हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हमने बचपन में गणित का एक सवाल किया था कि एक बंदर एक खंभे पर एक मिनट में इतने फीट चढ़ता और दूसरे मिनट में इतने फीट फिसल जाता है तो इतने फीट के खंभे पर वो कितने मिनट में चढ़ जाएगा। लगता है कि केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी की सरकार भी इन दिनों वही कर रही है जो इस सवाल में बंदर कर रहा था। मोदी सरकार भी किसी मुद्दे पर एक कदम आगे बढ़ती है और फिर न सिर्फ कदम वापस खींच लेती है बल्कि सीधा यू-टर्न ही ले लेती है।
मित्रों,हमने केंद्र सरकार को उसके कार्यकाल की शुरुआत में ही चेताया था कि भारत की जनता को उनका परिश्रम ही नहीं चाहिए बल्कि परिणाम भी चाहिए लेकिन या तो सरकार ने हमारी बातों पर कान ही नहीं दिया या फिर सरकार के थिंक टैंक की सोंच में ही त्रुटि है। अब हम 56 ईंच के सीनेवाली सरकार के कुछ महत्त्वपूर्ण यू-टर्न पर विचार करते हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जो कुछ किया है उस पर हम अभी विचार नहीं करेंगे क्योंकि अभी इसके लिए उचित समय नहीं आया। हालाँकि जिस तरह से वहाँ रोजाना आतंकी मारे जा रहे हैं उससे तो यही संकेत मिल रहा है कि स्थिति पिछली अब्दुल्ला सरकार के मुकाबले बेहतर है। कुछ लोग भले ही पाकिस्तान या आईएस का झंडा लहराएँ लेकिन बहुमत इस समय भारत के पक्ष में है। इतना ही नहीं पीओके में भी भारत के प्रति समर्थन बढ़ने की खबरें आ रही हैं।
मित्रों,केंद्र सरकार ने पोर्न वेबसाइटों पर जब रोक लगाने की घोषणा की तो हम जैसे लोग काफी खुश हुए लेकिन 24 घंटा बीतने से पहले ही कदम पीछे खींच लिए गए। क्या केंद्र सरकार को पहले से पता नहीं था कि इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के क्या विचार हैं? अगर पता नहीं था तो यह बात बेहद शर्मनाक है और अगर पता था तो फिर वेबसाइटों को प्रतिबंधित ही क्यों किया?
मित्रों,इसी तरह की पलटी मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबद्ध दस्तावेजों को जारी करने के मामले में भी मारी है जिससे करोड़ों राष्ट्रवादियों का हृदय विदीर्ण हुआ है।
मित्रों,इसी तरह केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर भी यू-टर्न ले लिया जबकि वो पहले इसका पारित होना देश के औद्योगिक विकास के लिए जरूरी मान रही थी। तो क्या अब यह विधेयक जरूरी नहीं रहा? संस्कृत में एक कहावत है कि दीर्घसूत्री विनश्यन्ति अर्थात् विलंब से काम करने वालों को सफलता नहीं मिलती। केंद्र सरकार को अगर इस विधेयक को पारित करवाना ही था तो इस कार्य में ठीक वैसी ही तत्परता और दृढ़ता दिखानी चाहिए थी जैसी तत्परता और दृढ़ता यूपीए ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मामले में दिखाई थी और संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर बिना वामपंथियों के भारी विरोध की परवाह किए नए विधेयक को पारित करवाया था। सरकार ने विपक्ष को क्यों लंबा मौका दिया जिससे वो किसानों को सरकार के खिलाफ भड़का सके? क्या केंद्र सरकार विधेयक को लेकर डरी-सहमी हुई थी? अगर सरकार के पास 56 ईंच का सीना नहीं था तो फिर विधेयक में संशोधन के लिए प्रयास करने की आवश्यकता ही क्या थी और अगर सीना था तो फिर विधेयक को वापस क्यों लिया? लेकिन सिर्फ सीना चौड़ा होने या साहसी होने से ही कोई सरकार या व्यक्ति कार्यकुशल नहीं हो जाते बल्कि उसके साथ-साथ एक तेज और चतुर मस्तिष्क का होना भी उतना ही जरूरी है।
मित्रों,अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई है कि कारगिल के शहीद सौरभ कालिया के मामले में भी सरकार ने यू-टर्न ले लिया है और सरकार का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय अदालत में इस मामले को तभी ले जाया जा सकता है जब पाकिस्तान भी इसके लिए तैयार हो। अगर ऐसा ही था तो फिर इतनी कवायद करने और देश और न्यायालय का कीमती वक्त बर्बाद करने की आवश्यकता ही क्या थी? क्या कानून मंत्रालय को प्रत्येक मामले में देर से ज्ञान प्राप्त होता है?
