शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

नीतीश कुमार जी को कोई लौट दे उनके बीते हुए दिन

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कथा-सम्राट प्रेमचंद ने अपनी किसी रचना में कहा है कि बूढ़े लोगों के लिए बीते हुए दिनों से अच्छे दिन कुछ और नहीं होते और उनका सबसे प्रिय काम वर्तमान को कोंसना होता है। पता नहीं नीतीश जी अपने-आपको बूढ़ा मानते हैं या नहीं उनमें यह लक्षण प्रकट जरूर होने लगा है। तभी तो श्रीमान् भारत के तेजस्वी,यशस्वी प्रधानमंत्री से पुराने दिन लौटाने की मांग करने लगे हैं। पता नहीं उनको कौन-से पुराने दिन चाहिए? केंद्र में वे दिन जब केंद्र सरकार में रोजाना कोई-न-कोई घोटाला सामने आ रहा था या बिहार में वे दिन जब लालू-राबड़ी जी का कथित मंगलराज चल रहा था?
मित्रों,हमारी फिल्मों में बीते हुए दिनों को लौटा लाने के कई अथक प्रयास हुए हैं। आपलोगों ने ये दो गीत तो जरूर सुने होंगे कि कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन और याद न जाए बीते दिनों की। खैर,न तो फिल्मों में बीते हुए दिन वापस आए थे और न ही बेचारे नीतीश कुमार जी के बीते हुए दिन वापस आनेवाले हैं। एक पौराणिक कथा राजा ययाति की भी है जो एक बार फिर से जवान होना चाहते थे लेकिन अब वो जमाना तो रहा नहीं कि कोई किसी से जवानी उधार ले ले। इसलिए हम तो सिर्फ नीतीश जी से हार्दिक संवेदना ही प्रकट कर सकते हैं उनके कष्टों का निवारण नहीं कर सकते।
मित्रों,हमारे कुछ मित्र फरमाते हैं कि नीतीश जी चमगदड़ा गए है। यह एक नई तरह की बीमारी है जिसकी उत्पत्ति भारत के छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों को नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद हो गई है। बेचारे हर घटनाक्रम को उल्टा होकर देखने लगे हैं। जैसे नीतीश जी के निर्यात में कमी वाले ट्विट को ही देखिए। नीतीश जी ने समाचार में यह तो देख लिए कि भारत का निर्यात दस महीने में सबसे कम हो गया है लेकिन उन्होंने यह नहीं देखा कि आयात में और भी ज्यादा की कमी आई है और कुल मिलाकर व्यापार-घाटा बढ़ा नहीं है घटा है। सच्चाई तो यह है कि भारत के निर्यात में लगातार दसवें महीने गिरावट दर्ज की गई और सितंबर में निर्यात 24.3 फीसदी घटकर 21.84 अरब डॉलर रह गया जबकि सितंबर, 2014 में निर्यात 28.86 अरब डॉलर था। इस दौरान, आयात भी 25.42 प्रतिशत घटकर 32.32 अरब डॉलर रहा। इससे देश का व्यापार घाटा कम होकर 10.47 अरब डॉलर रह गया जो पिछले साल सितंबर में 14.47 अरब डॉलर था। आज भारत का विदेश मुद्रा भंडार 350 अरब डॉलर को पार कर चुका है। भारत की रेटिंग को रेटिंग एजेंसियाँ लगातार ऊपर ले जा रही हैं। पूरी दुनिया आज 21 जून को योग दिवस मना रही है। अब नीतीश जी को मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत को प्राप्त होनेवाली उपलब्धियों को तो देखना है नहीं तो दिखेगा कैसे?
