बापू आज तुम्हारी पुण्यतिथि है.आज तुम हमें बहुत याद आ रहे हो.मैं तुम्हें याद करने का कोई दिखावा नहीं करूंगा क्योंकि तुम हमें सचमुच याद आ रहे हो.तुम्हारे जाने के बाद हमने बहुत-से पाप किए हैं.अगर सूची बनाने बैठ जाएँ तो शायद दुनिया में कागज की कमी पैदा हो जाए.फ़िर भी क्या करूँ,रूपये पर तेरी तस्वीर देखकर दिल भर आया है,गला रूंध रहा है और आँखें नमकीन हो रही हैं.हिम्मत तो नहीं हो रही लेकिन यह सोंचकर कि तुम तो राष्ट्रपिता हो,पूरे देश के पिता; इसलिए क्षमा कर दोगे;मैं अपने समस्त देशवासियों की ओर से हमारी अनगिनत,अक्षम्य गलतियों के लिए क्षमा मांग रहा हूँ.सबसे पहले तो मैं तुमसे इसलिए क्षमा चाहता हूँ कि हम तुम्हारे सपनों का भारत नहीं बना सके,हमने तुम्हारी सीखों पर ध्यान नहीं दिया और स्वार्थ में अंधे हो गए.
बापू तुमने आजादी के तत्काल बाद हमसे से कांग्रेस को भंग कर देने को कहा था.तुम समझ गए थे कि हमने तुम्हारा उपयोग भर किया है और आजादी मिल जाने के बाद तुम्हें व तुम्हारे विचारों को किसी कोने में फेंक देंगे.हमने ऐसा किया भी.लेकिन तुम खुद भी तो सत्ता से दूर,किनारे हो गए थे.क्यों किया था तुमने ऐसा?तुम जिद पर अड़ जाते तो कांग्रेस बिना भंग हुए रह जाता क्या?लेकिन तुमने इस मुद्दे पर न तो धरना दिया और न ही अनशन की घोषणा ही की.
बापू हम तो साधारण इन्सान हैं इसलिए जैसे ही सत्तासुख भोगने का मौका मिला बेईमानी पर उतर आए.हमारे फाइनेंसरों ने जैसा कहा हम वैसी ही नीतियाँ बनाते गए.अब तुम्हारा गांधीवाद इस बारे में क्या कहता है यह तो तुम्हीं जानो.हमारा स्वार्थवाद तो यही कहता है कि जो लक्ष्मी के दर्शन कराए उसी का समर्थन करो.तुम कहते थे कि साधन की पवित्रता जरुरी है लेकिन हमने सिर्फ रूपये को ही पवित्र समझा है और उसकी पवित्रता को और बढ़ाने के लिए ही हमने तुम्हें भी रूपये पर बिठा दिया है.हम उम्मीद करते हैं कि इससे तुम्हारी आत्मा को शांति मिली होगी.
बापू तुम कभी सत्ता में रहे हो?नहीं न?फ़िर तुम्हें तो यह पता भी नहीं होगा कि सत्ता का नशा क्या होता है?जब देश या राज्य का सबकुछ किसी खास आदमी के हाथों में आ जाता है,तब उस पर और उसके दिलो-दिमाग पर एक नशा जैसा तारी हो जाता है.वह चौबीसों घन्टे उसी नशे में रहता है,होश में कभी रहता ही नहीं.फ़िर वह जिस तरह के काम करने से उसका और उसके अपनों का फायदा होता है,करता जाता है.तुम नहीं जानते हो,हमने कभी जानबूझकर चारा नहीं खाया और न ही पेट्रोल पिया,सब सत्ता के नशे ने हमसे करवाया.फ़िर भी गलती तो गलती होती है यही सोंचकर माफ़ी मांग रहा हूँ.
बापू जब तक आजादी की लड़ाई जारी थी तब तक तो हमें लग रहा था कि आजादी बहुत बड़ी चीज है लेकिन जब आजादी मिल गई तब पाया कि यह आजादी तो आजादी है ही नहीं.चारों ओर से कानून के बंधन.इसलिए शुरू में हमें छुप-छुपकर देश से बाहर श्यामालक्ष्मी को भेजना पड़ा.तुम्हारी नैतिकता का पाठ पढ़कर तब की जनता बेईमानी के खिलाफ हो रही थी इसलिए करता भी क्या?यहाँ मैं अपनी गलती नहीं मानता इसलिए माफ़ी नहीं मांगूंगा.अगर तुमने निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखने का समर्थन नहीं किया होता तो आज हमारा जो धन स्विस बैंक में जमा है अपने देश में ही होता.
बापू तुम आज भी हमें दिलोजान से प्यारे हो.यह हमारी तुम्हारे प्रति मोहब्बत ही है जो हम तुम्हारी तस्वीर ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में घर में और अपने बैंक खाते में इकठ्ठा करने के लिए अपनों तक का भी खून कर डालते हैं.जब अहिंसा यानी साम,दाम और दंड से बात नहीं बने तो अंत में हिंसा यानी भेद का विकल्प ही तो बचता है.हम भी क्या करें कुछ ईमानदारी की खुजलीवाले लोग बिना बल प्रयोग के मानते ही नहीं;वैसे हम भी नहीं चाहते कि कहीं हिंसा हो.हमें भी पता है अहिंसा का महत्व.बापू तुमने ही तो कहा था जीओ और जीने दो.कोई हमें अपने मतलब की सार्थक जिंदगी नहीं जीने दे तो हम क्या करें?तब तो हमीं जियेंगे न बांकी दुनिया चाहे जीये या मरे.तुम्हारा ही तो कहना था कि अधिकार के लिए संघर्ष करना चाहिए.
रही बात सत्य की तो सत्य है ही क्या?यह दुनिया ही माया है फ़िर अगर हम माया के पीछे भागते हैं तो इसमें बुरा ही क्या है?जब कुछ भी सत्य नहीं है तो फ़िर हम सत्य को कहाँ ढूंढें और क्यों ढूंढें?दिन-रात झूठ बोलनेवाले लोग कार पर चलते है और सत्य के पीछे भागनेवाले दाने-दाने को मोहताज हैं.तुम्हारे युग में भी ऐसा होता था लेकिन कम था.तुम भले ही अभाव में जी ले सकते थे सब लोग तो नहीं जी सकते.पूरे घर-परिवार का दबाव रहता है इसलिए हम भारतीयों में से ९९ प्रतिशत से भी ज्यादा भारतीयों ने तुम्हारे सत्य को भी छोड़ दिया है चाहो तो इसके लिए तुम हमें माफ़ करो या नहीं करो.चाहो तो इसे कायरता भी कह सकते हो.
बापू सीधे लोगों का जमाना नहीं रहा रे.अब देखो न तेरे मरे हुए कितने साल हो गए लेकिन लोग तुझे आज भी गालियाँ देते हैं.कहते हैं कि देश की यह दुरावस्था तेरे कारण हुई हैं.कैसे?पूछने पर कहते हैं कि नेहरु को तुमने ही प्रधानमंत्री बना दिया था.तुम्हीं जानो सच्चाई क्या है और यह आरोप कहाँ तक सही है?लेकिन जो लोग तुम्हें गरियाते हुए नहीं थकते वे कौन-से देशहित में कर्म कर रहे हैं?शायद वे तेरे द्वारा स्थापित आदर्शों के आगे हीनभाव महसूस करते हैं,इसलिए यह वाचिक हिंसा करते हैं.उन्हें भी माफ़ कर देना तुम.मैं उन लोगों में से नहीं हूँ रे.मैं आज भी गांधीवादी हूँ और कोई मेरा साथ नहीं भी दे तो भी गांधीवादी ही रहूँगा,एक अकेला गांधीवादी.तूने भी देश की आजादी की धुन में घर-परिवार की कीमत चुकाई थी.वो तेरे बेटे हरिलाल ने तो बगावत ही कर दी थी न.मैं भी अपने घर में बगावत झेल रहा हूँ.क्या करुँ तेरी ही तरह जिद्दी हूँ न,चाहकर भी झुक नहीं सकता!?
बापू तुमने आजादी के तत्काल बाद हमसे से कांग्रेस को भंग कर देने को कहा था.तुम समझ गए थे कि हमने तुम्हारा उपयोग भर किया है और आजादी मिल जाने के बाद तुम्हें व तुम्हारे विचारों को किसी कोने में फेंक देंगे.हमने ऐसा किया भी.लेकिन तुम खुद भी तो सत्ता से दूर,किनारे हो गए थे.क्यों किया था तुमने ऐसा?तुम जिद पर अड़ जाते तो कांग्रेस बिना भंग हुए रह जाता क्या?लेकिन तुमने इस मुद्दे पर न तो धरना दिया और न ही अनशन की घोषणा ही की.
बापू हम तो साधारण इन्सान हैं इसलिए जैसे ही सत्तासुख भोगने का मौका मिला बेईमानी पर उतर आए.हमारे फाइनेंसरों ने जैसा कहा हम वैसी ही नीतियाँ बनाते गए.अब तुम्हारा गांधीवाद इस बारे में क्या कहता है यह तो तुम्हीं जानो.हमारा स्वार्थवाद तो यही कहता है कि जो लक्ष्मी के दर्शन कराए उसी का समर्थन करो.तुम कहते थे कि साधन की पवित्रता जरुरी है लेकिन हमने सिर्फ रूपये को ही पवित्र समझा है और उसकी पवित्रता को और बढ़ाने के लिए ही हमने तुम्हें भी रूपये पर बिठा दिया है.हम उम्मीद करते हैं कि इससे तुम्हारी आत्मा को शांति मिली होगी.
बापू तुम कभी सत्ता में रहे हो?नहीं न?फ़िर तुम्हें तो यह पता भी नहीं होगा कि सत्ता का नशा क्या होता है?जब देश या राज्य का सबकुछ किसी खास आदमी के हाथों में आ जाता है,तब उस पर और उसके दिलो-दिमाग पर एक नशा जैसा तारी हो जाता है.वह चौबीसों घन्टे उसी नशे में रहता है,होश में कभी रहता ही नहीं.फ़िर वह जिस तरह के काम करने से उसका और उसके अपनों का फायदा होता है,करता जाता है.तुम नहीं जानते हो,हमने कभी जानबूझकर चारा नहीं खाया और न ही पेट्रोल पिया,सब सत्ता के नशे ने हमसे करवाया.फ़िर भी गलती तो गलती होती है यही सोंचकर माफ़ी मांग रहा हूँ.
बापू जब तक आजादी की लड़ाई जारी थी तब तक तो हमें लग रहा था कि आजादी बहुत बड़ी चीज है लेकिन जब आजादी मिल गई तब पाया कि यह आजादी तो आजादी है ही नहीं.चारों ओर से कानून के बंधन.इसलिए शुरू में हमें छुप-छुपकर देश से बाहर श्यामालक्ष्मी को भेजना पड़ा.तुम्हारी नैतिकता का पाठ पढ़कर तब की जनता बेईमानी के खिलाफ हो रही थी इसलिए करता भी क्या?यहाँ मैं अपनी गलती नहीं मानता इसलिए माफ़ी नहीं मांगूंगा.अगर तुमने निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखने का समर्थन नहीं किया होता तो आज हमारा जो धन स्विस बैंक में जमा है अपने देश में ही होता.
बापू तुम आज भी हमें दिलोजान से प्यारे हो.यह हमारी तुम्हारे प्रति मोहब्बत ही है जो हम तुम्हारी तस्वीर ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में घर में और अपने बैंक खाते में इकठ्ठा करने के लिए अपनों तक का भी खून कर डालते हैं.जब अहिंसा यानी साम,दाम और दंड से बात नहीं बने तो अंत में हिंसा यानी भेद का विकल्प ही तो बचता है.हम भी क्या करें कुछ ईमानदारी की खुजलीवाले लोग बिना बल प्रयोग के मानते ही नहीं;वैसे हम भी नहीं चाहते कि कहीं हिंसा हो.हमें भी पता है अहिंसा का महत्व.बापू तुमने ही तो कहा था जीओ और जीने दो.कोई हमें अपने मतलब की सार्थक जिंदगी नहीं जीने दे तो हम क्या करें?तब तो हमीं जियेंगे न बांकी दुनिया चाहे जीये या मरे.तुम्हारा ही तो कहना था कि अधिकार के लिए संघर्ष करना चाहिए.
रही बात सत्य की तो सत्य है ही क्या?यह दुनिया ही माया है फ़िर अगर हम माया के पीछे भागते हैं तो इसमें बुरा ही क्या है?जब कुछ भी सत्य नहीं है तो फ़िर हम सत्य को कहाँ ढूंढें और क्यों ढूंढें?दिन-रात झूठ बोलनेवाले लोग कार पर चलते है और सत्य के पीछे भागनेवाले दाने-दाने को मोहताज हैं.तुम्हारे युग में भी ऐसा होता था लेकिन कम था.तुम भले ही अभाव में जी ले सकते थे सब लोग तो नहीं जी सकते.पूरे घर-परिवार का दबाव रहता है इसलिए हम भारतीयों में से ९९ प्रतिशत से भी ज्यादा भारतीयों ने तुम्हारे सत्य को भी छोड़ दिया है चाहो तो इसके लिए तुम हमें माफ़ करो या नहीं करो.चाहो तो इसे कायरता भी कह सकते हो.
बापू सीधे लोगों का जमाना नहीं रहा रे.अब देखो न तेरे मरे हुए कितने साल हो गए लेकिन लोग तुझे आज भी गालियाँ देते हैं.कहते हैं कि देश की यह दुरावस्था तेरे कारण हुई हैं.कैसे?पूछने पर कहते हैं कि नेहरु को तुमने ही प्रधानमंत्री बना दिया था.तुम्हीं जानो सच्चाई क्या है और यह आरोप कहाँ तक सही है?लेकिन जो लोग तुम्हें गरियाते हुए नहीं थकते वे कौन-से देशहित में कर्म कर रहे हैं?शायद वे तेरे द्वारा स्थापित आदर्शों के आगे हीनभाव महसूस करते हैं,इसलिए यह वाचिक हिंसा करते हैं.उन्हें भी माफ़ कर देना तुम.मैं उन लोगों में से नहीं हूँ रे.मैं आज भी गांधीवादी हूँ और कोई मेरा साथ नहीं भी दे तो भी गांधीवादी ही रहूँगा,एक अकेला गांधीवादी.तूने भी देश की आजादी की धुन में घर-परिवार की कीमत चुकाई थी.वो तेरे बेटे हरिलाल ने तो बगावत ही कर दी थी न.मैं भी अपने घर में बगावत झेल रहा हूँ.क्या करुँ तेरी ही तरह जिद्दी हूँ न,चाहकर भी झुक नहीं सकता!?