मित्रों,बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गजब के वाकपटु हैं और शोमैन
भी। पूरे बिहार में इस समय मैट्रिक की परीक्षा में इस कदर जमकर कदाचार हो
रहा है कि इसे परीक्षा कहना इस शब्द का ही अपमान होगा। बल्कि यह तो
स्वेच्छा है और इसमें कदाचारियों की मदद कर रहे हैं पुलिस,शिक्षक आदि
अर्थात् पूरे सरकारी तंत्र ने परीक्षा को कमाई का साधन बना लिया है। वैसे
तो यह हर साल का भ्रष्टोत्सव है लेकिन इस बार मीडिया ज्यादा जागरूक है वरना
कदाचार के खिलाफ तो हमने अपने अखबार में पिछले साल भी मैट्रिक और इंटर की
परीक्षा में जमकर लिखा था।
मित्रों,नीतीश जी अपने महान असत्यवादी़-पाखंडवादी श्रीमुख से फरमाते हैं कि इस परीक्षा के दौरान मीडिया बिहार की अधूरी तस्वीर पेश कर रही है तो क्या नीतीशजी बताएंगे कि फिर बिहार की पूरी तस्वीर क्या है? मीडिया द्वारा जहाँ पूरे राज्य के लगभग प्रत्येक जिले और प्रत्येक केंद्र पर कदाचार की खबरें दी गई थीं वहीं उनको पूरे बिहार में सिर्फ चार केंद्रों पर ही कदाचार नजर आया। रद्द तो पूरी परीक्षा होना चाहिए थी लेकिन उनको तो सिर्फ वही दिखता है जो वह देखना चाहते हैं। जाने भी दीजिए वे बेचारे तो सावन के अंधे हैं इसलिए उनको सिर्फ हरियाली ही नजर आती है। हम बताते हैं बिहार की पूरी तस्वीर क्योंकि नीतीश बाबू के कुशासन से रोजाना पाला तो हमारा पड़ता है। नीतीश बाबू का क्या उनको तो सिर्फ पैसा चाहिए फिर वो किसी भी तरह से आए।
मित्रों,बिहार की मुकम्मल तस्वीर तो यह है कि पूरे बिहार में कहीं भी सरकार नाम की चीज ही नहीं है। आप कहेंगे कैसे? तो हम एक उदाहरण द्वारा आपको बताते हैं। अभी कुछ दिन पहले हमने यह खबर लगाई थी कि बिहार की पुलिस कानून के अनुसार नहीं बल्कि अपनी मनमर्जी के अनुसार काम करती है। खैर तब हमने बताया था कि हाजीपुर के सदर थाना में जब हम ठगी की एफआईआर करने गए तब क्या हुआ। अब आगे सुनिये कि उसके बाद क्या हुआ। उसके बाद थाना ने एफआईआर दर्ज करने में 5 दिन लगा दिया। हमने थानेदार को कई-कई बार फोन किया,एसपी को फोन किया लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। सवाल उठता है कि सरकार ने इनको सरकारी फोन क्यों दिया है जबकि इनको बिना पैसे लिए कोई काम करना ही नहीं है।
मित्रों,हद तो हो गई कल जब पीड़ित सुरेश बाबू एफआईआर लेने थाना पहुँचे तो थाने के मुंशी ने उनसे एफआईआर की कॉपी देने के लिए 500 रु. के रिश्वत की मांग कर दी। मैंने उनसे कहा मुंशी से बात करवाईए तो मुंशी फोन पर नहीं आया और गालियाँ बकने लगा। फिर मैंने थानेदार को फोन लगाया तो उसने कहा कि वो थाने पर नहीं है लॉ एंड ऑर्डर संभाल रहा है। सुनकर हँसी आई कि जब बिहार में लॉ को संभालनेवाले खुद ही ऑर्डर में नहीं हैं तो वे लॉ एंड ऑर्डर क्या संभालेंगे। फिर हमने एसपी वैशाली को फोन किया तो उन्होंने कहा कि आप लिखित निवेदन दे दीजिए हम जाँच करवा लेंगे और फोन काट दिया। अब आप ही बताईए कि जब एफआईआर की कॉपी लेनी है तो इसमें जाँच क्या होगी और जाँच से निकलकर क्या आएगा? क्या एसपी दूध के धुले हैं जो दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे।
