मित्रों, यकीन मानिए मैं कभी भी नहीं चाहता कि बिहार की कुव्यवस्था पर कुछ लिखूं. जब भी मैंने ऐसा किया है बड़े ही भारी मन से किया है और आज मैं जिन हालातों में लिखने बैठा हूँ मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरा दिल जार-जार रो रहा है. और सिर्फ मेरा दिल ही नहीं रो रहा बल्कि मेरे साथ पूरा भारत रो रहा है.
मित्रों, आप समझ गए होंगे कि मैं बात कर रहा हूँ बिहार में रोजाना समुचित चिकित्सा के अभाव में दम तोड़ रहे छोटे-मासूम बच्चों की. पिछले कई सालों से इस मौसम में बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक अनजान बीमारी से सैकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे बच्चों की अकाल मृत्यु होती रही है. पिछले साल तक गोरखपुर में भी इस बीमारी का प्रकोप देखा गया लेकिन इस साल जागरूकता और सघन टीकाकरण अभियान के कारण उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहतर है जबकि बिहार की हालत आपलोगों के सामने है. मैं कई बार कह चुका हूँ कि बिहार में अंधों और बहरों का शासन है जो गजब के बडबोले हैं.
मित्रों, मुझे ऐसा भी लगता है कि मंगल पांडे जी जो बिहार के स्वास्थ्य मंत्री हैं पिछले हफ़्तों में पार्टी का काम कन्धों पर होने के चलते विभाग के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं. इन दिनों वे झारखण्ड के पार्टी प्रभारी थे और स्वाभाविक है कि लोकसभा चुनावों के चलते उनके ऊपर झारखण्ड में ज्यादा-से-ज्यादा सीते जीतने का दबाव रहा होगा. लेकिन चुनाव संपन्न हुए भी अब एक महीना बीतने पर है और उनको चुनावी मोड से अब तक बाहर आ जाना चाहिए था और अपने विभाग के काम-काज पर भी ध्यान देना चाहिए था. सरकार चाहती तो जैसे ही इस रहस्यमय बीमारी का प्रकोप शुरू हुआ एम्स के टॉप चिकित्सकों को बच्चों के ईलाज में लगा देती. अगर सरकार उन माँ-बाप के बच्चों की जीवन-रक्षा के प्रति थोड़ी-सी भी गंभीर होती तो बच्चों को एयर एम्बुलेंस से दिल्ली और अन्य महानगरों में स्थित बड़े अस्पतालों में स्थानांतरित कर देती. अगर मंगल पांडे जी थोड़े-से भी संवेदनशील होते तो उनके काफिले को बच्चे का एम्बुलेंस रोककर पास न कराया गया होता.
मित्रों, मैं नहीं बता सकता कि उन माता-पिताओं पर इस समय क्या गुजर रही होगी जिन्होंने अपने नौनिहाल खोए हैं. भगवान न करें कि किसी के साथ भी ऐसा हो. मैं सरकार से सवाल पूछना चाहता हूँ कि अगर मंत्रियों के बच्चों को यही बीमारी हुई होती तब भी क्या सरकार का व्यवहार वही होता जो अभी है? क्या सरकार इसी प्रकार से उदासीन होती?
मित्रों, मुझे याद है कि जब यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री रहते हुए रामविलास पासवान जी पटना में बीमार हो गए थे तब दो-दो एयर एम्बुलेंस उनको लेने पहुंचे थे. तो क्या राजा की जान बहुत कीमती होती है और प्रजा की जान की कीमत जानवरों की जान से भी कम कीमत की होती है? साथ ही मैं नरेन्द्र मोदी जी से सवाल पूछना चाहता हूँ कि बिहार की जनता ने आपको ४० की ४० सीटों पर सीधा उम्मीदवार मानते हुए ३९ सीटें दे दीं क्या यही दिन देखने के लिए? अगर यही मौतें गुजरात में होती तो भी क्या आप चुप्पी साधे रहते और ११वें दिन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भेजते?
मित्रों, अब मैं रवीश कुमार जी पर व्यंग्य नहीं करूंगा. बहुत व्यंग्य कर लिया उन पर अब तो परिस्थितियां हम पर व्यंग्य कर रही हैं, अट्टहास कर रही हैं कि देख तू जिनका समर्थक है वे राजनेता क्या कर रहे हैं? वे हमसे जैसे पूछ रही है कि बता क्या इस तरह की अक्षम्य संवेदनहीनता को ही राष्ट्रवाद कहते हैं. अंत में मैं नीतीश कुमार जी को कुछ नहीं कहना चाहूँगा क्योंकि उनको न तो बिहार से और न ही बिहार की जनता से कोई मतलब रह गया है उनको तो बस धारा ३७० और ३ तलाक से मतलब है लेकिन मैं मंगल पांडे जी से जरूर यह कहना चाहूँगा कि कम-से-कम आपने इस बात का तो ख्याल रखा होता कि आपके नाम का एक महापुरुष भारत के इतिहास में पहले भी हुआ है. मंगल भैया कम-से-कम अपने नाम की तो ईज्जत कर लिए होते.
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