहरा चरित्र रखनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादियों को चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए। यही घटना अगर किसी मुसलमान लड़की के साथ किसी गांव में हुई होती तो यही लोग रो-रोकर इस भीषण सूखे में भी उस गांव के तालाब को अपने आंसुओं से लबालब कर चुके होते लेकिन यही घटना जब एक हिन्दू लड़की के साथ घटी है तो धर्मनिरपेक्षता का कोई भी सिपाही अभी तक उससे मिलने नहीं पहुँचा है। क्या हिन्दुओं और मुसलमानों का दर्द अलग-अलग होता है? क्या दोनों के लिए सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अलग-अलग है?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 3 अगस्त 2014

नीतीश कुमार का सुशासन के बाद महागठबंधनासन


03-08-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हमारे नीतीश कुमार जी न जाने कितने मुखों को धारण करते हैं? रावण के समक्ष जरूर इस तरह की समस्या खड़ी होती होगी कि कभी किसी मुँह ने कुछ कह दिया तो कभी किसी मुँह ने कुछ और। रावण के तो दस मुँह ही थे हमारे नीतीश जी के तो शायद उससे भी ज्यादा हैं। न जाने उन्होंने किस मुँह से कभी लालू-राबड़ी शासन को जंगल राज कहा था और न जाने किस मुँह से कहा था कि उनका सबसे बड़ा उद्देश्य लालू-राबड़ी के कुशासन का खात्मा कर सुशासन की स्थापना है? वैसे काफी दिनों से बेचारे ने सुशासन शब्द का प्रयोग करना बंद कर दिया है। पता नहीं क्यों उन्होंने इस शब्द को छुट्टी पर भेज दिया है?
मित्रों,हमने तो नीतीश कुमार जी को जब भी देखा है हमने पाया है कि उनके एक ही मुख है फिर यह रावण जैसा करतब वे कैसे कर लेते हैं? इतना ही नहीं एक बार तो नीतीश कुमार जी ने नरेंद्र मोदी जी की भी जमकर बड़ाई कर डाली थी और यहाँ तक कह डाला था कि मोदी जी को राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहिए। और जब मोदी जी उनकी बात मानकर राष्ट्रीय राजनीति में आए तो सबसे पहले बिदकनेवालों में नीतीश कुमार भी थे। फिर उन्होंने दूसरे अज्ञात मुँह से मोदी जी को राष्ट्र के लिए घातक बताना शुरू कर दिया। बाद में भाजपा जिसने उनको राजनीति के कूड़ेदान से उठाकर राजगद्दी पर बिठाया उसी को लात मार दी और तीसरे मुँह से कहना शुरू किया कि भाजपा सांप्रदायिक है। वाह भाई वाह जब तक आप भाजपा के साथ रहे तब तक 17 सालों तक भाजपा धर्मनिरपेक्ष थी और जब आपने उसका साथ छोड़ दिया तो उसी क्षण से वह सांप्रदायिक हो गई? सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की सबसे सटीक परिभाषा।

मित्रों,पता नहीं नीतीश जी के बचे-खुचे राजनैतिक जीवन का क्या उद्देश्य है? महाभ्रष्ट कांग्रेस और राजद के सहयोग से बिहार में सुशासन की स्थापना तो होने से रही अलबत्ता जंगल राज के पुराने दिन जरूर बिना कोई प्रयास किये वापस लाए जा सकते हैं। जहाँ तक मुस्लिम मतों का सवाल है तो बिना उसकी सहायता के जब केंद्र में सरकार बनाई जा सकती है तो बिहार में क्यों नहीं बन सकती? काम मुश्किल है मगर असंभव नहीं। बिहार की जनता बढ़ती घूसखोरी,अनाप-शनाप बिजली बिल,अराजकता और भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि कर रही है,पुलिस थानों में ही सिमट कर रह गई है और थानों के बाहर अदृश्य रूप में जैसे एक बार फिर से लिख दिया गया है कि बिहार के लोग अपने जान और माल की सुरक्षा स्वयं करें ऐसे में नीतीश जी को यह मुगालता कैसे हो गया है कि बिहार की जनता सिर्फ जातीय समीकरण के आधार पर उनके कथित महागठबंधन को वोट दे देगी? कहते हैं कि गीदड़ की जब मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है और बिहार में किसी राजनैतिक दल को जब चुनाव हारना होता है तो वह लालू से गठबंधन करता है। रामविलास जी तो इस सत्य को समझ गए थे इसलिए चुपके से खिसक लिए नीतीश जी भी समझेंगे मगर तब जब उनकी पार्टी भी आज लोकसभा में कांग्रेस की तरह मुख्य विपक्षी दल बनने की स्थिति में भी नहीं रह जाएगी। तब तक और उस निश्चित हार के बाद भी देखिए कि नीतीश जी अपने किस मुँह से क्या बोलते हैं और कैसे-कैसे सिद्धांत बघारते हैं? अब बेचारे के दिखाए झूठे सपनों का खरीददार तो कोई रहा नहीं तो बेचारे खुद ही सपने देखने लगे हैं कि वे लालू और कांग्रेस की मदद से भाजपा को बिहार में सत्ता में आने से रोक देंगे और इस तरह बिहार को लगातार लूटते रहेंगे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शनिवार, 2 अगस्त 2014

आरटीआई के दायरे में आने से भय क्यों है भाजपा को?