मित्रों,इतना ही नहीं हमेशा से अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण का विरोध करनेवाली पार्टी की सरकार भी उसी काम में जुट गई लगती है। आजकल टीवी-रेडियो पर अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा से संबद्ध विज्ञापन धड़ल्ले से आ रहे हैं। हमने मनमोहन सरकार के समय आवाज उठाई थी कि रजिया अगर गरीब है तो सरकार बेशक उसकी मदद करे लेकिन राधा अगर गरीब है तो उसकी भी सहायता करे क्योंकि हिंदू-बहुल देश में हिंदुओं को दोयम-दर्जे का नागरिक कैसे बनाया जा सकता है या फिर हिंदू परिवार में जन्म लेना कोई अपराध तो नहीं। लेकिन देखा तो यही जा रहा है कि पहले की सरकारें जो कर रही थीं वही मोदी सरकार भी कर रही है। मुझे तो लगता है अगर सरकार को तुष्टीकरण करना ही नहीं है तो फिर अल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय की आवश्यकता ही क्या है? भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कभी भेदभाव तो किया नहीं गया। अगर वे पिछड़े हैं तो अपनी पिछड़ी और यथास्थितिवादी सोंच की वजह से पिछड़े हैं।
मित्रों,महत्त्वपूर्ण मामलों में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से बार-बार यू-टर्न लिया जा रहा है उससे अब हमारे मन में संदेह होने लगा कि यह सरकार भारत को सही दिशा में ले जा पाएगी। क्या बेवजह हर चौराहे पर यू-टर्न लेकर कोई मंजिल पर पहुँचा है या फिर पहुँच सकता है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,हमने केंद्र सरकार को उसके कार्यकाल की शुरुआत में ही चेताया था कि भारत की जनता को उनका परिश्रम ही नहीं चाहिए बल्कि परिणाम भी चाहिए लेकिन या तो सरकार ने हमारी बातों पर कान ही नहीं दिया या फिर सरकार के थिंक टैंक की सोंच में ही त्रुटि है। अब हम 56 ईंच के सीनेवाली सरकार के कुछ महत्त्वपूर्ण यू-टर्न पर विचार करते हैं। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जो कुछ किया है उस पर हम अभी विचार नहीं करेंगे क्योंकि अभी इसके लिए उचित समय नहीं आया। हालाँकि जिस तरह से वहाँ रोजाना आतंकी मारे जा रहे हैं उससे तो यही संकेत मिल रहा है कि स्थिति पिछली अब्दुल्ला सरकार के मुकाबले बेहतर है। कुछ लोग भले ही पाकिस्तान या आईएस का झंडा लहराएँ लेकिन बहुमत इस समय भारत के पक्ष में है। इतना ही नहीं पीओके में भी भारत के प्रति समर्थन बढ़ने की खबरें आ रही हैं।
मित्रों,केंद्र सरकार ने पोर्न वेबसाइटों पर जब रोक लगाने की घोषणा की तो हम जैसे लोग काफी खुश हुए लेकिन 24 घंटा बीतने से पहले ही कदम पीछे खींच लिए गए। क्या केंद्र सरकार को पहले से पता नहीं था कि इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के क्या विचार हैं? अगर पता नहीं था तो यह बात बेहद शर्मनाक है और अगर पता था तो फिर वेबसाइटों को प्रतिबंधित ही क्यों किया?
मित्रों,इसी तरह की पलटी मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबद्ध दस्तावेजों को जारी करने के मामले में भी मारी है जिससे करोड़ों राष्ट्रवादियों का हृदय विदीर्ण हुआ है।
मित्रों,इसी तरह केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर भी यू-टर्न ले लिया जबकि वो पहले इसका पारित होना देश के औद्योगिक विकास के लिए जरूरी मान रही थी। तो क्या अब यह विधेयक जरूरी नहीं रहा? संस्कृत में एक कहावत है कि दीर्घसूत्री विनश्यन्ति अर्थात् विलंब से काम करने वालों को सफलता नहीं मिलती। केंद्र सरकार को अगर इस विधेयक को पारित करवाना ही था तो इस कार्य में ठीक वैसी ही तत्परता और दृढ़ता दिखानी चाहिए थी जैसी तत्परता और दृढ़ता यूपीए ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मामले में दिखाई थी और संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर बिना वामपंथियों के भारी विरोध की परवाह किए नए विधेयक को पारित करवाया था। सरकार ने विपक्ष को क्यों लंबा मौका दिया जिससे वो किसानों को सरकार के खिलाफ भड़का सके? क्या केंद्र सरकार विधेयक को लेकर डरी-सहमी हुई थी? अगर सरकार के पास 56 ईंच का सीना नहीं था तो फिर विधेयक में संशोधन के लिए प्रयास करने की आवश्यकता ही क्या थी और अगर सीना था तो फिर विधेयक को वापस क्यों लिया? लेकिन सिर्फ सीना चौड़ा होने या साहसी होने से ही कोई सरकार या व्यक्ति कार्यकुशल नहीं हो जाते बल्कि उसके साथ-साथ एक तेज और चतुर मस्तिष्क का होना भी उतना ही जरूरी है।
मित्रों,अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई है कि कारगिल के शहीद सौरभ कालिया के मामले में भी सरकार ने यू-टर्न ले लिया है और सरकार का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय अदालत में इस मामले को तभी ले जाया जा सकता है जब पाकिस्तान भी इसके लिए तैयार हो। अगर ऐसा ही था तो फिर इतनी कवायद करने और देश और न्यायालय का कीमती वक्त बर्बाद करने की आवश्यकता ही क्या थी? क्या कानून मंत्रालय को प्रत्येक मामले में देर से ज्ञान प्राप्त होता है?
मित्रों,इतना ही नहीं हमेशा से अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण का विरोध करनेवाली पार्टी की सरकार भी उसी काम में जुट गई लगती है। आजकल टीवी-रेडियो पर अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा से संबद्ध विज्ञापन धड़ल्ले से आ रहे हैं। हमने मनमोहन सरकार के समय आवाज उठाई थी कि रजिया अगर गरीब है तो सरकार बेशक उसकी मदद करे लेकिन राधा अगर गरीब है तो उसकी भी सहायता करे क्योंकि हिंदू-बहुल देश में हिंदुओं को दोयम-दर्जे का नागरिक कैसे बनाया जा सकता है या फिर हिंदू परिवार में जन्म लेना कोई अपराध तो नहीं। लेकिन देखा तो यही जा रहा है कि पहले की सरकारें जो कर रही थीं वही मोदी सरकार भी कर रही है। मुझे तो लगता है अगर सरकार को तुष्टीकरण करना ही नहीं है तो फिर अल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय की आवश्यकता ही क्या है? भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कभी भेदभाव तो किया नहीं गया। अगर वे पिछड़े हैं तो अपनी पिछड़ी और यथास्थितिवादी सोंच की वजह से पिछड़े हैं।
मित्रों,महत्त्वपूर्ण मामलों में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से बार-बार यू-टर्न लिया जा रहा है उससे अब हमारे मन में संदेह होने लगा कि यह सरकार भारत को सही दिशा में ले जा पाएगी। क्या बेवजह हर चौराहे पर यू-टर्न लेकर कोई मंजिल पर पहुँचा है या फिर पहुँच सकता है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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