शनिवार, 30 सितंबर 2017

दुर्गा पूजा के नाम पर पापाचार

मित्रों, अगर मैं कहूं कि धर्म दुनिया का सबसे जटिल विषय है तो यह कदापि अतिशयोक्ति नहीं होगी. विडंबना यह है कि कई बार जब कोई धर्म अपने मूल स्वरुप में सर्वकल्याणकारी हो तो उसमें स्वार्थवश इतने अवांछित परिवर्तन कर दिए जाते हैं कि वह घृणित हो जाता है तो वहीँ दूसरी ओर कोई धर्म जब अपने मूल स्वरुप में ही राक्षसी होता है और उसमें देश, काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन आवश्यक हो जाता है तब उसके अनुयायी परिवर्तन को तैयार ही नहीं होते.
मित्रों, पहले प्रकार के धर्म का सर्वोत्तम उदाहरण बौद्ध धर्म है और दूसरे प्रकार के धर्म का इस्लाम. बुद्ध ने कहा कि ईश्वर होता ही नहीं है लेकिन उनके अनुयायियों ने परवर्ती काल में उनको ही ईश्वर बना दिया. फिर महायान-हीनयान-वज्रयान-तंत्रयान इतने यान आते गए कि बुद्ध द्वारा संसार को दिया गया मूल ज्ञान ही लुप्त हो गया. कुछ ऐसी ही स्थिति कबीर पंथ की हुई. कबीर ने कहा मैं तो कूता राम का मोतिया मेरा नाऊं, गले राम की जेवड़ी जित खींचे तित जाऊं. लेकिन कबीरपंथियों ने उनको इन्सान से सीधे उनके आराध्य राम से भी बड़ा पारब्रह्मपरमेश्वर बना दिया. राधे मां और राम रहीम सिंह ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए खुद को ही भगवान घोषित कर दिया. एक और बाबा थे पंजाब के जिनका जन्म बिहार में हुआ था नाम था आशुतोष महाराज. उनके अनुयायी यह कहकर पिछले ३-४ साल से उनका अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं कि आशुतोष फिर से जीवित हो जाएंगे. मतलब कि चाहे धर्मगुरु हो या उनके अनुयायी वे धर्म, ईश्वर और नैतिकता की कई बार वैसी व्याख्या करते हैं जिससे उनका स्वार्थ सधता हो. 
मित्रों, दुर्भाग्यवश इस तरह की दुष्टता से जगत की जननी और पालक माँ दुर्गा भी नहीं बची हैं. यह सही है कि मार्कंडेय पुराण के अनुसार दुर्गा माता ने रक्तबीज का खून पीया था और राक्षसों की सेना को सीधे निगल गई थीं लेकिन ऐसा करना युद्धकाल की आवश्यकता थी. रक्तबीज खून के हर बूँद के भूमि पर गिरने से एक रक्तबीज पैदा हो जा रहा था. इसी प्रकार चंड-मुंड के संहार के समय उन्होंने रथ-हाथी-घोड़े और युद्धास्त्रों सहित सीधे-सीधे पूरी सेना को ही निगल लिया था लेकिन वह तो उनकी लीला थी. इसका मतलब यह नहीं कि हम उनको निर्दोष और मजबूर जानवरों की बलि देने लगें. माता ने राक्षसों का संहार किया था न कि निरीह और निर्दोष जानवरों का. इसी पुस्तक के अनुसार महिषासुर-वध से पहले उन्होंने मधुपान किया था जिससे उनके नेत्र लाल हो गए थे. हो सकता है कि यहाँ लेखक ने मदिरा को मधु कहा हो. मगर युद्ध की स्थिति विशेष होती है सामान्य नहीं. कई बार अग्रिम पर्वतीय मोर्चे पर तैनात सैनिकों को भारत सरकार स्वयं शराब उपलब्ध करवाती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सैनिक शराबी हो जाएँ और रिटायर्मेंट के बाद सामाजिक समस्या बन जाएँ.
मित्रों, अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि पुराणों की रचना गुप्त और परवर्ती गुप्त काल में हुई थी. इतिहास साक्षी है कि यह वही काल था जब बौद्ध और सनातन धर्म पर तांत्रिकों का कब्ज़ा हो चुका था इसलिए हो सकता है कि तांत्रिकों ने जानबूझकर श्री दुर्गा सप्तशती में इस तरह के वर्णन डाल दिए हों जिनमें माता को रक्त-मांसभक्षक और मद्यप बताया गया हो. समयानुसार ईश्वर का रूप कैसे बदलता है इसके बुद्ध के बाद सबसे बड़े प्रमाण हैं श्रीकृष्ण जो महाभारत काल में योगेश्वर होते हैं लेकिन रीतिकाल आते-आते अपने भक्तों द्वारा भोगेश्वर बना दिए जाते हैं.
मित्रों, कहने का तात्पर्य यह कि मां के नाम पर बलि देना, मांस खाना या शराब पीना न केवल गलत है बल्कि अपराध है इसलिए इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए. फिर गीता-प्रेस द्वारा प्रकाशित दुर्गा-सप्तशती में दुर्गा पूजा की जो विधि बताई गयी है उसमें तो कहीं भी इन राक्षसी या तांत्रिक विधियों की चर्चा नहीं है. यानि जब माँ को सात्विक विधि से भी प्रसन्न किया जा सकता है तो फिर राक्षसी कर्म करने की आवश्यकता ही क्या है?
मित्रों, माता क्या सिर्फ मानवों की माता हैं? क्या वो अन्य प्राणियों की माता नहीं हैं? या फिर अन्य प्राणियों में प्राणरूप में माता की मौजूदगी नहीं है? दुर्गा-सप्तशती तो कहती है कि देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।। (अध्याय ११-३) सम्पूर्ण जगत की माता प्रसन्न होओ. विश्वेश्वरी विश्व की रक्षा करो. देवी तुम्ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो. विद्याः समस्तास्तव देवी भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगस्तु. त्वयैकया पूरितम्बयैतत का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः. (अध्याय ११-६) देवी, सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरुप हैं. जगत में जितनी स्त्रियाँ हैं वे सब तुम्हारी ही मूर्तियां हैं. जगदम्ब एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है. तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? आदि-आदि.
मित्रों, मेरे कहने का मतलब यह है कि जिसको मांस-मदिरा का भक्षण करना है करें (यद्यपि मानव शरीर इसके हिसाब से नहीं बनाया गया है) लेकिन इसमें परम करुणामयी और परमपवित्र माता का नाम न घसीटें-खस्सी मार घरबैया खाए हत्या लेले पाहुन जाए क्यों? मेरी माँ तो करुणा की महासागर हैं, निरंतर अहैतुकी कृपा बरसाने वाली हैं वे कैसे किसी मूक-मजबूर का रक्तपान कर प्रसन्न हो सकती हैं? हाँ मेरी माँ दुष्टों का संहार करनेवाली जरूर हैं और तदनुसार दुष्टता का भी इसलिए माँ के साथ माँ का नाम लेकर कृपया छल करने की सोंचिएगा भी नहीं.
मित्रों, इसी प्रकार कई स्थानों पर दुर्गा पूजा के नाम पर किशोरियों को पुजारियों के साथ अधनंगे रखे जाने की परंपरा है. इस तरह की देवदासी प्रकार की हरेक लोकनिन्दित परंपरा भी तत्काल बंद होनी चाहिए क्योंकि स्वयं दुर्गा सप्तशती कहती है कि प्रत्येक स्त्री स्वयं दुर्गास्वरूप है इसलिए स्त्री की गरिमा और सम्मान के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ करना सीधे-सीधे स्वयं दुर्गा माता की गरिमा और सम्मान के साथ खिलवाड़ करना होगा.


शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

राहुल गाँधी की कृत्रिम बुद्धि और हस्तिनापुर

मित्रों, एक समय था जब पूरे भारत पर हस्तिनापुर का शासन था. लेकिन तभी वहां धृतराष्ट्र नामक अंधे को राजा बना दिया गया. जाहिर है कि वो सर्वथा अयोग्य था. आश्चर्य कि वहां की जनता ने भी मनांध की तरह आँख मूंदकर राजपरिवार के इस फैसले को मान लिया और परिणाम यह हुआ कि हस्तिनापुर का बहुत जल्दी पतन हो गया.
मित्रों, दूसरी ओर मगध अपेक्षाकृत एक कमजोर और छोटा राज्य था. लेकिन वहां की जनता ने कभी राजा के कमजोर और अयोग्य पुत्र को राजा के रूप में स्वीकार नहीं किया. बार-बार जनविद्रोह होता रहा, वंश बदलता रहा लेकिन मगध का विस्तार होता गया और एक समय ऐसा भी आया जब पूरे भारत पर मगध का ध्वज लहराता था.
मित्रों, इस समय कांग्रेस पार्टी की स्थिति हस्तिनापुर जैसी है. युवराज निहायत अयोग्य हैं कदाचित दुर्योधन से भी ज्यादा लेकिन पार्टी हस्तिनापुर की जनता की तरह अडी हुई है कि हमें तो यही नेता चाहिए और कोई चाहिए ही नहीं. परिणाम सबके सामने है.
मित्रों, अभी पिछले महीने पता चला कि राहुल जी अमेरिका में कृत्रिम बुद्धि पर कुछ बोलनेवाले हैं. यकीन मानिये हँसते-हँसते अंतड़ियों में दर्द होने लगा. जिसकी खुद की बुद्धि कृत्रिम है वो कृत्रिम बुद्धि पर व्याख्यान देगा? आपने पिछले दिनों देखा भी होगा कि राहुल जी अमेरिका में क्या-क्या बोले जा रहे हैं. मैं मानता हूँ कि इस समय उनके सैम अंकल सैम पित्रोदा अपनी जिंदगी के सबसे कठिन मिशन पर हैं मिशन टोटली इम्पॉसिबल पर. घोडा सुस्त हो तो उसको तेज बनाया जा सकता है लेकिन गधे को घोडा कदापि नहीं बनाया जा सकता.
मित्रों, अब हम आते हैं राहुल गाँधी के अमेरिका के वर्तमान दौरे पर. वैसे मुझे नहीं पता कि इस समय उनका भाषण लिख कौन रहा है. वो जो बोल रहे हैं निश्चित रूप से वे उनके शब्द तो नहीं हैं. चलिए हंसी को दबाने का प्रयास करते हुए एक नजर डालते हैं. राहुल गाँधी फरमाते हैं भारत असहिष्णु हो गया है, भारत वंशवाद से ही चल रहा है, मैं भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हूँ, दुनियाभर में भारत की प्रतिष्ठा लगातार कम हो रही है, भारत की वर्तमान सरकार की आर्थिक नीति सही नहीं है बल्कि चीन की सही है, भारतीय लोकसभा में ५४६ सदस्य हैं, भारत को एनआरआई ने आजाद कराया था और कांग्रेस एनआरआई द्वारा स्थापित और संचालित एनआरआई पार्टी है, सिर्फ बेरोजगारी की वजह से कांग्रेस चुनाव हार गयी, कांग्रेस को घमंड हो गया था इत्यादि.
मित्रों, आप ही बताईए क्या आप अपनी हंसी रोक पा रहे हैं? चाहे कोई भारत में बेवकूफी करे या अमेरिका जाकर करे कहलाएगी तो बेवकूफी ही. (वैसे अगर उनकी अमेरिकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य प्रसिद्ध पोर्न अभिनेत्री के साथ रात बिताते हुए विशेष तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना था तब जरूर उनकी अमेरिकी यात्रा उम्मीद से बढ़कर सफल रही है.)  ऊपर से गजब यह कि कांग्रेस बहुत जल्दी इनको अपना अध्यक्ष बनाने जा रही है. बढ़िया है हस्तिनापुर वालों बढ़िया है. हमें तो देशहित से मतलब है और तुम्हारा यह कदम निश्चित रूप से देशहित में होगा. महान मगध की जय, भारतमाता की जय.