मित्रों,सच्चाई तो यह है कि आज भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में पूरी दुनिया का सरताज है। मेक इन इंडिया के कारण भारत की औद्योगिक विकास दर फर्राटा भरने लगा है। विगत 10 वर्षों से मोबाइल, टीवी, फ्रिज से लेकर बच्चों के खिलौने तक चीन से आते रहे हैं अब पहली बार सोनी अपनी BRAVIA SERIES की टीवी भारत में बनाने जा रही है (चेन्नई में कारखाना ), XIAOMI,मोटोरोला,एप्पल, FOXCONN इत्यादि कम्पनियां भारत में प्रोडक्शन शुरू कर रही हैं। XIAOMI ने तो अपना पहला Made In India मोबाइल बाजार में उतार भी दिया है। BMW जैसी लक्जरी कार निर्माता कम्पनी भी भारत में प्लांट लगा रही है। मर्सिडिज जर्मनी के बाहर अपना पहला कारखाना भारत में खोल रही है (कर्नाटक में)। वाल्वो ने कर्नाटक में अपना संयंत्र स्थापित किया है और आगामी 6 महीनों में इस संयंत्र में निर्मित बसें यूरोप को निर्यात होने लगेंगी।
मित्रों,जो देश रक्षा उपकरणों के आयात में दुनिया में अग्रणी हो, उस भारत ने विगत एक वर्ष में वियतनाम, अफ्रीकी देश समेत कई देशों को रक्षा उपकरण निर्यात करना शुरू कर दिया है। भारत से बुलेट प्रुफ जैकेटों को ब्रिटेन,बहामास और वियतनाम को निर्यात होने लगा है।
मित्रों,अभी कुछ महीने पहले ही यमन से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए अमेरिका और यूरोप के देशों ने भारत से सहायता माँगी। यह शायद 26 मई 2014 से पहले किसी ने सोंचा भी नहीं होगा।
मित्रों,जिस देश को नरम राष्ट्र कहा जाता था, वही भारत आज तजाकिस्तान, मॉरिशस में अपने सैन्य अड्डे बना रहा है। वर्षों से चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को सैन्य कार्यों के लिए विकसित कर रहा है, सिर्फ 1 वर्ष में चीन को जवाब देने के लिए भारत ने ईरान का चाहबर पोर्ट विकसित किया। इतना ही नहीं वहाँ पर भारत यूरिया उप्तादन के लिए ईरान द्वारा उपलब्ध कराई जानेवाली सस्ती प्राकृतिक गैस आधारित विशाल कारखाना लगाने जा रही है जिससे भारत का यूरिया पर होनेवाला खर्च आनेवाले दिनों में आधा रह जाएगा।
मित्रों, पहले जहाँ भारत सदैव युद्ध-विराम उल्लंघन की शिकायत को लेकर यूएन जाता था, आज उसी देश की शिकायत पाकिस्तान यूएन से कर रहा है।
मित्रों,1947 के बाद पहली बार भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान से यदि कश्मीर पर बात होगी तो सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर पर होगी।
मित्रों,आजतक भारतीयों ने सदैव भारत में पाकिस्तानी झंडे लहराते हुए देखे थे परन्तु आज पहली बार पाकिस्तान के बलुचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय तिरंगा लहराया जा रहा है।
मित्रों,भारत ने मोदी सरकार के आने के बाद गरीबों के लिए बैंक खाता,गरीबों के लिए बीमा योजना,लाखों सक्षम लोगों द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ने और सब्सिडी की राशि सीधे बैंक खाते में डालने में की दिशा में भी अभूतपूर्व उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। प्याज के दाम गिरने लगे हैं दाल के दाम भी जल्दी ही कम हो जाएंगे क्योंकि भारत सरकार द्वारा आयातित दाल का आना शुरू हो गया है।