मित्रों,हमने तिरहुत रेंज के आईजी को फोन किया तो पहले तो मैसेज आया कि हम अभी मीटिंग में हैं और बाद में फोन करने पर कहा गया कि रांग नंबर है और फोन काट दिया गया। फिर हम और ऊपर चढ़े और डीजीपी को फोन किया। फोन डीजीपी ने नहीं उनके रीडर ने उठाया और कहा कि शाम में फोन करिए और वो भी लैंड लाईन पर। इसके बाद और ऊपर चढ़ने की हमारी हिम्मत ही नहीं रही क्योंकि हम समझ चुके थे कि जिस राज्य में तबादले ने उद्योग का रूप ले रखा हो वहाँ और ऊपर जाने से कोई फायदा नहीं है। फिर माननीय मुख्यमंत्री को तो सबकुछ ठीकठाक नजर आ ही रहा है। ऊपर से उन्होंने मीडिया को अपना मोबाईल नंबर भी नहीं दिया है तो उनका लैंडलाईन फोन तो अधिकारी उठाएंगे। पहले यह पूछकर तोलेंगे कि कितना बड़ा आदमी बोल रहा है तब मुख्यमंत्री को फोन देंगे और हम तो ठहरे छोटे पत्रकार तो हमारी तो उनसे किसी भी कीमत पर बात ही नहीं होने दी जाएगी या फिर नीतीश जी हमने बात करेंगे ही नहीं।
मित्रों,तो यह है हमारे बिहार की मुकम्मल तस्वीर। एफआईआर के आवेदन के समय मुंशी ने खुद ही हमसे कहा था कि प्रार्थी का फोन नंबर भी डाल दीजिएगा। तो फिर कायदे से उनको एफआईआर हो जाने के बाद खुद ही फोन करके प्रार्थी को बुलाना चाहिए था और एफआईआर की कॉपी दे देनी चाहिए थी। लेकिन उनको कानून-कायदे से क्या मतलब? उनको तो बस पैसे से मतलब है। कदाचित घूस लेना ही उनकी ड्यूटी है।
मित्रों,आज जब हमने अभी सदर थाने के थानेदार को फोन लगाया तो उसने मेरा नाम सुनते ही फोन काट दिया। अब आप ही बताईए कि अंग्रेजों की पुलिस और सुशासन की पुलिस में क्या अंतर है? तब भी दरोगा (दारोगा) को रोकर या गाकर घूस देनी ही पड़ती थी और आज भी देनी ही पड़ती है। तब तो बड़े अफसर तुरंत कदम उठाते थे। आज कोई कदम नहीं उठाते।
मित्रों,अंत में मैं क्षमा चाहूँगा कि मैं आपको बिहार के वर्तमान शासन-प्रशासन की सिर्फ एक बानगी ही दिखा पाया क्योंकि पूरी कथा लिखूंगा तो परती परिकथा से भी मोटी किताब लिख जाएगी। बाँकी सुशासन की कुछ पोल तो पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी खोल ही रहे हैं कि कैसे बिहार में लागत से कई गुना ज्यादा का एस्टीमेट बनता है और कैसे उसका कुछ हिस्सा मुख्यमंत्री को भी दिया जाता है। संक्षेप में बस यही समझ लीजिए कि नीतीश बाबू के शासन और दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक (1351-1388) के शासन में कोई अंतर नहीं है। हुआ यूँ था कि फिरोजशाह तुगलक के पास एक सैनिक गया यह शिकायत लेकर कि उससे वेतन के ऐवज में रिश्वत मांगी जा रही है तो फिरोजशाह तुगलक ने उसको अपने पास से पैसे देकर कहा कि तो दे दो क्योंकि मैं भी देता हूँ। यहाँ तो नीतीश जी 500 रु. भी देने से रहे क्योंकि नेता लोग तो सिर्फ लेना जानते हैं। मैं सुशासन बाबू को खुली चुनौती देता हूँ कि अगर वे सचमुच इस राज्य के शासन-प्रशासन के मुखिया हैं तो मेरे संबंधी सुरेश बाबू जो विकलांग भी हैं को बिना पैसे दिए एफआईआर की कॉपी दिलवा दें। थाने से उनको फोन करवाएँ और बुलाकर बाईज्जत उनको एफआईआर की कॉपी दिलवाएँ। अन्यथा खुलेआम कह दें कि यह काम मेरे बस का नहीं है क्योंकि यह मेरा काम नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है ठीक उसी तरह जैसे परसों उनके शिक्षा मंत्री ने नकल को लेकर कहा था।