बुधवार, 28 मई 2025
लालू के लाल
मित्रों, बिहार की राजनीति में इन दिनों तूफान आया हुआ है। कारण यह है कि बिहार का सबसे बड़ा राजपरिवार नैतिक दिखने की कोशिश कर रहा है। ये वही राजपरिवार है जिसने सत्ता के नशे में कभी नैतिकता के परवाह तक नहीं की। जो मन में आया किया, बिहार में सामाजिक न्याय के नाम पर जंगल राज चलाया, किसी भी डाक्टर, जज, प्रोफेसर, व्यापारी का अपहरण करवा दिया, आईएएस की पत्नी तक का सालों साल बलात्कार करवाया, चंदा बाबू के बेटे को जिंदा तेजाब के टैंकर में डलवा दिया, अनपढ़ पत्नी को आठ साल के लिए बिहार जैसे पिछड़े राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया, सीताराम केसरी के बुज़ुर्ग भाई को नग्न करके नचवा दिया, डीएम से तंबाकू लगवाया, कुल मिलाकर एक खुशहाल राज्य को पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया ।
मित्रों, उस समय ऐसा लगता था कि बिहार में या तो बंदर शासन कर रहा है या फिर कोई पागल या शैतान। बिहार में लालू और बालू के सिवाय कुछ नहीं बचा था। फिर सत्ता बदली और बिहार में अपेक्षाकृत अच्छा शासन आया. आश्चर्य है कि आज बिहार का हिरन्यकश्यप, बिहार का रावण नैतिकता की दुहाई दे रहा है. दरअसल उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने कांड कर दिया है. शादीशुदा तेजप्रताप ने घोषणा कर दी है कि उनका अनुष्का यादव नाम की युवती के साथ १२ सालों से प्रेम चल रहा है. सवाल उठता है कि अगर ऐसा था तो लालू परिवार को अनुष्का के साथ ही तेजप्रताप की शादी करनी चाहिए थी. फिर अतिप्रतिष्ठित पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय की पोती के साथ तेजप्रताप की शादी क्यों की? क्यों उस लड़की की जिंदगी बर्बाद की?
मित्रों, लालू जी अगर सत्ता में होते तो शायद अब तक ऐश्वर्या जीवित भी नहीं होती क्योंकि तब उनके पास एक-से-एक हत्यारे और गुंडे उपलब्ध थे, बस एक ईशारा काफी होता. परंतु हाय रे दुर्भाग्य! एक तो बेचारे विपक्ष में हैं और उस पर प्रदेश में चुनाव सिर पर है। अगर राजपरिवार सत्ता में होता तो शायद लालू जी ताल ठोंक कर कह देते उनके बेटे ने जो किया ठीक किया, वही नैतिकता है, वही अनुकरणीय है। छोटे बेटे ने एक ईसाई लड़की से विवाह किया, गोपालक के घर में गोमांसभक्षक आई तब तो लालूजी ने कुछ नहीं कहा फिर तेज प्रताप के मामले में कार्रवाई का दिखावा क्यों? छोटका ने किया तो रासलीला और बड़का ने किया तो कैरेक्टर ढीला? वैसे लालूजी के पास कौन-सा कैरेक्टर था? लालूजी भी तो नेता के नाम पर काला धब्बा हैं, घोटाला किंग. दोषसिद्ध, सजायाफ्ता. ऐसे में उनकी कार्रवाई को लेकर यही कहा जा सकता है कि छलनी दूसे शूप के जिसमें खुद हजारों छेद है. वैसे ईश्वरभक्त तेजप्रताप का कालनेमि निकलना भी बिहारी जनमानस के लिए कम दुखद नहीं है. अंत में हम लालू परिवार को पुत्र जन्म की बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि ये बच्चा बड़ा होकर लालू यादव नहीं बनेगा.
बुधवार, 21 मई 2025
उड़ता बिहार
मित्रों, एक पेड़ पर एक कौआ सपरिवार रहता था। उसी पेड़ के एक कोटर में एक सांप कहीं से आकर रहने लगा। वो सांप कौए के सारे अण्डों-बच्चों को खा जाता था. कौआ काफी परेशान रहने लगा. उसी पेड़ के समीप नेवले का बिल था. कौए ने एक युक्ति लगाई और नेवले के बिल से सांप के कोटर तक के पूरे रास्ते में मछली के टुकड़े डाल दिए. युक्ति ने काम भी किया. मछली के टुकड़े खाते हुए नेवला सांप के कोटर तक पहुँच गया और सांप को मार डाला. लेकिन इस दौरान उसने कौए के घोंसले को भी देख लिया और अब से जब भी मादा कौआ अंडे देती नेवला उसे खा जाता. अब कौए के सामने पहले से भी विकराल समस्या मुंह बाए खडी थी जिसका कोई समाधान उसे सूझ नहीं रहा था.
मित्रों, इन दिनों बिहार की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. पहले बिहार सरकार ने गली-गली में शराब की दुकानें खुलवाई. पूरे बिहार की जवानी नशे में लड़खड़ाने लगी. फिर अचानक शराबबंदी कर दी. शराब तो बंद हो गई यद्यपि तस्करी होकर तो अब भी आ रही है और मिल भी रही है फिर भी शराब पीनेवाले कम जरूर हो गए लेकिन धीरे-धीरे बिहार में स्मैक, हिरोइन, हशीश, गांजा, चरस जैसे अन्य सूखे नशीले पदार्थों ने उसका स्थान ले लिया और स्थिति पहले से भी भयावह हो गई. जो जवानी पहले लड़खड़ा रही थी अब उड़ने लगी है। पूरी-की-पूरी पीढ़ी खराब हो रही है। देह-दुनिया से बेसुध युवक आज के बिहार में महानगर से लेकर गांवों तक में विक्षिप्तों की तरह भटकते दिखाई दे जाते हैं. मैं बहुत-से प्रतिष्ठित परिवारों के ऐसे युवाओं और किशोरों को जानता हूँ जो माँ-बाप की डांट-फटकार से तंग आकर आत्महत्या तक कर चुके हैं. उनमें से कई तो अपने घरों के इकलौते चिराग थे. कई परिवारों की खुशियों को यह नए प्रकार का नशा खा चुका है और कई परिवारों की खुशियों को अभी खाता जा रहा है.