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

किसानों के साथ योगी सरकार का मजाक

मित्रों, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के बाद से अगर कोई व्यवसाय सबसे ज्यादा घाटे में रहा है तो वो है कृषि. कहने को तो किसान अन्नदाता है और पूरे देश का पेट भरते हैं लेकिन उनके खुद के हाथ बारहों मास खाली रहते हैं. अगर आप महंगाई के आंकड़े देखेंगे को पाएंगे कि सबसे कम तेजी से अनाजों के दाम बढ़ते हैं. दूसरी चीजों के दाम आसमान को छू जाएं तो कोई चर्चा नहीं होती लेकिन आलू-प्याज-टमाटर थोड़े से महंगे हो जाएँ तो मीडिया आसमान को सर पे उठा लेती है. मानों किसानों ने लगातार घाटा उठाकर दूसरों का पेट भरने का ठेका ले रखा हो.
मित्रों, अनाज-दाल-सब्जियों की खेती करनेवाले किसानों को आजादी के बाद से ही लगातार वादों का सब्जबाग दिखाया गया लेकिन हुआ कुछ नहीं. अंग्रेजों के समय कम-से-कम उनकी स्थिति इतनी बुरी तो नहीं थी कि उनको आत्महत्या करनी पड़े? वर्तमान केंद्र सरकार भी कहती है कि २०२२ तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी मगर इस दिशा में अभी तक कोई काम होता हुआ दिख नहीं रहा है. पता नहीं रातों रात सरकार ऐसा चमत्कार कैसे कर देगी?
मित्रों, यूपी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने वादा किया था कि जीतने के बाद वो किसानों के कर्ज माफ़ करेगी लेकिन अब लगता है कि किसानों को फिर से उसी तरह से ठगा गया है जिस तरह से पिछली अखिलेश सरकार ने ७५ पैसे और ५ रूपये का चेक देकर ठगा था. कितना बड़ा मजाक है लोन डेढ़ लाख का माफ़ी का चेक १ रूपया और १०० रूपये का? इससे ज्यादा पैसे तो बैंक आने-जाने में ही खर्च हो जाएंगे? फिर क्यों किया कर्ज माफ़? सरकार ने किसानों को भिखारी समझा है क्या जो उनके कटोरे में ५० पैसे और एक रूपये डाल रही है? बतौर अलफांसों जी क्या किसान इतने पैसों के बिना मरे जा रहे थे?
मित्रों, मैं हमेशा से ऐसी कर्ज माफ़ी के खिलाफ रहा हूँ. वास्तव में इससे देश का तो कोई भला नहीं ही होता है किसानों को भी सिर्फ तात्कालिक फायदा होता है. अच्छा हो कि ऐसे इंतजाम किए जाएँ कि किसान भिखारी के बदले वास्तविक दाता बन सकें. मैं तो उस दिन की कल्पना करके डरता रहता हूँ जिस दिन हमारे देश के किसान हड़ताल कर देंगे? क्या आपने कभी सोंचा है कि अगर ऐसा हुआ तो देश की हालत क्या होगी?

रविवार, 17 सितंबर 2017

हैप्पी बर्थ डे मोदीजी

मित्रों, कहते हैं कि भगवान जो भी करता है उसके पीछे कोई न कोई कारण होता है वैसे उनकी कृपा जरूर अहैतुकी होती है. शायद इसलिए हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री और भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है. एक देवताओं का शिल्पी और दूसरा नए भारत का निर्माता. दोनों ही निःस्वार्थ और दोनों ही निराभिमानी.
