गुरुवार, 2 जून 2022

नीतीश, तेजस्वी और प्रशांत किशोर

मित्रों, अरस्तू ने कहा था कि लोकतंत्र मूर्खो का शासन है और ठीक कहा था. वर्तमान बिहार और भारत के सन्दर्भ में अगर हम देखें तो. जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश में कलक्टर, डॉक्टर, पुलिस अधीक्षक, न्यायाधीश, सेनाध्यक्ष, वैज्ञानिक परीक्षा के बाद ही चुने जाते हैं. यानि देश का हर कर्मचारी कोई न कोई परीक्षा पास करने के बाद ही अपना पद पा सकता है. मगर देश की बागडोर अनपढ़ों के हाथ में क्यों? गांव वार्ड सदस्य, सरपंच, प्रधान, विधायक, नगर पालिका का पार्षद, नगर पालिका का अध्यक्ष, नगर निगम का मेयर, संसद के सदस्य, लोकसभा के सदस्य, यहां तक कि मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का भी यही हाल है. आखिर इनकी परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? क्या इस देश का रक्षा मंत्री सेना में था? देश का स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर क्यों नहीं? देश का शिक्षा मंत्री अध्यापक क्यों नहीं? वक्त है अपनी आंखों से परदा हटाने का. मित्रों, इसी तरह प्रसिद्ध आइरिश लेखक, पत्रकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने प्रजातंत्र की व्याख्या कुछ इसी तरह से की है- प्रजातंत्र मूर्खों का, मूर्खों के लिए, मूर्खों द्वारा शासन है. आज हमारे देश में जिस तरीके का है शायद इसी बात की कल्पना कर ही प्रजातंत्र को ऐसे पारिभाषित की गयी है. प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के वोट की कीमत आँकी जाती है और उसके गणना के हिसाब से ही सरकारें बना करती हैं. वोट देने वालों में अधिकांश लोग राजनीति से बिल्कुल अनजान होते हैं, उन्हें पता हीं नहीं होता कि हम कैसी सरकार बना रहे हैं और ना ही वे जानने का प्रयास ही करते हैं. अधिकांश लोगों के जेहन में तत्कालिक घटनाक्रम ही अंकित होता है और उसी आधार पर ही सरकार बनाने के प्रयास किए जाते हैं, मतलब कि इस मामले में जनता की याददाश्त बहुत ही कमजोर होती है. चुनाव के समय जो मुद्दा सबसे ज़्यादा चर्चित होता है, जो जनता के विचार को झकझोरता है उसी मुद्दे को आधार बना कर ही जनता अपने वोट का निर्धारण करती है. जनभावनाओं के ज्वार पर बनने वाली सरकारें भी अच्छी तरह से जानती हैं कि जिस मुद्दे के आधार पर हमारी सरकारें बनी हैं वो मुद्दा कुछ समय बाद ही जनता के दिमाग़ से निकल जाएगा और फिर वे अपनी मनमानी पर उतर आती हैं और जनता बाद में ठगी सी महसूस करती रह जाती है. मित्रों, क्या आप जानते हैं कि अपने देश को कौन लोग चला रहे हैं? अपने देश भारत को मात्र १२५० परिवार चला रहे हैं. ५ साल जब एक पार्टी हमें लूट चुकी होती है तब हम उसको सबक सिखाने के लिए फिर से उसी को जिता देते हैं जिसको हमने ५ साल पहले सत्ता से हटाया था और यह सिलसिला लगातार चलता रहता है. फिर वह दल जो पिछले ५ साल से विपक्ष में होता है और भी दोगुनी गति से देश-प्रदेश को लूटता है क्योंकि उसको पिछले ५ साल की भी भरपाई करनी होती है. मित्रों, कश्मीर की राजतन्त्र में क्या हालत थी और आज क्या हालत है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां मुसलमान बहुमत में हैं जो सभी गैरमुसलमानों मुसलमान बना देना चाहते हैं या फिर मार डालना चाहते हैं और लोकतंत्र तो बहुमत का शासन है. क्या लोकतंत्र के पास कश्मीर का ईलाज है? लोकतंत्र होने के बावजूद आज श्रीलंका और पाकिस्तान दिवालिया हैं और तानाशाही होने के बावजूद आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है. मित्रों, अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो साल १९६७ तक बिहार भारत के सबसे अग्रणी व सुशासित राज्यों में गिना जाता था लेकिन १९६७ से यानि जबसे बिहार में पिछड़ों की, जिसकी जितनी जनसंख्या में भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी की राजनीति करने वाले दलों का शासन हुआ बिहार पिछड़ता चला गया और पिछले २५-३० सालों से बिहार सबसे निचले पायदान पर शान से विराजमान है. मित्रों, यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे नेता बड़ी चालाकी से गाल पर पड़े थप्पड़ को भी ट्राफी में बदल देते हैं. सोनू और स्वयं मेरे द्वारा समय-समय पर बिहार की दुरावस्था को लेकर उठाए गए प्रश्नों का जब नीतीश कुमार जी के पास कोई उत्तर नहीं था तब उन्होंने विकास को लात मारकर जाति-पाति की गन्दी राजनीति शुरू कर दी. आज बिहार में सीओ डीएम और एडीएम का और अदना-सा राजस्व कर्मचारी सीओ का पैसे के बल पर तबादला करवा देता है, पैसा नहीं देने पर सीओ आँख मूंदकर दाखिल ख़ारिज के आवेदन को रद्द कर देता है, स्कूलों में पढाई नहीं होती, कॉलेज में शिक्षक ही नहीं हैं, अस्पतालों में सरकार-प्रदत्त मशीनें रखे-रखे ख़राब हो रही हैं, बैंक बिना घूस लिए लोन नहीं देते, मनरेगा सबसे भ्रष्ट योजना बन गयी है, पुलिस परित्राणाय डाकुनाम विनाशाय च साधुनाम हो गई हैं लेकिन इससे नीतीश जी को कोई फर्क नहीं पड़ता उनको बस जातीय जनगणना चाहिए. नीतीश जी हज़ार बार दिल्ली गए लेकिन मोदी जी के सामने कभी विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा नहीं उठाया. उनको तो बस जातीय जनगणना चाहिए फिर चाहे बिहार सारे मानदंडों पर सबसे नीचे बना रहे तो बना रहे. मैं पूछता हूँ कि जातीय जनगणना से सबसे ज्यादा फायदा किसको होगा? निश्चित रूप से सबसे ज्यादा फायदा मुसलमानों को होगा क्योंकि उनके लिए बच्चे अल्लाह की देन हैं. और जिन लोगों ने राष्ट्रहित में हम दो हमारे दो के सरकारी नारे पर अमल किया वो निश्चित रूप से सबसे ज्यादा घाटे में रहेंगे क्योंकि आज नहीं तो कल जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण देने की मांग जरूर उठेगी. मित्रों, फिर ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे बिहार को फिर से देश का अग्रणी राज्य बनाया जा सके? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि नीतीश जी को हटाकर तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना कोई समाधान नहीं है क्योंकि दोनों में मौलिक रूप से कोई अंतर नहीं है. बिहार की जनता दोनों को देख चुकी है. दोनों की रुचि सिर्फ सत्ता प्राप्ति में है. एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ. इसलिए अगर हमें बिहार को फिर से देश का अग्रणी राज्य बनाना है तो किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपनी होगी जो सिर्फ जातीय हित की बात न करके प्रदेश-हित की बात करता हो. जिसके पास दिन-प्रतिदिन की योजना हो. यह हमारा सौभाग्य है कि प्रशांत किशोर जिनमें ये सारे गुण हैं ने बिहार को बदलने की ठानी है. अगर हमें बिहार को बदलना है तो जाति-धर्म से ऊपर उठकर उनका समर्थन करना होगा अन्यथा बारी-बारी से जदयू और राजद हमें लूटती रहेंगी और हम पर भ्रष्टाचार की मार लगातार बढती जाएगी. पहले भले ही बिहारियों के सामने विकल्पहीनता की स्थिति थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. नीतीश और तेजस्वी से कहीं ज्यादा तेजस्वी और विश्वसनीय विकल्प हमारा दरवाजा खटखटा रहा है.

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