मित्रों, सवाल उठता है कि जबकि बिहार में शराब बंदी नहीं थी और शराब पीना वैध था तब तो बिहार सरकार ने उसे रोक दिया लेकिन सूखा नशा तो पहले से ही अवैध है अब वो इसे कैसे रोकेगी? जो नशा बिहार के युवाओं के नसों में धीरे-धीरे उतर रही और उनको अपना गुलाम बना रही है उससे अब कैसे निबटेगी? उपाय तो निकालना पड़ेगा. बिहार की कृषि जलवायु-परिवर्तन और नीलगायों के चलते पहले से ही नष्ट हो चुकी है अगर बिहार की जवानी भी किसी काम की नहीं रही तो बिहार तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो जाएगा. हमने कई साल पहले बनी एक फिल्म उड़ता पंजाब में पंजाब को उड़ते हुए देखा था. वास्तव में मैं कभी पंजाब नहीं गया. और अब अपनी आँखों से बिहार को उड़ते हुए देख रहा हूँ और सत्ता के नशे में डूबी बिहार सरकार का इस तरफ थोडा-सा भी ध्यान नहीं है. पुडिया यानि सूखा नशा शराब से भी कहीं बड़ी समस्या बन चुकी है मगर बिहार के सर्वज्ञानी शाहे बेखबर को कोई खबर ही नहीं है.
शुक्रवार, 16 मई 2025
विष के दांत
मित्रों, भारत और पाकिस्तान के बीच अल्पकालिक युद्ध रूक चुका है। वैसे इसे मुठभेड़ भी कहा जा सकता है और युद्ध भी लेकिन इसने पाकिस्तान को जो चोट पहुंचाई है निश्चित रूप से बतौर प्रधानमंत्री मोदी वहां की पीढ़ियां याद रखेंगी। दुनिया के इतिहास में ऐसा बहुत कम बार देखा गया है कि कोई अघोषित युद्ध जो वास्तव में युद्ध ही था मात्र तीन दिनों में ही समाप्त हो जाए. इस युद्ध में पाकिस्तान जमकर बेनकाब हुआ और उसे भारतीय सेना ने तो बेनकाब किया ही खुद वहां की जनता ने भी भारत द्वारा किए गए हमलों के बाद की स्थिति के वीडियोज अपलोड कर कम शर्मिंदा नहीं किया. टाम कूपर जैसे दिग्गज रक्षा विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि यह विश्व इतिहास का सबसे एकतरफा युद्ध था।
मित्रों, इस तीन दिवसीय मुठभेड़ ने कंगाल पाकिस्तान की कमजोर सामरिक स्थिति को पूरी तरह से बेपर्दा करके रख दिया. पाकिस्तान की न तो कोई मिसाइल और न ही कोई ड्रोन भारत की सतह को छू पाया. सबको भारत की वायु रक्षा प्रणाली ने आसमान में ही नष्ट कर दिया. दूसरी तरफ भारत ने पाकिस्तान की रक्षा प्रणाली को तो पूरी तरह से तहस-नहस तो किया ही साथ ही मुज़फ्फराबाद, लाहौर, नूर खान, रावलपिंडी, पेशावर, करांची, बहावलपुर आदि सारे स्थानों पर मनवांछित हमले कर पाकिस्तान को पूरी तरह से घुटनों पर ला दिया. यहाँ तक कि पाकिस्तान के लिए भारत की अभेद्य वायु सुरक्षा प्रणाली के कारण लड़ाकू विमानों को उसकी अपनी सीमा में उड़ा पाना भी दूभर हो गया. एक तरफ जहाँ पूर्वी सीमा पर पाकिस्तान को भारत पीट रहा था वहीं पश्चिमी सीमा पर बलूचों और तालिबान के समक्ष पाकिस्तानी सेना कहीं भी नहीं टिक पा रही थी. ईधर भारत ने नदियों के पानी का भी रणनीतिक उपयोग शुरू कर रख था। विदित हो कि कुछ दिन पहले ही भारत ने सिन्धु जल संधि को सिन्धु नदी में डूबो दिया था यह कहकर कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते.
मित्रों,जब ऐसा माना जा रहा था कि युद्ध निर्णायक मोड़ पर पहुँचने वाला है तभी अमेरिका के बडबोले राष्ट्रपति डोनाल्ड टर्र टर्र ट्रम्प ने सोशल मीडिया के माध्यम से बताया कि भारत और पाकिस्तान संघर्ष विराम करनेवाले हैं. साथ ही उन्होंने इसको करवाने का श्रेय भी ले लिया. लेकिन जब भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि हमें मध्यस्थ की जरुरत नहीं और वो भारत के साथ न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं होने देंगे तब श्रीमान टर्र टर्र ट्रम्प ने पलटी मार दी और कहा है उन्होंने संघर्ष विराम नहीं करवाया, हमने तो झूठ बोला था. वैसे हमले को रोकने को लेकर पाकिस्तान के नूर खान से कई सारी कहानियां हवाओं में तैर रही हैं. कुछ-न-कुछ हुआ हो जरूर है जिसे दुनिया से छिपाया जा रहा है.
मित्रों, अब रही बात उनकी जिनके बचे-खुचे जीवन का एकमात्र उद्देश्य मोदी जी और मोदी जी की सरकार की आलोचना करना है तो इस सन्दर्भ मुझे एक कहानी याद आ रही है. उस समय भारत की धरती पर बैगन का नया-नया आगमन हुआ था. अकबर भोजन करने बैठा तो देखा कि थाली में बैगन का भुर्ता है. उसने बीरबल से कहा कि बीरबल बैगन बहुत अच्छी चीज है. बीरबल ने छूटते ही कहा कि जी हुजुर आप बजा फरमा रहे हैं. कुछेक पल के बाद अकबर ने अपनी बात से पलटते हुए कहा कि बीरबल बैगन बहुत ख़राब चीज है. बीरबल ने फिर से कहा कि बादशाह सलामत सही कह रहे हैं. तब अकबर ने कहा कि बैगन अच्छा है या ख़राब तुम किस तरफ हो? बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा कि हुजुर हम तो आपकी तरफ हैं, बैगन हमारा रिश्तेदार थोड़े न है उससे हमारा क्या लेना-देना.
मित्रों, ठीक यही बात मोदी विरोधियों पर लागू होती है. मोदी ने पाकिस्तान पर हमला नहीं किया तो कष्ट, कर दिया तो कष्ट, हमला लम्बा खिंचा तो कष्ट और हमला रोक दिया तो कष्ट. इनका कष्ट तो जाता ही नहीं है. कई सारे कांग्रेस नेताओं और डफली मण्डली के बयानों को देखकर तो शक भी होने लगा कि वो भारतीय हैं या पाकिस्तानी. इस बीच बहुत सारी ऐसी पाकिस्तानी महिलाएं भी सामने आई जो दशकों से भारत में अवैध रूप से रहकर थोक में बच्चे पैदा कर रही थीं.
