मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

सुनीता, लालू, संविधान और भारतीय लोकतंत्र

मित्रों, आज मैं आपलोगों से सीधे-सीधे एक सवाल पूछता हूँ कि सरकार किसके लिए है या सरकार की जरुरत किसको है? सरकार अमीरों के लिए है या गरीबों के लिए? सरकार की जरुरत किसको है अमीरों को या गरीबों को? अमीरों का क्या वो तो पैसे से महंगा-से-महंगा ईलाज और शिक्षा खरीद लेगा या फिर मोटी रिश्वत अफसरों को देकर अपना काम करवा लेगा लेकिन अगर गरीबों को सरकार नहीं देखेगी, गरीबों का ध्यान नहीं रखेगी, गरीबों को भी जमीन, गहने या बरतन बेचकर मोटी रिश्वत देनी पड़ेगी तो मैं पूछता हूँ कि देश-प्रदेश में सरकारें क्यों होनी चाहिए या सरकार की आवश्यकता ही क्या है? क्या सरकार सिर्फ घूस खाने और भ्रष्टाचार करने के लिए होनी चाहिए? मित्रों, आपलोगों ने भी पढ़ा होगा कि इस समय लालू जी जिनके शासन में आते ही भेड़ियाधसान अपहरण का दौर चला था, लालू जी जिनके समय में बिहार का ऐसा कोई विभाग नहीं था जिसके फंड को दोनों हाथों लूटा न गया हो, लालू जी जो बचपन में भैंस चराया करते थे और कथित रूप से भैंस की सींग की तरफ से चढ़ते थे वही लालू जी इन दिनों सिंगापूर गए हुए हैं और दुनिया के सबसे महंगे अस्पताल में अपनी किडनी बदलवाने गए हुए हैं. सवाल उठता है कि लालूजी के पास इतना पैसा आया कहाँ से? वो तो लोहिया और कर्पूरी के चेले हैं? मित्रों, कुछ महीने पहले ही बिहार के मुजफ्फरपुर में एक बेहद गरीब महिला सुनीता जो जाति से चमार है और रोज कमाने-खानेवाले अकलू राम की पत्नी है की दोनों किडनी झोपड़ीनुमा निजी क्लीनिक से चोरी हो गई. जी हां, सही पढ़ा आपने किडनी चोरी हो गयी. बिहार में डाका-चोरी तो आम बात है ही अब किडनी और गर्भाशय की चोरी भी आम है. चोरी का इल्जाम एक ऐसे व्यक्ति पर लगा जो पहले सेब बेचता था और जिसके पास मेडिकल की कोई डिग्री नहीं थी. आज तक महागठबंधन की सरकार जिसमें माननीय लालू जी के बेटे स्वास्थ्य मंत्री हैं उस किडनी के लुटेरे को गिरफ्तार तक नहीं कर पाई है. बेचारी के बार-बार हाथ-पाँव फूल जा रहे हैं और डायलिसिस करवाना पड़ रहा है. सरकारी मदद गायब है और बेचारी के परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही है. ऐसे ही दुःख भोगते-भोगते वो बेचारी एक दिन तड़प-तड़प कर मर जाएगी जैसे भागलपुर में कल-परसों नीलम यादव मर गई. बिहार में जन्म लेने का दंड तो भोगना पड़ेगा न. मित्रों, मैं पूछता हूँ कि अगर लालू जी या नीतीश जी के स्थान पर उनके कथित आदर्श या गुरु कर्पूरीजी या लोहिया जी बिहार की सरकार चला रहे होते और उनकी किडनी ख़राब हो गई होती वो क्या करते? क्या वह भी सुनीता देवी को मरता हुआ छोड़कर सिंगापूर जाकर अपना ईलाज करवाते? जहाँ तक मुझे लगता है वो ऐसा हरगिज नहीं करते. खैर छोडिए इस बात को. मुझे इस बात से भी कुछ भी लेना-देना नहीं है कि वो होते तो क्या करते क्योंकि यह एक काल्पनिक सवाल है. वास्तविक सवाल तो यह है कि कभी भैंस चरानेवाले, गरीबों के मसीहा, भारत के सबसे गरीब राज्य को १५ सालों तक बेरहमी से लूटनेवाले लालू जी अब बेहद अमीर हैं और उनको अपने ईलाज के लिए सरकार की मदद की जरुरत नहीं है इसलिए उन्होंने सिंगापूर जाकर अपना ईलाज करवा लिया जहाँ ईलाज करवाना तो दूर जाना तक हमारे लिए स्वप्न समान है लेकिन सुनीता देवी का क्या? अगर लाखों करोड़ का बजट बनाने वाली सरकार एक गरीब महिला के साथ हुई शारीरिक अंग लूट को रोक नहीं पा रही हो या लूट हो जाने के बाद उसकी प्राण रक्षा नहीं कर पा रही हो या करना ही नहीं चाहती हो तो फिर यह लोकतंत्र और सरकारें किस काम की? दुनिया का सबसे बड़ा संविधान किस काम का और उसमें लिखे अधिकार किस काम के?

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