मित्रों, भारत का भद्रलोक कहे जानेवाले बंगाल में १९७७ से सत्ताधारित गुंडागर्दी चल रही है. २० मई २०११ को जब साम्यवादियों की रंगदारी भरे लम्बे शासन का ममता बनर्जी ने अंत किया तभी मैंने कहा था कि ममता की जय-जयकार बंद करो और यह सोंचो कि क्या बंगाल में अब सत्ताधारित गुंडागर्दी समाप्त को जाएगी. क्योंकि मुझे तभी ममता के काम करने का तरीका वही लगा था जो साम्यवादियों का था. आज बंगला में कथित ममता का अतिनिर्मम शासन स्थापित हुए ८ साल हो चुके हैं और वहां दिन-ब-दिन विपक्ष समर्थक मतदाताओं का साँस तक लेना दूभर होता जा रहा है.
मित्रों, मैंने इससे पहले भी केंद्र सरकार से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाकर दम तोड़ते लोकतंत्र की प्राणरक्षा करने की गुजारिश कर चुका हूँ लेकिन न जाने केंद्र सरकार किस बात का इंतजार कर रही है. आज तो बंगाल पुलिस ने पूछताछ के लिए पहुंची सीबीआई की टीम को ही पकड़कर हिरासत में डाल दिया. जब सीबीआई की बंगाल में यह गति है तो ममताविरोधी मतदाताओं के साथ क्या नहीं हो रहा होगा. बेचारे डर के मारे अपने घरों पर अपनी पार्टी का झंडा तक नहीं लगा सकते क्योंकि ऐसा करने पर उनकी हत्या हो जाएगी.
मित्रों, मैं केंद्र सरकार से पूछना चाहता हूं कि क्या बंगाल में संवैधानिक शासन चल रहा है? अगर नहीं तो क्यों वहां राष्ट्रपति शासन लगाने में देर की जा रही है. सीबीआई भारत की सर्वोच्च जांच एजेंसी और संप्रभुता की प्रतीक है. उसके काम में बाधा डाली जा रही है फिर ऐसे में केंद्र सरकार कैसे मुंह ताकती रह सकती है? क्या इस समय बंगाल का पूरा प्रशासन ममता के इशारों पर काम नहीं कर रहा? क्या ऐसे माहौल में बंगाल में निष्पक्ष मतदान की सोंचना दिवास्वप्न देखने के समान नहीं है?
मित्रों, फिर केंद्र सरकार ने तो भारत की एकता, संप्रभुता और संविधान की रखा की शपथ भी ली है. क्या केंद्र सरकार का यह संवैधानिक कर्त्तव्य नहीं है कि वो बंगाल में संविधान और प्रजातंत्र के मौलिक गुण विरोध करने के अधिकार की रक्षा करे? जब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लग सकता है तो बंगाल में क्यों नहीं? आखिर संविधान में अनुच्छेद ३५६ को शामिल करने का क्या औचित्य रह गया है जबकि केंद्र सरकार संविधान के चीरहरण को भी मूकदर्शक बनी देखती रहेगी?
मित्रों, मैंने अवार्ड वापसी गैंग से भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि बंगाल में चल रही सत्ताधारित गुंडागर्दी को लेकर उनकी जुबान क्यों नहीं खुल रही? कल अगर वहां राष्ट्रपति शासन लग जाता है तो यही लोग सडकों पर मुहर्रम मनाते और स्यापा करते नजर आएँगे. थू है तेरे दोपाया होने पर तुम लोग तो चौपाया होने के लायक भी नहीं हो. साथ ही थू है ५६ ईंची सीने वाली केंद्र सरकार पर जिसके सत्ता में होते हुए भी पिछले ५ साल से बंगाल में लोकतंत्र कैद है.
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