बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

बिहार में का बा? बिहार में ई बा

मित्रन लोग, ई समय बिहार में चुनाव के प्रचार चल रहल बा धकाधक। जाहिर बा कि पक्ष-विपक्ष दून्नो तरफ से एक-दोसर पर दोषारोपण के तीर दागल जा रहल बा। विपक्ष मनोज वाजपेई के एगो गाना के आधार बना के पूछ रहल बा कि बिहार में का बा। जवाब में सत्ता पक्ष भी बता रहल बा कि बिहार में ई बा। बाकी हमहू त बिहारे में रहअ तानी से हमहू कुछ लिस्ट बनबले बानी कि बिहार में का बा। मित्रन लोग, सबसे पहले बिहार में भ्रष्टाचार बा। हम गर्व से कह सकअ तानी कि ई मामला में आपन बिहार पूरा देशे ना पूरा दुनिया में अव्वल बा। बिना पईसा देले बिहार सरकार के कऊनो दफ्तर में कोई काम ना होला। ईहां तक कि रवा बिहार में लुटा जाए के बाद जब पुलिस के भीडा ज ईब त उहो रवा के दुबारा लूट लिहें। एतने ना रवा के बिहार के बैंक में बिना दस पर्सेंट कमीशन देले लोनो ना मिली जबकि दिल्ली-उल्ली में लोन देबे खातिर बैंक उलटे परेशान रहेला। मित्रन लोग, बिहार में का बा में अगिला बारी बा बेरोजगारी के। उन्नीस सौ नब्बे से ले के आज तक बिहार में लालू-नीतीश यानि पिछड़ा लोग के शासन बा। ई दून्नो बिहार के लोगन के रोजगार देबे के खूब सपना दिखईलें। बाकी स्थिति में कऊनो बदलाव ना आईल। एतने ना बिहार में कौनो आपन रोजगार कईल भी आजकल अपन जान से खिलवाड़ करे के बराबर हो गईल ह। दोकान से घर तक रवा कब, कहां आऊर कईसे लुटा-मरा जाईब कोई नईखे जानत। मित्रन लोग, बिहार में बेबस किसान बा। बिहार में हजार दू हजार टन धान के खरीद करके डबल ईंजन के सरकार द्वारा एमएसपी के कर्त्तव्य पूरा कर लिहल जाता। अभी बिहार में लाखों टन मकई भईल ह बाकी सरकार एकरा के ना खरीदी। बिहार में पहिलहि से ऐग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (APMC) नईखे। अब किसान समझे कि उ आपन उपज के का करिहें. बिहार के किसान के पास जिए के कोई रस्ता न ईखे फिर भी लोग जिअता। एक आमदी खेती करअता त घर के चार आमदी बाहर दिल्ली-गुजरात नौकरी करअतारें। मित्रन लोग, अगर रऊआ लोग लागता कि बिहार में खाली लालुए घोटालेबाज बाडन त रवा लोग भुलावा में बानी. ईहाँ हजारों लालू बाडन. आपन नीतीश कुमार भी लालू से कम नईखन. अंतर बस इतना बा कि ई भाजपा के साथे बाडन जेसे जेल के बाहर बाडन. सृजन घोटाला, दवा घोटाला जईसन केतना घोटाला इनकरो राज में हो चुकल बा. मित्रन लोग,बिहार में अशिक्षित शिक्षक बाडे उहो नीतीश कुमार जी के कृपा से. एकबार नीतीश जी पंचायत के मुखिया लोग के मास्टर बहाली के अधिकार दे देले रहलन. फिर त जे बहाली भईल कि पूछीं मत. केतना मास्टर अबहियो बिहार में नकली कागज पर काम कर रहल बाड़ें. बहुत के तअ एक्का से बीसका तक के पहाडा भी नईखे आवत. मित्रन लोग, बिहार में टिकट के बिक्री बा। ई घडी जेतना राजनैतिक पार्टी बिया जमके टिकट बेच रहल बिया. अब बिहार में गरीब आमदी चुनाव ना लड़ सकत. अब चुनाव बराबरी के लडाई ना रह गईल ह. मित्रन लोग, रऊआ लोग कहत होखब कि तब त बिहार के विकल्प के तलाश करे के चाहीं. त हम रवा के बता दीं कि बिहार के सबसे बड़ समस्या ई समय विकल्पहीनता ही बा. तेजस्वी जे लालू जी के बेटा बारें ई बार फिर से जमके क्रिमिनल सबके टिकट बांटले बारन। उ अईसन करके ई साबित कर देले बारें कि ई राष्ट्रीय जनता दल जनता दल न ईखे गुंडा दल बा। राष्ट्रीय गुंडा दल। मित्रन लोग, अगर रवा ई घडी बिहार में कऊनो पार्टी के प्रचार में आईल बानी त सचेत हो जाईं. बिहार में कानून व्यवस्था नईखे। सरकार लापता बिया. अपराधी के साथे-साथे रऊआ के बिहार के पुलिसो से बाच के रहे के पडी। न त बिना बाते के रवा लुटा जाईब आ उहो बिहार पुलिस के हाथे। फिर शिकायत कहाँ करब?

सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

अपनी जान की सुरक्षा स्वयं करें

मित्रों, जब भी आप किसी बस में चढ़ते होंगे तो वहां लिखी हुई एक पंक्ति पर आपकी नज़र जरूर जाती होगी कि अपने सामान की रक्षा स्वयं करें. और इस तरह बस के स्टाफ आपके सामान की सुरक्षा से अपने आपको अलग कर लेते हैं. अब अगर आपका सामान बस में चोरी हो जाता है तो आप समझिए बस के स्टाफ तो यही कहेंगे कि हमने तो यह एक पंक्ति की इबारत मोटे-मोटे अक्षरों में लिखकर आपको पहले ही सचेत कर दिया था. आपने सतर्कता नहीं बरती तो हम क्या करें? मित्रों, इन दिनों पूरे देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. कहीं हत्या हो रही, कहीं बलात्कार हो रहे, कहीं डाका पड़ रहा तो कहीं चोरी और ठगी हो रही लेकिन हमारे देश की पुलिस लगभग कुछ नहीं कर रही. कई बार तो लोग पहले से ही पुलिस को अपनी जान को किसी खास व्यक्ति से खतरा होने का आवेदन भी देते हैं लेकिन हमारी पुलिस कुछ नहीं करती बस हाथ-पे-हाथ धरे बैठी रहती है. और आवेदक की हत्या हो जाने के बाद झूठ बोल जाती है कि हमारे पास तो ऐसा कोई आवेदन आया ही नहीं था. पूरे भारत में पुलिस का एकमात्र काम जैसे घूस खाकर मुकदमों का अनुसन्धान करना और झूठ को सच और सच को झूठ बनाना रह गया हैं. मैं पहले भी अपने कई आलेखों में पुलिस के रवैये और काम करने के तरीकों पर सवाल उठा चुका हूँ. मैंने अपने नाम बिहार पुलिस, काम रंगदारी,रिश्वतखोरी,कत्ल,…? शीर्षक आलेख में २९ मार्च २०१३ को पुलिस द्वारा रंगदारी और वर्दी के दुरुपयोग सम्बन्धी कई घटनाओं को उजागर किया था. मैंने कहा था कि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती और अगर दर्ज कर भी लिया तो चोरी होने के एक महीने बाद घटनास्थल पर पहुँचती है. क्या तब तक चोर वहीँ पर बैठे होंगे? एटीएम फ्रॉड के मामले में पुलिस बिना कुछ किए छह महीने बाद केस बंद कर देती है. कई बार तो बलात्कार पीडिता को महिला थाने से डांट-फटकारकर भगा दिया जाता है. कई बार हत्या के मामले में पुलिस गिरफ़्तारी तक नहीं करती है चुपके से मामले को बंद कर देती है. उधर पीड़ित परिवार के आंसू रोते-रोते सूख जाते हैं, आँखें पथरा जाती हैं. फिर चाहे तो बहुचर्चित सुशांत सिंह मामला हो या पालघर या राजस्थान में पुजारी को जिन्दा जला देने की वारदात. मित्रों, ऐसा नहीं है कि सिर्फ राज्यों की पुलिस मनमाने तरीके से काम कर रही है बल्कि केंद्र सरकार के अधीन काम करनेवाली दिल्ली पुलिस भी इन दिनों स्वयं को जनता का सेवक नहीं बल्कि स्वामी समझने लगी है. तभी तो जब राहुल राजपूत की निर्मम पिटाई हो रही थी तब उसकी दोस्त द्वारा सूचित करने के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर नहीं गई. बाद में पीडिता के मोबाईल का सिम तोड़ दिया क्योंकि उसने पुलिस के खिलाफ मीडिया में बयान दिया था. जब केंद्र सरकार की पुलिस का यह रवैया है तो जनता की रक्षा कौन करेगा? मित्रों, मेरा दिल्ली समेत सभी राज्यों की पुलिस से एक करबद्ध प्रार्थना है कि वे थानों में क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ की जगह जनता अपनी जान की सुरक्षा स्वयं करें लिखवा दें. वो क्या है कि जो थानों में होता है वहां वही लिखा रहे तो अच्छा रहेगा. फिर जनता जाने कि अंधेर नगरी में उसकी जान कैसे बचेगी? वैसे नहीं लिखवाने पर भी स्थिति तो जस-की-तस रहेगी.

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

बधाई हो बलात्कार हुआ है

मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि यह कैसा शीर्षक है? बलात्कार तो शर्मनाक घटना है फिर उसके लिए बधाई क्यों? दरअसल हमारे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो प्रत्येक घटना को राजनैतिक तराजू पर तोलते हैं। कई बार इनकी भाषा चीन या पाकिस्तान की भाषा से भी मेल खाने लगती है। इन्हें हमेशा इंतजार होता है किसी ऐसी घटना का जिससे हिंदू समाज में फूट डाली जा सके। मित्रों, ऐसे राजनैतिक गिद्धों की तब बांछें खिल आती हैं जब इनको पता चलता है कि किसी दलित लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और बलात्कारी सवर्ण है. इसमें भी एक शर्त है कि बलात्कार उत्तर प्रदेश में होना चाहिए. अगर बलात्कारी राजपूत हुआ तो सोने पे सुहागा. क्योंकि तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर ऊंगली उठाने का सुनहरा अवसर मिल जाता है. तब योगी आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ नहीं रहते सीधे ठाकुर अजय सिंह बिष्ट हो जाते हैं. मित्रों, लड़की जीवित बच गई तो ठीक और अगर मर गई तो ज्यादा ठीक. फिर लाश पुलिस ने खुद जला दिया तो ठीक और लड़की के परिजनों को मिल गई तो ज्यादा ठीक. पहली स्थिति में पुलिस पर ज्यादती और मनमानी के आरोप लगाने का अवसर मिलता है वहीँ दूसरी अवस्था में शवयात्रा को हिंसक जुलूस में बदलने का सुनहरा मौका मिलता है जिससे जातीय दंगे भड़कने की शत प्रतिशत सम्भावना होती है. फिर क्या, फिर तो वोटों की फसल काटिए और राज भोगिए. मित्रों, ऐसा नहीं है कि बलात्कार सिर्फ उत्तर प्रदेश में होते हैं या सिर्फ राजपूत ही बलात्कार करते हैं. बल्कि बलात्कार तो पूरे भारत में हो रहे हैं और बलात्कारी किसी भी जाति और धर्म के हो सकते हैं. इसी प्रकार पीडिता भी किसी भी जाति या धर्म की हो सकती है. लेकिन जब तक उत्तर प्रदेश में कोई सवर्ण किसी दलित का बलात्कार न करे तब तक इन राजनैतिक गिद्धों की नजर में बलात्कार होता ही नहीं. तब तो विशुद्ध मनोरंजन होता है-वो वाला जिसकी चर्चा कभी मुलायम सिंह यादव जी ने की थी. हाथरस की पीडिता खुद कह रही थी कि उसके साथ अकेले संदीप ने सिर्फ मारपीट की लेकिन ये राजनैतिक गिद्ध फिर भी सामूहिक बलात्कार, दरिंदगी वगैरह शब्दों की रट लगे हुए हैं. मानों पीडिता को पता ही नहीं है कि उसके साथ हुआ क्या है मगर इनको सब पता है. मित्रों, उसी उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में मंगलवार को एक सचमुच का बलात्कार होता है जिसमें दो मुस्लिम युवक आरोपी होते हैं और पीडिता नाबालिग दलित होती है. उसके साथ सचमुच की दरिंदगी होती है और इस पैमाने पर होती है कि वो घर पहुँचने के चंद मिनट बाद ही दम तोड़ देती है लेकिन ये राजनैतिक गिद्ध तब उत्तर प्रदेश के आसमान पर नहीं मंडराते क्योंकि धर्मनिरपेक्ष हिंसा हिंसा न भवति? इसी तरह पिछले ४८ घंटों में बिहार में भी दो-दो बलात्कार की घटनाएँ हुई हैं लेकिन उनमें से एक में बलात्कारी दलित है और दूसरे में अति पिछड़ा इसलिए इन राजनैतिक गिद्धों के कुनबे में पूरा सन्नाटा पसरा है. एक धर्मनिरपेक्ष बलात्कार राजस्थान में भी हुआ है लेकिन उस पर भी सन्नाटा. देखना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जी कब उत्तर प्रदेश और राजस्थान के धर्मनिरपेक्ष बलात्कारियों को बतौर ईनाम उनकी वीरता के लिए सिलाई मशीन देकर विभूषित करते हैं. मित्रों, तो इंतज़ार करिए उन सुनहरे पलों का जब फिर से उत्तर प्रदेश में किसी ठाकुर की किसी दलित से मारपीट होती है और उस घटना को सामूहिक बलात्कार में बदलने का महान व ऐतिहासिक अवसर आता है और जब इन राजनैतिक गिद्धों के मोबाइल पर मैसेज आता है कि बधाई हो बलात्कार हुआ है. फिर शोर, गुब्बार, हंगामा. तब तक अन्य प्रकार के बलात्कार होने दीजिए, कोई बात नहीं. मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि होना क्या चाहिए और हो क्या रहा है. होना तो चाहिए कि पूरा भारत मिलकर विचार करे कि बलात्कार को रोका कैसे जाए. अच्छा होता अगर इस विषय पर मंत्रणा संसद में होती. मगर ऐसा होगा क्या?