मित्रों, इतिहास गवाह है कि जब इस्लाम अस्तित्व में आया तो लगभग 500 सालों तक ईसाईयों और मुसलमानों के बीच रक्तरंजित युद्ध हुआ जिसको ईसाई क्रूसेड और मुसलमान जिहाद के नाम से जानते हैं. हालाँकि 1453 में यह कथित धर्मयुद्ध समाप्त हो गया लेकिन कहीं-न-कहीं दोनों धर्मों के लोगों के बीच तनाव लगातार बना रहा और छिट-पुट झडपें भी होती रहीं. हालांकि आज वैश्विक कूटनीति की स्थिति काफी जटिल है और कई मुस्लिम देश एक तरफ अमेरिका के समर्थन में हैं तो वहीँ कई मुस्लिम देशों के बीच घनघोर दुश्मनी भी है. फिर भी पिछले दिनों घटी दो घटनाओं ने दुनिया के समक्ष एक बार फिर से यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या ईसाईयों और मुसलमानों के बीच फिर से धर्मयुद्ध छिड़ गया है.
मित्रों, इस श्रृंखला में पहली घटना में पिछले महीने की १५ तारीख को न्यूजीलैंड की दो मस्जिदों में घटी जब एक स्थानीय ईसाई गोरे व्यक्ति ने शुक्रवार की नमाज पढ़ रहे लोगों पर अचानक और बेवजह गोलीबारी कर दी जिसमें ५० लोग मारे गए. पूरी दुनिया में शोक और गुस्से की लहर दौड़ पड़ी. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने अपने व्यवहार और संबोधन के माध्यम से शोक में डूबे लोगों के घावों पर मरहम लगाया और तब ऐसा समझा गया कि मामला यही समाप्त हो गया. लेकिन ऐसा था नहीं.
मित्रों, दूसरे पक्ष में भी कई लोग ऐसे थे जिनका मानना था कि मुसलमानों को बदला लेना चाहिए और इसके लिए उन्होंने कदाचित हमारे पडोसी देश श्रीलंका का चुनाव किया. हालाँकि १० दिन पहले ही श्रीलंका पुलिस ने इस बात का अलर्ट जारी किया था कि श्रीलंका के गिरिजाघरों और भारतीय दूतावास पर चरमपंथी मुस्लिम संगठन हमला कर सकते हैं फिर भी हमले को रोका नहीं जा सका जिसके लिए शायद वहां के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच चल रहा सत्ता संघर्ष भी जिम्मेदार है. इस घटना में अब तक ३०० लोग मारे जा चुके हैं. श्रीलंका इस समय सन्निपात की स्थिति में है तथापि यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है कि भारत के दूतावास पर हमला नहीं किया गया इसके लिए हमारी केंद्र सरकार बधाई की पात्र है जो सत्ता में आने के बाद से ही आतंकवादियों के प्रति पूरी तरह से सचेत है.
मित्रों, श्रीलंका की सरकार ने पिछले दिनों मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का अनुशरण भी किया था यह हमला शायद उसका भी दुष्परिणाम है क्योंकि इतिहास गवाह है कि मुस्लिम चरमपंथी भस्मासुर हैं और ये जिस डाल पर बैठते हैं पहले न केवल उसे काट डालते हैं बल्कि पूरे पेड़ को ही जला देते हैं. अब श्रीलंका की सरकार जो कुछ भी कार्रवाई इनके खिलाफ कर रही है उसकी तुलना हम सांप के बिल में चले जाने के बाद लाठी पटकने से कर सकते हैं.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि श्रीलंका की घटना के तार क्या न्यूजीलैंड के हमलों से जुड़े हैं? जिस तरह से गिरिजाघरों में बम विस्फोट ठीक ईस्टर के दिन किए गए उससे तो ऐसा ही लगता है कि ये हमले न्यूजीलैंड हमलों के जवाब में किए गए. कितनी बड़ी विडंबना है कि इस कथित धर्मयुद्ध की चक्की में एक ऐसा देश पिस गया जो न तो मुस्लिम देश है और न ही ईसाई.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि इस बारे में क्या किया जा सकता है? मेरी समझ से संयुक्त राष्ट्र संघ को अविलम्ब स्थिति के बिगड़ने और बेकाबू होने से पहले विश्व-समुदाय की बैठक बुलानी चाहिए और इस मसले पर विचार करना चाहिए जिससे दोनों पक्षों से हमलों की एक श्रृंखला न बने. साथ ही श्रीलंका के राजनैतिक दलों को अपने मतभेदों को भुलाकर देश को इस संकट से कैसे उबारा जाए पर विचार करना चाहिए और तदनुसार अपेक्षित कदम उठाने चाहिए.
मित्रों, इस श्रृंखला में पहली घटना में पिछले महीने की १५ तारीख को न्यूजीलैंड की दो मस्जिदों में घटी जब एक स्थानीय ईसाई गोरे व्यक्ति ने शुक्रवार की नमाज पढ़ रहे लोगों पर अचानक और बेवजह गोलीबारी कर दी जिसमें ५० लोग मारे गए. पूरी दुनिया में शोक और गुस्से की लहर दौड़ पड़ी. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री ने अपने व्यवहार और संबोधन के माध्यम से शोक में डूबे लोगों के घावों पर मरहम लगाया और तब ऐसा समझा गया कि मामला यही समाप्त हो गया. लेकिन ऐसा था नहीं.
मित्रों, दूसरे पक्ष में भी कई लोग ऐसे थे जिनका मानना था कि मुसलमानों को बदला लेना चाहिए और इसके लिए उन्होंने कदाचित हमारे पडोसी देश श्रीलंका का चुनाव किया. हालाँकि १० दिन पहले ही श्रीलंका पुलिस ने इस बात का अलर्ट जारी किया था कि श्रीलंका के गिरिजाघरों और भारतीय दूतावास पर चरमपंथी मुस्लिम संगठन हमला कर सकते हैं फिर भी हमले को रोका नहीं जा सका जिसके लिए शायद वहां के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच चल रहा सत्ता संघर्ष भी जिम्मेदार है. इस घटना में अब तक ३०० लोग मारे जा चुके हैं. श्रीलंका इस समय सन्निपात की स्थिति में है तथापि यह हमारे लिए प्रसन्नता का विषय है कि भारत के दूतावास पर हमला नहीं किया गया इसके लिए हमारी केंद्र सरकार बधाई की पात्र है जो सत्ता में आने के बाद से ही आतंकवादियों के प्रति पूरी तरह से सचेत है.
मित्रों, श्रीलंका की सरकार ने पिछले दिनों मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का अनुशरण भी किया था यह हमला शायद उसका भी दुष्परिणाम है क्योंकि इतिहास गवाह है कि मुस्लिम चरमपंथी भस्मासुर हैं और ये जिस डाल पर बैठते हैं पहले न केवल उसे काट डालते हैं बल्कि पूरे पेड़ को ही जला देते हैं. अब श्रीलंका की सरकार जो कुछ भी कार्रवाई इनके खिलाफ कर रही है उसकी तुलना हम सांप के बिल में चले जाने के बाद लाठी पटकने से कर सकते हैं.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि श्रीलंका की घटना के तार क्या न्यूजीलैंड के हमलों से जुड़े हैं? जिस तरह से गिरिजाघरों में बम विस्फोट ठीक ईस्टर के दिन किए गए उससे तो ऐसा ही लगता है कि ये हमले न्यूजीलैंड हमलों के जवाब में किए गए. कितनी बड़ी विडंबना है कि इस कथित धर्मयुद्ध की चक्की में एक ऐसा देश पिस गया जो न तो मुस्लिम देश है और न ही ईसाई.
मित्रों, अब सवाल उठता है कि इस बारे में क्या किया जा सकता है? मेरी समझ से संयुक्त राष्ट्र संघ को अविलम्ब स्थिति के बिगड़ने और बेकाबू होने से पहले विश्व-समुदाय की बैठक बुलानी चाहिए और इस मसले पर विचार करना चाहिए जिससे दोनों पक्षों से हमलों की एक श्रृंखला न बने. साथ ही श्रीलंका के राजनैतिक दलों को अपने मतभेदों को भुलाकर देश को इस संकट से कैसे उबारा जाए पर विचार करना चाहिए और तदनुसार अपेक्षित कदम उठाने चाहिए.
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