मित्रों, आप कहेंगे कि मोदीजी का जन्मदिन तो हर साल आता है फिर इस बार बधाई क्यों. तो इसका उत्तर देने से पहले मैं आपसे एक प्रतिप्रश्न करना चाहूँगा और आपको साढ़े ३ साल पहले के भारत और साढ़े ३ साल पहले की दुनिया में ले जाना चाहूँगा. साढ़े तीन साल पहले भारत की स्थिति कैसी थी आपको याद है? रोज-रोज तत्कालीन संघ सरकार के नए-नए घोटाले सामने आ रहे थे. तीनों लोकों में ऐसा कोई विभाग नहीं बचा था जिसमें घोटाला नहीं किया गया हो.  देश के विकास के लिए सरकार के एजेंडे में कोई स्थान ही नहीं था और लगता था जैसे एकमात्र लूटने-खसोटने के उद्देश्य से ही सरकार का गठन किया गया था. लोग राजनीतिज्ञों से इस कदर निराश हो चुके थे कि कानों में उनके नाम पड़ते ही चेहरे पर स्वतः घृणा के भाव आ जाते थे. वैश्विक परिदृश्य में भारत को कोने में धकेल दिया गया था. यहाँ तक कि पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हमारे कथित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हरदम रोनेवाली देहाती महिला घोषित कर रखा था.
मित्रों, अब आते हैं आज के परिदृश्य पर. आज भारत में चतुर्दिक जोश का माहौल है, सरकार के प्रति विश्वास का वातावरण है. ईमानदार खुश हैं और बेईमान परेशान. नोटबंदी और जीएसटी के चलते अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कुछ घटी जरूर है लेकिन भविष्य के लिए नई उडान की असीम संभावना भी बनी है. भारत के वे सारे पडोसी जो भारत का अहित चाहते थेभारत की बढती ताकत से परेशान है. पूरे संसार को प्रकम्पित कर देनेवाला ड्रैगन आज भयभीत और शर्मिंदा है. आतंकियों को अब बिरयानी नहीं दिया जाता बल्कि सीधे नरक भेज दिया जाता है. आज पूरी दुनिया हर मानवीय संकट में भारत की तरफ आशाभरी दृष्टि से देख रही है. आज भारत की आवाज दुनिया की सबसे सशक्त आवाज है.
मित्रों, कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी जी ने अपने कार्यों से जनता के मन में राजनीतिज्ञों के प्रति जो घृणा का भाव था उसको न केवल कम किया है बल्कि जनता के मन में अपने प्रति श्रद्धा उत्पन्न की है. वैसे मेरे जैसे निर्धन के पास ऐसा कुछ नहीं है शाब्दिक उद्गारों  के अलावा जो मैं उनको उनके ६७वें जन्मदिन पर भेंट कर सकूं. उल्टे अपने प्रधान सेवक से यह छोटा सेवक रिटर्न गिफ्ट की अपेक्षा रखता है. मेरी उनसे दो मांगें हैं-१. बैंकों में जो न्यूनतम जमा रखने का नियम रखा गया है उसको आय के आधार पर दो श्रेणियों में बाँट दिया जाए. जो लोग आय कर देते हैं उनके लिए तो हजार-दो हजार की सीमा रखी जाए लेकिन जिनकी आय आय कर के दायरे में नहीं आती उनके लिए शून्य बैलेंस को मंजूरी दी जाए. २. पेट्रोल और डीजल की कीमत के सम्बन्ध में सरकार स्थिति स्पष्ट करे. अगर वास्तविक कर-संग्रह में गिरावट के चलते ऐसा करना अनिवार्य है तो पीएम को इसके लिए सीधे जनता से बात करनी चाहिए और जनता-जनार्दन का आह्वान करना चाहिए. इसके साथ ही मोदी जी से अनुरोध करूंगा कि अल्फ़ान्सो जी की दिग्विजयी (मेरा मतलब दिग्विजय सिंह से है) जुबान पर शीघ्रातिशीघ्र ताला लगाएं.
मित्रों, अंत में मैं मोदी जी को उनके जन्मदिन पर बहुत-बहुत बधाई देते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनका स्वास्थ्य हमेशा उत्तम रहे और उनको देश निर्माण की दिशा में लगातार सफलता-दर-सफलता मिलती रहे.