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,नीतीश जी अपने महान असत्यवादी़-पाखंडवादी श्रीमुख से फरमाते हैं कि इस परीक्षा के दौरान मीडिया बिहार की अधूरी तस्वीर पेश कर रही है तो क्या नीतीशजी बताएंगे कि फिर बिहार की पूरी तस्वीर क्या है? मीडिया द्वारा जहाँ पूरे राज्य के लगभग प्रत्येक जिले और प्रत्येक केंद्र पर कदाचार की खबरें दी गई थीं वहीं उनको पूरे बिहार में सिर्फ चार केंद्रों पर ही कदाचार नजर आया। रद्द तो पूरी परीक्षा होना चाहिए थी लेकिन उनको तो सिर्फ वही दिखता है जो वह देखना चाहते हैं। जाने भी दीजिए वे बेचारे तो सावन के अंधे हैं इसलिए उनको सिर्फ हरियाली ही नजर आती है। हम बताते हैं बिहार की पूरी तस्वीर क्योंकि नीतीश बाबू के कुशासन से रोजाना पाला तो हमारा पड़ता है। नीतीश बाबू का क्या उनको तो सिर्फ पैसा चाहिए फिर वो किसी भी तरह से आए।
मित्रों,बिहार की मुकम्मल तस्वीर तो यह है कि पूरे बिहार में कहीं भी सरकार नाम की चीज ही नहीं है। आप कहेंगे कैसे? तो हम एक उदाहरण द्वारा आपको बताते हैं। अभी कुछ दिन पहले हमने यह खबर लगाई थी कि बिहार की पुलिस कानून के अनुसार नहीं बल्कि अपनी मनमर्जी के अनुसार काम करती है। खैर तब हमने बताया था कि हाजीपुर के सदर थाना में जब हम ठगी की एफआईआर करने गए तब क्या हुआ। अब आगे सुनिये कि उसके बाद क्या हुआ। उसके बाद थाना ने एफआईआर दर्ज करने में 5 दिन लगा दिया। हमने थानेदार को कई-कई बार फोन किया,एसपी को फोन किया लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। सवाल उठता है कि सरकार ने इनको सरकारी फोन क्यों दिया है जबकि इनको बिना पैसे लिए कोई काम करना ही नहीं है।
मित्रों,हद तो हो गई कल जब पीड़ित सुरेश बाबू एफआईआर लेने थाना पहुँचे तो थाने के मुंशी ने उनसे एफआईआर की कॉपी देने के लिए 500 रु. के रिश्वत की मांग कर दी। मैंने उनसे कहा मुंशी से बात करवाईए तो मुंशी फोन पर नहीं आया और गालियाँ बकने लगा। फिर मैंने थानेदार को फोन लगाया तो उसने कहा कि वो थाने पर नहीं है लॉ एंड ऑर्डर संभाल रहा है। सुनकर हँसी आई कि जब बिहार में लॉ को संभालनेवाले खुद ही ऑर्डर में नहीं हैं तो वे लॉ एंड ऑर्डर क्या संभालेंगे। फिर हमने एसपी वैशाली को फोन किया तो उन्होंने कहा कि आप लिखित निवेदन दे दीजिए हम जाँच करवा लेंगे और फोन काट दिया। अब आप ही बताईए कि जब एफआईआर की कॉपी लेनी है तो इसमें जाँच क्या होगी और जाँच से निकलकर क्या आएगा? क्या एसपी दूध के धुले हैं जो दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे।
मित्रों,हमने तिरहुत रेंज के आईजी को फोन किया तो पहले तो मैसेज आया कि हम अभी मीटिंग में हैं और बाद में फोन करने पर कहा गया कि रांग नंबर है और फोन काट दिया गया। फिर हम और ऊपर चढ़े और डीजीपी को फोन किया। फोन डीजीपी ने नहीं उनके रीडर ने उठाया और कहा कि शाम में फोन करिए और वो भी लैंड लाईन पर। इसके बाद और ऊपर चढ़ने की हमारी हिम्मत ही नहीं रही क्योंकि हम समझ चुके थे कि जिस राज्य में तबादले ने उद्योग का रूप ले रखा हो वहाँ और ऊपर जाने से कोई फायदा नहीं है। फिर माननीय मुख्यमंत्री को तो सबकुछ ठीकठाक नजर आ ही रहा है। ऊपर से उन्होंने मीडिया को अपना मोबाईल नंबर भी नहीं दिया है तो उनका लैंडलाईन फोन तो अधिकारी उठाएंगे। पहले यह पूछकर तोलेंगे कि कितना बड़ा आदमी बोल रहा है तब मुख्यमंत्री को फोन देंगे और हम तो ठहरे छोटे पत्रकार तो हमारी तो उनसे किसी भी कीमत पर बात ही नहीं होने दी जाएगी या फिर नीतीश जी हमने बात करेंगे ही नहीं।
मित्रों,तो यह है हमारे बिहार की मुकम्मल तस्वीर। एफआईआर के आवेदन के समय मुंशी ने खुद ही हमसे कहा था कि प्रार्थी का फोन नंबर भी डाल दीजिएगा। तो फिर कायदे से उनको एफआईआर हो जाने के बाद खुद ही फोन करके प्रार्थी को बुलाना चाहिए था और एफआईआर की कॉपी दे देनी चाहिए थी। लेकिन उनको कानून-कायदे से क्या मतलब? उनको तो बस पैसे से मतलब है। कदाचित घूस लेना ही उनकी ड्यूटी है।
मित्रों,आज जब हमने अभी सदर थाने के थानेदार को फोन लगाया तो उसने मेरा नाम सुनते ही फोन काट दिया। अब आप ही बताईए कि अंग्रेजों की पुलिस और सुशासन की पुलिस में क्या अंतर है? तब भी दरोगा (दारोगा) को रोकर या गाकर घूस देनी ही पड़ती थी और आज भी देनी ही पड़ती है। तब तो बड़े अफसर तुरंत कदम उठाते थे। आज कोई कदम नहीं उठाते।
मित्रों,अंत में मैं क्षमा चाहूँगा कि मैं आपको बिहार के वर्तमान शासन-प्रशासन की सिर्फ एक बानगी ही दिखा पाया क्योंकि पूरी कथा लिखूंगा तो परती परिकथा से भी मोटी किताब लिख जाएगी। बाँकी सुशासन की कुछ पोल तो पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी खोल ही रहे हैं कि कैसे बिहार में लागत से कई गुना ज्यादा का एस्टीमेट बनता है और कैसे उसका कुछ हिस्सा मुख्यमंत्री को भी दिया जाता है। संक्षेप में बस यही समझ लीजिए कि नीतीश बाबू के शासन और दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक (1351-1388) के शासन में कोई अंतर नहीं है। हुआ यूँ था कि फिरोजशाह तुगलक के पास एक सैनिक गया यह शिकायत लेकर कि उससे वेतन के ऐवज में रिश्वत मांगी जा रही है तो फिरोजशाह तुगलक ने उसको अपने पास से पैसे देकर कहा कि तो दे दो क्योंकि मैं भी देता हूँ। यहाँ तो नीतीश जी 500 रु. भी देने से रहे क्योंकि नेता लोग तो सिर्फ लेना जानते हैं। मैं सुशासन बाबू को खुली चुनौती देता हूँ कि अगर वे सचमुच इस राज्य के शासन-प्रशासन के मुखिया हैं तो मेरे संबंधी सुरेश बाबू जो विकलांग भी हैं को बिना पैसे दिए एफआईआर की कॉपी दिलवा दें। थाने से उनको फोन करवाएँ और बुलाकर बाईज्जत उनको एफआईआर की कॉपी दिलवाएँ। अन्यथा खुलेआम कह दें कि यह काम मेरे बस का नहीं है क्योंकि यह मेरा काम नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक समस्या है ठीक उसी तरह जैसे परसों उनके शिक्षा मंत्री ने नकल को लेकर कहा था।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)