मित्रों, आज ही २जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर कोर्ट का फैसला आया है और क्या फैसला आया है! आरुषि हत्याकांड, सलमान खान हिट एंड रन केस,जेसिका लाल केस, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड, शशिनाथ झा मर्डर केस की तरह बिल्कुल अप्रत्याशित. जिस तरह जेसिका लाल के मामले में कोर्ट ने कहा था कि नो वन किल्ड जेसिका अर्थात किसी ने भी जेसिका की हत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या उसी तरह से हो गई जैसे मुहब्बत हो जाती है की नहीं जाती उसी तरह आज कोर्ट ने कहा है कि किसी ने घोटाला नहीं किया घोटाला हो गया. लेकिन सवाल उठता है कि कोर्ट ने आज जो पागलपंथी भरा फैसला सुनाया है क्या उसके लिए अकेले कोर्ट ही जिम्मेदार है?
मित्रों, देख रहे हैं और देखकर लगातार निराश हो रहे हैं कि सरकारी तोते सीबीआई के कामकाज करने का तरीका आज भी वही है जो सोनिया-मनमोहन के समय था. बिहार के सृजन घोटाले को सबसे पहले उजागर करनेवालों में मेरा नाम भी आता है लेकिन मुझे भारी दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस मामले में सीबीआई ने जानबूझकर समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं किया जिससे लगभग सारे बाघडबिल्ले बाहर आ गए. इतना ही नहीं आगे भी लगता है कि सीबीआई मामले की सिर्फ लीपापोती ही करनेवाली है. सवाल उठता है कि क्या यही रिकॉर्ड लेकर प्रधानमंत्री २०१९ में जनता के समक्ष जानेवाले हैं? अगर यहीसब करना था तो फिर जनता को ठगा क्यों? क्यों भ्रष्टाचार मुक्त समाज और देश के सपने दिखाए?
मित्रों, माननीयों के लिए अलग से कोर्ट बना देने मात्र से क्या सरकार की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती हैं? उनके खिलाफ निष्पक्ष तरीके से मुकदमा कौन लडेगा कौन जाँच करेगा? क्या वहां भी सरकार उसी तरह केस लड़ेगी जैसे उसने २जी मामले में लड़ा है या सृजन घोटाले में लड़ रही है? मोदी जी २०१९ देखते-देखते सर पर आकर खड़ा हो जाएगा इसलिए न्यायपालिका और शिक्षा में सुधार, रोजगार-सृजन, कालाधन आदि की दिशा में जो भी करना जल्दी करिए। ऐसा न हो कि फिर देर हो जाए और जिस खूनी पंजे के हाथों से आपने देश को निकाला है फिर से देश उन्हीं देशद्रोही हाथों में चला जाए. मैं सीधे आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप जिन लोगों पर सार्वजानिक मंचों से गंभीर आरोप लगाते रहते हैं वे आजाद हवा में साँस कैसे ले रहे हैं? क्या आपको सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाना ही आता है?
मित्रों, जो लोग आज फिर से जीरो लॉस थ्योरी की बात कर रहे हैं उनको मैं बता देना चाहता हूँ कि घोटाला तो हुआ था और जरूर हुआ था क्योंकि अगर सही तरीके से स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट होता तो सरकार को ज्यादा फायदा होता। नियम बदलकर पहले आओ, पहले पाओ पॉलिसी अपनाई गई। मोदी सरकार ने नीलामी की तो न केवल ज्यादा पैसा मिला बल्कि आज फोन और डाटा की दर उस समय की अपेक्षा काफी सस्ती भी है। सनद रहे कि बाद में मोदी सरकार ने स्पेक्ट्रम को नीलाम किया। नतीजा यह हुआ कि जिस स्पेक्ट्रम के पहले 1734 करोड़ मिल रहे थे 2015 में 1.10 लाख करोड़ रुपए मिले। कुल मिलकर पूरे घटनाक्रम को अगर देखा जाए तो बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम कुछ लोगों को दे दिया गया। पहले आओ पहले पाओ की पॉलिसी को भी बदलकर पहले पेमेंट करो, पहले पाओ कर दिया गया। यह पूरी तरह से भ्रष्ट पॉलिसी थी। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा था और आगे भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक जानेवाला है।
मित्रों, देख रहे हैं और देखकर लगातार निराश हो रहे हैं कि सरकारी तोते सीबीआई के कामकाज करने का तरीका आज भी वही है जो सोनिया-मनमोहन के समय था. बिहार के सृजन घोटाले को सबसे पहले उजागर करनेवालों में मेरा नाम भी आता है लेकिन मुझे भारी दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस मामले में सीबीआई ने जानबूझकर समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं किया जिससे लगभग सारे बाघडबिल्ले बाहर आ गए. इतना ही नहीं आगे भी लगता है कि सीबीआई मामले की सिर्फ लीपापोती ही करनेवाली है. सवाल उठता है कि क्या यही रिकॉर्ड लेकर प्रधानमंत्री २०१९ में जनता के समक्ष जानेवाले हैं? अगर यहीसब करना था तो फिर जनता को ठगा क्यों? क्यों भ्रष्टाचार मुक्त समाज और देश के सपने दिखाए?
मित्रों, माननीयों के लिए अलग से कोर्ट बना देने मात्र से क्या सरकार की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती हैं? उनके खिलाफ निष्पक्ष तरीके से मुकदमा कौन लडेगा कौन जाँच करेगा? क्या वहां भी सरकार उसी तरह केस लड़ेगी जैसे उसने २जी मामले में लड़ा है या सृजन घोटाले में लड़ रही है? मोदी जी २०१९ देखते-देखते सर पर आकर खड़ा हो जाएगा इसलिए न्यायपालिका और शिक्षा में सुधार, रोजगार-सृजन, कालाधन आदि की दिशा में जो भी करना जल्दी करिए। ऐसा न हो कि फिर देर हो जाए और जिस खूनी पंजे के हाथों से आपने देश को निकाला है फिर से देश उन्हीं देशद्रोही हाथों में चला जाए. मैं सीधे आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप जिन लोगों पर सार्वजानिक मंचों से गंभीर आरोप लगाते रहते हैं वे आजाद हवा में साँस कैसे ले रहे हैं? क्या आपको सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाना ही आता है?
मित्रों, जो लोग आज फिर से जीरो लॉस थ्योरी की बात कर रहे हैं उनको मैं बता देना चाहता हूँ कि घोटाला तो हुआ था और जरूर हुआ था क्योंकि अगर सही तरीके से स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट होता तो सरकार को ज्यादा फायदा होता। नियम बदलकर पहले आओ, पहले पाओ पॉलिसी अपनाई गई। मोदी सरकार ने नीलामी की तो न केवल ज्यादा पैसा मिला बल्कि आज फोन और डाटा की दर उस समय की अपेक्षा काफी सस्ती भी है। सनद रहे कि बाद में मोदी सरकार ने स्पेक्ट्रम को नीलाम किया। नतीजा यह हुआ कि जिस स्पेक्ट्रम के पहले 1734 करोड़ मिल रहे थे 2015 में 1.10 लाख करोड़ रुपए मिले। कुल मिलकर पूरे घटनाक्रम को अगर देखा जाए तो बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम कुछ लोगों को दे दिया गया। पहले आओ पहले पाओ की पॉलिसी को भी बदलकर पहले पेमेंट करो, पहले पाओ कर दिया गया। यह पूरी तरह से भ्रष्ट पॉलिसी थी। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा था और आगे भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक जानेवाला है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें