शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
मनमोहन सिंह का राष्ट्रवाद
मित्रों, कभी संत कबीर ने कहा था कि
मैं तो कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ,
गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊँ.
लेकिन आज कोई कबीर का युग तो है नहीं सो राम के बदले लोग-बाग़ अपने स्वार्थ के लिए वक्त के अनुसार किसी-न-किसी प्रभावशाली इन्सान या परिवार का कुत्ता बनते रहते हैं. ऐसे ही एक कुत्ते हैं मनमोहन सिंह. नाम तो सुना ही होगा. वही मनमोहन सिंह जिनके बारे में कहा जाता है कि वे भारत के एकमात्र रिमोट संचालित प्रधानमंत्री थे. बल्कि उनको उनकी इसी विशेषता के कारण प्रधानमंत्री बनाया गया था. रिमोट ऑन चालू, रिमोट ऑफ़ बंद.
मित्रों, कल इन्हीं मौनमोहन सिंह ने बोला है शायद नकली गाँधी परिवार ने आदेश दिया होगा. मनमोहन सिंह ने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी पर नकली राष्ट्रवादी होने के आरोप लगाए हैं. एक समय कांग्रेस के महा राष्ट्रवादी अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा. इस एक वाक्य से आप समझ सकते हैं कि कांग्रेसियों के लिए राष्ट्र क्या होता है और तदनुसार राष्ट्रवाद क्या होता है. अब इंदिरा जी तो रही नहीं सो अब उनके लिए भारत की परिभाषा गाँधी फैमिली इज इंडिया एंड इंडिया इज गाँधी फैमिली हो गया है. इसी फिरोज गाँधी परिवार का लिखा हुआ भाषण पढ़ते हुए मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने पहले भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है अर्थात मुसलमानों का है. शायद गाँधी परिवार के लिए अल्पसंख्यकवाद ही राष्ट्रवाद है इसलिए उसने भाषण में ऐसा लिखकर मनमोहन को पढने को दिया था.
मित्रों, मनमोहन सिंह को दुःख है, इस बात का अपार दुःख है कि आज नेहरु की गलतियों को उनकी गलती कहा जा रहा है. अरे भाई नेहरु ने गलतियाँ की थी इसलिए जो गलतियाँ नेहरु की थी हमेशा नेहरु की रहेंगी. किसी शायर ने क्या खूब कहा है-लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई. कहने का मतलब यह कि जो गलतियाँ नेहरु ने १९४६ से १९६४ के बीच अपने प्रधानमंत्रित्व काल में की थीं उसके दुष्परिणाम अब तक आ रहे हैं फिर क्यों न नेहरु की गलतियों को उनकी गलती कहा जाए? क्या नेहरु पैगम्बर थे जो उनकी गलतियों को गलत कहने पर ईशनिंदा हो जाएगी. फिर भारत में तो ईशनिंदा कानून है भी नहीं.
मित्रों, नेहरु ने सेना को २५ लाख से कम करके ३ लाख कर दिया परिणाम भारत को १९४७ में पीओके और १९६२ में पूरा अक्साई चिन और अरुणांचल व लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा खोना पड़ा, तिब्बत तो हाथ से गया सो अलग. नेहरु को आइजनहावर ने परमाणु बम देने की पेशकश इस ताकीद के साथ की थी कि चीन कभी भी भारत पर हमला कर सकता है लेकिन नेहरु नहीं माने. नेहरु को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट ऑफर की गई थी और उन्होंने उसे चीन को दिलवा दिया था परिणाम आज चीन एक बार फिर भारत पर हमले की ताक में है. तो ये तो थी महान कूटनीतिज्ञ नेहरु की विदेश नीति.
मित्रों, आतंरिक नीतियों के मोर्चे पर भी नेहरु खासे असफल रहे. नेहरु ने समान नागरिक संहिता को लागू नहीं किया परिणाम आज फिर से इस्लाम भारत में स्वाभाविक तौर पर अलगाववादी हो रहा है. नेहरु को नोबल चाहिए था नहीं मिला तो उन्होंने खुद को ही भारत रत्न दे डाला. नेहरु ने धारा ३७० लागू किया परिणाम १९९० में देखने को मिला जब कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से भगा दिया गया और वो अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने के लिए विवश हो गए. नेहरु ने अम्बेडकर जी की बातों को अनसुना करके भारत में मुसलमानों को रहने दिया परिणाम आज कश्मीर, केरल और बंगाल सहित देश के कई हिस्सों जिसमें राजधानी दिल्ली भी शामिल है हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा है.
