शनिवार, 19 सितंबर 2015

नीतीश कुमार के जुमले अनंत,जुमलों की कथा अनंता

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों आप बिहार की किसी भी सड़क पर चले जाईए हर जगह आपको बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पोस्टर लगे हुए मिल जाएंगे जिन पर लिखा है कि बहुत हुआ जुमलों का वार, फिर एक बार नीतीश कुमार। संदर्भ यह है कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों के समय बाबा रामदेव द्वारा विदेशों में भारतीयों द्वारा जमा कालेधन के बारे में अनुमानित आंकड़ों के अनुसार कहा था कि अगर विदेशों में भारतीयों द्वारा जमा सारे कालेधन को वापस ले आया जाए तो भारत के प्रत्येक व्यक्ति को 15 लाख रुपये मिल सकते हैं। इसका मतलब यह हरगिज नहीं था कि हम कालाधन लाएंगे तो आपको शर्तिया 15 लाख रुपये प्रति व्यक्ति देंगे। लेकिन नीतीश कुमार जी पीएम मोदी द्वारा तब दिए गए उदाहरण को संदर्भित करके पीएम पर निशाना लगा रहे हैं। यद्यपि श्री कुमार खुद दुनिया के सबसे बड़े जुमलेबाज हैं,जुमलेबाज नंबर वन हैं।
मित्रों,नीतीश कुमार जी का सबसे बड़ा जुमला यह था उन्होंने 2010 के विधानसभा चुनावों के समय लालू राज को आतंकराज कहा था वो भी कविता के माध्यम से। कविता इस प्रकार थी-
जय हो,जय हो, कायापलट जी की जय हो।
रेलवे का क्षय हो,रेलवे का क्षय हो, जय हो।
बिहार में भय हो,बिहार में भय हो,जय हो।
आतंक राज की जय हो,आतंक राज की जय हो।
इसीलिए महाराज कायापलट जी की जय हो,जय हो ......जय हो।
परंतु आज वही नीतीश कुमार जी लालू जी के साथ गलबहियाँ कर रहे हैं और जंगलराज पर बहस करने की चुनौती दे रहे हैं। तो क्या लालू राज को उनके द्वारा आतंकराज कहना एक जुमला भर था? श्री कुमार ने तब क्या झूठ कहा था? क्या उनके मतानुसार लालू राज में बिहार में जंगल राज नहीं मंगलराज था?
मित्रों,इतना ही वर्ष 2010 में ही नीतीश जी ने बिहार की जनता से कहा था कि पहले कार्यकाल में कानून-व्यवस्था को सुधारा अब अगले कार्यकाल में वे बिहार से भ्रष्टाचार का समूल नाश कर देंगे। लेकिन आज जब हम उनके दूसरे कार्यकाल पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि यह वादा भी नीतीश कुमार का जुमला निकला,जुमला नंबर टू। हुआ तो यह कि इस दौरान बिहार सरकार के प्रत्येक विभाग में जमकर घोटाला हुआ। कहने का मतलब यह है कि नीतीश जी हमेशा व्यंजना में बात करते हैं वो भी विरोधाभासी अलंकार का प्रयोग करते हुए। यानि वे जो कहते हैं करते उसका ठीक उल्टा हैं।
मित्रों,नीतीश जी का यह चारित्रिक गुण उनके इस वादे से भी स्पष्ट होता है कि सरकार राज्य के स्कूलों,मंदिरों व मस्जिदों के निकट शराब दुकान खोलने की अनुमति नहीं देगी। लेकिन किया गया इसका ठीक उलट। आज राज्य के प्रत्येक स्कूल,मंदिर और मस्जिद के निकट सरकारी शराब की दुकानें हैं। तो यह था नीतीश कुमार जी का जुमला नंबर थ्री।
मित्रों,अब जरा बात कर लेते हैं जुमला नंबर फोर की। नीतीश कुमार द्वारा किए जा रहे बिहार के न्याय के साथ विकास के दावे नामक जुमले पर। नीतीश सरकार ने जो कृषि रोड मैप लाया था अब पता नहीं सचिवालय के किस कोने पड़ा सड़ रहा है? अस्पतालों में दवा नहीं है,बिना घूस दिए थानों में एफआईआर दर्ज नहीं होता,जमीन का नामांतरण नहीं होता,बिहार कर्मचारी चयन आयोग और बीपीएससी में बच्चा पास नहीं होता,अफसरों को पोस्टिंग नहीं मिलती,ठेकेदारों को ठेका नहीं मिलता,पोस्टमार्टम के बाद लाश नहीं मिलती वगैरह-वगैरह। राज्य के सारे सरकारी नलकूपों के बंद होने से किसानों के खेतों की सिंचाई नहीं हो रही है,स्कूल-कॉलेजों में बाँकी सबकुछ होता है लेकिन शिक्षा नहीं मिलती,बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल रहा और आज भी ट्रेनों में भर-भर के लोग दिल्ली,कोलकाता,सूरत और मुंबई कमाने के लिए जा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री की बिटिया कम नंबर पाकर भी नियुक्त हो जाती है और प्रतिभावान ज्यादा अंक प्राप्त विद्यार्थी मुँह ताकते रह जाते हैं।
मित्रों,तात्पर्य यह है कि जब राज्य की जनता का अगर विकास नहीं हुआ तो किसका विकास हुआ? विकास हुआ है कुछेक ठेकेदारों का जिनकी बनाई सड़कें एक बरसात में ही धुल जाती हैं,विकास हुआ है नीतीश जी के मंत्रियों का जिनकी घोषित संपत्ति में कई गुना का ईजाफा हो गया है। जहाँ तक राज्य में न्याय के शासन का सवाल है तो इन दिनों हर जगह कंसों,दुर्योधनों और रावणों का राज है अगर ये लोग न्याय स्थापित कर सकते हैं तो राज्य का जरूर न्याय के साथ विकास हुआ है और हो रहा है।
मित्रों,हालत ऐसी है कि नीतीश जी के जुमले अनंत,जुमलों की कथा अनंता सो अच्छा यही रहेगा कि टीकाकार उनकी संपूर्णता में विवेचना कर सकने में खुद को पूरी तरह से असमर्थ मानते हुए मौन हो जाए। तो मैं अब मौन धारण करता हूँ और अपनी दुबली काया वाली लेखनी को कष्ट देना बंद करता हूँ तब तक के लिए जब तक कि चौहट्टा चौक पर जाकर उसमें दूसरी रिफिल न भरवा लूँ।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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