शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
मनमोहन सिंह का राष्ट्रवाद
मित्रों, कभी संत कबीर ने कहा था कि
मैं तो कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ,
गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊँ.
लेकिन आज कोई कबीर का युग तो है नहीं सो राम के बदले लोग-बाग़ अपने स्वार्थ के लिए वक्त के अनुसार किसी-न-किसी प्रभावशाली इन्सान या परिवार का कुत्ता बनते रहते हैं. ऐसे ही एक कुत्ते हैं मनमोहन सिंह. नाम तो सुना ही होगा. वही मनमोहन सिंह जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भारत के एकमात्र रिमोट संचालित प्रधानमंत्री थे. बल्कि उनको उनकी इसी विशेषता के कारण प्रधानमंत्री बनाया गया था. रिमोट ऑन चालू, रिमोट ऑफ़ बंद.
मित्रों, कल इन्हीं मौनमोहन सिंह ने बोला है शायद नकली गाँधी परिवार ने आदेश दिया होगा. मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी पर नकली राष्ट्रवादी होने के आरोप लगाए हैं. एक समय कांग्रेस के महा राष्ट्रवादी अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा. इस एक वाक्य से आप समझ सकते हैं कि कांग्रेसियों के लिए राष्ट्र क्या होता है और तदनुसार राष्ट्रवाद क्या होता है. अब इंदिरा जी तो रही नहीं सो अब उनके लिए भारत की परिभाषा गाँधी फैमिली इज इंडिया एंड इंडिया इज गाँधी फैमिली हो गया है. इसी फिरोज गाँधी परिवार का लिखा हुआ भाषण पढ़ते हुए मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने पहले भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है अर्थात मुसलमानों का है. शायद गाँधी परिवार के लिए अल्पसंख्यकवाद ही राष्ट्रवाद है इसलिए उसने भाषण में ऐसा लिखकर मनमोहन को पढने को दिया था.
मित्रों, मनमोहन सिंह को दुःख है, इस बात का अपार दुःख है कि आज नेहरु की गलतियों को उनकी गलती कहा जा रहा है. अरे भाई नेहरु ने गलतियाँ की थी इसलिए जो गलतियाँ नेहरु की थी हमेशा नेहरु की रहेंगी. किसी शायर ने क्या खूब कहा है-लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई. कहने का मतलब यह कि जो गलतियाँ नेहरु ने १९४६ से १९६४ के बीच अपने प्रधानमंत्रित्व काल में की थीं उसके दुष्परिणाम अब तक आ रहे हैं फिर क्यों न नेहरु की गलतियों को उनकी गलती कहा जाए? क्या नेहरु पैगम्बर थे जो उनकी गलतियों को गलत कहने पर ईशनिंदा हो जाएगी. फिर भारत में तो ईशनिंदा कानून है भी नहीं.
मित्रों, नेहरु ने सेना को २५ लाख से कम करके ३ लाख कर दिया परिणाम भारत को १९४७ में पीओके और १९६२ में पूरा अक्साई चिन और अरुणांचल व लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा खोना पड़ा, तिब्बत तो हाथ से गया सो अलग. नेहरु को आइजनहावर ने परमाणु बम देने की पेशकश इस ताकीद के साथ की थी कि चीन कभी भी भारत पर हमला कर सकता है लेकिन नेहरु नहीं माने. नेहरु को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट ऑफर की गई थी और उन्होंने उसे चीन को दिलवा दिया था परिणाम आज चीन एक बार फिर भारत पर हमले की ताक में है. तो ये तो थी महान कूटनीतिज्ञ नेहरु की विदेश नीति.
मित्रों, आतंरिक नीतियों के मोर्चे पर भी नेहरु खासे असफल रहे. नेहरु ने समान नागरिक संहिता को लागू नहीं किया परिणाम आज फिर से इस्लाम भारत में स्वाभाविक तौर पर अलगाववादी हो रहा है. नेहरु को नोबल चाहिए था नहीं मिला तो उन्होंने खुद को ही भारत रत्न दे डाला. नेहरु ने धारा ३७० लागू किया परिणाम १९९० में देखने को मिला जब कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से भगा दिया गया और वो अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने के लिए विवश हो गए. नेहरु ने अम्बेडकर जी की बातों को अनसुना करके भारत में मुसलमानों को रहने दिया परिणाम आज कश्मीर, केरल और बंगाल सहित देश के कई हिस्सों जिसमें राजधानी दिल्ली भी शामिल है हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा है.
मित्रों, कहने का तात्पर्य यह कि जब नेहरु की गलतियों का खामियाजा देश को आज भी भुगतना पड़ रहा है तो फिर नेहरु की आलोचना क्यों न की जाए? मनमोहन के लिए भले ही नेहरु भगवान हों बांकी सबके लिए वो न तो तब भगवान थे और न ही आज हैं. रही बात चीन की तो चीन ने अपने सीमावर्ती ईलाकों में रेल और सड़कों का सबसे ज्यादा विकास मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते किया था तो मनमोहन सिंह ने उसे रोका क्यों नहीं? मान लिया नहीं रोक सकते थे लेकिन उनको भारत-चीन सीमा पर भारत की तरफ से रेल और सड़क का विकास करने के लिए कदम उठाने से किसने रोका था? क्यों देहरादून तक जाने के लिए भी २०१४ तक एक ही सुरंग थी वो भी अंग्रेजों के ज़माने की? क्यों चीन के साथ एक-के-बाद एक आर्थिक समझौते करके मनमोहन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चीन पर निर्भर कर दिया था बजाए आत्मनिर्भर बनाने के?
मित्रों, मनमोहन सिंह का एक और आरोप है बेरोजगारी बढ़ने और अमीरी-गरीबी के बीच खाई बढ़ने का. तो क्या अमीरी-गरीबी के बीच की खाई पहली बार बढ़ी है? जबसे कथित आर्थिक सुधार शुरू हुए हैं यह खाई और बढ़ गई है. आर्थिक सुधार किसने शुरू किए थे? कभी चंद्रशेखर जी ने नरसिंह राव से मनमोहन सिंह के बारे में कहा था कि मैंने जो चाकू सब्जी काटने के लिए लिया था आप तो उसी से देश के कलेजे का आपरेशन कर रहे हैं. और जब मनमोहन ने आर्थिक सुधार शुरू किए थे उस समय जब कहा गया था कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी तब तो उन्होंने इन आरोपों को अनसुना कर दिया था. जब सबकुछ निजी हाथों में चला जाएगा तो सरकार कहाँ से रोजगार देगी, कहाँ से पैसे लाएगी और निजी क्षेत्र अपना मुनाफा देखेगा या लोगों को रोजगार देगा?
मित्रों, ये वही मनमोहन सिंह हैं जिन्होंने चंद्रशेखर जी से खुद पैरवी करके खुद को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष बनवाया था वो भी तब जब चंद्रशेखर जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे. ऐसे सत्तालोलुप व्यक्ति की बात पर हम क्यों विश्वास करें? एक तरफ मनमोहन चीन के भारत में घुस आने का ताना देंते हैं वो वहीँ दूसरी तरफ वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए रक्षा बजट में घातक कटौती करते हैं. यहाँ तक कि कश्मीर में ड्यूटी कर रहे अर्द्धसैनिक बलों को राईफल के बदले डंडा थमा देते हैं.
मित्रों, रही बात पाकिस्तान जाकर मोदी के बिरयानी खाने की तो मनमोहन आज तक मोदी की नीति को समझ ही नहीं पाए हैं. मोदी पहले बात से समझाते है फिर लात का इस्तेमाल करते हैं. यह मोदी की विदेश नीति का ही परिणाम है कि आज पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है और दर-दर पर भीख मांगता फिर रहा है फिर भी उसे भीख नहीं मिल रही वर्ना आपके समय तो आपका आवास कश्मीरी आतंकवादियों के कहकहों से गुलजार रहता था.
मित्रों, अंत में मैं माननीय मनमोहन सिंह जी से जिनके कार्यकाल को चुपचाप रहकर घोटालेबाजों का साथ देने और घोटालों के लिए ज्यादा जाना जाता है अनुरोध करूँगा कि वो जहाँ तक हो सके आदतन मौन रहें. काहे बुढ़ापे में अपनी बेईज्जती करवाने को उतारू हैं? नेहरु-गाँधी परिवार एक डूबता जहाज है और डूबकर रहेगा. अब कभी इंडिया में गाँधी फैमिली इज इंडिया एंड इंडिया इज गाँधी फैमिली नहीं होगा क्योंकि भारत के हिन्दू उनकी सच्चाई को जान चुके हैं, समझ चुके हैं और वो भी अच्छी तरह से.
बुधवार, 16 फ़रवरी 2022
अब कैसे छूटे राम रट लागी
मित्रों, आज हिन्दू धर्म के महानतम संतों में से एक संत रैदास जी की जयंती है. यूं तो हिन्दू धर्म में बहुत से महान संत हुए हैं लेकिन रैदास महानतम थे. मैं उनको इसलिए महानतम कह रहा हूँ क्योंकि संत रैदास के जीविकापार्जन के साधन को तत्कालीन समाज में बहुत सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता था. तत्कालीन शासक जो मुसलमान थे की तरफ से उनको काफी लालच दिया गया लेकिन राम के अखंड व अटल भक्त रैदास बस इतना ही कहते रहे कि
अब कैसे छूटे राम रट लागी?
मित्रों, संत रैदास उन रामानंद जी के शिष्य थे जिनके बारे में कहा जाता है कि भक्ति द्राविड़ उपजी लाए रामानंद. रामानंद जी ने बिना जातीय भेदभाव के काशी में अपने शिष्य बनाए. उनके शिष्यों में सुरसुरानंद ब्राह्मण, पीपा राजपूत, सेन नाई, धन्ना जाट, कबीर जुलाहा और रैदास चमार तक शामिल थे. रामानंद जी के शिष्यों के बारे में एक दोहा काफी लोकप्रिय है
अनतानन्द, कबीर, सुखा, सुरसुरा, पद्वावती, नरहरि,
पीपा, भावानन्द, रैदासु, धना, सेन, सुरसरि की धरहरि.
कितने महान थे रामानंद जिन्होंने ईश्वरभक्ति के अनमोल खजाने को सबके लिए खोल दिया था और कहा
जाति-पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि के होई.
मध्यकालीन समाज में यह बहुत बड़ी घटना थी, शायद सबसे बड़ी. यहाँ हम आपको बता दें कि रामानंद ब्राह्मण थे. श्री रामानंद ने रामभक्ति के माध्यम से एक सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। सामाजिक विषमताओं और बाहरी आडम्बरों में जकड़े समाज में पुनरुत्थान की ओर पहला कदम बढ़ाने वाले रामानंद थे। रामभक्ति के माध्यम से उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक समरसता तथा समन्वय की भावना पैदा करने का एक सफल प्रयास किया। श्री रामानंद ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ श्री वैष्णवमताज भास्कर में प्रचलित ऊंच-नीच की भावना पर क्रूर प्रहार किया है।
मित्रों, तो रामानंद जी जैसे महान गुरु के महान शिष्य रैदास जी के बारे में जितना भी कहा जाए कम है. रामानंद के अधिकतर शिष्यों की तरह रैदास भी ईश्वर यानि आपने राम के निर्गुण रूप के उपासक थे वे कहते भी हैं
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति। रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
मित्रों, उनकी भक्ति कितनी अटल थी इसके बारे में एक प्रसंग का बार-बार जिक्र किया जाता है. हुए यह कि गुरु रविदास का नाम बनारस शहर और आसपास के इलाकों में बहुत प्रसिद्ध हो चुका था। एक बार कुछ यात्री पंडित गंगाराम के साथ हरिद्वार में कुंभ के पर्व पर हर की पैड़ी में स्नान करने जा रहे थे। जब वे बनारस पहुँचे तो उनके मन में प्रेम उमड़ आया कि गुरु रविदास से भेंट करके फिर आगे को चलेंगे। वे गुरु रविदास का निवास स्थान पूछकर सीर गोवर्धनपुर में पहुँच गए। सभी यात्री गुरु रविदास के दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए। गुरु रविदास ने पूछा कि कहिए, आप कहाँ जा रहे हैं? पंडित गंगाराम ने बताया कि हम हरिद्वार में कुंभ स्नान के लिए जा रहे हैं। गुरु रविदास ने यात्रियों से कहा कि गंगाजी के लिए मेरी ओर से यह कसीरा ले जाओ और यह भेंट गंगाजी को तब देना जब वे हाथ निकालकर लें, नहीं तो इसे वैसे ही मत देना। गुरु रविदास की भेंट लेकर यात्रीगण हरिद्वार की तरफ रवाना हो गए। कुछ दिनों में यात्रीगण हरिद्वार पहुँच गए। उन्होंने गंगाजी के तट पर यात्रियों की भारी भीड़ देखी। गंगा में स्नान करने के बाद पंडित गंगाराम ने कहा, “हे माता गंगाजी, आपके लिए एक कसीरा भेंट के रूप में रविदास ने भेजी है। माता, अपना हाथ बाहर निकालें और इस भेंट को स्वीकार करें।” यह सुनते ही गंगाजी प्रकट हो गई और हाथ बढ़ाकर उन्होंने कसीरा ले लिया। गंगाजी ने अपने हाथ का एक हीरे जड़ित कंगन गुरु रविदास के लिए भेंट किया और गंगाराम से कहा कि मेरी यह भेंट गुरु रविदास को पहुँचा देना।
ले कंगन अति हर्ष युत, देखत सब विसमाद।
ऐसे न कबहुं भयो, गंगा को प्रसादि॥
गंगाराम सहित सभी यात्री बहुत हैरान हुए कि इस प्रकार आज तक किसी को गंगाजी ने भेंट नहीं दी थी। गंगाजी के दर्शन करके और स्नान करके पंडित गंगाराम वापस अपने घर पहुँच गया। गंगाराम ने अपनी पत्नी को प्रत्यक्ष दर्शन की सारी कथा सुनाई और गंगाजी का दिया हुआ कंगन अपनी पत्नी को रखने के लिए दे दिया। कुछ दिनों के बाद पंडित गंगाराम की पत्नी ने कहा कि इस कंगन को बाजार में बेच दिया जाए। यह बड़ी कीमत में बिक जाएगा। पैसे लेकर अपना जीवन मजे से गुजारेंगे। हमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी। जब पंडित गंगाराम वह कंगन बाजार में बेचने के लिए गया तो कंगन की जितनी कीमत थी, उसकी कीमत के बराबर किसी के पास धन नहीं था। जो भी सर्राफ कंगन को देखता था, वह हैरान हो जाता था और कहता था कि ऐसा कंगन हमने पहले कभी नहीं देखा।
तब कुटवारै सुध दई वाकै हाट बिकाए।
भुखन कंगन हाथ को बेचत जन इक आए॥
इस बात की खबर सिपाही के पास पहुँच गई कि एक आदमी बहुमूल्य कंगन बेचने की कोशिश कर रहा है। सिपाही गंगाराम को पकड़कर हाकिम के पास ले गए। हाकिम के पूछने पर गंगाराम ने सारी कथा कह सुनाई कि यह कंगन गंगा माता के हाथ का है, जिसे गंगा माता ने गुरु रविदास को पहुँचाने के लिए दिया था। सारी बातें सुनकर हाकिम चकित रह गया। हाकिम ने कहा कि गुरु रविदास को यहाँ बुलाया जाए और उनकी राय ली जाए, तब गुरु रविदास को सादर सभा में बुलाकर कंगन के बारे में पूछा गया। गुरु रविदास ने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। अभी एक बरतन में गंगा जल डालकर और कंगन उसमें डालकर ऊपर से कपड़ा देकर ढक दें। मन चंगा तो कठौती में गंगा। गंगाजी इस बात का फैसला कर देंगी। जैसा उन्होंने कहा, सारी सामग्री उसी ढंग से तैयार कर दी गई। तब गुरु रविदास ने गंगाजी को निर्णय करने के लिए कहा। जब कपड़ा बरतन से हटाया गया तो दो कंगन नजर आए। हाकिम और बाकी लोग यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए। गुरु रविदास ने दोनों कंगन गंगाराम को दे दिए।
मित्रों, ऐसे थे हमारे संत रैदास. रैदास ने आजीवन सहज भक्ति की और सहज भक्ति का उपदेश भी दिया. उनको न तो मंदिर की जरुरत थी न ही देव प्रतिमाओं की क्योंकि उनके लिए तो उनके राम चन्दन थे और वे पानी थे जिसकी सुगंधी उनके अंग-अंग से आती थी. रैदास ऐसा समाज चाहते थे जिसमें कोई भूख से न मरे और सारे लोग मिलजुलकर प्रेमपूर्वक निवास करें.
ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सबन को अन्न.
छोट बड़ों सब सम वसै, रविदास रहे प्रसन्न
उनका व्यक्तित्व इतना महान था कि मेवाड़ की महारानी और महाराणा प्रताप की चाची मीराबाई ने उनको गुरु स्वीकार करते हुए उनसे ही भक्ति की दीक्षा ली. मीरा कहती है गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी. ऐसे महान संत को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन. अगर वे आज जीवित होते तो मैं अपने रक्त से उनके पांव पखारता.
गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022
राहुल गांधी की ऐतिहासिक बकवास
मित्रों, भारतीय राजनीति में राहुल गाँधी एक ऐसे शख्स हैं जिनको अगर हम भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा विदूषक कहें तो गलत नहीं होगा. कभी यह आदमी आलू को सोना बनाने लगता है तो कभी पिछत्तिस बोलकर नई अंक प्रणाली की स्थापना करता है तो कभी भारत की आबादी को १०० अरब बता देता है. यह आदमी कब क्या बोल जाए कोई नहीं जानता हालांकि इसके बोलने से भारत की जनता का मुफ्त में मनोरंजन जरूर हो जाता है.
मित्रों, कल माननीय राष्ट्रपति के अभिभाषण के जवाब में इसने जो भाषण संसद में किया वो भी किसी बकवास से किसी भी तरह से कम नहीं था. इसने वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी को शहंशाह और अलोकतांत्रिक कहा जबकि सच्चाई यह है कि किसानों पर सैंकड़ों बार गोलीबारी कांग्रेस ने करवाई, सैंकड़ों बार विरोधी दलों की सरकारों को राष्ट्रपति शासन लगाकर बर्खास्त नेहरु और इंदिरा ने किया, यहाँ तक कि साधू-संतों पर भी इंदिरा गाँधी ने संसद के सामने गोलीबारी करवाई, देश में एक मात्र बार आतंरिक आपातकाल भी इंदिरा गाँधी ने लगाया फिर भी शहंशाह मोदी हो गए. मोदी तो इतने लोकतान्त्रिक हैं कि बंगाल और केरल में अपने कार्यकर्ताओं को हत्या तक को मूकदर्शक बने देख रहे हैं राष्ट्रपति शासन नहीं लगा रहे,शाहीन बाग़ और सिंघू बोर्डर भी उनसे खाली नहीं होता.
मित्रों, राहुल जी ने अपने भाषण में एक आरोप यह लगाया है कि भारत सरकार की गलत नीतियों के कारण चीन और पाकिस्तान आज एक हो गए हैं. हद है यार चीन और पाकिस्तान कब एक नहीं थे जो आज हो गए? फिर चीन की 2025 में ताइवान और 2040 में अरुणाचल पर कब्जा करने की योजना है इसे सारी दुनिया जानती है लेकिन राहुल जी नहीं जानते तभी तो उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ २००८ में समझौता किया था.