मित्रों, कहने का तात्पर्य यह कि जब नेहरु की गलतियों का खामियाजा देश को आज भी भुगतना पड़ रहा है तो फिर नेहरु की आलोचना क्यों न की जाए? मनमोहन के लिए भले ही नेहरु भगवान हों बांकी सबके लिए वो न तो तब भगवान थे और न ही आज हैं. रही बात चीन की तो चीन ने अपने सीमावर्ती ईलाकों में रेल और सड़कों का सबसे ज्यादा विकास मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते किया था तो मनमोहन सिंह ने उसे रोका क्यों नहीं? मान लिया नहीं रोक सकते थे लेकिन उनको भारत-चीन सीमा पर भारत की तरफ से रेल और सड़क का विकास करने के लिए कदम उठाने से किसने रोका था? क्यों देहरादून तक जाने के लिए भी २०१४ तक एक ही सुरंग थी वो भी अंग्रेजों के ज़माने की? क्यों चीन के साथ एक-के-बाद एक आर्थिक समझौते करके मनमोहन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को चीन पर निर्भर कर दिया था बजाए आत्मनिर्भर बनाने के?
मित्रों, मनमोहन सिंह का एक और आरोप है बेरोजगारी बढ़ने और अमीरी-गरीबी के बीच खाई बढ़ने का. तो क्या अमीरी-गरीबी के बीच की खाई पहली बार बढ़ी है? जबसे कथित आर्थिक सुधार शुरू हुए हैं यह खाई और बढ़ गई है. आर्थिक सुधार किसने शुरू किए थे? कभी चंद्रशेखर जी ने नरसिंह राव से मनमोहन सिंह के बारे में कहा था कि मैंने जो चाकू सब्जी काटने के लिए लिया था आप तो उसी से देश के कलेजे का आपरेशन कर रहे हैं. और जब मनमोहन ने आर्थिक सुधार शुरू किए थे उस समय जब कहा गया था कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी तब तो उन्होंने इन आरोपों को अनसुना कर दिया था. जब सबकुछ निजी हाथों में चला जाएगा तो सरकार कहाँ से रोजगार देगी, कहाँ से पैसे लाएगी और निजी क्षेत्र अपना मुनाफा देखेगा या लोगों को रोजगार देगा?
मित्रों, ये वही मनमोहन सिंह हैं जिन्होंने चंद्रशेखर जी से खुद पैरवी करके खुद को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष बनवाया था वो भी तब जब चंद्रशेखर जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे. ऐसे सत्तालोलुप व्यक्ति की बात पर हम क्यों विश्वास करें? एक तरफ मनमोहन चीन के भारत में घुस आने का ताना देंते हैं वो वहीँ दूसरी तरफ वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए रक्षा बजट में घातक कटौती करते हैं. यहाँ तक कि कश्मीर में ड्यूटी कर रहे अर्द्धसैनिक बलों को राईफल के बदले डंडा थमा देते हैं.
मित्रों, रही बात पाकिस्तान जाकर मोदी के बिरयानी खाने की तो मनमोहन आज तक मोदी की नीति को समझ ही नहीं पाए हैं. मोदी पहले बात से समझाते है फिर लात का इस्तेमाल करते हैं. यह मोदी की विदेश नीति का ही परिणाम है कि आज पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है और दर-दर पर भीख मांगता फिर रहा है फिर भी उसे भीख नहीं मिल रही वर्ना आपके समय तो आपका आवास कश्मीरी आतंकवादियों के कहकहों से गुलजार रहता था.
मित्रों, अंत में मैं माननीय मनमोहन सिंह जी से जिनके कार्यकाल को चुपचाप रहकर घोटालेबाजों का साथ देने और घोटालों के लिए ज्यादा जाना जाता है अनुरोध करूँगा कि वो जहाँ तक हो सके आदतन मौन रहें. काहे बुढ़ापे में अपनी बेईज्जती करवाने को उतारू हैं? नेहरु-गाँधी परिवार एक डूबता जहाज है और डूबकर रहेगा. अब कभी इंडिया में गाँधी फैमिली इज इंडिया एंड इंडिया इज गाँधी फैमिली नहीं होगा क्योंकि भारत के हिन्दू उनकी सच्चाई को जान चुके हैं, समझ चुके हैं और वो भी अच्छी तरह से.
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