मित्रों, अंत में मैं कहना चाहूँगा कि विष के दांत टूट गये हैं लेकिन सांप अभी भी जिंदा है। देखना है कि यह सांप फिर से विषदंत उगाता है या फिर केंचुआ बनकर अंतत: मृत्यु को प्राप्त होता है। अगर कांग्रेस फिर से जीतती है तो इसके विषदंत का फिर से उगना निश्चित है और अगर भाजपा की सरकार कुछ दशकों तक बनी रहती है तो या तो यह नापाक देश दुनिया के नक्शे से ही गायब हो जाएगा या फिर खंडित होकर मरियल केंचुए में परिवर्तित हो जाएगा यह भी निश्चित है.
गुरुवार, 24 अप्रैल 2025
हिंदुस्तान में खतरे में हिंदू
मित्रों, अगर हम यह कहें कि इन दिनों हिन्दूबहुल भारत में बहुसंख्यक हिन्दू खतरे में हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. पहले पश्चिम बंगाल और अब कश्मीर में जिस तरह मुसलमानों ने पिछले दिनों हिन्दुओं का नरसंहार किया है उससे पता चलता है कि स्थिति कितनी चिंताजनक हो चुकी है. बंगाल के मुर्शिदाबाद में बिना किसी उकसावे के न सिर्फ हिन्दुओ की बेरहमी से हत्या की गई बल्कि जमकर लूटपाट और इस तरह से आगजनी की गई कि हिन्दुओं के पास सिवाय पलायन करने के और कोई उपाय ही नहीं बच गया.
मित्रों, अभी बंगाल की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि कश्मीर में घूमने गए २७ निर्दोष हिन्दू पर्यटकों को मुसलमानों ने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वे हिन्दू थे. पहले तो उनको कलमा पढ़ने के लिए बोला गया फिर उनके कपडे उतार कर, नंगा करके इस बात की तस्दीक की गई कि उनका खतना नहीं हुआ है और वो हिन्दू हैं. इतना ही नहीं उन हिन्दू पर्यटकों की न सिर्फ बेरहमी से हत्या की गई बल्कि पत्नी और बच्चों की आँखों के सामने, उनके परिजनों के मन में इस्लाम का खौफ पैदा करने के लिए हत्या की गई. सबसे हृदयविदारक दृश्य तो वो था जिसने दो-तीन साल का बच्चा अपने मृतक पिता के शव के पास बैठा हुआ है और उसे जगा रहा है उसे यह भी नहीं पता कि इस्लाम ने उसके पिता को मार डाला है. मारे भी क्यों नहीं जबकि उसकी आसमानी किताब खुद उसे ऐसे करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है जैसा कि जाकिर नाईक सहित कई सारे इस्लामिक विद्वान् भी मान चुके हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि हिंदुस्तान में हिंदुत्व की रक्षा कैसे की जाए? ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाने से तो नहीं होगी और न ही पुलिस और सेना के भरोसे बैठे रहने से होगी बल्कि हिन्दुओं को कम-से-कम इतनी ताकत जुटानी पड़ेगी कि उनकी रक्षा हो सके. वीर विनायक दामोदर सावरकर इस खतरे को १९५० के दशक में ही समझ गए थे. उन्होंने तभी कहा था कि इस्लाम एक घर्म नहीं सेना है जिसका उद्देश्य पूरी दुनिया से अन्य धर्मों का उन्मूलन कर इस्लाम की स्थापना करना है. हम कितना भी भाईचारा और शांति के मंत्र जपें हमें मार दिया जाएगा क्योंकि उनकी आसमानी पुस्तक के अनुसार अगर आपके माता-पिता भी इस्लाम को नहीं मानते तो वो भी आपके शत्रु हैं. इसलिए अम्बेदकर ने कहा था कि इस्लाम एक बंद निकाय है और उसके लिए राष्ट्र और राष्ट्रभक्ति का कोई मतलब नहीं है बल्कि उसके लिए सिर्फ उसका मजहब ही मायने रखता है. मैं हिन्दुओं को अवैध हथियार घरों में रखने को नहीं कहता लेकिन वो पारम्परिक हथियार तो रख ही सकते हैं और जितनी चाहे उतनी रख सकते हैं. हिन्दुओं के लिए भागना समाधान नहीं है. हिंदुस्तान उनका एकमात्र और आखिरी ठिकाना है इसलिए भागना नहीं है बल्कि ईट का जवाब पत्थर से देना है, लोहे से देना है. घरों में महाराणा और छत्रपति की तस्वीरें लगाने से काम नहीं चलने वाला बल्कि प्रत्येक हिन्दू को स्वयं महाराणा सांगा और छत्रपति संभाजी बनना होगा तभी हिंदू भी बचेगा और हिंदुत्व भी।
मित्रों, रही बात सरकार और विपक्ष की तो सरकार को जो भी करना चाहिए कर रही है लेकिन विपक्ष को देखकर तो लग ही नहीं रहा कि वो भारत के राजनैतिक दल हैं या पाकिस्तान के। अगर वे भारत के राजनैतिक दल हैं तो वो क्यों पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं? ईधर हिंदुस्तान के मुसलमान हिंदुओं को मार-काट रहे हैं कभी बंगाल तो कभी महाराष्ट्र कभी कश्मीर और कभी राजधानी दिल्ली में और उधर सोनिया गांधी का दामाद कह रहा है कि हिंदुस्तान में मुसलमान डरे हुए हुए हैं। फिर तो हलाकू, तैमूर, चंगेजखान, गजनवी, हिटलर, नादिरशाह, औरंगजेब और जनरल डायर भी बहुत डरे हुए थे, बेचारे थे, पीड़ित थे। इतना ही नहीं दिल्ली में अनन्या के बलात्कारी भी बहुत लाचार, असहाय और डरे हुए थे।
मित्रों, ऐसा क्यों होता है कि जब भी हिंदू मरता है और मारनेवाले मुसलमान होते हैं तब विपक्ष के मुंह में दही जम जाता है। अभी बंगाल और कश्मीर में मुसलमानों ने किसी भी हिंदू से उसकी जाति नहीं पूछी उनको मारने और लूटने के लिए सिर्फ इस बात की तसल्ली की कि वो हिंदू हैं, काफिर हैं इसलिए उनको जीने का अधिकार नहीं है।
मित्रों, अनंतनाग के जवाब में भारत सरकार ने कल पाकिस्तान के साथ सिंधु जलसंधि को रद्द कर दिया है। यह समझ में नहीं आता कि आखिर यह संधि की क्यों गई थी जबकि पाकिस्तान हमारी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन पर १९४७ से ही कब्जा जमाकर बैठा हुआ है। समझ में तो यह भी नहीं आता कि जबकि पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमानों को हिंदुस्तान में ही रखना था तो हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ क्यों! समझ में यह भी नहीं आता कि १९७१ में पाकिस्तान से कश्मीर का आधा व बचा हुआ हिस्सा लिया क्यों नहीं गया जबकि पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया था? समझ में तो बस इतना आता है कि पाकिस्तान ही कांग्रेस थी और कांग्रेस ही पाकिस्तान है अन्यथा सोनिया का दामाद पाकिस्तान की भाषा नहीं बोलता।
मित्रों, रही बात बंगाल और कश्मीर के स्थानीय लोगों की तो बंगाल में तो राष्ट्रपति शासन में चुनाव करवाना होगा और कश्मीर में स्थानीय आतंकवादियों को कड़ा सबक सिखाना होगा। पाकिस्तान के खिलाफ भी यथासंभव कठोरतम कदम उठाने पड़ेंगे ठीक वैसे ही जैसे इजरायल ने हमास के खिलाफ उठाए हैं भले सबसे बड़ा विपक्ष सुप्रीम कोर्ट कितने भी रोड़ा क्यों न अंटकाए।
गुरुवार, 10 अप्रैल 2025
ट्रंप की गुगली में फंसा चीन
मित्रों, जबसे डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तभी से पूरे विश्व में हडकंप मचा हुआ है. दरअसल ट्रंप ने अमेरिका के लगातार बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए पूरी दुनिया के देशों के खिलाफ नौ अप्रैल से पारस्परिक कर लगाने का फैसला किया. देखते-देखते पूरी दुनिया में शेयर बाजार में कत्लेआम होने लगा. सबसे ज्यादा नुकसान खुद अमेरिका के निवेशकों को हुआ. जहाँ ट्रंप ने भारत 10 प्रतिशत बेस टैक्स के अतिरिक्त 26 प्रतिशत टैक्स लगाया वहीँ भारत पर 26% का अतिरिक्त टैरिफ होगा. चीन पर 34%, वियतनाम पर 46% और बांग्लादेश पर 37% अतिरिक्त टैरिफ लगाया. इसके अलावा इंडोनेशिया पर 32%, यूरोपीय संघ पर 20% और जापान पर 25% टैरिफ लगाया. इससे टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात ज्यादातर देशों के मुकाबले अमेरिका में सस्ता रहेगा, क्योंकि एक तो मुकाबले वाले देशों से भारत के सामानों पर कम टैक्स लगेगा और दूसरा जिन देशों के सामानों पर भारत से कम टैरिफ लिया जा रहा है उनकी तुलना में भारत के सामान सस्ते होते है.
मित्रों, जहाँ भारत ने इस पर वार्ता का रास्ता अपनाया वहीँ चीन ने ताव खाकर बदले में अमेरिकी सामानों पर 84 प्रतिशत का टैक्स लगा दिया. इस बीच चीन से अमेरिका को होनेवाला निर्यात लगभग शून्य हो गया. साउथ चाइना पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में लिस्टेड एक एक्सपोर्ट कंपनी के कर्मचारी ने कहा कि ट्रंप सरकार के नए टैरिफ के बाद उनकी अमेरिका को होने वाली डेली शिपमेंट 40-50 कंटेनर से गिरकर सिर्फ 3-6 कंटेनर रह गई है.
मित्रों, इस बीच अचानक यू टर्न लेते हुए ट्रंप ने कल भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया है. वहीं दूसरी तरफ टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया.
मित्रों, शांत दिमाग से काम करो और खुश रहो. लगता है भारत के लिए बड़े-बुजुर्गों की कही यह बात काम आ गई है. अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने की रणनीति और साथ ही अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ जवाबी कार्रवाई न करने के अपने संयम, दोनों का फायदा भारत मिलता दिख रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार, 9 अप्रैल को भारत सहित 75 देशों पर लगाए अपने अतिरिक्त टैरिफ को 90 दिन के लिए रोक दिया. उन्हें जुलाई तक केवल 10 प्रतिशत का बेसिक टैरिफ देना होगा. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने वाले चीन पर पलटवार करते हुए उसपर 125 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया. सवाल है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत 75 देशों पर यूटर्न क्यों लिया? ट्रंप का माइंडगेम क्या है? यह पूछे जाने पर कि उन्होंने 75 देशों को टैरिफ से राहत देने का आदेश क्यों दिया है, अमेरिकी राष्ट्रपति ने रिपोर्टरों से कहा: "लोग लाइन से थोड़ा बाहर जा रहे थे. वे चिड़चिड़े हो रहे थे."
मित्रों, दरअसल टैरिफ पर यह रोक सिर्फ दूसरे देशों की जरूरत नहीं थी बल्कि खुद अमेरिका इसके प्रेशर में दबा जा रहा है. जिस तरह से अमेरिका का स्टॉक मार्केट 90 दिन की रोक की घोषणा के बाद 10 प्रतिशत तक उछला है, यह बता रहा कि अमेरिका का मार्केट ट्रंप के टैरिफ नीति का दवाब साफ महसूस कर रहा है. यहां यह भी बात गौर करने वाली है कि ट्रंप ने इन 75 देशों पर अपने टैरिफ को खत्म नहीं किया है बल्कि उसपर केवल रोक लगाई है. यानी उनके पास अगले 90 दिन का वक्त है कि वह इन 75 देशों के साथ कैसे व्यापार करना है, उसपर कोई डील कर सकें. तो दूसरी तरफ ट्रंप और चीन दोनों अब ऐसे चिकन गेम में उलझ गए हैं कि दोनों ही पीछे नहीं हटना चाहते. यह दोनों में से जो पहले पीछे हटेगा, वह हारा हुआ दिखेगा, हारा हुआ माना जाएगा. चीन के पक्ष में सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि चीन अमेरिका पर जितना निर्भर है, उससे कहीं अधिक अमेरिका चीनी आयात पर निर्भर है. ऐसे में देखना होगा कि अमेरिका और चीन के बीच का टैरिफ युद्ध कितने दिनों तक चलता है और उसमें जीत किसकी होती है फ़िलहाल तो चीन को ज्यादा नुकसान होता हुआ साफ़ देखा जा सकता है.
शनिवार, 5 अप्रैल 2025
वक्फ बोर्ड में संशोधन का अभिनन्दन
मित्रों, बहुप्रतीक्षित वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित हो चुका है. अब जैसे-ही भारत की माननीय राष्ट्रपति इस विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगी विधेयक कानून बन जाएगा. कितने आश्चर्य की बात है कि पीवी नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में इतने सारे हिंदुविरोधी क़ानून बनाए गए और हिन्दुओं को पता तक नहीं चला जबकि अभी जब वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव किया जा रहा है तब किस तरह मुसलमानों ने आसमान को सर पर उठा रखा है.
मित्रों, मुसलमान कितने जागरूक हैं और हम कितने लापरवाह इस बात का इससे बड़ा उदाहरण हो ही नहीं सकता. क्या कोई संस्था या कानून देश की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर हो सकता है? लेकिन वक्फ बोर्ड को भारत की न्यायपालिका और संविधान से ऊपर बना दिया गया. एक बाबरी ढांचा नामक खंडहर के बदले कांग्रेस ने मुसलमानों को पूरा भारत दे दिया. मानों जमीन न हुई बस और ट्रेन की सीट हो गई. जिस पर भी वक्फ बोर्ड ने हाथ डाल दिया वही उसकी हो गई. उसके बाद आप कोर्ट भी नहीं जा सकते बल्कि आपको वक्फ बोर्ड के न्यायाधिकरण में ही जाना होगा. न सिर्फ मुसलमानों की जमीनें बल्कि हिन्दुओं, ईसाईयों सहित अन्य धर्मावलम्बियों के उपासना स्थलों और गांवों को हड़प लिया गया. यहाँ तक कि मात्र एक सूचना देकर सरकारी जमीनों पर भी दावा ठोंक दिया गया और सरकारी अधिकारी मजबूरन मुंह देखते रहे क्योंकि संसद द्वारा कानून बनाकर ऐसे प्रावधान ही कर दिए गए थे.
मित्रों, उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण तो यह रहा कि यथास्थिति बनाए रखने को 20 मुस्लिम सांसदों से भी ज्यादा बेचैन 210 कथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दू सांसद देखे गए. क्या इन हिन्दू सांसदों को पता नहीं है कि धार्मिक आधार पर 1947 में हिंसा के बल पर बनवाए गए पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ क्या-क्या हो रहा है और कैसे इन देशों में हिन्दुओं को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया गया? सबकुछ जानते हुए ये लोग कैसे भारत में जिहादी ताकतों को मजबूत करने में लगे हैं? हद तो यह है वही लोग हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा में अपने रक्त की एक-एक बूँद न्योछावर कर देनेवाले अनमोल वीरों को उल्टे गद्दार साबित करने में लगे हैं. कोई भय नहीं कि हिन्दू नाराज हो जाएँगे! भय हो भी कैसे जबकि हिन्दू खुद बंटे हुए हैं, जाति में, पांति में. यहाँ तक कि हिन्दू परिवारों तक में एकता नहीं है. पति-पत्नी, भाई-भाई में विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं फिर कोई उनसे क्यों डरे?
मित्रों, इतना ही नहीं हिन्दू धर्म का संगठन भी काफी असंगठित है. चारों शंकराचार्यों तक में मतैक्य नहीं है. वक्फ बोर्ड में संशोधन से तो सिर्फ लैंड जिहाद रूकेगा अन्य जिहादों में सबसे खतरनाक जनसँख्या जिहाद कैसे रूकेगा? जो धर्माचार्य सोने के सिंहासनों पर बैठकर हिन्दुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने का आह्वान करते रहते हैं क्या वो उन बच्चों का खर्च उठाएंगे?
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
ईश्वर जजों का सर्वनाश करे
अब नहीं डरेंगे.. लिखेंगे ✊✊
मेरी कलम चलेगी.. ✍️
चला दो मुझपर अवमानना का केस, भगतसिंह डरे होते फांसी के फंदे से तो क्या आजादी मिल पाती.??
कलंकित होने के बाद भी....
न्यायपालिका के जज नहीं सुधर सकते -
ईश्वर सभी जजों का सर्वनाश करें - जजों की वजह से बलात्कार हो रहे हैं और वो जज ही दंगों के लिए दोषी हैं..!!
जस्टिस यशवंत वर्मा के घपले ने न्यायपालिका और उसमे बैठे जजों के मुख पर कालिख पोत दी,
न्यायपालिका को ऐसा हमाम साबित कर दिया जिसमें सब नंगे हैं....
पूरा लेख कमेंट में है, जरुर पढ़िए..
अब किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता..
-कलंकित होने के बाद भी जज अपने में कुछ सुधार लाने को तैयार नहीं लग रहे और इसलिए मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे सभी जजों का सर्वनाश करें।
वर्तमान न्यायपालिका का पुनर्निर्माण करने की जरूरत है और वह तब ही हो सकता है जब इस व्यवस्था को ख़त्म कर दिया जाए...
यानी नई सृष्टि का निर्माण करने के लिए
वर्तमान सृष्टि को मिटाना जरूरी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने 19 मार्च, 2025 के फैसले में कहा था कि-
“स्तनों को दबाना और लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश करने से रेप की कोशिश साबित नहीं होती - ऐसा करना रेप की तैयारी करना है, रेप करना नहीं है।”
मैंने अपने 20 मार्च के लेख में लिखा था “यानी जज साहब चाहते हैं कि रेप होना ही चाहिए था”
परसों जस्टिस मिश्रा के फैसले के खिलाफ किसी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की थी जिस पर सुनवाई जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की...
वकील ने अपनी दलील शुरू करते हुए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का जब जिक्र किया तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि वकील की तरफ से कोर्ट में कोई “lecture baji” नहीं होनी चाहिए और यह कह कर याचिका को खारिज कर दिया।
ये वही बेला त्रिवेदी हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश की एक 4 साल की बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे की फांसी की सजा उम्रकैद में बदलते हुए कहा था कि Every Sinner Has A Future...
इसका मतलब था उन्हें बच्ची के जीवन से कोई मतलब नहीं था और परसों याचिका को खारिज करने का भी मतलब यही निकलता है कि वह भी जस्टिस मिश्रा की तरह बच्चियों के रेप को सही मानती हैं।
और यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि न्यायपालिका में बैठे “कथित न्यायाधीश” ही बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं।
ऐसे बेशर्मों को ऊपर वाले से कुछ तो डरना चाहिए और इसलिए मैं कहता हूं ऐसे जजों का ईश्वर सर्वनाश करें...
परसों ही बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस वृषाली जोशी की पीठ ने नागपुर हिंसा के मुख्य आरोपी फहीम खान के घर पर बुलडोज़र चला कर गिराने को स्टे कर दिया...
लेकिन यह आदेश होने तक उसका घर गिर चुका था, फिर भी बेंच ने दूसरे अन्य मुख्य आरोपी युसूफ शेख के घर के अवैध हिस्से को गिराने के काम पर रोक लगा दी।
ये बेशर्म जज, मतलब दंगाइयों के साथ खड़े हो गए? उनके घर की रक्षा कर रहे हो कानूनी दावपेच से तो उन्होंने जो लोगों के घरों को और सरकार एवं निजी संपत्तियों को आग लगाई वह किस अधिकार से लगाई?
पहले भी दंगाइयों को कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट बचाते रहे हैं.. और इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यायपालिका में बैठे जज ही दंगों के लिए जिम्मेदार हैं।
मतलब ये जज ही बलात्कार को बढ़ावा दे रहे हैं और दंगे भी करा रहे हैं। नागपुर बेंच के जजों को चाहिए कि जितने भी दंगाई पुलिस ने पकड़े हैं, उन सभी को छोड़ दें।
पूरी न्यायपालिका का मुंह काला हुआ है लेकिन लगता है इन लोगों को काला मुंह बहुत पसंद है...
दंगाइयों और बलात्कारियों को संरक्षण देने से पहले ऐसे जजों को जवाब देना चाहिए कि बलात्कारी और दंगाई किस मौलिक अधिकार से ऐसा कुकर्म करते हैं?
आपने जाकर “दंगो” को स्टे क्यों नहीं किया??
“आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे, कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज” जब राम की लाठी पड़ती है तो आवाज़ नहीं होती, यह याद रहे..!!-साभार पंडित नेतन्याहू मिश्रा के एक्स ट्विट से
बुधवार, 19 मार्च 2025
भारत बना क्रिकेट जगत का चैम्पियन
भारत बना चैंपियंस चैंपियन
9 मार्च, 2025 की देर शाम जैसे ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ आलराउंडर रवीन्द्र जडेजा ने दुबई अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम में प्रतिष्ठित चैम्पियंस ट्राफी के फाइनल में विजयी चौका लगाया पूरा भारत ख़ुशी से झूम उठा और होली से पहले दिवाली मानाने लगा. ये जीत इसलिए तो विशेष थी ही कि भारत ने इसे 12 साल बाद जीता बल्कि इसलिए भी विशेष थी क्योंकि इस पूरे टूर्नामेंट में एकमात्र भारत ही ऐसी टीम थी जो अपराजेय रही. उससे भी बड़ी बात तो यह रही कि भारत ने किसी भी आईसीसी टूर्नामेंट के फाइनल में पहली बार न्यूजीलैंड को हराया. अपनी पूरी विजयी यात्रा में भारत ने २० फरवरी को बांग्लादेश को 21 गेंद शेष रहते 6 विकेट से, पाकिस्तान को 23 फरवरी को 45 गेंद शेष रहते 6 विकेट से और 2 मार्च को न्यूजीलैंड को मात्र 45.3 ओवरों में आल आउट कर ४४ रनों से हराया.
भारत की इस बेमिशाल जीत में कप्तान रोहित शर्मा का योगदान तो अप्रतिम रहा ही साथ ही प्रत्येक मैच में कोई न कोई खिलाडी भारत के लिए संकटमोचक बनकर आता रहा और मंझधार में फंसी पारी को पार लगाता रहा. जहाँ भारत के टॉस हारने के बाद बांग्लादेश के खिलाफ मोहम्मद शमी ने घातक गेंदबाजी करते हुए 10 ओवरों में 53 रन देकर 5 विकेट और हर्षित राणा ने 7.4 ओवरों में 31 रन देकर 3 बहुमूल्य विकेट प्राप्त किए वहीँ 229 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए शुभमन गिल ने 101, कप्तान रोहित शर्मा ने 41 और केएल राहुल ने 41 रन बनाकर जीत को आसान कर दिया. पाकिस्तान के खिलाफ महा मुकाबले में एक बार फिर भारत टॉस हारा लेकिन इसका टीम के मनोबल और प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा. कुलदीप यादव के 3, हार्दिक पांड्या के 2 और हर्षित राणा के 1 विकेट की मदद से भारत ने पाकिस्तान को 49.4 ओवरों में 241 रनों पर समेट दिया. बाद में 242 रनों के लक्ष्य को भारत ने विराट कोहली के 100, श्रेयस अय्यर के 56 और शुभमन गिल के 46 रनों की शानदार पारी की बदौलत मात्र 42.3 ओवरों में प्राप्त कर लिया. 2 मार्च को हुए मुकाबले में न्यूजीलैंड ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया. भारत ने श्रेयस अय्यर के 79, हार्दिक पांड्या के 45 और अक्षर पटेल के बहुमूल्य 42 रनों की सहायता से 9 विकेट पर 249 रन बनाए. जवाब में न्यूजीलैंड की पारी मात्र 45.3 ओवरों में 205 रनों पर सिमट गई. भारत की तरफ से वरुण चक्रवर्ती ने घातक गेंदबाजी करते हुए 5, कुलदीप यादव ने 2 और हार्दिक पांड्या ने 1 विकेट लिए.
इस तरह अपराजेय और अपने ग्रुप में टॉप पर रहते हुए भारत ने शानदार तरीके से उच्च मनोबल के साथ सेमीफाइनल तक का रास्ता तय किया. 2 मार्च वाले मैच में भारत अगर न्यूजीलैंड से हार जाता तो उसकी सेमीफाइनल में अपेक्षाकृत कमजोर टीम मानी जानेवाली द. अफ्रीका से टक्कर होती लेकिन भारत ने जानबूझकर हारने के बजाए मैच को जीतना तय किया और इस प्रकार सेमीफाइनल में उसकी टक्कर ऑस्ट्रेलिया से हुई. रोहित शर्मा एक बार फिर टॉस हार गए और ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 49.3 ओवरों में 264 रनों का चुनौतीपूर्ण स्कोर बनाया. भारत की तरफ से मोहम्मद शमी ने 3, रविन्द्र जडेजा ने 2 और वरुण चक्रवर्ती ने 2 विकेट लेकर मजबूत मानी जानेवाली ऑस्ट्रेलिया को आल आउट करके भारत को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाई. जवाब में भारत ने जीत के लक्ष्य को मात्र 48.1 ओवर में 6 विकेट गंवाकर आसानी से प्राप्त कर लिया. भारत की तरफ से विराट कोहली 84, श्रेयस अय्यर 45 और केएल राहुल 42 टॉप स्कोरर रहे.
इस प्रकार भारत की 9 मार्च को फाइनल में टक्कर होनी तय हुई न्यूजीलैंड से जो दूसरे सेमीफाइनल में द. अफ्रीका को हराकर फाइनल में पहुंचा था. फाइनल में भी एक बार फिर से भारत के कप्तान रोहित शर्मा टॉस हार गए लेकिन जियाले कब भाग्य के भरोसे रहा करते हैं उनको तो भरोसा होता है अपने प्रदर्शन और हौसले पर. ग्रुप मैच की हार से भयभीत न्यूजीलैंड ने इस बार बल्लेबाजी करने का फैसला किया और 50 ओवरों में 7 विकेट खोकर 251 रन बनाए जिसको क्रिकेट विशेषज्ञ चुनौतीपूर्ण बता रहे थे. भारत की तरफ से एक बार फिर से स्पिनरों का दबदबा रहा. कुलदीप यादव ने 2, रविन्द्र जडेजा ने 1 और वरुण चक्रवर्ती ने 1 विकेट लेकर न्यूजीलैंड की बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी. जवाब में भारत ने तेज शुरुआत की. रोहित शर्मा ने कई आकर्षक शॉट लगाकर शमा बाँध दिया. रोहित शर्मा ने 76, श्रेयस अय्यर ने 48 और केएल राहुल ने नाबाद रहते हुए महत्वपूर्ण 34 रन बनाए और भारत ने एक ओवर शेष रहते हुए चैम्पियंस ट्राफी अपने नाम कर लिया. मैच और ट्राफी भले भारत ने जीता हो लेकिन अपने जवाब से न्यूजीलैंड के कप्तान मिचेल सेंटनर ने यह कहकर कि वे एक बेहतर टीम से हारे हैं दुनिया भर में फैले क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीत लिया। कुछ लोगों ने यह कहकर कि दुबई की पिच स्पिनरों के अनुकूल थी भारत की अश्वमेधी जीत को कम करके आंकने की नापाक कोशिश भी की लेकिन सवाल उठता है कि पिच तो सबके लिए एक ही थी। साथ ही ऐसा कब हुआ कि कोई टीम एक बार भी टास न जीत पाए फिर भी पूरे टूर्नामेंट में अपराजेय रहे?
जहाँ भारत के लिए चैम्पियंस ट्राफी खुशियों का पैगाम लेकर आया वहीँ पाकिस्तान के लिए यह शर्म का विषय बन गया और पाकिस्तान पहले 5 दिनों में ही बगैर कोई मैच जीते टूर्नामेंट से बाहर हो हुआ ही साथ ही अंतिम क्षणों में उससे फाइनल की मेजबानी भी छिन गई. कहते हैं कि इस टूर्नामेंट की मेजबानी के चक्कर में कंगाल पाकिस्तान को 870 करोड़ रूपये का घाटा हुआ. चौथी बार चैम्पियंस ट्राफी अपने नाम कर भारत इसे सबसे ज्यादा चार बार जीतनेवाला देश बन गया है साथ ही रोहित शर्मा ने तीन आईसीसी टूर्नामेंट जीतकर महेंद्र सिंह धोनी की बराबरी कर ली है. आशा है भारत की टीम आगे भी न सिर्फ सीमित ओवर के खेल में बल्कि टेस्ट मैचों में भी अविस्मरणीय प्रदर्शन करके भारतीय प्रशंसकों को होली से पहले होली और दिवाली से पहले दिवाली मनाने के अवसर देती रहेगी.
सोमवार, 10 फ़रवरी 2025
कौन बनेगा दिल्ली का सुल्तान?
मित्रों, दिल्ली यानि भारत का दिल, भारत की राजधानी.दिल्ली वही दिल्ली जो कई बार बसी और उजड़ी. वही दिल्ली जिसको कई बार तैमूर, गोरी, अब्दाली, बाबर, नादिरशाह और इंदिरा गांधी ने ईन्सानों और इंसानियत के खून से नहलाया. वही दिल्ली जिसने दारा शिकोह को हाथी पर उल्टा बैठा, पराजित और अपमानित देखा. दिल्ली जिसने कई राजाओं का राज्याभिषेक भी देखा और कई राजाओं को तख़्त से उतरते भी देखा. वही दिल्ली जिसके बारे में कवि रामावतार त्यागी ने कहा है कि
मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं।
अपने आँगन में सपनों की, हर ओर कितारें देखीं हैं॥
मैंने बलशाली राजाओं के, ताज उतरते देखे हैं।
मैंने जीवन की गलियों से तूफ़ान गुज़रते देखे हैं॥
देखा है; कितनी बार जनम के, हाथों मरघट हार गया।
देखा है; कितनी बार पसीना, मानव का बेकार गया॥
मैंने उठते-गिरते देखीं, सोने-चाँदी की मीनारें।
मैंने हँसते-रोते देखीं, महलों की ऊँची दीवारें॥
वही दिल्ली जिसके ऊपर व्यंग्य करते हुए महाकवि नागार्जुन ने आपातकाल के समय कहा था कि
लूटपाट के काले धन की करती है रखवाली,
पता नहीं दिल्ली की देवी गोरी है या काली।
उसी दिल्ली में इन दिनों विधानसभा चुनावों की जबरदस्त सरगर्मी है और इतनी ज्यादा सरगर्मी है कि लगता ही नहीं चुनाव सिर्फ कुछ सौ वर्ग किलोमीटर में सिमटे दिल्ली के लिए मुखिया चुनने के लिए हो रहा है बल्कि लगता है जैसे चुनाव पूरे भारत के लिए प्रधान चुनने के लिए होने जा रहा है. बिगुल फूंका जा चुका है और राजनैतिक महारथियों की ओर से तीरों पर तीर चलने लगे हैं.
पिछले चार चुनावों की तरह इस बार भी यहाँ मुख्यतया तीन पार्टियाँ चुनाव मैदान में हैं. इस बार भी पिछले १२ सालों से दिल्ली पर राज कर रही अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है वहीँ इसे त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कांग्रेस पार्टी कर रही है जिसका पिछले दो विधानसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुला.
मित्रों, अगर हम बात करें आम आदमी पार्टी की तो वह इस बार भी इस चुनाव को प्रदेश के बजाए देश का चुनाव बना डालने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है. उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि वो दिल्ली में अपनी पार्टी बचाने की नहीं देश बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
दूसरी तरफ उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रस उम्मीदवार संदीप दीक्षित उनके इस दावे पर सवाल उठाते हुए तल्खी से कहते हैं "जब केजरीवाल अन्ना के साथ लोकपाल के नाम पर देश को बेवकूफ बना रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब 34 करोड़ के अय्याश महल में गुलछर्रे उड़ा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब 7 लाख के स्कूल कमरे 24 लाख में बनवा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब विज्ञापनों पर हजारों करोड़ उड़ा रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब शराब की दलाली करके 2000 करोड़ डकार रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब कोविड के दौरान लोग ऑक्सीजन और बेड के लिए तड़प रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब पराली जलाने का ठीकरा किसानों पर फोड़ रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब यमुना को साफ करने का झूठा वादा कर रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब कांग्रेस और शीला दीक्षित के किए गए हर काम को बिना शर्म अपने नाम पर बता रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब झूठे एफिडेविट से जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब हर राज्य चुनाव में कांग्रेस के वोट काटकर बीजेपी को जिता रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब शीला जी के बारे में बेशर्मी से 1000 झूठ फैला रहे थे, तो देश बचा रहे थे? जब सोनिया गांधी को जेल भेजने की धमकी दे रहे थे, तो देश बचा रहे थे? इतनी बड़ी लिस्ट है कि लोग थक जाएं पढ़ते-पढ़ते।" उन्होंने कहा कि केजरीवाल देश नहीं बचा रहे बल्कि देश को केजरीवाल से बचाने की जरुरत है।
मित्रों, इस चुनाव में जो बात सबसे ज्यादा केजरीवाल के खिलाफ जा रही है वो है सरकार की विफलताएं और उनसे उत्पन्न जनता की नाराजगी. दिल्ली की जनता उनसे इसलिए नाराज है क्योंकि जब 1761 के बाद पहली बार दिल्ली में हिंदुओं का नरसंहार हुआ तब नरसंहार करनेवालों के सरगना ताहिर हुसैन केजरीवाल के स्नेहिल थे. दिल्ली की जनता उनसे इसलिए नाराज है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल को १२ सालों में सिर्फ मौलाना याद थे अब जाकर पंडित और ग्रंथी याद आ रहे हैं. मोहल्ला क्लिनिक गायब-से हो गए हैं, १५ लाख सीसीटीवी लापता है. हर चुनाव में केजरीवाल ने एक ही वादे किए कि यमुना साफ करेंगे, सड़कें चकाचक करेंगे, नालियां बनवाएंगे, दिल्ली को झीलों का शहर बनाएंगे लेकिन किया यही कि किया कुछ भी नहीं. पहले केजरीवाल एमसीडी पर काम नहीं करने देने के आरोप लगाते थे लेकिन अब एमसीडी पर भी उनका ही कब्ज़ा है और दिल्ली के हालात इतने ख़राब हैं कि न तो नलों से साफ़ पानी आ रहा है, न तो सड़कें दुरुस्त हैं और हवा तो इतनी प्रदूषित है कि आप खुले में साँस तक नहीं ले सकते. केजरीवाल का दावा है कि अगर दिल्ली पुलिस उनके हाथों में होती तो दिल्ली चैन से सोती लेकिन पंजाब में जहां उनकी सरकार है और उनकी पुलिस है वहां पुलिस चौकियां तक सुरक्षित नहीं हैं। केजरीवाल पहले भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते थे अब तिहाड़ जेल से सरकार चलाकर शर्मनाक उदहारण पेश कर चुके हैं। उस पर उनकी सहयोगी दिल्ली की सिंघम स्वाति मालीवाल ने अलग उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
मित्रों, दिल्ली चुनावों में केजरीवाल के सामने सबसे मजबूती से जो दल इस बार भी खड़ा है पूरे भारत में विजय पताका फहरा चुकी भारतीय जनता पार्टी जिसकी आँखों में दिल्ली उसी तरह चुभ रही है जैसे कभी सम्राट अशोक की आँखों में कलिंग चुभता था. पार्टी ने इस बार दिल्ली में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री मोदी कई जनसभाएं कर चुके हैं और आप सरकार को आपदा का नाम दे चुके हैं. भाजपा का उत्साह हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत के बात सातवें आसमान पर है. भाजपा की तरफ से मोदीजी के अलावा परवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, वीरेंद्र सचदेवा, विजेंद्र गुप्ता, मनोज तिवारी, जेपी नड्डा, कपिल मिश्रा जैसे दिग्गज दिन-रात दिन-रात एक किए हुए हैं. साथ ही उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने बटेंगे तो कटेंगे के नारे के साथ प्रचार में जुटे हूए हैं। केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश और बिहार मूल के मतदाताओं के खिलाफ बयान देकर येन चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी को बैठे-बिठाए बहुत बड़ा भावनात्मक मुद्दा दे दिया है. भाजपा जानती है कि यह चुनाव केजरीवाल के लिए जीवन और मरण का चुनाव है और अगर भाजपा ने दिल्ली जीत लिया तो कमजोर विपक्ष और भी कमजोर हो जाएगा जो इनदिनों एक बार फिर से विभाजित दिखाई दे रही है.
मित्रों, रही बात कांग्रेस की तो कदाचित राजनीति को उत्सव माननेवाले राहुल गाँधी अब जाकर चुनाव में उतरे हैं. परवेश वर्मा के अनुसार "जब बीजेपी और आम आदमी पार्टी आधा पेपर लिख चुकी तब राहुल गांधी एग्जामिनेशन हॉल में घुसे हैं."
जाहिर है कांग्रेस चुनाव लड़ नहीं रही है सिर्फ लडती हुई दिखाई दे रही है वो भी इसलिए क्योंकि इंडी गठबंधन में कांग्रेस पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है और कहीं-न-कहीं एक बार फिर से तीसरा मोर्चा आकार लेने लगा है जो भविष्य में भाजपा के लिए फायदेमंद और कांग्रेस के लिए प्राणघातक साबित होगा. ईधर मैदान में कांग्रेस देर से तो आई ही है साथ ही राहुल गांधी ने इंडियन स्टेट से लड़ने की बात करके एक नये विवाद को जन्म दे दिया है जिसकी गूंज भविष्य में दूर तक जानेवाली है।
मित्रों, ऐसे में दिल्ली की जनता इस बार किस पार्टी के गले में जयमाला डालेगी इसका पता ८ फरवरी को चलेगा. उसी दिन पता चलेगा कि केजरीवाल की काठ की हांडी चौथी बार भी आग पर चढ़ती है या भी जलकर राख हो जाती है. उसी दिन पता चलेगा कि इस बार भी कांग्रेस का खाता खुलता है या नहीं और उसी दिन पता चलेगा कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का विगत २७ सालों से चल रहा वनवास समाप्त होता है या नहीं.
नोट-इस आलेख को मैंने १६ जनवरी को ही लिखा था लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से इसे अब प्रकाशित करने जा रहा हूँ. कैसा लिखा था आपकी राय का इंतजार रहेगा.
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