02 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,चुनावों से पहले ही कई ऐसे भारतीय थे जिनका मानना था कि भाजपा और कांग्रेस दोनों आपस में मौसेरे भाई हैं। लड़ाई-झगड़े तो अब पति-पत्नी और अपने सहोदर भाइयों में होने लगे हैं फिर भाजपा और कांग्रेस चुनावों के दौरान लड़ पड़े तो आश्चर्य कैसा? खैर,चाहे दोनों पार्टियों के बीच कोई रक्त-संबंध हो या नहीं हो लेकिन एक गुण तो जरूर ऐसा है जो दोनों में ही समान है और वह गुण यह है कि दोनों ही पार्टियाँ खुद को आरटीआई के दायरे में नहीं लाना चाहतीं?
मित्रों,इससे पहले भी मैं 10 अक्तूबर 2012 को अपने ब्लॉग ब्रज की दुनिया पर भारतीय लोकतंत्र की इस समस्या और विडंबना के बारे में अपने आलेख राजनीतिक पार्टी संबंधी कानूनों में हो सुधार में विस्तार से चर्चा कर चुका हूँ। दुर्भाग्यवश उस समय भी भाजपा राजनैतिक दलों के आरटीआई के दायरे में लाने के पक्ष में नहीं थी और अब जब वो सत्ता में आ चुकी है तब भी इसके विरोध में है। अब आप यह कह सकते हैं कि अगर ऐसा था तो आपने लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी का समर्थन क्यों किया?
मित्रों,देश के करोड़ों देशवासियों की तरह मेरे सामने भी कोई विकल्प नहीं था। हमने सोंचा कि जहाँ कांग्रेस के सारे कदम देशविरोधी हैं वहाँ भाजपा के 50% कदम तो देशहित में होंगे? हमें उम्मीद थी कि पारदर्शिता के परम व चरम समर्थक नरेंद्र मोदी जी के हाथों में जब भाजपा की बागडोर होगी तो वे जरूर पारदर्शिता का शुभारंभ अपनी पार्टी,अपने घर से करेंगे और अपनी पार्टी के साथ-साथ सारे राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाकर करेंगे।
मित्रों,मगर ऐसा हो नहीं रहा है और निकट भविष्य होने भी नहीं जा रहा है क्योंकि भारत सरकार ने संसद में कहा है कि ऐसा कर पाना संभव नहीं है क्योंकि इससे कई तरह की समस्याएँ खड़ी होंगी। कौन-सी समस्याएँ खड़ी होंगी? क्या वे समस्याएँ उन समस्याओं से ज्यादा गंभीर और घातक होंगी जो ऐसा नहीं किए जाने से देश के समक्ष खड़ी हो चुकी हैं? क्या राजनैतिक दलों द्वारा आय का स्रोत नहीं बताने से देश का भला होगा या हो रहा है? जब कुछेक क्षेत्रों को छोड़कर पूरे तंत्र को जो किसी-न-किसी प्रकार से किसी-न-किसी राजनैतिक दल के द्वारा संचालित है सूचना के अधिकार के दायरे में लाया जा चुका है तो फिर राजनैतिक दल क्यों इससे बाहर रहें? आज हमारा लोकतंत्र जिस तरह से धनिकतंत्र में बदल गया है जहाँ कोई गरीब चुनाव में खड़े होने की सोंच भी नहीं सकता तो क्या इसके लिए राजनैतिक दलों को हो रही बेतहाशा आमदनी जिम्मेदार नहीं है? आखिर हमारे राजनैतिक दलों में भीतरखाने ऐसा क्या हो रहा है जिसको कि वे जनता से छिपाना चाहते हैं? क्या अमीरों के चंदों पर चलनेवाली पार्टी की सरकार कभी गरीबों की सरकार हो सकती है? अगर भाजपा बिरला-टाटा-अंबानी-अडाणी से अरबों-करोड़ों चंदा नहीं लेती है तो फिर वह खुद को सीधे-सीधे आरटीआई के दायरे में लाना क्यों नहीं चाहती? अगर सबकुछ ठीकठाक है तो छिपाने की आवश्यकता ही क्या है और अगर ठीकठाक नहीं है तो जनता के लिए उसको जानना और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि जनता अब और ज्यादा दिनों तक लोकतंत्र के साथ मजाक या खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं करने जा रही है। सिर्फ नारे लगा देनेभर से न तो कोई पार्टी पार्टी विथ डिफरेंस हो जाती है और न तो कोई सरकार ही। बाँकी इतिहास का हिस्सा हो चुकी सरकारों से अलग इसके लिए अलग तरह के कदम उठाने पड़ते हैं और मैं समझता हूँ कि पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने के प्रयास तक नहीं करके भाजपा ने वही सुनहरा अवसर खो दिया है। माना कि बिल संसद के किसी सदन में गिर जाता और सरकार की हार होती लेकिन उस हार में ही जीत के अंकुर छिपे होते मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस की तरह।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)