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

मालदा से जयपुर वाया पंचकुला

मित्रों,  कार्ल मार्क्स ने कहा था कि "Religion is the sigh of the oppressed creature, the heart of a heartless world, and the soul of soulless conditions. It is the opium of the people". यानि संप्रदाय अफीम है. यह बात अलग है कि हमारे देश के मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने इसको धर्म अफीम है बना डाला जबकि धर्म का मतलब ड्यूटी होता है संप्रदाय नहीं. चूंकि हिन्दू धर्म है संप्रदाय नहीं शायद इसलिए मार्क्सवादियों को ऐसी शरारत करनी पड़ी.  अब चूंकि हिन्दू धर्म है अर्थात नैतिक नियमों का महासागर है इसलिए इसमें कट्टरता का नामोनिशान नहीं है. हमारे किसी भी शास्त्र या पुस्तक में यह नहीं लिखा है कि जो अहिंदू हैं उनसे नफरत करो, लूट लो, उनके साथ बलात्कार करो या उनको मार डालो या उनको बंदी बना लो. बल्कि दुनिया में हमीं ऐसे अकेले हैं जो कहते हैं कि तू वसुधैव कुटुम्बकम या सर्वे भवन्तु सुखिनः या ब्रह्मास्मि तत त्वमसि.
मित्रों, यही कारण है कि जब १९४७ में भारत का संप्रदाय के आधार पर बंटवारा हुआ तो बड़ी संख्या में मुसलमानों ने नए मुस्लिम देश पाकिस्तान जाने के बदले हिंदुस्तान में हिन्दुओं के बीच रहना बेहतर समझा. यह आबादी इतनी बड़ी थी कि आज पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान भारत रहते हैं. फिर आया १९७१. भारत को बेवजह पाकिस्तान से युद्ध करना पड़ा. युद्ध के दौरान भारी संख्या में बंगलादेशी भागकर भारत आ गए. इनमें से भी ९० प्रतिशत से ज्यादा मुस्लमान थे. इनकी आबादी इतनी तेजी से बढ़ी कि भारत के कई राज्यों और महानगरों में ये कानून और व्यवस्था के लिए समस्या बन गए. सबसे बड़ी बात यह थी कि ये आसानी से स्थानीय मुस्लिम आबादी से घुल-मिल गए और वैश्विक इस्लामिक भाईचारा का हिस्सा बन गए. कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के तुष्टिकरण ने दुनिया के इस सबसे कट्टर और हिंसक संप्रदाय के साहस को इतना बढाया कि इन्होंने पहले १९९३ में मुम्बई में एक साथ दर्जनों स्थानों पर बम विस्फोट कर हजारों लोगों की हत्या कर दी फिर २००२ में ट्रेन में आग लगाकर कई दर्जन हिन्दू तीर्थयात्रियों को सिर्फ इसलिए जिंदा जला दिया क्योंकि वे हिन्दू थे.
मित्रों, पिछले कुछ महीनों से जबसे संघ में मोदी सरकार आई है सुभाष और विवेकानंद की धरती पश्चिम बंगाल के मुसलमानों का जेहादी खून हिलोरे मारने लगा है. मालदा से शुरू हुई आगजनी, लूटपाट और दंगे पूरे बंगाल में फ़ैल रहे हैं और वो भी प्रशासनिक संरक्षण में. उधर म्यामार में हिंसा हो रही है तो वहां के मुसलमान भी भारत आ रहे हैं लेकिन सवाल उठता है कि बंगाल या भारत के अन्य हिस्सों से जिन हिन्दुओं को भगाया जा रहा है वे भाग कर किस देश में जाएंगे? मुसलमानों के तो ५६ देश हैं हिन्दुओं का कोई दूसरा देश तो है नहीं. नेपाल है भी तो बहुत छोटा है.
