शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

क्या सावरकर अंग्रेजों के गुलाम थे?

मित्रों, पिछले दिनों नेहरु परिवार के युवराज व होनहार कांग्रेस नेता राहुल गाँधी जी ने अपनी कथित भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वीरों के वीर वीर सावरकर जी पर अंग्रेजों की गुलामी करने के आरोप लगाए. हालाँकि अगर हम उस दौर में मोहन दास करमचंद गाँधी के पत्रों को देखें तो पता चलता है कि भारत के कथित राष्ट्रपिता ने भी ठीक उसी शैली में अंग्रेजों को पत्र लिखे थे जिस शैली में सावरकर जी ने जमानत और जेल में सुधार के लिए अंग्रेजों के समक्ष आवेदन दिया था. उदाहरण के लिए २२ जून, १९२२ को गांधीजी ने ब्रिटिश भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड को एक पत्र लिखा था जिसके अंत में उन्होंने लिखा था- I have the honour to remain. your excellency's obedient servant. m. k. gandhi उक्त पत्र के इन पंक्तियों में गांधीजी लिख रहे हैं कि मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि मैं आपका जीवनभर आज्ञाकारी नौकर रहना चाहता हूँ. तो क्या गाँधी जी भी अंग्रेजों के नौकर थे? गाँधी जी के एक और पत्र की जो उन्होंने फरवरी १९२० में ड्यूक ऑफ़ कनाट को लिखा था उसकी भाषा पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. I beg to remain. Your royal highness faithful servant. M. K. Gandhi. यहाँ गाँधी जी ने खुद को अंग्रेजों का विश्वास करने योग्य नौकर बताया है. इतना ही नहीं गाँधी जी अपने एक और पत्र में लिखते हैं कि उन्होंने चार बार ब्रिटिश साम्राज्य के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाया है और किसी अन्य भारतीय ने ब्रिटिश साम्राज्य के लिए उतना नहीं किया होगा जितना उन्होंने वो पिछले २९ सालों से लगातार करते आ रहे हैं. तो क्या गाँधी जी अंग्रेजों के साथ गुपचुप मिलकर भारत की जनता को धोखा दे रहे थे? एक और पत्र है जिसके एक पैराग्राफ में गाँधी जी ने चार बार योर एक्सेलेंसी लिखा है. लेकिन पत्र का शीर्षक इस प्रकार रखा है-We have lost faith in british justice. अर्थात अगर हम सिर्फ शाब्दिक अर्थ पर जाएंगे तो फिर गाँधी जी को अंगेजों का सबसे बड़ा गुलाम मानना चाहिए. इतना ही नहीं गाँधी ने तो इन्हीं शब्दों में १५ अगस्त १९१० को रुसी दार्शनिक लियो टोलस्टाय को भी पत्र लिखा था. मलतब गाँधी न सिर्फ अंग्रेजों के बल्कि रूस के भी नौकर थे. और अगर ऐसा है तो राहुल गाँधी के पूरे परिवार को गाँधी सरनेम का त्याग कर देना चाहिए और अपने दादा का सरनेम खान अपना लेना चाहिए. कुछ और विस्तार में जाएँ तो ६ अप्रैल १८६९ को अमेरिका के महानतम राष्ट्रपति जिन्होंने अमेरिका को टूटने से बचाया अब्राहम लिंकन ने अमेरिकी सांसद हेनरी एल्पियर्स को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अपना परिचय Your obedient servant लिखकर दिया था तो क्या लिंकन उक्त सांसद के गुलाम या नौकर हो गए? मित्रों, कहने का तात्पर्य यह कि सावरकर ने जिस भाषा में आवेदन दिया था उस समय वही प्रचलित भाषा थी जिसका हर शालीन व्यक्ति प्रयोग करता था. अब इतनी-सी बात कांग्रेस के युवराज की समझ में नहीं आ रही तो इसमें सावरकर की क्या गलती? और अगर सावरकर अंग्रेजों के गुलाम थे तो फिर अंग्रेजों ने उनको दो जन्मों के लिए कठोर कारावास की सजा क्यों दी थी? और सिर्फ सावरकर ही नहीं उनके बड़े भाई गणेश सावरकर को भी कालापानी की सजा क्यों दी थी? और अगर सावरकर की गिरफ़्तारी का मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय हेग में नहीं जाता तो बहुत संभव है कि उनको १९१० में ही फांसी पर चढ़ा दिया गया होता. क्या तब भी महान भाषा विज्ञानी राहुल गाँधी उनको गुलाम बताते?

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