मित्रों, राहुल जी ने यह आरोप भी लगाया है कि भारत कभी राष्ट्र नहीं था और आज भी नहीं है बल्कि राज्यों का संघ है तो हम राहुल जी बता देना चाहेंगे कि आज से हजारों साल पहले श्रीमद विष्णु पुराण में घोषणा की गई थी कि
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ।।
मित्रों, अपनी एक अन्य पंक्ति में राहुल जी ने आरोप लगाया कि दलितों का ३००० सालों से शोषण हो रहा है. लगता है राहुल जी ने सिर्फ इटली का इतिहास पढ़ा है भारत का नहीं पढ़ा. जो ८०० सालों तक ख़ुद गुलाम रहे और धर्म और प्रजा की रक्षा के लिए शहादत देते रहे वो भला कैसे दूसरों का शोषण करेंगे? चाहे तैमूर से युद्ध हो या नादिरशाह या अब्दाली से या फिर शिवाजी या महाराणा प्रताप की सेना हो इतिहास गवाह है कि ब्राह्मणों से लेकर दलितों तक ने एकजुट होकर विधर्मियों का सामना किया. १८५७ के विद्रोह में गंगू मेहतर उर्फ़ गंगाराम पहलवान के योगदान को भला कोई कैसे भुला सकता है?
मित्रों, रही बात राहुल जी के परनाना नेहरु की जेलयात्रा की तो नेहरूजी किस तरह जेल में रहे पूरी दुनिया जानती है. इस सम्बन्ध में मेरे मित्र श्री इन्द्रेश उनियाल जी ने अपने एक आलेख नाभा का नाटक में लिखा है कि नेहरु जी को जब सितम्बर 22, 1923 को नाभा की रियासत में अवैध रूप से प्रवेश करने और आंदोलन मे भाग लेने के लिये 2 वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई तब मोतीलाल नेहरु खासे परेशान हो गए और गिरफ़्तारी के ३ दिन बाद ही वायसराय से बात कर नेहरु जी के लिए नाभा जेल में पांच सितारा सुविधा उपलब्ध करवाई. कहाँ नेहरू और कहाँ सावरकर की जेल यात्रा!
मित्रों, राहुल जी ने दावा किया है कि उनकी दादी और उनके पिता देश के लिए शहीद हुए जबकि सच्चाई यह है कि उनकी दादी और पिता खुद उनके द्वारा पैदा किए गये आतंकवाद की भेंट चढे. राहुल जी यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज भी उनकी पार्टी जेहादी और खालिस्तानी आतंकियों का खुलकर समर्थन करती है.
मित्रों, रही बात बढती बेरोजगारी की तो जब तक जनसँख्या को कानून बनाकर कठोरतापूर्वक नियंत्रित नहीं किया जाएगा कोई माई का लाल भारत से बेरोजगारी दूर नहीं कर सकता. फिर कोरोना काल में भारत सरकार लोगों की जान बचाए या नौकरी दे? फिर सरकारी क्षेत्र में नौकरी की गुन्जाईश है ही कितनी?
मित्रों, राहुल जी ने अपने भाषण में भाजपा सांसद कमलेश पासवान के बारे में कहा है कि वो गलत पार्टी में सही व्यक्ति हैं जबकि सच्चाई यह है कि राहुल जी खुल गलत पार्टी में गलत व्यक्ति हैं. वर्षों पहले जब अटल जी के बारे में भी ऐसा ही कहा गया था तब अटल जी ने कहा था कि वे सही पार्टी में सही व्यक्ति हैं क्योंकि बबूल के पेड़ पर आम नहीं फलता.
मित्रों, अंत में मैं एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र करना चाहूँगा. नेहरू आइन्सटीन से मिलने गए. मुलाकात के बाद पत्रकारों ने जब पूछा कि दोनों में क्या बातचीत हुई तो नेहरु जी ने कहा कि उन्होंने भी बकवास की और बदले में मैंने भी बकवास की. कहने का तात्पर्य यह है कि राहुल गाँधी खानदानी बकवासी है और अब तक एक-से-एक ऐतिहासिक बकवास कर चुके हैं और निश्चित रूप से आगे भी करते रहेंगे.
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