मित्रों, इस बीच एक और शहर है जो सांप्रदायिक हिंसा की आग में जला है और वो है हरियाणा का पंचकुला. वहां कुछ हिन्दू और सिख एक पथभ्रष्ट शैतान जो खुद को ईन्सान कहता था के बहकावे में आ गए और शहर को जलाने लगे. फिर तो प्रशासन कहर बनकर टूट पड़ा. देखते-२ कई दर्जन उपद्रवी मिट्टी के ढेर में बदल दिए गए. सरकार ने स्पष्ट घोषणा कर दी कि किसी भी मृतक के परिजन को मुआवजा नहीं मिलेगा. इतना ही नहीं हंगामे से हुए नुकसान की भरपाई डेरा की संपत्ति बेचकर की जाएगी. किसी भी हिन्दू या सिख ने विरोध भी नहीं किया.
मित्रों, अब हमारी दंगा एक्सप्रेस आ पहुंची है जयपुर. वीरों की धरती राजस्थान की राजधानी जयपुर. यहाँ पुलिस का डंडा कथित रूप से गलती से एक मुस्लिम बाईक सवार को लग जाती है जिससे वो गाड़ी सहित गिर जाता है. गाड़ी पर उसकी पत्नी और बच्चे भी होते हैं. फिर आनन-फानन में हजारों मुसलमान थाने पर हमला बोल देते हैं और पूरे शहर में आगजनी शुरू कर देते हैं. ड्रोन से लिए गए चित्र बताते हैं कि मुसलमानों ने दंगों की तैयारी पहले से ही कर रखी थी. एक मुसलमान इसमें मारा जाता है लेकिन परिजन लाश लेने से इंकार कर जाते हैं. राजस्थान सरकार के मानों हाथ-पांव फूल जाते हैं और वो मृतक के परिजनों से समझौता-वार्ता करती है. फिर करार होता है कि सरकार उस महान हिंसक उपद्रवी के परिजनों को १० लाख रूपये और एक नौकरी देगी. इसी दंगे में एक दिव्यांग हिन्दू ऑटो चालक भी मारा जाता है लेकिन प्रशासन उसकी लाश को छिपा जाती है. बाद में उसके परिजन भी लाश लेने से मना करते हैं लेकिन उनके साथ कोई समझौता नहीं किया जाता. उसके परिजनों को न तो १० लाख रूपये ही दिए जाते हैं और न तो नौकरी ही. बाद में मीडिया में किरकिरी होने पर घोषणा की जाती है कि उसके परिजनों को भी वही सब मिलेगा जो आदिल के परिवार को दिया जाएगा. इतना ही नहीं यहाँ संपत्ति की भरपाई दंगा करनेवालों से भी नहीं करवाई जाती.
मित्रों, आपको याद होगा कि सोनिया-मनमोहन कीQ सरकार जो साम्प्रदायिकता अधिनियम लाने पर विचार कर रही थी उसमें भी कुछ ऐसे ही भेदभावकारी प्रावधान थे. कि दंगों के लिए हमेशा हिन्दू ही दोषी माने जाएँगे,मुआवजा सिर्फ मुसलमानों को मिलेगा आदि. तब हमारे साथ मिलकर भाजपा ने इसका सख्त विरोध भी किया था. फिर अब भाजपा राजस्थान में अघोषित रूप से उसी अधिनियम को लागू करने पर क्यों आमादा है? ममता ने तो बंगाल में जैसे उसको बहुत पहले से लागू कर रखा है. मगर हमारा सवाल तो भाजपा से है कि क्या भाजपा ने ख़ुदकुशी की पूरी तैयारी कर ली है? मैं आज भी स्टाम्प पर लिख देने को तैयार हूँ कि मुसलमानों ने आज तक भाजपा को न तो कभी वोट दिया है और न ही कभी देंगे फिर महारानी ऐसा क्यों कर रही है जिससे भाजपा का आधार ही समाप्त हो जाए? भाजपा कहती है कि एक देश में २ कानून नहीं चलेगा फिर वो हरियाणा और राजस्थान में अलग-अलग कानून क्यों चला रही है?

