मित्रों,महाभारत का एक प्रसंग है। पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो चुका था। नटवरनागर श्रीकृष्ण पांडवों का दूत बनकर युद्ध रोकने का अंतिम प्रयास करने हस्तिनापुर जाने की तैयारी कर रहे थे। इस क्रम में वे द्रुपदसुता याज्ञसेनी द्रौपदी से मिलने जाते हैं। द्रौपदी अपनी चिंता व्यक्त करती हुई कहती है कि हे मधुसूदन! अगर आपकी कोशिश कामयाब हुई तो मेरे अपमान के बदले का क्या होगा? तब सर्वज्ञ श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि चिंता मत करो बहन। मेरे प्रयास के बावजूद युद्ध तो होकर रहेगा क्योंकि दुर्योधन का अभिमान उसे संधि करने नहीं देगा।
मित्रों,कुझ ऐसी ही हालत इन दिनों भारत और चीन के बीच है। भारत अभी भी युद्ध रोकना चाहता है लेकिन चीन की महत्त्वाकांक्षाएँ इस कदर सांतवें आसमान पर पहुँच चुकी हैं कि युद्ध ज्यादा समय तक टल सकेगा लगता नहीं। दुर्योधन चीन को एशिया में दूसरा शक्तिशाली राष्ट्र चाहिए ही नहीं। वह एशिया पर अपना एकछत्र राज चाहता है जो मोदी के भारत को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं। मोदी का भारत किसी को आँखें दिखाना भी नहीं चाहता और न ही उसे किसी के आगे आँखें झुकाना ही मंजूर है।
मित्रों,यही कारण है कि भारत के इतिहास में पहली बार सीमापार जाकर आतंक की फैक्ट्रियों पर हमले किए गए हैं। यही कारण है कि भारत-चीन सीमा पर पहली बार टैंकों और लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई है। यही कारण है कि भारत सरकार ने सर्वोच्च बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा को पहली बार अरूणाचल प्रदेश की यात्रा की अनुमति दी है। यही कारण है कि चीन के मोहरे पाकिस्तान को ईट का जवाब पत्थर से दिया जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने चीनी सीमा के साथ त्वरित गति से सड़कों का निर्माण किया है और भारी मात्रा में युद्धोपकरणों के आयात और निर्माण को मंजूरी दी है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इसी महीने चीन की सीमा पर स्थित सभी भारतीय राज्यों के साथ बैठक का आयोजन किया है।
मित्रों,दरअसल चीन को यह सच्चाई पच ही नहीं रही है कि नई सरकार के आने के दो सालों के भीतर ही भारत विदेशी पूंजी निवेश और जीडीपी विकास दर के मामले में उससे आगे हो गया है। साथ ही भारत का बढ़ता वैश्विक कद भी उसकी आँखों को खटक रहा हैं। कहाँ मनमोहन के समय भारत भींगी बिल्ली बना हुआ था और कहाँ मोदी के समय मेक इन इंडिया वाले शेर की तरह दहाड़ रहा है। जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव के प्रत्याशियों सहित पूरी दुनिया इस चमत्कार को नमस्कार कर रही है वहीं चीन के दसों द्वारों से इन दिनों एक साथ जलन का धुआँ निकल रहा है। ऐसे में भारत को और भी तेज गति से सैन्य तैयारी करनी होगी क्योंकि अगले कुछ सालों या महीनों में चीन कभी भी भारत पर हमला बोल सकता है। जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है तो वो कभी अपने बल पर रहा ही नहीं। एक समय था जब वो अमेरिका का पाला हुआ कुत्ता था और आज चीन का पिट्ठू है।
मित्रों,आश्चर्य होता है कि जब-जब केंद्र में भाजपा की सरकार होती है तभी चीन को भारत से परेशानी होती है। अटलजी की सरकार ने पहली बार चीन की इस कुटिल नीति को समझा था और जब परमाणु-परीक्षण के बाद पूरा पश्चिम लाल हुआ जा रहा था तब तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने सिंहगर्जना करते हुए कहा था कि हमने परमाणु-परीक्षण पाकिस्तान को ध्यान में रखकर नहीं किए हैं बल्कि चीन की तरफ से आसन्न खतरे को देखते हुए किए हैं। पहली बार अटलजी की सरकार यह समझी थी कि पाकिस्तान चीन की कठपुतली की भाँति व्यवहार कर रहा है।
मित्रों,इस समय दुनिया बारूद की ढेर पर बैठी है। पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक युद्ध की आग भीतर-ही-भीतर सुलग रही है। न जाने कब कौन-सी छोटी-बड़ी घटना बारूद को चिंगारी दे जाए और तृतीय विश्वयुद्ध का आगाज हो जाए। चाहे विश्वयुद्ध की शुरुआत सीरिया से हो या दपू एशिया से पूरी दुनिया में इस बार सबसे ज्यादा नुकसान एशिया को ही होगा यह ब्रह्मा के लिखे की तरह निश्चित है।
मित्रों,संस्कृत में एक श्लोक है-तावत् भयस्य भेतव्यं,यावत् भयं न आगतम्। आगतं हि भयं वीक्ष्य, प्रहर्तव्यं अशंकया।। अर्थात् संकट से तब तक ही डरना चाहिए जब तक भय पास न आया हो। आए हुए संकट को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिए।। भारत के लिए भी अब चीन से डरने का समय बीत चुका है क्योंकि पाकिस्तान को मोहरा बनाकर चीन पहले ही हमारे विरुद्ध युद्ध का शंखनाद कर चुका है। अब हमें चीन का डटकर सामना करना है और उसके प्रत्येक कदम का समुचित और दोगुनी ताकत से जवाब देना है। हमारे समक्ष और कोई विकल्प है भी नहीं। जीवित रहे तो जयजयकार और मारे गए तो वीरगति। हार का तो प्रश्न ही नहीं क्योंकि यतो धर्मः ततो जयः।
मित्रों,आज फिर से याद आ रहे हैं माणिकलाल बख्तियारपुरी जिन्होंने 1962 में बाल्यावस्था में चीन को ललकारते हुए कहा था-चिनमा से करबई लड़ईया हो भैया,चिनमा से करबई लड़ईया। छोड़ देबई हमहुँ पढ़ईया हो भैया चिनमा से करबई लड़ईया।।
मित्रों,कुझ ऐसी ही हालत इन दिनों भारत और चीन के बीच है। भारत अभी भी युद्ध रोकना चाहता है लेकिन चीन की महत्त्वाकांक्षाएँ इस कदर सांतवें आसमान पर पहुँच चुकी हैं कि युद्ध ज्यादा समय तक टल सकेगा लगता नहीं। दुर्योधन चीन को एशिया में दूसरा शक्तिशाली राष्ट्र चाहिए ही नहीं। वह एशिया पर अपना एकछत्र राज चाहता है जो मोदी के भारत को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं। मोदी का भारत किसी को आँखें दिखाना भी नहीं चाहता और न ही उसे किसी के आगे आँखें झुकाना ही मंजूर है।
मित्रों,यही कारण है कि भारत के इतिहास में पहली बार सीमापार जाकर आतंक की फैक्ट्रियों पर हमले किए गए हैं। यही कारण है कि भारत-चीन सीमा पर पहली बार टैंकों और लड़ाकू विमानों की तैनाती की गई है। यही कारण है कि भारत सरकार ने सर्वोच्च बौद्ध धर्मगुरू दलाई लामा को पहली बार अरूणाचल प्रदेश की यात्रा की अनुमति दी है। यही कारण है कि चीन के मोहरे पाकिस्तान को ईट का जवाब पत्थर से दिया जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने चीनी सीमा के साथ त्वरित गति से सड़कों का निर्माण किया है और भारी मात्रा में युद्धोपकरणों के आयात और निर्माण को मंजूरी दी है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इसी महीने चीन की सीमा पर स्थित सभी भारतीय राज्यों के साथ बैठक का आयोजन किया है।
मित्रों,दरअसल चीन को यह सच्चाई पच ही नहीं रही है कि नई सरकार के आने के दो सालों के भीतर ही भारत विदेशी पूंजी निवेश और जीडीपी विकास दर के मामले में उससे आगे हो गया है। साथ ही भारत का बढ़ता वैश्विक कद भी उसकी आँखों को खटक रहा हैं। कहाँ मनमोहन के समय भारत भींगी बिल्ली बना हुआ था और कहाँ मोदी के समय मेक इन इंडिया वाले शेर की तरह दहाड़ रहा है। जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपतीय चुनाव के प्रत्याशियों सहित पूरी दुनिया इस चमत्कार को नमस्कार कर रही है वहीं चीन के दसों द्वारों से इन दिनों एक साथ जलन का धुआँ निकल रहा है। ऐसे में भारत को और भी तेज गति से सैन्य तैयारी करनी होगी क्योंकि अगले कुछ सालों या महीनों में चीन कभी भी भारत पर हमला बोल सकता है। जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है तो वो कभी अपने बल पर रहा ही नहीं। एक समय था जब वो अमेरिका का पाला हुआ कुत्ता था और आज चीन का पिट्ठू है।
मित्रों,आश्चर्य होता है कि जब-जब केंद्र में भाजपा की सरकार होती है तभी चीन को भारत से परेशानी होती है। अटलजी की सरकार ने पहली बार चीन की इस कुटिल नीति को समझा था और जब परमाणु-परीक्षण के बाद पूरा पश्चिम लाल हुआ जा रहा था तब तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने सिंहगर्जना करते हुए कहा था कि हमने परमाणु-परीक्षण पाकिस्तान को ध्यान में रखकर नहीं किए हैं बल्कि चीन की तरफ से आसन्न खतरे को देखते हुए किए हैं। पहली बार अटलजी की सरकार यह समझी थी कि पाकिस्तान चीन की कठपुतली की भाँति व्यवहार कर रहा है।
मित्रों,इस समय दुनिया बारूद की ढेर पर बैठी है। पश्चिम एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक युद्ध की आग भीतर-ही-भीतर सुलग रही है। न जाने कब कौन-सी छोटी-बड़ी घटना बारूद को चिंगारी दे जाए और तृतीय विश्वयुद्ध का आगाज हो जाए। चाहे विश्वयुद्ध की शुरुआत सीरिया से हो या दपू एशिया से पूरी दुनिया में इस बार सबसे ज्यादा नुकसान एशिया को ही होगा यह ब्रह्मा के लिखे की तरह निश्चित है।
मित्रों,संस्कृत में एक श्लोक है-तावत् भयस्य भेतव्यं,यावत् भयं न आगतम्। आगतं हि भयं वीक्ष्य, प्रहर्तव्यं अशंकया।। अर्थात् संकट से तब तक ही डरना चाहिए जब तक भय पास न आया हो। आए हुए संकट को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिए।। भारत के लिए भी अब चीन से डरने का समय बीत चुका है क्योंकि पाकिस्तान को मोहरा बनाकर चीन पहले ही हमारे विरुद्ध युद्ध का शंखनाद कर चुका है। अब हमें चीन का डटकर सामना करना है और उसके प्रत्येक कदम का समुचित और दोगुनी ताकत से जवाब देना है। हमारे समक्ष और कोई विकल्प है भी नहीं। जीवित रहे तो जयजयकार और मारे गए तो वीरगति। हार का तो प्रश्न ही नहीं क्योंकि यतो धर्मः ततो जयः।
मित्रों,आज फिर से याद आ रहे हैं माणिकलाल बख्तियारपुरी जिन्होंने 1962 में बाल्यावस्था में चीन को ललकारते हुए कहा था-चिनमा से करबई लड़ईया हो भैया,चिनमा से करबई लड़ईया। छोड़ देबई हमहुँ पढ़ईया हो भैया चिनमा से करबई लड़ईया।।
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