हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कल एक विचित्र व्यक्ति से मुलाकात हुई।
श्रीमान् जदयू के छुटभैये नेता हैं और जाति से यादव। उनका स्पष्ट तौर पर
मानना था कि एक तो क्या हजार मोदी भी आ जाएँ तो न तो बिहार बदलेगा और न ही
भारत। उनका यह भी कहना था कि 5 साल तो क्या 17 साल में भी देश-प्रदेश का
कुछ भी नहीं होनेवाला है।
मित्रों,स्वाभाविक तौर पर मुझे गुस्सा आया और काफी ज्यादा आया लेकिन कर भी क्या सकते हैं सबको बोलने की स्वतंत्रता है। परन्तु देर रात तक मन बेचैन रहा और बड़ी मुश्किल से नींद आई। बार-बार मन में यही विचार आता कि क्या सचमुच बिहार या भारत नहीं बदलेगा? क्या हम बिहारी गरीबी में ही जन्म लेते और गरीबी में ही मरते रहेंगे? क्या बिहार हमेशा बदइंतजामी और भ्रष्टाचार का ही पर्याय बना रहेगा?
मित्रों,मैं नहीं समझता कि बिहारियों को उन यथास्थितिवादी जदयू नेता की तरह घोर निराशावादी हो जाना चाहिए और वह भी तब जबकि बिहार में नई सरकार के लिए मतदान चल रहा है। ई.पू. 324 से लेकर सन् 2014 तक बिहार ने भारत में होनेवाले प्रत्येक परिवर्तन में न सिर्फ हिस्सा लिया है बल्कि नेतृत्व भी दिया है। मैं नहीं मानता,मेरा मन नहीं मानता कि बिहार इस महान अवसर पर चूक जाएगा जबकि वैश्विक परिवर्तन का उन्नायक,21वीं सदी का नरेंद्र नाथ दत्त उसके दरवाजे पर जोरदार दस्तक दे रहा है। दोनों हाथ जोड़कर,दंडवत होकर कह रहा है कि तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे हर तरह से संपन्न व उन्नत बिहार दूंगा। आखिर वामा भारतमाता का बायाँ भाग कमजोर कैसे रह सकता है जबकि माता को एक बार फिर से विश्वगुरू बनना है?
मित्रों,जब तक कि बिहार विधानसभा चुनाव,2015 के अंतिम परिणाम नहीं आ जाते मैं नहीं मानूंगा कि दानवीर कर्ण की धरती बिहार एक अनन्य भारतभक्त,प्रखर संन्यासी को अपने द्वार से खाली हाथ लौटने देगा। इस बिहार ने जब ईं.पू. 324 में आचार्य चाणक्य की करूण पुकार को व्यर्थ नहीं होने दिया तो क्या वर्ष 2015 का तरूण बिहार ऐसा होने देगा? नहीं कदापि नहीं!!! बदलेगा,बदलेगा,बदलेगा बिहार और जमाना न सिर्फ देखेगा बल्कि दोनों हाथ उठाकर उसकी जय-जयकार भी करेगा। मैं ऐसा ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि बिहार का इतिहास भी यही कहता है और भारत की तमाम महान नदियों द्वारा सिंचित इस महान धरती की गोद पला-बढ़ा मेरा अनुभव भी।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,स्वाभाविक तौर पर मुझे गुस्सा आया और काफी ज्यादा आया लेकिन कर भी क्या सकते हैं सबको बोलने की स्वतंत्रता है। परन्तु देर रात तक मन बेचैन रहा और बड़ी मुश्किल से नींद आई। बार-बार मन में यही विचार आता कि क्या सचमुच बिहार या भारत नहीं बदलेगा? क्या हम बिहारी गरीबी में ही जन्म लेते और गरीबी में ही मरते रहेंगे? क्या बिहार हमेशा बदइंतजामी और भ्रष्टाचार का ही पर्याय बना रहेगा?
मित्रों,मैं नहीं समझता कि बिहारियों को उन यथास्थितिवादी जदयू नेता की तरह घोर निराशावादी हो जाना चाहिए और वह भी तब जबकि बिहार में नई सरकार के लिए मतदान चल रहा है। ई.पू. 324 से लेकर सन् 2014 तक बिहार ने भारत में होनेवाले प्रत्येक परिवर्तन में न सिर्फ हिस्सा लिया है बल्कि नेतृत्व भी दिया है। मैं नहीं मानता,मेरा मन नहीं मानता कि बिहार इस महान अवसर पर चूक जाएगा जबकि वैश्विक परिवर्तन का उन्नायक,21वीं सदी का नरेंद्र नाथ दत्त उसके दरवाजे पर जोरदार दस्तक दे रहा है। दोनों हाथ जोड़कर,दंडवत होकर कह रहा है कि तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हे हर तरह से संपन्न व उन्नत बिहार दूंगा। आखिर वामा भारतमाता का बायाँ भाग कमजोर कैसे रह सकता है जबकि माता को एक बार फिर से विश्वगुरू बनना है?
मित्रों,जब तक कि बिहार विधानसभा चुनाव,2015 के अंतिम परिणाम नहीं आ जाते मैं नहीं मानूंगा कि दानवीर कर्ण की धरती बिहार एक अनन्य भारतभक्त,प्रखर संन्यासी को अपने द्वार से खाली हाथ लौटने देगा। इस बिहार ने जब ईं.पू. 324 में आचार्य चाणक्य की करूण पुकार को व्यर्थ नहीं होने दिया तो क्या वर्ष 2015 का तरूण बिहार ऐसा होने देगा? नहीं कदापि नहीं!!! बदलेगा,बदलेगा,बदलेगा बिहार और जमाना न सिर्फ देखेगा बल्कि दोनों हाथ उठाकर उसकी जय-जयकार भी करेगा। मैं ऐसा ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ बल्कि बिहार का इतिहास भी यही कहता है और भारत की तमाम महान नदियों द्वारा सिंचित इस महान धरती की गोद पला-बढ़ा मेरा अनुभव भी।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
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