शनिवार, 9 सितंबर 2017

झुकता है चीन झुकानेवाला चाहिए

मित्रों, अगर मैं ये कहूं कि पिछले कुछ साल और खासकर कुछ महीने भारतीय कूटनीति के लिए स्वर्णिम रहे हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. वैसे अपने जीवन में लगातार अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करनेवाला व्यक्ति अतिरंजनापूर्ण बातें कर भी नहीं सकता.
मित्रों, आप समझ गए होंगे कि मैं भारत-चीन संबंध के सम्बन्ध में बात कर रहा हूँ. इसमें कोई संदेह नहीं पिछले ३ दशकों में चीन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हमसे काफी आगे निकल चुका है. लेकिन मैं हमेशा से ऐसा मानता रहा हूँ कि भारत ने इस दौरान जो अवसर खोया चीन ने उसी को लपक लिया. वरना जिस तरह आज भारत एफडीआई के क्षेत्र में दुनिया में नंबर एक है ३ दशक पहले भी हो सकता था, २ दशक पहले भी हो सकता था. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में लोकतंत्र था, कायदा था, कानून था बस नहीं थी तो व्यवस्था. वहीँ चीन में तानाशाही थी, एकदलीय शासन था,कानून नहीं था परन्तु व्यवस्था थी.
मित्रों, नरेन्द्र मोदी ने शासन में आने के साथ ही बस इतना किया कि पुराने फिजूल कानूनों को समाप्त कर कानून को कम कर दिया और व्यवस्था को स्थापित किया. डीबीटीएल, प्रत्येक सेवा को ऑनलाइन करना, नोटबंदी, जीएसटी इत्यादि कदम इस दिशा में उठाए गए.
मित्रों, वैदेशिक कूटनीति के क्षेत्र में भी कई बदलाव किए गए. कथित आदर्शवादी नेहरु सिद्धांत जिस पर चल कर भारत को अपनी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पिद्दी जैसे देशो के हाथों खोना पड़ा था को टाटा बाई-बाई कर दिया गया और एक साथ दुनिया के सारे गुटों के देशो के साथ संबंधों में सुधार पर जोड़ दिया गया. इसी बदलाव का नतीजा है कि चीन को भारत के खिलाफ पहली बार डोकलाम में मुंह की खानी पड़ी और अपनी सेना वापस हटानी पड़ी. इतना ही नहीं चीन को मन मारकर ब्रिक्स के घोषणापत्र में पाकिस्तान से संचालित हो रहे भारत-विरोधी आतंकी संगठनों के खिलाफ प्रस्ताव को मंजूरी देनी पड़ी. आज से ४ साल पहले सोनिया-शासन में क्या हम इस बात की कल्पना भी कर सकते थे?
मित्रों, कुछ लोग जिनको रतौंधी की बीमारी है और जिनका पूर्णकालिक कार्य मोदी सरकार के प्रत्येक अच्छे-बुरे काम की बुराई करना है वे इन दिनों नोटबंदी, जीडीपी और जीएसटी को लेकर रुदाली-रूदन करने में लगे हैं. नोटबंदी और बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई से चाहे अर्थव्यवस्था को जो भी तात्कालिक नुकसान हुआ हो लोगों में ईमानदारी की प्रवृत्ति बढ़ी है इसमें कोई संदेह नहीं और मैं समझता हूँ कि यही एक अकेली उपलब्धि बहुत बड़ी है. आज लगभग सारी सरकारी सेवाएँ मोबाइल पर उपलब्ध हैं. आयकर ढांचे में सुधार लाने से आयकरदाताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है तो वहीँ जीएसटी लागू करने से पूरा-का पूरा व्यापार सुनियोजित हुआ है जिसका लाभ कर-वसूली के क्षेत्र में दिखने भी लगा है और भविष्य में आधारभूत संरचना के क्षेत्र में भी दिखेगा इसमें संदेह नहीं.
मित्रों, सबसे अच्छी बात यह है कि विरोधियों के तमाम विधवा-विलाप के बावजूद अभी भी आम जनता का मोदी सरकार के प्रति विश्वास बना हुआ है. तमाम सर्वेक्षण भी इसकी पुष्टि करते हैं. ऐसे में मोदी सरकार चाहे तो भविष्य में और भी कड़े कदम उठा सकती है हालाँकि अब २०१९ भी ज्यादा दूर नहीं रह गया है.