मित्रों,आप समझ गए होंगे कि नीतीश जी की समस्या यह नहीं है कि अच्छे दिन क्यों नहीं आ रहे हैं बल्कि नीतीश जी की समस्या यह है कि चमगदड़ा जाने के अलावे उन्होंने इन दिनों जंगलराज वाला चश्मा धारण कर लिया है जिसको पहनने के बाद अच्छे दिन बुरे और बुरे दिन अच्छे दिखने लगते हैं। फिर हमें तो नीतीश जी माफ ही करें क्योंकि हमारे पास ऐसी कोई जुगत नहीं है जिससे हम नीतीश जी को पुराने दिनों में ले चलें। हम उनको न तो 1995 में ले जा सकते हैं जिससे वे लालू-राबड़ी राज को हटाने के बदले बचाने के लिए संघर्ष कर सकें और न ही 2009 में जिससे वे लोकसभा चुनावों को राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ सकें और उनके लोग भी मनमोहन सरकार में शामिल होकर बहती गंगा में डुबकी लगा सकें। इसलिए हम उनको यही सलाह दे सकते हैं कि नीतीश जी थेथरई छोड़िये और भारत के विश्वगुरू बनने की दिशा में मोदी सरकार का सहयोग करिए। हमेशा आगे की ओर गमन करनेवाले समय के रथ का घर्र-घर्र नाद सुनिए,सिंहासन को बाईज्जत खाली कर दीजिए क्योंकि आपके और आपके जैसे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी,विकासविरोधी,जातिवादी व ठग कथित हिंदू नेताओँ के अच्छे दिन अब समाप्त हो चुके हैं।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

तो क्या एबीपी न्यूज की 'आपरेशन भूमिहार' प्लांटेड स्टोरी थी?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जो पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन के समय मिशन थी आजकल पता नहीं क्या हो गई है और उसको सही-सही किस नाम या विशेषण द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। शायद,इसमें से कुछेक के लिए प्रेस्टीच्यूट शब्द ही सबसे ज्यादा सही है यानि ऐसा मीडिया संस्थान जो वास्तव में वेश्याओं का कोठा है। ऐसा कोठा जहाँ पैसे देकर कुछ भी लिखवाया या दिखवाया जा सकता है।
मित्रों,अभी कुछ दिन पहले भारत के अग्रणी राष्ट्रीय चैनलों में से एक एबीपी न्यूज पर एक स्टोरी चलाई गई जिसका नाम था आपरेशन भूमिहार। देखकर मैं भी स्तब्ध था कि यह क्या दिखाया जा रहा है? मैं खुद भी बिहार के राजपूतों के एक दबंग गांव से आता हूँ जहाँ आज से 25-30 साल पहले बिना हमारी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन आज स्थितियां बदल चुकी हैं। आज हरिजन भी दुर्गा पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं फिर वोट डालना तो एक छोटी बात है। कहीं कोई किसी को वोट डालने से नहीं रोकता और न ही किसी पार्टी विशेष को वोट देने के लिए दबाव ही डालता है। फिर एबीपी को कैसे ऐसे गांव मिल गए जहाँ कि कुछ जाति के लोगों ने आजादी के बाद से ही कभी मतदान नहीं किया है।
मित्रों,उस दिन स्टोरी को देखने से ही संदेह की स्थिति बन रही थी कि कहीं यह स्टोरी प्लांटेड तो नहीं है और किसी राजनैतिक दल विशेष के इशारे पर चुनाव को बैकवर्ड और फारवर्ड की लड़ाई साबित करने का कुत्सित प्रयास तो नहीं है? आज जब जहानाबाद के उन इलाकों में मतदान शुरू हुआ तो सच्चाई आईने के तरह साफ हो गई। जिन गांवों के बारे में एबीपी न्यूज में दावे किए गए थे वहाँ इस समय भारी मतदान हो रहा है और कहीं कोई रूकावट नहीं है। न्यूज चैनल की थेथरई तो देखिए कि यही चैनल आज चीख-चीख कर कह रहा है कि हमारे स्टोरी दिखाने का असर हुआ है और गैरभूमिहार जातियों को पर्याप्त सुरक्षा दी गई है जिसके कारण वहाँ के लोग आजादी के बाद पहली बार मतदान कर रहे हैं। यद्यपि आज मतदाताओं से संवाददाता यही पूछ रहे हैं कि आपको कोई रोक तो नहीं रहा है यह नहीं पूछ रहा कि आपने पहले भी वोट डाला था या नहीं।
मित्रों,दरअसल हुआ यह था कि पहले चरण के मतदान के बाद नवादा से खबर आई थी कि भाजपा समर्थकों को भाजपा को वोट देने के कारण राजद समर्थकों ने मारा-पीटा था। कदाचित् इस खबर की काट के लिए एबीपी चैनलवालों ने यह संदिग्ध स्टोरी चला दी। सवाल उठता है कि क्या उस खास इलाके में पहली बार चुनावों में कड़े सुरक्षा प्रबंध हुए हैं जिसके चलते लोग निर्भय होकर मतदान कर रहे हैं? क्या पहले के चुनावों में वहाँ कभी सुरक्षा-प्रबंध नहीं होता था? फिर सुरक्षा देनेवाले जवान तो वहाँ कुछ घंटों के लिए हैं अगर एक जाति का उस इलाके में इतना ही आतंक होता तो क्या वे मतदान कर पाते? क्योंकि उनके मन में यह भय होता कि सुरक्षा-बलों के जाने के बाद उनका क्या होगा? जाहिर है कि उनके मन में ऐसा कोई भय नहीं है तभी वे भारी संख्या में मतदान कर रहे हैं।
