मित्रों, अभी-२ फुटबाल का महाकुम्भ समाप्त हुआ है. आप तो जानते हैं कि फुटबाल में कभी-२ खिलाडी गलती से अपने ही पाले में गोल मार बैठता है. इन दिनों भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस के नेताओं में भी न जाने किस कारण से सेल्फ गोल यानि आत्मघाती गोल मारने की होड़-सी लगी हुई है. को बड छोट कहत अपराधू. यह प्रवृत्ति सिर्फ छुटभैय्ये नेताओं तक सीमित होती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन जब पार्टी का अध्यक्ष भी इस कुकृत्य में सहयोग देने लगे तो न केवल आश्चर्य होता है बल्कि हँसी भी आती है.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस ने युद्ध के पूर्व ही हार मार ली है? या फिर भाजपा से कोई गुप्त समझौता कर लिया है कि तुम २०१९ जीत जाओ सिर्फ हमारे राजपरिवार को जेल मत भेजो? वर्ना क्या कारण थे कि ४ सालों में रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई या फिर नेशनल हेराल्ड मामला कछुए की गति से रेंगता रहा? क्यों कांग्रेस के सारे नेता आज भी राम मंदिर की खिलाफ लड़नेवाले पक्षकारों की तरफ से अदालत में पैरवी करते दिख रहे हैं जबकि उनको पता है कि इससे बहुसंख्यक जनता में पार्टी के प्रति नाराजगी बढेगी? मैं नहीं समझता कि चाहे कपिल सिब्बल हों या राजीव धवन बिना पार्टी आलाकमान की अनुमति के ऐसा कर रहे हैं? अगर इसके लिए पार्टी की अनुमति है तो इसका सीधा मतलब है कि आलाकमान ने २०१४ की हार के बाद आई एंटोनी रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है और अगर नहीं है तो फिर धवन और सिब्बल पार्टी में बने हुए क्यों हैं?
मित्रों, पूर्व रक्षा मंत्री एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कांग्रेस की हार के लिए जनता के बीच कांग्रेस की हिन्दूविरोधी छवि बन जाना जिम्मेदार था. यह नितांत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिशंकर, दिग्विजय, थरूर, सोज, नदीम जैसे नेताओं के अनर्गल प्रलापों के चलते तो पार्टी की वही छवि आज भी बनी हुई है और उस आग में घी देने का काम किया है स्वयं पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी ने यह कहकर कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है और वे मंदिरों में जाने के लिए क्षमा मांगते हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि कांग्रेस पर तो १९४७ से पहले जिन्ना की मुस्लिम लीग हिन्दुओं की पार्टी होने का आरोप लगाती थी फिर कांग्रेस स्वयं मुस्लिम लीग बन सकती है? किसी पार्टी की विचारधारा में इतना विरोधाभासी परिवर्तन भला कैसे संभव है? क्या कांग्रेस को पता नहीं है उसकी मुस्लिम-तुष्टिकरण की नीतियाँ उसे २-४ सीटें भी नहीं दिला सकतीं और वो ४४ से ४ पर पहुँच जाएगी? सवाल तो यह भी है कि क्या राहुल गाँधी सचमुच ड्रग्स लेते हैं? अगर नहीं तो इसका अभी तक खंडन क्यों नहीं आया और सुब्रह्मण्यम स्वामी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा क्यों नहीं किया गया? अगर हाँ तो फिर उनको कोई सुझाव देना ही बेकार है. लगे रहो राहुल बबुआ फिर तो लगे रहो अफीम खाकर कांग्रेस के अंतिम संस्कार में. पप्पूजी फिर तो असली गाँधी तुम्ही हो और महात्मा गाँधी के इस अधूरे काम को पूरा करोगे.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस ने युद्ध के पूर्व ही हार मार ली है? या फिर भाजपा से कोई गुप्त समझौता कर लिया है कि तुम २०१९ जीत जाओ सिर्फ हमारे राजपरिवार को जेल मत भेजो? वर्ना क्या कारण थे कि ४ सालों में रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई या फिर नेशनल हेराल्ड मामला कछुए की गति से रेंगता रहा? क्यों कांग्रेस के सारे नेता आज भी राम मंदिर की खिलाफ लड़नेवाले पक्षकारों की तरफ से अदालत में पैरवी करते दिख रहे हैं जबकि उनको पता है कि इससे बहुसंख्यक जनता में पार्टी के प्रति नाराजगी बढेगी? मैं नहीं समझता कि चाहे कपिल सिब्बल हों या राजीव धवन बिना पार्टी आलाकमान की अनुमति के ऐसा कर रहे हैं? अगर इसके लिए पार्टी की अनुमति है तो इसका सीधा मतलब है कि आलाकमान ने २०१४ की हार के बाद आई एंटोनी रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है और अगर नहीं है तो फिर धवन और सिब्बल पार्टी में बने हुए क्यों हैं?
मित्रों, पूर्व रक्षा मंत्री एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कांग्रेस की हार के लिए जनता के बीच कांग्रेस की हिन्दूविरोधी छवि बन जाना जिम्मेदार था. यह नितांत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिशंकर, दिग्विजय, थरूर, सोज, नदीम जैसे नेताओं के अनर्गल प्रलापों के चलते तो पार्टी की वही छवि आज भी बनी हुई है और उस आग में घी देने का काम किया है स्वयं पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी ने यह कहकर कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है और वे मंदिरों में जाने के लिए क्षमा मांगते हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि कांग्रेस पर तो १९४७ से पहले जिन्ना की मुस्लिम लीग हिन्दुओं की पार्टी होने का आरोप लगाती थी फिर कांग्रेस स्वयं मुस्लिम लीग बन सकती है? किसी पार्टी की विचारधारा में इतना विरोधाभासी परिवर्तन भला कैसे संभव है? क्या कांग्रेस को पता नहीं है उसकी मुस्लिम-तुष्टिकरण की नीतियाँ उसे २-४ सीटें भी नहीं दिला सकतीं और वो ४४ से ४ पर पहुँच जाएगी? सवाल तो यह भी है कि क्या राहुल गाँधी सचमुच ड्रग्स लेते हैं? अगर नहीं तो इसका अभी तक खंडन क्यों नहीं आया और सुब्रह्मण्यम स्वामी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा क्यों नहीं किया गया? अगर हाँ तो फिर उनको कोई सुझाव देना ही बेकार है. लगे रहो राहुल बबुआ फिर तो लगे रहो अफीम खाकर कांग्रेस के अंतिम संस्कार में. पप्पूजी फिर तो असली गाँधी तुम्ही हो और महात्मा गाँधी के इस अधूरे काम को पूरा करोगे.
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