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

गौरी लंकेश की हत्या एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना

मित्रों, पता नहीं क्यों जबसे कट्टर हिन्दूविरोधी और हिन्दू संस्कृति से घनघोर घृणा करनेवाली कथित पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई है तभी से मुझे ऐसा लगता है कि उनको उनके किसी अपने आदमी ने ही मारा है. क्योंकि मारनेवाले ने उनको आराम से उनके घर के भीतर जाकर मारा. अगर वो अजनबी होता तो लंकेश ने उसे घर में घुसने ही नहीं दिया होता. उनके भाई को शक है कि लंकेश ही हत्या नक्सलियों के की है क्योंकि उन्होंने ऐसा करने की धमकी दे रखी थी. गौरी के भाई के मुताबिक़- गौरी नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की मुहिम की अगुवाई कर रही थीं. कुछ नक्सलियों को मुख्य धारा से जोड़ने में वह सफल भी हुई थीं, जिसकी वजह से वह नक्सलियों के निशाने पर थीं और उन्हें लगातार धमकी भरी चिट्ठी और ईमेल आते थे.
मित्रों, शक का कोहरा इसलिए और भी गहरा हो जाता है क्योंकि हत्यारे का वीडियो फूटेज मौजूद है लेकिन पुलिस के हाथ अब तक खाली हैं. इससे पहले ३० अगस्त, २०१५ को मारे गए कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की हत्या किसने की और क्यों की का पता भी आज तक सिद्धारमैया की पुलिस नहीं लगा पाई है.
मित्रों, ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस के हाथों में हत्यारे का सीसीटीवी फुटेज हो फिर भी वो हत्यारों तक नहीं पहुँच पाए? क्या पुलिस इन दोनों हत्याओं में शामिल लोगों को जानबूझकर पकड़ना ही नहीं चाहती है? क्या इस हत्या के पीछे स्वयं कांग्रेस का हाथ है क्योंकि लंकेश ने इन दिनों अपनी कलम का मुंह उसके मंत्रियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की तरफ कर दिया था? तो क्या कांग्रेस पूरे होशो-हवास में हत्या की राजनीति कर रही है?
मित्रों,  पुलिस और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से राज्य सरकार का विषय है ऐसे में एक खास विचारधारा से जुड़े लोगों की लगातार हत्या होना और उनका उद्भेदन दो साल बाद तक भी नहीं हो पाना सर्वप्रथम राज्य सरकार की क्षमता पर ही सवालिया निशान लगाता है. मैं कर्नाटक के मुख्यमंत्री से मांग करता हूँ कि या तो वे इन दोनों हत्याओं का खुलासा करें अन्यथा पदत्याग करें क्योंकि उनकी पुलिस जब इतने हाईप्रोफाईल मामलों का रहस्योद्घाटन नहीं कर पाती तो आम आदमी से जुड़े मामलों में क्या खाक कारवाई करती होगी.
मित्रों, अगर राज्य पुलिस अक्षम है तो इसका मतलब यह नहीं कि इन्साफ को दम घुट जाए. वैसे भी लंकेश का भाई कह चुका है कि उसको राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं है और मामले की जाँच सीबीआई को करनी चाहिए. लेकिन क्या इसके लिए राज्य सरकार तैयार होगी? नहीं होती है तो क्या वो खुद को शक के कटघरे में नहीं डाल लेगी?
मित्रों, अंत में मैं लेखकों और पत्रकारों से किसी तरह की हिंसा का विरोध करता हूँ. जिसको बहस करनी है करे हम खुद भी चौबीसों घंटे तैयार हैं. कोई अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बेजा फायदा उठाता है तो उसके ऊपर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए जैसे इन दिनों अरुण जेटली केजरीवाल के खिलाफ कर रहे हैं लेकिन हिंसा नहीं होनी चाहिए.