मित्रों, मैंने काफी पहले ६ मार्च,२०१४ को ही अपने एक आलेख मेरी सरकार खो गई है हुजूर के द्वारा घोषणा कर दी थी कि बिहार में सरकार नाम की चीज नहीं रह गई है.
मित्रों, जब किसी राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रहे और राजदंड का किसी को भय ही नहीं रहे तो फिर उस राज्य में क्या-क्या हो सकता है आप दूर बैठे लोग इसका अंदाजा नहीं लगा सकते। हमने तो बिहार में इसे प्रत्यक्ष भोगा है और भोग रहे हैं. अगर हम नीतीश कुमार के २००५ से २०१० तक के शासन को निकाल दें तो पिछले २३ सालों से बिहार में सरकार है ही नहीं. जिसको जो मन में आए करे, खून-तून-बलात्कार सब माफ़. बस आपके पास पैसा और रसूख होना चाहिए.
मित्रों, कहने का मतलब यह कि बिहार में बहुत पहले से मेड़ खेत को खाने में लगा है, बहुत पहले से नैतिकता सिर्फ एक शब्द बनकर मृत्युशैय्या पर है, बहुत पहले से सीएम के लेकर चपरासी तक हर शाख पे उल्लू बैठा है लेकिन अब तो सुशासन के गड्ढे में गंदगी इतनी बढ़ गई है कि सड़ांध के मारे साँस तक लेना मुश्किल है.
मित्रों, अभी कुछ महीने पहले ही बिहार में अपनी तरह के एक अनोखे घोटाले का सृजन हुआ था नाम था सृजन घोटाला. आपने ऐसा कहीं नहीं देखा होगा कि सरकारी पैसे को किसी के निजी खाते में डाल दिया जाए और ऐसा दशकों तक होता रहे. जब मुख्यमंत्री-मंत्री-अधिकारी सबके-सब ऐय्याश और भ्रष्ट होंगे और दिन-रात ऐय्याशी में डूबे होंगे तो कुछ भी देखने को मिल सकता है, आश्चर्य कैसा?
मित्रों, तथापि अभी सुशासनी कालीन के नीचे छिपी जो गंदगी मुजफ्फरपुर में अनावृत हुई है उसने पूरी दुनिया के जनमानस को जैसे हिलाकर रख दिया है. नाबालिग व अनाथ बच्चियों के लिए सरकारी अनुदान पर एनजीओ द्वारा संचालित बालिका गृह को कोठे में बदल दिया गया. न केवल एनजीओ सेवा संकल्प समिति के संचालक ब्रजेश ठाकुर ने बल्कि बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा ने बच्चियों के मुँह में कपड़े ठूँसकर जब चाहा बलात्कार किया. अब तक मेडिकल जाँच में बालिका गृह में रह रहीं ४२ में से ३४ बच्चियों के साथ लगातार बलात्कार होने की पुष्टि हो चुकी है। इतना ही नहीं बाहर के लोग भी आकर यहाँ अपनी काम-पिपासा शांत करते थे और बच्चियों को इसके लिए बाहर भी भेजा जाता था।
मित्रों, मामला तो फिर भी दब जाता जैसे आज तक सुशासन बाबू दबाते आ रहे हैं लेकिन भला हो बिहार महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्र का जिन्होंने बिना किसी दबाव में आए अपने कर्तव्यों को अंजाम दिया और दे रही हैं।
मित्रों, जब नीतीश ने दोबारा भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई तो मुझे लगा था कि दो-दो ईंजनों के चलते बिहार का तीव्र विकास होगा लेकिन ऐसा कुछ होता अब तक तो दिख नहीं रहा अलबत्ता बिहार दोगुनी गति से जरूर घनघोर अराजकता की ओर अग्रसर हो गया है. पता नहीं कब तक दिलमणि मिश्र को महिला आयोग में बनाए रखा जाता है. फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि वो जब तक इस कुर्सी पर हैं अबलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद जिंदा है जिस दिन उनको हटा दिया जाएगा मामले का पटाक्षेप हो जाएगा. वैसे मेरा मानना तो यह है कि इन बच्चियों को व्यवस्था किसी भी तरह न्याय दे ही नहीं सकती. उन्होंने जो भोगा है उसे अब उनके मानसपटल से मिटाया ही नहीं जा सकता. सोंचने वाली बात तो यह भी है कि जब बिहार में बालिका गृह की ऐसी दशा है तो वहाँ की जेलों और थानों की हाजतों में बंद महिलाओं के साथ अधिकारी-कर्मचारी और नेता क्या कुछ नहीं करते होंगे? वैसे उन दरिंदों को जिनका नाम अभी तक इस मामले में आया है क्या सजा दी जाए? अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं तो यही कहूंगा कि बीच चोराहे पर इनको फांसी दी जाए। साथ ही बिहार का मुख्यमंत्री बदला जाए और किसी योग्य व्यक्ति को यह पद दिया जाए क्योंकि नीतीश कुमार अब न केवल महाबेकार हो चुके हैं बल्कि बिहार के लिए अतिशय हानिकारक भी साबित होने लगे हैं।
मित्रों, जब किसी राज्य में सरकार नाम की चीज ही नहीं रहे और राजदंड का किसी को भय ही नहीं रहे तो फिर उस राज्य में क्या-क्या हो सकता है आप दूर बैठे लोग इसका अंदाजा नहीं लगा सकते। हमने तो बिहार में इसे प्रत्यक्ष भोगा है और भोग रहे हैं. अगर हम नीतीश कुमार के २००५ से २०१० तक के शासन को निकाल दें तो पिछले २३ सालों से बिहार में सरकार है ही नहीं. जिसको जो मन में आए करे, खून-तून-बलात्कार सब माफ़. बस आपके पास पैसा और रसूख होना चाहिए.
मित्रों, कहने का मतलब यह कि बिहार में बहुत पहले से मेड़ खेत को खाने में लगा है, बहुत पहले से नैतिकता सिर्फ एक शब्द बनकर मृत्युशैय्या पर है, बहुत पहले से सीएम के लेकर चपरासी तक हर शाख पे उल्लू बैठा है लेकिन अब तो सुशासन के गड्ढे में गंदगी इतनी बढ़ गई है कि सड़ांध के मारे साँस तक लेना मुश्किल है.
मित्रों, अभी कुछ महीने पहले ही बिहार में अपनी तरह के एक अनोखे घोटाले का सृजन हुआ था नाम था सृजन घोटाला. आपने ऐसा कहीं नहीं देखा होगा कि सरकारी पैसे को किसी के निजी खाते में डाल दिया जाए और ऐसा दशकों तक होता रहे. जब मुख्यमंत्री-मंत्री-अधिकारी सबके-सब ऐय्याश और भ्रष्ट होंगे और दिन-रात ऐय्याशी में डूबे होंगे तो कुछ भी देखने को मिल सकता है, आश्चर्य कैसा?
मित्रों, तथापि अभी सुशासनी कालीन के नीचे छिपी जो गंदगी मुजफ्फरपुर में अनावृत हुई है उसने पूरी दुनिया के जनमानस को जैसे हिलाकर रख दिया है. नाबालिग व अनाथ बच्चियों के लिए सरकारी अनुदान पर एनजीओ द्वारा संचालित बालिका गृह को कोठे में बदल दिया गया. न केवल एनजीओ सेवा संकल्प समिति के संचालक ब्रजेश ठाकुर ने बल्कि बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति चंदेश्वर वर्मा ने बच्चियों के मुँह में कपड़े ठूँसकर जब चाहा बलात्कार किया. अब तक मेडिकल जाँच में बालिका गृह में रह रहीं ४२ में से ३४ बच्चियों के साथ लगातार बलात्कार होने की पुष्टि हो चुकी है। इतना ही नहीं बाहर के लोग भी आकर यहाँ अपनी काम-पिपासा शांत करते थे और बच्चियों को इसके लिए बाहर भी भेजा जाता था।
मित्रों, मामला तो फिर भी दब जाता जैसे आज तक सुशासन बाबू दबाते आ रहे हैं लेकिन भला हो बिहार महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्र का जिन्होंने बिना किसी दबाव में आए अपने कर्तव्यों को अंजाम दिया और दे रही हैं।
मित्रों, जब नीतीश ने दोबारा भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई तो मुझे लगा था कि दो-दो ईंजनों के चलते बिहार का तीव्र विकास होगा लेकिन ऐसा कुछ होता अब तक तो दिख नहीं रहा अलबत्ता बिहार दोगुनी गति से जरूर घनघोर अराजकता की ओर अग्रसर हो गया है. पता नहीं कब तक दिलमणि मिश्र को महिला आयोग में बनाए रखा जाता है. फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि वो जब तक इस कुर्सी पर हैं अबलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद जिंदा है जिस दिन उनको हटा दिया जाएगा मामले का पटाक्षेप हो जाएगा. वैसे मेरा मानना तो यह है कि इन बच्चियों को व्यवस्था किसी भी तरह न्याय दे ही नहीं सकती. उन्होंने जो भोगा है उसे अब उनके मानसपटल से मिटाया ही नहीं जा सकता. सोंचने वाली बात तो यह भी है कि जब बिहार में बालिका गृह की ऐसी दशा है तो वहाँ की जेलों और थानों की हाजतों में बंद महिलाओं के साथ अधिकारी-कर्मचारी और नेता क्या कुछ नहीं करते होंगे? वैसे उन दरिंदों को जिनका नाम अभी तक इस मामले में आया है क्या सजा दी जाए? अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं तो यही कहूंगा कि बीच चोराहे पर इनको फांसी दी जाए। साथ ही बिहार का मुख्यमंत्री बदला जाए और किसी योग्य व्यक्ति को यह पद दिया जाए क्योंकि नीतीश कुमार अब न केवल महाबेकार हो चुके हैं बल्कि बिहार के लिए अतिशय हानिकारक भी साबित होने लगे हैं।