मित्रों, बात पुरानी है. यही कोई ११ साल पुरानी. तब हम माखनलाल के नोएडा परिसर में पढ़ते थे. जनमत चैनल के एक कार्यक्रम में तेलंगाना राष्ट्र समिति के चंद्रशेखर राव जी आए हुए थे. तब हमने उनसे पूछा था कि आपकी पार्टी के नाम में राष्ट्र क्यों लगा हुआ है? क्या आपलोग भी भविष्य में अलग राष्ट्र की मांग करनेवाले हैं? तब उन्होंने कहा था कि तेलुगु में राज्य को ही राष्ट्र कहा जाता है इसलिए यहाँ पर राष्ट्र शब्द है.
मित्रों, अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता से मिलने का अवसर मिला तो उनसे भी हमने यही सवाल किया कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब क्या है. मैं हैरान था कि उनके लिए राष्ट्र का अर्थ हिन्दू राष्ट्र था और देश का मतलब सरकार था. देश अलग और राष्ट्र अलग. साम्यवादियों और कांग्रेसियों ने भी इसी तरह से राष्ट्र की अलग-अलग परिभाषा बना रखी है. हद हो गई! राष्ट्र न हुआ ब्रह्म हो गया. जितने संगठन उतनी व्याख्याएँ।
मित्रों, मैं राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्रप्रेमी हूँ. इसलिए मेरे लिए मेरा राष्ट्र किसी भी तरह से संकुचित अर्थ नहीं रखता. जाहिर है कि मेरे लिए राष्ट्रवाद का अर्थ काफी व्यापक है. मेरा राष्ट्रवाद धर्मवाद नहीं है. यह भगत सिंह, तिलक, लाला लाजपत राय, गाँधी का राष्ट्रवाद है तो अशफाकुल्ला खान, अजीमुल्ला खान, मज़हरुल हक़ का राष्ट्रवाद भी है. इसमें अगर तुलसी,सूर के लिए जगह है तो खुसरो, जायसी, रहीम और रसखान के लिए भी है, अटल जी के लिए है तो नेहरू जी के लिए भी है, मैथिलीशरण गुप्त के लिए स्थान है तो ग़ालिब के लिए भी है, प्रताप के लिए है तो इब्राहिम गार्दी के लिए भी है, प्रेमचंद के लिए है तो मंटो के लिए भी है. मेरे लिए राष्ट्रवाद भारतमाता से निःस्वार्थ भाव से प्रेम करने का नाम है.
मित्रों, इन दिनों देश की हालत देखकर मेरा राष्ट्रवाद बुरी तरह से आहत है. चार साल पहले भाजपा द्वारा नारा दिया गया था कि मेरा देश बदल रहा है, आगे चल रहा है. आजकल यह नारा पूरे परिदृश्य से गायब है. शायद इसलिए क्योंकि न तो देश बदल रहा है और न ही किसी मामले में आगे ही नहीं चल रहा है. हाँ, मेरा देश जल जरूर रहा है. सबसे दुःखद तथ्य तो यह है कि दंगे हो नहीं रहे करवाए जा रहे हैं. इसी आश्विन महीने की बात है. महानवमी की रात हाजीपुर के मड़ई चौक पर दुर्गा पूजा पंडाल में दो हिन्दू युवकों के बीच झगड़ा हो गया. मुझे आश्चर्य तो तब हुआ जब हिन्दू युवा वाहिनी ने यह अफवाह उड़ाकर कि मुसलमानों ने हिन्दू युवक को पंडाल में घुसकर मारा हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा बना दिया. कल होकर मुहर्रम था. जाहिर है कि हिन्दू उबल उठे और शहर में मुहर्रम का जुलूस नहीं निकल पाया. मैं हतप्रभ था कि क्या हो रहा है. अभी कुछ दिनों पहले ही बिहार के नवादा में रात में किसी ने हनुमान जी की मूर्ती तोड़ दी. तोड़नेवाला कौन था किसी ने भी नहीं देखा लेकिन मुसलमानों पर हमला शुरू हो गया. भागलपुर के दंगों में तो केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का बेटा जेल में है. इसी तरह से पश्चिम बंगाल के आसनसोल में भी दंगे तब शुरू हुए जब स्थानीय मौलवी के बेटे की अपहरण के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई. रही-सही कसर मायावती ने २ अप्रैल को बंद आयोजित करके पूरी कर दी और पहले से जल रहे देश को एक बार फिर से धधकती हुई आग में झोंक दिया. मेरा दिल-दिमाग यह देखकर जल रहा कि कोई दल सद्भावना की बात नहीं कर रहा. सारे नेता देश को जलाकर जलती हुई आग में राजनीति की रोटी सेंकने की फ़िराक में हैं. क्या इस तरह से मेरा देश आगे बढ़ेगा? इस तरह से तो मेरा देश आगे बढ़ने से रहा जल जरूर जाएगा.
मित्रों, मेरा राष्ट्रवाद इन दिनों एक शोध से सामने आई सच्चाई से भी आहत है. यह शोध किया है किंग्स कॉलेज लंदन के विद्यार्थियों ने और पता लगाया है कि भारत की जनता किस आधार पर मतदान करती है. आश्चर्य की बात है कि शराब और पैसे लेकर तो वोट दिए ही जा रहे हैं एक किलोग्राम सब्जी लेकर भी मतदान किया जा रहा है. जब तक राष्ट्र और राष्ट्रहित मतदाताओं की पहली प्राथमिकता नहीं बनेगा मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि भारत कदापि विश्वगुरु नहीं बन सकता. वास्तविकता तो यह है कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के हाथों हम इसलिए ठगे जाते हैं क्योंकि हम निहायत स्वार्थी और लालची हैं. और याद रखिए मित्रों लोकतंत्र में राजतन्त्र की तरह यथा राजा तथा प्रजा नहीं चलता बल्कि यथा प्रजा तथा राजा चलता है. चर्चिल आई सैल्यूट यू टुडे, तुम ही सही थे, आजादी के ७५ साल बाद भी हम लोकतंत्र के लायक नहीं हुए हैं!!!
