हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आज से लगभग 100 साल पहले जिन दिनों
हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था महात्मा गांधी ने भारत के कानून और
अदालतों के बारे में गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये दोनों ही
दुर्भाग्यवश अमीरों की रखैल बनकर रह गई हैं। और दुर्भाग्यवश हमें आज
भी,आजादी के 70 साल बाद भी अपने आलेख में यह कहना पड़ रहा है कि आज भी
हमारे देश में दो तरह के कानून हैं-एक अमीरों के लिए और दूसरे गरीबों के
लिए। हमारी अदालतों का रवैया भी अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग दो तरह का
है।
मित्रों,हम सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने 27 नवंबर,2014 को बिना किसी लाग-लपेट के स्वीकार किया कि भारत की न्याय-प्रणाली गरीब और कमजोरविरोधी है लेकिन हमें 13 फरवरी,2015 को यह देखकर तब भारी दुःख हुआ जब इन्हीं दत्तू साहब की खंडपीठ ने तीस्ता शीतलवाड़ को जेल जाने से बचाने के लिए कपिल सिब्बल से फोन पर बात करने के दौरान ही फोन पर ही याचिका स्वीकार करते हुए फोन पर ही यह आदेश सुना दिया कि तीस्ता शीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर हम रोक लगाते हैं।
मित्रों,दत्तू साहब ने न्यायपालिका की बीमारी तो बता दी लेकिन किया वही जिसको करने से बीमार की हालत और भी गंभीर होती हो। सवाल उठता है कि जब चीफ जस्टिस का रवैया ऐसा है तो कौन करेगा न्यायपालिका का ईलाज? कौन न्याय-प्रणाली को कमजोर और गरीबपरस्त बनाएगा।
मित्रों,इसी तरह कल भी वॉलीबुड अभिनेता सलमान खान को सजा मिलने के चंद घंटों के भीतर ही बंबई हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करके,सुनवाई करके जमानत दे दी। सजा मिलने में जहाँ 13 साल लग गए वहीं जमानत मिलने में 13 घंटे भी नहीं लगे। सवाल उठता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जो 11 लाख मुकदमे लंबित हैं उनपर भी इसी तरह तात्कालिकता क्यों नहीं दिखाई जाती? क्यों एक आम आदमी को दशकों तक कहा जाता है कि अभी आपके मुकदमें का नंबर नहीं आया है और किसी रसूखदार लालू,माया,तीस्ता या सलमान के मामले की सुनवाई तमाम लाइनों को तोड़कर तत्काल कर ली जाती है?
मित्रों,कल जब सलमान खान को सजा सुनाई गई तो हमें खुशी हुई कि आखिर अदालत ने 13 साल की देरी के बाद भी यह तो साबित कर ही दिया कि कानून के समक्ष क्या अमीर क्या गरीब,क्या रामदेव और क्या रमुआ सभी एक समान हैं लेकिन कुछ ही घंटों के बाद हाईकोर्ट ने हमारे सभी भ्रमों को तोड़ते हुए गांधी जी द्वारा एक शताब्दी पहले की गई शिकायत को ही उचित ठहरा दिया। सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चलेगा? कब तक पुलिस,सीबीआई,कानून और अदालतें चांदी के सिक्कों की खनखनाहट पर थिरकते रहेंगे? कब और कैसे कानून और अदालतें गरीबपरस्त होंगे? शायद कभी नहीं!!!
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,हम सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने 27 नवंबर,2014 को बिना किसी लाग-लपेट के स्वीकार किया कि भारत की न्याय-प्रणाली गरीब और कमजोरविरोधी है लेकिन हमें 13 फरवरी,2015 को यह देखकर तब भारी दुःख हुआ जब इन्हीं दत्तू साहब की खंडपीठ ने तीस्ता शीतलवाड़ को जेल जाने से बचाने के लिए कपिल सिब्बल से फोन पर बात करने के दौरान ही फोन पर ही याचिका स्वीकार करते हुए फोन पर ही यह आदेश सुना दिया कि तीस्ता शीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर हम रोक लगाते हैं।
मित्रों,दत्तू साहब ने न्यायपालिका की बीमारी तो बता दी लेकिन किया वही जिसको करने से बीमार की हालत और भी गंभीर होती हो। सवाल उठता है कि जब चीफ जस्टिस का रवैया ऐसा है तो कौन करेगा न्यायपालिका का ईलाज? कौन न्याय-प्रणाली को कमजोर और गरीबपरस्त बनाएगा।
मित्रों,इसी तरह कल भी वॉलीबुड अभिनेता सलमान खान को सजा मिलने के चंद घंटों के भीतर ही बंबई हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करके,सुनवाई करके जमानत दे दी। सजा मिलने में जहाँ 13 साल लग गए वहीं जमानत मिलने में 13 घंटे भी नहीं लगे। सवाल उठता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जो 11 लाख मुकदमे लंबित हैं उनपर भी इसी तरह तात्कालिकता क्यों नहीं दिखाई जाती? क्यों एक आम आदमी को दशकों तक कहा जाता है कि अभी आपके मुकदमें का नंबर नहीं आया है और किसी रसूखदार लालू,माया,तीस्ता या सलमान के मामले की सुनवाई तमाम लाइनों को तोड़कर तत्काल कर ली जाती है?
मित्रों,कल जब सलमान खान को सजा सुनाई गई तो हमें खुशी हुई कि आखिर अदालत ने 13 साल की देरी के बाद भी यह तो साबित कर ही दिया कि कानून के समक्ष क्या अमीर क्या गरीब,क्या रामदेव और क्या रमुआ सभी एक समान हैं लेकिन कुछ ही घंटों के बाद हाईकोर्ट ने हमारे सभी भ्रमों को तोड़ते हुए गांधी जी द्वारा एक शताब्दी पहले की गई शिकायत को ही उचित ठहरा दिया। सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चलेगा? कब तक पुलिस,सीबीआई,कानून और अदालतें चांदी के सिक्कों की खनखनाहट पर थिरकते रहेंगे? कब और कैसे कानून और अदालतें गरीबपरस्त होंगे? शायद कभी नहीं!!!
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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