मैं यूं तो अंतर्मुखी और एकांतप्रिय आदमी हूँ लेकिन परसों कुछ इस तरह के हालात बन गए कि मुझे एक विद्यालय के गणतंत्र दिवस समारोह में जाना पड़ गया.वहां शिक्षण को धंधा बना चुके शिक्षक बार-बार अभिभावकों से उनके बेटे-बेटियों को डॉक्टर,ईन्जीनियर बनाने का वादा कर रहे थे और अभिभावक भी यंत्रवत तालियाँ पीटे जा रहे थे.शायद उनकी नजर में डॉक्टरी-ईन्जीनीयरिंग की प्रवेश परीक्षा पास करा देने लायक ज्ञान बच्चे के दिमाग में फीड कर देना या ठूंस देना ही शिक्षा है.
क्या सचमुच इसी का नाम शिक्षा है?अगर हाँ तो फ़िर देश की हालत इतनी ख़राब क्यों है?क्यों देश में दिन-ब-दिन अराजकता बढती जा रही है?क्यों अति पढ़े-लिखे लोग भी भ्रष्टाचार करने से नहीं चूकते?स्विस बैंक में जो भारतीयों का लगभग ९० लाख करोड़ रूपया जमा है वह किसी अनपढ़ देहाती का नहीं है बल्कि देश-विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़े-लिखे लोगों का है.ज्यों-ज्यों देश में साक्षरता बढ़ रही है,भ्रष्टाचार भी बढ़ता जा रहा है.साथ ही भारतीय समाज में भ्रष्टाचरण की स्वीकार्यता भी बढती जा रही है.वास्तव में आज के भारत को ईन्जीनियर,डॉक्टर व मैनेजर की जरुरत नहीं है.इनकी कोई कमी नहीं है भारत में.अगर भारत में किसी चीज की कमी है तो वह है ईमानदार ईन्सानों की.ईमानदारी आज हमारे देश में अत्यंत दुर्लभ भाववाचक संज्ञा हो गई है और उतने ही दुर्लभ हो गए हैं ईमानदार लोग.
मैंने बचपन में संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक में एक कहानी पढ़ी थी.उस कहानी में चार माताएं कुएँ से घर जल ला रही होती हैं और रास्ते में अपने-अपने पुत्रों के बारे में बात कर रही होती हैं.एक कहती है कि मेरा बेटा बहुत अच्छा धावक है.इतने में उसका बेटा वहां से हिरण की तरह कुलांचे भरता हुआ गुजर जाता है.दूसरी माँ कहती है कि उसका बेटा कोयल की तरह गाता है.तभी उसका बेटा मीठे स्वर में गाना गाता हुआ आता है और आगे बढ़ जाता है.तीसरी महिला का बेटा हाथी की तरह झूमता हुआ आता है और बिना ठहरे निकल लेता है.चौथी के बेटे में कोई विशेष गुण नहीं होता.अतः पूछने पर वह कहती है कि मेरा बेटा बस मेरा बेटा है.तभी उसका बेटा आता है और माँ के माथे से पानी की गगरी लेकर सबके साथ चलने लगता है.
वास्तव में आज भारतमाता को इसी चौथी तरह के बेटे की जरूरत है जो उससे अपार प्यार करे चाहे उसमें अन्य कोई विशेष गुण हो या नहीं हो.आज के माता-पिता अपने बच्चों को एक अच्छा ईन्सान बनना नहीं चाहते.वो चाहते हैं कि उनके बच्चे पैसा कमाने की मशीन बन जाएँ बस.बाद में जब बेटा या बेटी माता-पिता को आदर देना तो दूर साथ में रखने को भी तैयार नहीं होते तो फ़िर ईधर-उधार उसे गालियाँ देते फिरते हैं.दिल्ली में ही ऐसे अनगिनत वृद्ध माता-पिता हैं जिनकी संतानें उनके साथ नहीं रहतीं और जिन्हें मजबूरी में बड़ी-बड़ी कोठियों में एकाकी जीवन बिताना पड़ रहा है.उनमें से कईयों के बच्चों ने तो दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसा ली है.
मित्रों यह नई प्रवृत्ति जो अभी दिल्ली में दिख रही है वह भविष्य में पूरे भारत में दिखनेवाली है.स्वामी विवेकानंद के अनुसार हम लोग पौधरूपी बच्चों को सिर्फ अच्छा वातावरण दे सकते हैं,अच्छा खाद-पानी दे सकते हैं;हम जबरन उसे कुछ बना नहीं सकते.लेकिन आज हो क्या रहा है?बच्चे के जन्म लेते ही हम यह निर्धारित कर लेते हैं कि हमारा बच्चा क्या बनेगा.हम अक्सर परेशान रहते हैं कि बच्चे को कम नंबर क्यों आ रहे हैं?कई बार नंबर बढ़ाने के लिए अभिभावक गलत साधनों का भी सहारा लेते हैं.अभी कल-परसों ही पटना मेडिकल कॉलेज के एक छात्र ने रैगिंग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली.वह छात्र निश्चित रूप से मेधावी था.बल्कि मैं तो कहूँगा कि अत्यंत मेधावी था.लेकिन था डरपोक क्योंकि उसे परिस्थितियों से टकराने व संघर्ष करने की शिक्षा न तो उसके माता-पिता ने ही दी थी और न ही उसके शिक्षकों ने.अगर हमारे बच्चों ने इस तरह की मेधा प्राप्त कर भी ली तो उसका क्या लाभ?जीवन में छोटी-सी मुश्किल आएगी और वह घबराकर जीवन का ही अंत कर लेगा.
मित्रों आज हमारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा है.परिवार और समाज टूट रहे हैं और इसके लिए जिम्मेदार है हमारी शिक्षा-प्रणाली.हमें अपनी शिक्षा-प्रणाली को न केवल रोजगारपरक बनना होगा वरन उसमें ऐसे वांछित परिवर्तन भी करने होंगे जिससे हमारे बच्चे चरित्रवान बन सकें.हम भारत का वर्तमान हैं और हमारे बच्चे भारत के भविष्य.हमारे बच्चे अगर चरित्रवान होंगे तो हमारा देश भी चरित्रवान बनेगा और तब भारत का नाम भ्रष्ट देशों की सूची में नहीं बल्कि ईमानदार देशों की सूची में होगा,वो भी पहले नंबर पर.तो आप अपने बच्चे और अपने देश को क्या और कैसा बनाना चाहते हैं???
क्या सचमुच इसी का नाम शिक्षा है?अगर हाँ तो फ़िर देश की हालत इतनी ख़राब क्यों है?क्यों देश में दिन-ब-दिन अराजकता बढती जा रही है?क्यों अति पढ़े-लिखे लोग भी भ्रष्टाचार करने से नहीं चूकते?स्विस बैंक में जो भारतीयों का लगभग ९० लाख करोड़ रूपया जमा है वह किसी अनपढ़ देहाती का नहीं है बल्कि देश-विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़े-लिखे लोगों का है.ज्यों-ज्यों देश में साक्षरता बढ़ रही है,भ्रष्टाचार भी बढ़ता जा रहा है.साथ ही भारतीय समाज में भ्रष्टाचरण की स्वीकार्यता भी बढती जा रही है.वास्तव में आज के भारत को ईन्जीनियर,डॉक्टर व मैनेजर की जरुरत नहीं है.इनकी कोई कमी नहीं है भारत में.अगर भारत में किसी चीज की कमी है तो वह है ईमानदार ईन्सानों की.ईमानदारी आज हमारे देश में अत्यंत दुर्लभ भाववाचक संज्ञा हो गई है और उतने ही दुर्लभ हो गए हैं ईमानदार लोग.
मैंने बचपन में संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक में एक कहानी पढ़ी थी.उस कहानी में चार माताएं कुएँ से घर जल ला रही होती हैं और रास्ते में अपने-अपने पुत्रों के बारे में बात कर रही होती हैं.एक कहती है कि मेरा बेटा बहुत अच्छा धावक है.इतने में उसका बेटा वहां से हिरण की तरह कुलांचे भरता हुआ गुजर जाता है.दूसरी माँ कहती है कि उसका बेटा कोयल की तरह गाता है.तभी उसका बेटा मीठे स्वर में गाना गाता हुआ आता है और आगे बढ़ जाता है.तीसरी महिला का बेटा हाथी की तरह झूमता हुआ आता है और बिना ठहरे निकल लेता है.चौथी के बेटे में कोई विशेष गुण नहीं होता.अतः पूछने पर वह कहती है कि मेरा बेटा बस मेरा बेटा है.तभी उसका बेटा आता है और माँ के माथे से पानी की गगरी लेकर सबके साथ चलने लगता है.
वास्तव में आज भारतमाता को इसी चौथी तरह के बेटे की जरूरत है जो उससे अपार प्यार करे चाहे उसमें अन्य कोई विशेष गुण हो या नहीं हो.आज के माता-पिता अपने बच्चों को एक अच्छा ईन्सान बनना नहीं चाहते.वो चाहते हैं कि उनके बच्चे पैसा कमाने की मशीन बन जाएँ बस.बाद में जब बेटा या बेटी माता-पिता को आदर देना तो दूर साथ में रखने को भी तैयार नहीं होते तो फ़िर ईधर-उधार उसे गालियाँ देते फिरते हैं.दिल्ली में ही ऐसे अनगिनत वृद्ध माता-पिता हैं जिनकी संतानें उनके साथ नहीं रहतीं और जिन्हें मजबूरी में बड़ी-बड़ी कोठियों में एकाकी जीवन बिताना पड़ रहा है.उनमें से कईयों के बच्चों ने तो दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसा ली है.
मित्रों यह नई प्रवृत्ति जो अभी दिल्ली में दिख रही है वह भविष्य में पूरे भारत में दिखनेवाली है.स्वामी विवेकानंद के अनुसार हम लोग पौधरूपी बच्चों को सिर्फ अच्छा वातावरण दे सकते हैं,अच्छा खाद-पानी दे सकते हैं;हम जबरन उसे कुछ बना नहीं सकते.लेकिन आज हो क्या रहा है?बच्चे के जन्म लेते ही हम यह निर्धारित कर लेते हैं कि हमारा बच्चा क्या बनेगा.हम अक्सर परेशान रहते हैं कि बच्चे को कम नंबर क्यों आ रहे हैं?कई बार नंबर बढ़ाने के लिए अभिभावक गलत साधनों का भी सहारा लेते हैं.अभी कल-परसों ही पटना मेडिकल कॉलेज के एक छात्र ने रैगिंग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली.वह छात्र निश्चित रूप से मेधावी था.बल्कि मैं तो कहूँगा कि अत्यंत मेधावी था.लेकिन था डरपोक क्योंकि उसे परिस्थितियों से टकराने व संघर्ष करने की शिक्षा न तो उसके माता-पिता ने ही दी थी और न ही उसके शिक्षकों ने.अगर हमारे बच्चों ने इस तरह की मेधा प्राप्त कर भी ली तो उसका क्या लाभ?जीवन में छोटी-सी मुश्किल आएगी और वह घबराकर जीवन का ही अंत कर लेगा.
मित्रों आज हमारा देश संक्रमण काल से गुजर रहा है.परिवार और समाज टूट रहे हैं और इसके लिए जिम्मेदार है हमारी शिक्षा-प्रणाली.हमें अपनी शिक्षा-प्रणाली को न केवल रोजगारपरक बनना होगा वरन उसमें ऐसे वांछित परिवर्तन भी करने होंगे जिससे हमारे बच्चे चरित्रवान बन सकें.हम भारत का वर्तमान हैं और हमारे बच्चे भारत के भविष्य.हमारे बच्चे अगर चरित्रवान होंगे तो हमारा देश भी चरित्रवान बनेगा और तब भारत का नाम भ्रष्ट देशों की सूची में नहीं बल्कि ईमानदार देशों की सूची में होगा,वो भी पहले नंबर पर.तो आप अपने बच्चे और अपने देश को क्या और कैसा बनाना चाहते हैं???
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