मित्रों,मिड्ल स्कूल में मेरे गुरू रहे श्री श्रीराम सिंह कहा करते थे कि जो गलती को दोहराता नहीं उसे भगवान कहते हैं,जो गलतियों को दोहराए उसे इंसान कहते हैं और जो गलतियों को बार-बार दोहराए उसे शैतान कहते हैं। परंत अप्रैल-मई में चार राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं और दुर्भाग्यवश भारत की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भाजपा जिस पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी हुई हैं वो भी बार-बार उन्हीं गलतियों को दोहरा रही है जो उसने पिछले यूपी और हालिया दिल्ली व बिहार चुनावों के समय किए थे।
मित्रों,आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनावों में जबकि चुनाव-प्रचार अपने पूरे उरूज पर था तब भाजपा ने बसपा के दागी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा में अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। चुनावों में इस गलती का जो परिणाम भाजपा को और यूपी की जनता को भुगतना पड़ा वह पिछले 4 सालों से आपलोग भी देख रहे हैं। ठीक उसी तरह की गलती भाजपा ने केरल में दागी क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत को पार्टी में शामिल करके की है। लगता है जैसे भाजपाइयों का दिमाग ऐन चुनाव के वक्त घास चरने चला जाता है।
मित्रों,अगर हम चुनावी जुमलों की बात करें तो आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनावों के समय नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने चीख-चीखकर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी अब बोरिया-बिस्तर बांधना शुरू कर दें क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उनकी घर-वापसी की प्रकिया शुरू हो जाएगी लेकिन हम देखते हैं कि अब जबकि प. बंगाल और असम जहाँ कि घुसपैठ ने जनसांख्यिकी को बिगाड़कर रख दिया है में चुनाव-प्रचार जारी है भाजपा घुसपैठ पर लगाम लगाने के वादे कर रही है घर-वापसी का जिक्र तक नहीं कर रही। ऐसे में जनता इस बात को लेकर कैसे मुतमईन हो सकती है कि वर्तमान चुनावों में भाजपा जो वादे कर रही है वो चुनावी जुमला नहीं है।
मित्रों,तमाम मीडिया-सर्वेक्षण बता रहे हैं कि चार राज्यों में से सिर्फ असम में भाजपा टक्कर में है वरना प. बंगाल,केरल और तमिलनाडु में उसका खाता भी खुल जाए तो गनीमत है। हमने देखा कि ग्रासरूट लेवल तक गहन जनसंपर्क करके आप पार्टी ने कैसे दिल्ली में भाजपा को करारी शिकस्त दी। आखिर वही रणनीति अपनाने में भाजपा को समस्या क्या है? पार्टी के मिस्ड कॉल अभियान के बाद हमने पार्टी को सलाह दी थी कि अब पार्टी को उन लोगों से सीधा संपर्क करके सदस्यता प्रपत्र भरवाना चाहिए लेकिन लगता है कि पार्टी नेताओं को एसी में रहने की बीमारी हो गई है। मोदी और शाह यह तो चाहते हैं कि भाजपा इतनी शक्तिशाली हो जितनी कि 50 के दशक में कांग्रेस थी लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से पसीना बहवाना नहीं चाहते। उनको अभी भी भ्रम है कि हर ब्लॉक या जिला मुख्यालय में पीएम की सभा आयोजित कर देने मात्र से ही चुनाव जीता जा सकता है। उधर यूपी से भी ओपिनियन पोल के नतीजे यही बता रहे हैं कि भाजपा वहाँ दूसरे नंबर पर भी नहीं आने जा रही है फिर उसका सरकार बनाने की बात तो दूर ही रही।
मित्रों,पार्टी को कैसे चलाना है,जिताना है या हराना है मोदी और शाह जानें लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव नतीजों का दुष्प्रभाव उस राज्य की सारी जनता को झेलना पड़ता है,पूरे देश को झेलना पड़ता है। अब बिहार को ही लें तो पहले शराब बंद करके,फिर बालू खनन पर रोक लगाकर और अब जमीन की रजिस्ट्री को ऑनलाईन करके नीतीश-लालू की सरकार ने चुनावों के बाद से लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसी तरह यूपी का पहले बसपा ने और बाद में कथित समाजवादियों ने क्या हाल करके रख दिया है किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसलिए अच्छा हो कि पार्टी नेतृत्व अपनी रणनीति को बदले और बात को नेहरू की गलत साबित हो चुकी ट्रिकल डाऊन थ्योरी की तरह ऊपर से नीचे पहुँचाने के बदले नीचे से ऊपर पहुँचाने के उपाय करे। यह सही है कि पार्टी ने पहले भी हमारी सलाहों पर किंचित भी ध्यान देने की जरुरत नहीं समझी है लेकिन हम भी क्या करें हमसे तो भारत दुर्दशा देखी न जाई।