मित्रों,पता नहीं हमें शर्म क्यों नहीं आती? एक बार तो हम गलत स्टोरी चलाते हैं और फिर बेहयाई से उसका बचाव भी करते हैं। माना कि एबीपी न्यूज सहित कई मीडिया संस्थानों की विचारधारा एनडीए की विचारधारा से मेल नहीं खाती लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि झूठी सच्चाई रच दी जाए। हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करनेवाली संस्था से भी अनुरोध करेंगे कि इस मामले की गहराई से निष्पक्ष जाँच करवाई जाए जिससे यह पता चल सके कि न्यूज चैनल की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसने यह बेबुनियाद खबर चलाने की जुर्रत की और ऐन चुनाव के समय मतदाताओं को दिग्भ्रमित किया।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

बदलेगा बिहार,बदलेगा भारत

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कल एक विचित्र व्यक्ति से मुलाकात हुई। श्रीमान् जदयू के छुटभैये नेता हैं और जाति से यादव। उनका स्पष्ट तौर पर मानना था कि एक तो क्या हजार मोदी भी आ जाएँ तो न तो बिहार बदलेगा और न ही भारत। उनका यह भी कहना था कि 5 साल तो क्या 17 साल में भी देश-प्रदेश का कुछ भी नहीं होनेवाला है।
मित्रों,स्वाभाविक तौर पर मुझे गुस्सा आया और काफी ज्यादा आया लेकिन कर भी क्या सकते हैं सबको बोलने की स्वतंत्रता है। परन्तु देर रात तक मन बेचैन रहा और बड़ी मुश्किल से नींद आई। बार-बार मन में यही विचार आता कि क्या सचमुच बिहार या भारत नहीं बदलेगा? क्या हम बिहारी गरीबी में ही जन्म लेते और गरीबी में ही मरते रहेंगे? क्या बिहार हमेशा बदइंतजामी और भ्रष्टाचार का ही पर्याय बना रहेगा?
मित्रों,मैं नहीं समझता कि बिहारियों को उन यथास्थितिवादी जदयू नेता की तरह घोर निराशावादी हो जाना चाहिए और वह भी तब जबकि बिहार में नई सरकार के लिए मतदान चल रहा है। ई.पू. 324 से लेकर सन् 2014 तक बिहार ने भारत में होनेवाले प्रत्येक परिवर्तन में न सिर्फ हिस्सा लिया है बल्कि नेतृत्व भी दिया है। मैं नहीं मानता,मेरा मन नहीं मानता कि बिहार इस महान अवसर पर चूक जाएगा जबकि वैश्विक परिवर्तन का उन्नायक,21वीं सदी का नरेंद्र नाथ दत्त उसके दरवाजे पर जोरदार दस्तक दे रहा है। दोनों हाथ जोड़कर,दंडवत होकर कह रहा है कि तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे हर तरह से संपन्न व उन्नत बिहार दूंगा। आखिर वामा भारतमाता का बायाँ भाग कमजोर कैसे रह सकता है जबकि माता को एक बार फिर से विश्वगुरू बनना है?
मित्रों,जब तक कि बिहार विधानसभा चुनाव,2015 के अंतिम परिणाम नहीं आ जाते मैं नहीं मानूंगा कि दानवीर कर्ण की धरती बिहार एक अनन्य भारतभक्त,प्रखर संन्यासी को अपने द्वार से खाली हाथ लौटने देगा। इस बिहार ने जब ईं.पू. 324 में आचार्य चाणक्य की करूण पुकार को व्यर्थ नहीं होने दिया तो क्या वर्ष 2015 का तरूण बिहार ऐसा होने देगा? नहीं कदापि नहीं!!! बदलेगा,बदलेगा,बदलेगा बिहार और जमाना न सिर्फ देखेगा बल्कि दोनों हाथ उठाकर उसकी जय-जयकार भी करेगा। मैं ऐसा ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि बिहार का इतिहास भी यही कहता है और भारत की तमाम महान नदियों द्वारा सिंचित इस महान धरती की गोद पला-बढ़ा मेरा अनुभव भी।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित