सोमवार, 9 अगस्त 2021
समझौते की मेज पर भारत की एक और हार
मित्रों, जब २०१४ का लोकसभा का चुनाव प्रचार चल रहा था तब भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बार-बार एक बात का वादा अपने भाषणों में किया करते थे कि अगर उनकी सरकार बनी तो भारत न तो किसी देश के आगे आँखें झुकाकर बात करेगा, न ही आँखें दिखाकर बात करेगा बल्कि आँखों में आँखें डालकर बात करेगा. तब लोगों ने समझा था कि उनका इशारा चीन की तरफ है. लेकिन आज जब लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं एक साल के तनाव के बाद वापसी कर रही है तब दूसरा ही मंजर देखने को मिला है.
मित्रों, दरअसल भारत वार्ता की मेज पर एक बार फिर से हार गया है जबकि रणनीतिक रूप से भारत की स्थिति चीन के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत थी. सैन्य मामलों के जानकार और विशेषज्ञों ने चीन के साथ हुए भारत के उस समझौते पर सवाल उठाए हैं जिसमें भारत ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर 10 किलोमीटर चौड़े बफ़र ज़ोन को बनाने के लिए सहमति दे दी है. जानकारों का कहना है कि डेपसांग और कुछ अन्य सक्टरों में भी डिस्इंगेजमेंट को लेकर भारत को चीन पर दबाव बनाना चाहिए था और ऐसा नहीं करके भारत ने बहुत बड़ी चूक कर दी है क्योंकि कूटनीतिक और सैन्य दृष्टि से यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद अहम है. यह वही क्षेत्र है, जहां माना जाता है कि चीन की सेना भारत के अधिकार वाले क्षेत्र में 18 किलोमीटर तक अंदर प्रवेश कर गई है.
मित्रों, रक्षा मामलों के जानकार और कर्नल (सेवानिवृत्त) अजेय शुक्ला ने इस संबंध में बीबीसी से बात की. चीन के साथ बफ़र ज़ोन को बनाने को लेकर हुए समझौते पर बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा- "मेरी समझ में ये एक अच्छा अग्रीमेंट है क्योंकि पैंगोंग के उत्तर और दक्षिण, दोनों जगह भारत और चीन के सैनिक बिल्कुल आमने-सामने थे. किसी भी समय झड़प की आशंका बनी हुई थी और वो झड़प सिर्फ़ झड़प ना रहकर बढ़ जाए, इसकी भी पूरी आशंका बनी हुई थी. इस लिहाज़ से ख़तरा हर समय बना हुआ था, तो वहां से दोनों ओर की सेनाओं का पीछे हटना अच्छी बात थी. लेकिन यहां ये भी कहना ज़रूरी है कि यहां पर दक्षिणी पैंगोंग ही एकमात्र ऐसी जगह थी जहां भारतीय सेना अच्छी पोज़िशन पर थी.'' वो कहते हैं, ''चीन की सेनाओं की तुलना में इस जगह पर भारतीय सेना की स्थिति काफी अच्छी थी और यहां पर सारी एडवांटेज भारतीय सैनिकों के पास थी. तो यहां से डिस्इंगेजमेंट के लिए सहमति देने का मतलब अब यह है कि जो ट्रंप कार्ड हमारे हाथ में था, हम वो खेल चुके हैं. वो अब हमारे पास नहीं रहा है और अगर चीन ये बात नहीं मानता है कि बाकी जगहों से भी डिस्इंगेजमेंट करना है और वो उससे इनक़ार कर दे तो हमारे पास में कोई ट्रंप कार्ड नहीं बचा है."
मित्रों, 10 फ़रवरी को भी उन्होंने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने पैंगोंग से जुड़ी घोषणाओं को लेकर सवाल उठाए थे. उन्होंने ट्वीट में कहा था - ''पैंगोंग सेक्टर में सेनाओं के पीछे हटने को लेकर झूठ बोला जा रहा है. कुछ हथियारबंद गाड़ियों और टैंकों को पीछे लिया गया है. सैनिकों की पोज़िशन में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चीन को फ़िंगर 4 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार दे दिया गया है. इसका मतलब यह है कि एलएसी फ़िंगर 8 से फ़िगर 4 पर शिफ़्ट हो गई है.''
मित्रों, राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इस संबंध में ट्वीट करके अपना मत ज़ाहिर किया है. उन्होंने लिखा है, "साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोई आया नहीं और कोई गया नहीं. चीन के लोग बहुत खुश हुए थे. लेकिन ये सच नहीं था. बाद में नरवणे ने सैनिकों को आदेश दिया कि वे एलएसी पार करें और पैंगोंग हिल को अपने कब्ज़े में लें. ताकि पीएलए के बेस पर नज़र रखें. और अब हम उन्हें वहां से हटा रहे हैं. लेकिन डेपसांग से क्या चीन पीछे हट रहा है? नहीं अभी नहीं."
मित्रों, इससे पूर्व चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर मौजूदा जानकारी देते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में कहा था कि भारत ने हमेशा चीन को यह कहा कि द्विपक्षीय संबंध दोनों पक्षों के प्रयास से ही विकसित हो सकते हैं. साथ ही सीमा के प्रश्न को भी बातचीत के ज़रिए ही हल किया जा सकता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति में किसी भी प्रकार की प्रतिकूल स्थिति का बुरा असर हमारी द्विपक्षीय बातचीत पर पड़ता है. उन्होंने कहा था कि ''टकराव वाले क्षेत्रों में डिस्इंगेजमेंट के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फ़ॉरवर्ड डेपलॉयमेंट्स (सैन्य तैनाती) जो एक-दूसरे के बहुत नज़दीक हैं, वो दूर हो जायें और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थायी चौकियों पर लौट जाएं.'' राजनाथ सिंह ने दोनो सेनाओं के कमांडरों के बीच हुई बातचीत का भी ज़िक्र किया था. राजनाथ सिंह ने कहा था, ''अभी तक सीनियर कमांडर्स के स्तर पर नौ दौर की बातचीत हो चुकी है. हमारे इस दृष्टिकोण और बातचीत के फ़लस्वरूप चीन के साथ पैंगोंग त्सो झील के उत्तर और दक्षिण छोर पर सेनाओं के पीछे हटने का समझौता हो गया है.'' उन्होंने सदन में यह स्पष्ट शब्दों में कहा था कि - इस बातचीत में हमने कुछ भी खोया नहीं है. जबकि सच तो यह है कि भारत ने समझौते में रणनीतिक चोटियों पर से अपना पोजिशन खोया है भले ही समझौते में जमीन खोने का जिक्र नहीं हो लेकिन सच तो यह है कि चीन ने पहले भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया और फिर यथास्थिति को औपचारिक रूप देते हुए भारत पर बफर जोन थोप दिया. सच तो यह है कि यह एक एकतरफा समझौता है जिसमें
चीन की दोहरी-तिहरी जीत हुई है। पहली- गलवान सौदा एलएसी में थोड़े बदलाव के साथ तीन किमी चौड़ा बफर जोन बनाता है। भारत अपने पैट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 14 तक पहुंच खो देता है। दूसरी- पैंगॉन्ग सौदा भारत को रणनीतिक कैलाश हाइट्स को खाली करने के लिए मजबूर करता है, जबकि तीसरी- गोगरा सौदा पांच किमी का बफर बनाता है, जिससे भारत पीपी-17 ए तक पहुंच खो देता है।
मित्रों, इस बारे में रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी भी रक्षा मंत्री से सहमत नहीं हैं। उन्होंने इस मामले में ट्वीट किया है, ''किसी भी सौदे में कुछ दिया जाता है और कुछ लिया जाता है. लेकिन भारत ने चीन के साथ जो समझौता (पैंगोंग इलाक़े को लेकर) किया है वो बेहद सीमित है.'' रणनीतिक और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं कि दो देशों के बीच समझौते लेन-देन पर आधारित होते हैं. लेकिन चीन के साथ भारत का समझौता केवल पैंगोंग इलाक़े तक सीमित है, और भारत की पेशकश है. ऐसा लगता है कि सर्दियों से पहले चीन ने जो शर्तें रखी थीं भारत ने उसे मान लिया है और पैगोंग इलाक़े को लेकर समझैता कर नो मैन्स लैंड बनाने पर तैयार हो गया है. एक अन्य ट्वीट में उन्होंने सवाल किया, ''चीन के आक्रामक रवैये के ख़िलाफ़ भारत खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि वो युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है. ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताक़त कैलाश रेंज कंट्रोल को हारने को लेकर इस तरह के एक सीमित समझौते के लिए भारत क्यों तैयार हुआ?''
मित्रों, समझ में नहीं आता कि भारत चीन के समक्ष क्यों झुका? क्या अमेरिका में सत्ता परिवर्तन ने मोदी को हिला कर रख दिया, या फिर रूस की तरफ से कोई दबाव था, या फिर अफगानिस्तान की मौजूदा हालत ने मोदी के हाथ-पाँव फुला दिए? कहाँ गयी वो आँखें जो चीन की आँखों-में आँखें डालकर बात करनेवाली थीं? कहाँ हैं उस कविता के कटे-फटे पृष्ठ जिसको मोदी ने जनता को लुभाने के लिए कभी पढ़ा था-मैं देश नहीं झुकने दूंगा, मैं देश नहीं बिकने दूंगा? माननीय रक्षा मंत्री जी से हमें न तो पहले उम्मीद थी और न अब है क्योंकि वे तो सिर्फ कड़ी निंदा करना जानते हैं. हे गलवान के अमर शहीदों हमें माफ करना क्योंकि हमारी सरकार ने आपकी शहादत को भुला दिया है। पहले कांग्रस सरकार ऐसा करती थी अब भाजपा सरकार भी वही कर रही है.
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