मित्रों,आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनावों में जबकि चुनाव-प्रचार अपने पूरे उरूज पर था तब भाजपा ने बसपा के दागी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा में अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। चुनावों में इस गलती का जो परिणाम भाजपा को और यूपी की जनता को भुगतना पड़ा वह पिछले 4 सालों से आपलोग भी देख रहे हैं। ठीक उसी तरह की गलती भाजपा ने केरल में दागी क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत को पार्टी में शामिल करके की है। लगता है जैसे भाजपाइयों का दिमाग ऐन चुनाव के वक्त घास चरने चला जाता है।
मित्रों,अगर हम चुनावी जुमलों की बात करें तो आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनावों के समय नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने चीख-चीखकर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी अब बोरिया-बिस्तर बांधना शुरू कर दें क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उनकी घर-वापसी की प्रकिया शुरू हो जाएगी लेकिन हम देखते हैं कि अब जबकि प. बंगाल और असम जहाँ कि घुसपैठ ने जनसांख्यिकी को बिगाड़कर रख दिया है में चुनाव-प्रचार जारी है भाजपा घुसपैठ पर लगाम लगाने के वादे कर रही है घर-वापसी का जिक्र तक नहीं कर रही। ऐसे में जनता इस बात को लेकर कैसे मुतमईन हो सकती है कि वर्तमान चुनावों में भाजपा जो वादे कर रही है वो चुनावी जुमला नहीं है।
मित्रों,तमाम मीडिया-सर्वेक्षण बता रहे हैं कि चार राज्यों में से सिर्फ असम में भाजपा टक्कर में है वरना प. बंगाल,केरल और तमिलनाडु में उसका खाता भी खुल जाए तो गनीमत है। हमने देखा कि ग्रासरूट लेवल तक गहन जनसंपर्क करके आप पार्टी ने कैसे दिल्ली में भाजपा को करारी शिकस्त दी। आखिर वही रणनीति अपनाने में भाजपा को समस्या क्या है? पार्टी के मिस्ड कॉल अभियान के बाद हमने पार्टी को सलाह दी थी कि अब पार्टी को उन लोगों से सीधा संपर्क करके सदस्यता प्रपत्र भरवाना चाहिए लेकिन लगता है कि पार्टी नेताओं को एसी में रहने की बीमारी हो गई है। मोदी और शाह यह तो चाहते हैं कि भाजपा इतनी शक्तिशाली हो जितनी कि 50 के दशक में कांग्रेस थी लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से पसीना बहवाना नहीं चाहते। उनको अभी भी भ्रम है कि हर ब्लॉक या जिला मुख्यालय में पीएम की सभा आयोजित कर देने मात्र से ही चुनाव जीता जा सकता है। उधर यूपी से भी ओपिनियन पोल के नतीजे यही बता रहे हैं कि भाजपा वहाँ दूसरे नंबर पर भी नहीं आने जा रही है फिर उसका सरकार बनाने की बात तो दूर ही रही।
मित्रों,पार्टी को कैसे चलाना है,जिताना है या हराना है मोदी और शाह जानें लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव नतीजों का दुष्प्रभाव उस राज्य की सारी जनता को झेलना पड़ता है,पूरे देश को झेलना पड़ता है। अब बिहार को ही लें तो पहले शराब बंद करके,फिर बालू खनन पर रोक लगाकर और अब जमीन की रजिस्ट्री को ऑनलाईन करके नीतीश-लालू की सरकार ने चुनावों के बाद से लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसी तरह यूपी का पहले बसपा ने और बाद में कथित समाजवादियों ने क्या हाल करके रख दिया है किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसलिए अच्छा हो कि पार्टी नेतृत्व अपनी रणनीति को बदले और बात को नेहरू की गलत साबित हो चुकी ट्रिकल डाऊन थ्योरी की तरह ऊपर से नीचे पहुँचाने के बदले नीचे से ऊपर पहुँचाने के उपाय करे। यह सही है कि पार्टी ने पहले भी हमारी सलाहों पर किंचित भी ध्यान देने की जरुरत नहीं समझी है लेकिन हम भी क्या करें हमसे तो भारत दुर्दशा देखी न जाई।
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