गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी, हम केहू से कम बानी का।
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी,
लाखों गलती करके भी अप्पन बात पर अड़तानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
मनमोहन जब निजीकरण कईले देश ऊ बेचत रहलें,
हम सरकारी कंपनी बेचके देश के बचावतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
चीन चढल बा छाती पर हमर दिमाग बा हाथी पर,
जीडीपी के माईनस करके ५ ट्रिलियन के बनाबतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
बेरोजगारी आकाश लगल बा गरीब गुरबन के बाट लगल बा,
पेट्रोल डीजल के दाम बढा के महंगाई हम घटाबतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
देश दुनिया के चिंता नईखे महंग कपडा पेन्हतानी,
करनी ले साफे अल्लग दिनभर भाषण पेलतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
धरम के अफीम चटाके प्रदेश चुनाव जीततानी,
रेल के टिकस बढाके जेबी से पैसा खींचतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
दोसर केकरो बात न सुनब अप्पन बात सुनाबतानी,
कईसे जईबअ कईसे जीबअ तू जानअ लौकडाऊन लगाबतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
नेहरू के हम नाम मेटाईब नया नेहरू हम कहाईब,
हर चीज हमरा नाम पे होई भले देश के जनता रोई,
अल्पसंख्यक फंड बढाके तुष्टीकरण मेटाबतानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी,
लाखों गलती करके भी अप्पन बात पर अड़तानी,
जे जे गलती नेहरू कईले उहे गलती करतानी।
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021
अच्छा दिन आ गईल बा मोदीजी के राज में
सारी जमा पूँजी ख़तम हो गईल नून रोटी प्याज में
अच्छा दिन आ गईल बा मोदीजी के राज में.
सबसे पहिले भैया नोटबंदी के चोट भईल,
तेकरा बादे भैया कई राज्य में वोट भईल,
फिर पधारली जीएसटी जैसे कोढ़ खाज में,
अच्छा दिन आ गईल बा मोदी जी के राज में.
अब होई देश के निजीकरण अईसन हम सुनअतानी,
जईसन मनमोहन ओईसन मोदी अईसन हम गुनअतानी,
जनता पीट रहल बा माथा बैठल डूबत जहाज में,
अच्छा दिन आ गईल बा मोदीजी के राज में.
सोमवार, 15 फ़रवरी 2021
मोदी राज में लगातार कठिन होता जीवन
मित्रों, एक जमाना था जब भारत में २०१४ के लोकसभा चुनाव प्रगति पर थे. तब एक गीत और नारा बार-बार भारत की फिजाओं में गूँज रहा था कि अच्छे दिन आनेवाले हैं. हमें भी लगा कि शायद इस बार ऐसा होकर रहेगा. कारण यह कि लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचार से काफी नाराज और परेशान थे. फिर जब चुनाव परिणामों की घोषणा हुई और भाजपा को अकेले बहुमत मिला तब लोगों की उम्मीदों को और भी बल मिला.
मित्रों, इसके बाद जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल की घोषणा हुई तब थोड़ी-सी निराशा हुई क्योंकि जिन लोगों को मंत्री बनाया गया था उनमें से कई पूरी तरह से अयोग्य थे. साल-दो-साल होते-होते देश की जनता में निराशा घर करने लगी. लेकिन मोदी जनमानस को समझते थे इसलिए एक-के-बाद-एक ऐसे कदम उठाते रहे जिससे जनता की उम्मीदों का गुब्बारा फूलता ही चला गया. पता नहीं यह कब फूटेगा और उसके बाद भाजपा और भारत का क्या होगा? पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी को लागू करना ये दो ऐसे कदम रहे जिनसे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ के स्थान पर हानि हुई. जो बेरोजगारी पहले से ही काफी बढ़ी हुई थी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. लेकिन यहाँ भी कमाल दिखाया भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने और देश की जनता को अपने शब्द-जाल में उलझाए रखा. चुनाव-दर-चुनाव जीतते रहे.
मित्रों, फिर आया कोरोना और सरकार द्वारा बिना तैयारी के किए गए लौकडाउन का दौर जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी. कहना न होगा कि इस दौरान अगर भारत का वित्त मंत्री किसी अर्थशास्त्री को बनाया गया होता तो भारतीय जीडीपी आज ऋणात्मक नहीं होती.
मित्रों, अगर हम देश की आम जनता के जीवन को देखें और पिछली मनमोहन सरकार से तुलना करें तो उनके लिए अच्छे दिन के बदले बुरे दिन आ गए हैं. नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना के कारण आमदनी घट गई है. उस पर जले पर नमक का काम कर रही है कमरतोड़ महंगाई. ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड अलग जनता को लूट रहा है जिससे निबटने के लिए भी मोदी सरकार बिलकुल भी तैयार नहीं है. कहने का तात्पर्य यह कि मोदी सरकार में देशवासियों का जीवन पहले से कहीं ज्यादा कठिन हो गया है. खाने-पीने से लेकर घर बनाने की सामग्री तक सबकुछ भयंकर महंगाई रुपी चक्रवात की तरह जन-जीवन को तहस-नहस करने पर तुली है लेकिन मोदी सरकार का जैसे इस तरफ ध्यान ही नहीं है. पहले के मुकाबले रेलयात्रा भी काफी महँगी की जा चुकी है. पेट्रोलियम पदार्थ जहाँ पहले रुला रहे थे अब झुलसा रहे हैं. अर्थव्यवस्था इस समय आईसीयू में है. हालात इतने ख़राब हैं कि सरकार जमीन, बैंक, रेलवे स्टेशन और एअरपोर्ट बेचने पर मजबूर हो गई है. उस पर गजब यह कि अपनी महारत के अनुसार मोदी सरकार ने देश के लोगों को राम मंदिर में उलझा रखा है जिससे देश के वास्तविक मुद्दे इस समय भी गौण हैं. जाहिर-सी बात है कि इस समय कहीं भी अच्छे दिन आनेवाले हैं गाना या नारा कहीं सुनाई नहीं देता. हाँ, जनता जरूर यह समझ चुकी है कि आगे और भी बुरे दिन आनेवाले हैं.
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021
बिहार में रौलेट एक्ट
मित्रों, मैं जानता हूँ कि आप सभी रौलेट एक्ट से वाकिफ हैं. १९१८ में ब्रिटिश सरकार ने यह कानून हम भारतीयों के लिए बनाया था जिसके अंतर्गत प्रावधान किया गया था कि पुलिस किसी भी भारतीय को बिना न्यायालय में मुकदमा चलाए अनिश्चित काल के लिए जेल में रख सकती थी. आप लोग यह भी जानते हैं कि इसी रौलेट एक्ट के खिलाफ जालियांवाला बाग़ में जनसभा हो रही थी जिस पर गोलियां चलाकर हजारों निरपराध और निशस्त्र लोगों को बेमौत मार दिया गया था. मित्रों, इन दिनों बिहार की नीतीश सरकार ने भी कुछ इसी तरह के कानून लागू करने का निर्णय लिया है. इस कानून के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद १९ (क) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनने का जघन्य पाप किया गया है. बिहार के पुलिस प्रमुख अर्थात डीजीपी द्वारा जारी ३ फरवरी के आदेश के अनुसार अगर कोई व्यक्ति बिहार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन या सड़क जाम करता है तो उसे सरकारी नौकरी या टेंडर पाने का अधिकार नहीं रह जाएगा. मित्रों, सवाल उठता है कि बिहार के लोग आजाद हैं या अभी भी गुलाम हैं? लोकतंत्र में लोकतान्त्रिक विधि से चुनी गई सरकार भला कैसे लोगों से विरोध करने का अधिकार छीन सकती है? क्या नीतीश कुमार ने खुद १९७४ के प्रदर्शनों में भाग नहीं लिया था? नीतीश जी भूल गए कि तब देश में आपातकाल था अब नहीं है? मित्रों, अगर किसी सरकार के शासन में ऊपर से नीचे तक घूस की गंगा बह रही हो, बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता हो, जनता की कोई सुननेवाला नहीं हो, डीजीपी खुद मुख्यमंत्री का फोन नहीं उठाता हो, एफआईआर दर्ज करने में हफ़्तों लग जाते हों, बिना पैसे दिए एक भी नियुक्ति नहीं होती हो तो जनता खुश होगी या नाराज? ऐसे में असंतोष नहीं पनपेगा तो क्या पनपेगा? जनता सडकों पर नहीं आएगी तो और क्या करेगी? क्या अंग्रेजी राज के खिलाफ स्वातंत्र्यवीरों ने प्रदर्शन नहीं किया था? फिर आज के बिहार की हालत तो अंग्रेजों के समय से भी ज्यादा ख़राब है फिर जनता से विरोध करने का अधिकार क्यों छीना जा रहा है? अगर फिर भी बिहार में लोकतंत्र है तो फिर उत्तर कोरिया और चीन में क्या है? क्या इसलिए बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बनाया था? नीतीश जी को अपने इस कार्यकाल में अपनी पुरानी गलतियों को सुधारना है या जनता के मुंह को बंद करना है? मैं यह भी जानता हूँ कि यह कानून न्यायालय में एक मिनट भी नहीं टिकेगा और शायद नीतीश जी भी इस तथ्य को जानते हैं फिर उन्होंने यह नई गलती क्यों की? कहीं यह दूसरे आंतरिक राष्ट्रीय आपातकाल की आहट तो नहीं?
बुधवार, 3 फ़रवरी 2021
साईबर अपराध रोकने में पूरी तरह विफल मोदी सरकार
मित्रों, जबसे केंद्र में मोदी जी की सरकार बनी है डिजिटल इंडिया का शोर है. मोदी सरकार प्रत्येक भारतीय को इन्टरनेट से जोड़ना चाहती है जिसकी तारीफ होनी चाहिए लेकिन जैसे-जैसे भारत के लोग इन्टरनेट से जुड़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे इन्टरनेट से जुड़े अपराध भी काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. स्थिति ऐसी है कि कब किसकी जमा पूँजी पर डाका पड़ जाए कोई नहीं जानता. मित्रों, सिर्फ २०१९ में भारत के १४ करोड़ लोग साईबर ठगी के शिकार हुए जिनके सवा लाख करोड़ रूपये ख़ामोशी से लूट लिए गए. आप समझ सकते हैं कि १४ करोड़ लोग और सवा लाख करोड़ रूपये का आंकड़ा कोई छोटा नहीं होता बहुत बड़ा होता है. यहाँ हम आपको बता दें कि २०१९ में पूरी दुनिया में जहाँ ३५ करोड़ लोग साईबर ठगी के शिकार हुए वहीँ सिर्फ भारत में १४ करोड़ लोगों से लूट हुई. कभी पुणे के कोसमोस बैंक का ९४ करोड़ रूपया उड़ा लिया जाता है तो कभी झारखण्ड के मेदनीनगर स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा से एकमुश्त १० करोड़ रूपये गायब कर दिए जाते हैं. विदित हो भारत में साईबर अपराधों में सालाना ४० प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है.
मित्रों, रोजाना होने वाली लाखों की संख्या में आम जनता की दस-बीस हजार की लूट की तो बात ही छोडिये स्टेट बैंक में रखा हुआ पैसा भी आज सुरक्षित नहीं है लेकिन भारत सरकार का इस ओर ध्यान ही नहीं है. timejobsservice.com नामक वेबसाइट जैसे अनेक वेबसाइट खुलेआम रोजगार देने के नाम पर गरीब-बेरोजगार लोगों के बैंक खातों में जमा पैसा उड़ा ले रहे हैं लेकिन इससे मोदी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. जैसे उसका मूल-मंत्र यही है कि भाड़ में जाए जनता, अपना काम बनता. मित्रों, अभी हाजीपुर से सटे कंचनापुर में एक्सिस बैंक में ४८ लाख का डाका पड़ा. मेरे घर के पास महिला थाना के सामने पुलिस लोगों की डिक्की चेक करने लगी. क्या अपराधी लूट के बाद जिला मुख्यालय की मुख्य सड़क से होकर गुजरेंगे?
मित्रों, इसी तरह मोदी सरकार भी पुराने तरीके से साईबर क्राइम रोकने में लगी है. उसके पास इसको रोकने की कोई स्वदेशी तकनीक नहीं है बल्कि वो इसके लिए पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर है. स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि लोग-बाग़ अब बैंकों में पैसा रखने से भी डरने लगे हैं. जब स्टेट बैंक जो भारत सरकार और राज्य सरकारों का समस्त सरकारी लेनदेन करता है ही सुरक्षित नहीं है तो कोई कहाँ पैसा जमा करे? सिर्फ नेशनल साईबर क्राइम पोर्टल बना देने की औपचारिकता मात्र से तो साईबर अपराध रूकने से रहे बल्कि भविष्य में जब ५जी आएगा तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी. इसलिए मोदी जी से अनुरोध है कि सिर्फ भाषण देना बंद कर इस दिशा में प्रभावी कदम उठाएं जिससे इस तरह के अपराध को पूरी तरह से रोका जा सके न कि अपराध हो जाने के बाद लाठी पटकने की औपचारिकता का निर्वहन किया जाए.
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