मित्रों, अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता से मिलने का अवसर मिला तो उनसे भी हमने यही सवाल किया कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब क्या है. मैं हैरान था कि उनके लिए राष्ट्र का अर्थ हिन्दू राष्ट्र था और देश का मतलब सरकार था. देश अलग और राष्ट्र अलग. साम्यवादियों और कांग्रेसियों ने भी इसी तरह से राष्ट्र की अलग-अलग परिभाषा बना रखी है. हद हो गई! राष्ट्र न हुआ ब्रह्म हो गया. जितने संगठन उतनी व्याख्याएँ।
मित्रों, मैं राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्रप्रेमी हूँ. इसलिए मेरे लिए मेरा राष्ट्र किसी भी तरह से संकुचित अर्थ नहीं रखता. जाहिर है कि मेरे लिए राष्ट्रवाद का अर्थ काफी व्यापक है. मेरा राष्ट्रवाद धर्मवाद नहीं है. यह भगत सिंह, तिलक, लाला लाजपत राय, गाँधी का राष्ट्रवाद है तो अशफाकुल्ला खान, अजीमुल्ला खान, मज़हरुल हक़ का राष्ट्रवाद भी है. इसमें अगर तुलसी,सूर के लिए जगह है तो खुसरो, जायसी, रहीम और रसखान के लिए भी है, अटल जी के लिए है तो नेहरू जी के लिए भी है, मैथिलीशरण गुप्त के लिए स्थान है तो ग़ालिब के लिए भी है, प्रताप के लिए है तो इब्राहिम गार्दी के लिए भी है, प्रेमचंद के लिए है तो मंटो के लिए भी है. मेरे लिए राष्ट्रवाद भारतमाता से निःस्वार्थ भाव से प्रेम करने का नाम है.
मित्रों, इन दिनों देश की हालत देखकर मेरा राष्ट्रवाद बुरी तरह से आहत है. चार साल पहले भाजपा द्वारा नारा दिया गया था कि मेरा देश बदल रहा है, आगे चल रहा है. आजकल यह नारा पूरे परिदृश्य से गायब है. शायद इसलिए क्योंकि न तो देश बदल रहा है और न ही किसी मामले में आगे ही नहीं चल रहा है. हाँ, मेरा देश जल जरूर रहा है. सबसे दुःखद तथ्य तो यह है कि दंगे हो नहीं रहे करवाए जा रहे हैं. इसी आश्विन महीने की बात है. महानवमी की रात हाजीपुर के मड़ई चौक पर दुर्गा पूजा पंडाल में दो हिन्दू युवकों के बीच झगड़ा हो गया. मुझे आश्चर्य तो तब हुआ जब हिन्दू युवा वाहिनी ने यह अफवाह उड़ाकर कि मुसलमानों ने हिन्दू युवक को पंडाल में घुसकर मारा हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा बना दिया. कल होकर मुहर्रम था. जाहिर है कि हिन्दू उबल उठे और शहर में मुहर्रम का जुलूस नहीं निकल पाया. मैं हतप्रभ था कि क्या हो रहा है. अभी कुछ दिनों पहले ही बिहार के नवादा में रात में किसी ने हनुमान जी की मूर्ती तोड़ दी. तोड़नेवाला कौन था किसी ने भी नहीं देखा लेकिन मुसलमानों पर हमला शुरू हो गया. भागलपुर के दंगों में तो केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का बेटा जेल में है. इसी तरह से पश्चिम बंगाल के आसनसोल में भी दंगे तब शुरू हुए जब स्थानीय मौलवी के बेटे की अपहरण के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई. रही-सही कसर मायावती ने २ अप्रैल को बंद आयोजित करके पूरी कर दी और पहले से जल रहे देश को एक बार फिर से धधकती हुई आग में झोंक दिया. मेरा दिल-दिमाग यह देखकर जल रहा कि कोई दल सद्भावना की बात नहीं कर रहा. सारे नेता देश को जलाकर जलती हुई आग में राजनीति की रोटी सेंकने की फ़िराक में हैं. क्या इस तरह से मेरा देश आगे बढ़ेगा? इस तरह से तो मेरा देश आगे बढ़ने से रहा जल जरूर जाएगा.
मित्रों, मेरा राष्ट्रवाद इन दिनों एक शोध से सामने आई सच्चाई से भी आहत है. यह शोध किया है किंग्स कॉलेज लंदन के विद्यार्थियों ने और पता लगाया है कि भारत की जनता किस आधार पर मतदान करती है. आश्चर्य की बात है कि शराब और पैसे लेकर तो वोट दिए ही जा रहे हैं एक किलोग्राम सब्जी लेकर भी मतदान किया जा रहा है. जब तक राष्ट्र और राष्ट्रहित मतदाताओं की पहली प्राथमिकता नहीं बनेगा मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि भारत कदापि विश्वगुरु नहीं बन सकता. वास्तविकता तो यह है कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के हाथों हम इसलिए ठगे जाते हैं क्योंकि हम निहायत स्वार्थी और लालची हैं. और याद रखिए मित्रों लोकतंत्र में राजतन्त्र की तरह यथा राजा तथा प्रजा नहीं चलता बल्कि यथा प्रजा तथा राजा चलता है. चर्चिल आई सैल्यूट यू टुडे, तुम ही सही थे, आजादी के ७५ साल बाद भी हम लोकतंत्र के लायक नहीं हुए हैं!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें