कहते हैं कि जनता की याददाश्त बड़ी कमजोर होती है और वह किसी भी घटना को बहुत जल्दी भूल जाती है.हमारे नेता लोग भले ही ऐसा मानते हों लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की जनता इतनी भी भुलक्कड़ नहीं है कि दो-ढाई साल पहले हुए मुम्बई हमले और उसके बाद हमारे प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए बयान को भूल जाए.मुझे तो याद है और मुझे पूरा यकीन है कि आपको भी यह पूरी तरह से याद होगा कि नवम्बर,२००८ के मुम्बई हमले के बाद हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने अपने श्रीमुख से कौन-से शब्द उगले थे.उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि जब तक पाकिस्तान मुम्बई हमले के दोषियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं करेगा तब तक भारत उससे बातचीत नहीं करेगा.साथ ही उन्होंने स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को यह चेतावनी भी दी थी कि वह भारत की सहनशीलता की परीक्षा नहीं ले.अगर पाकिस्तानी आतंकवादियों की ओर से आगे कोई भी इस तरह का हमला होता है तो भारत सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रहेगी.लेकिन हम देख रहे हैं कि भले ही पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा २६-११ के बाद इस तरह का हमला नहीं किया गया हो,पाकिस्तान ने मुम्बई हमलों के लिए जिम्मेदार दुर्दांत आतंकवादी हाफिज सईद या किसी अन्य के खिलाफ कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाया है.साथ ही उसने हाफिज सईद को पूरे पाकिस्तान में घूम-घूम कर भारत विरोधी प्रचार करने की छूट भी दे रखी है.
मित्रों,ऐसे में यह सवाल उठता है कि दोनों देशों के संबंधों में ऐसा क्या हो गया है,ऐसी कौन-सी प्रगति हो गयी हैं जिससे भारत सरकार पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत करने को उतावली हो रही है.जैसे ही यह तय हुआ कि विश्वकप के सेमीफाइनल में भारत और पाकिस्तान मोहाली में आमने-सामने होने जा रहे हैं,मनमोहन सिंह उतावले हो उठे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बगलगीर बनाकर मैच देखने के लिए.वैसे भी यह बातचीत सिर्फ बातचीत के लिए हो रही है इससे कुछ भी निकलकर बाहर नहीं आनेवाला.निश्चित रूप से केंद्र की निगाहें कहीं और हैं और निशाना कहीं और.अगर हम सूक्ष्मान्वेषण करें तो पाएँगे कि केंद्र का मानना है कि अगर वह पाकिस्तान के साथ बातचीत प्रारंभ करती है तो इसका सीधा फायदा उसे बंगाल,केरल और असम में होनेवाले चुनावों में होगा.कहना न होगा इन तीनों राज्यों में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है.हो सकता है कि बातचीत शुरू करने के लिए केंद्र पर अमेरिका की तरफ से भी दबाव पड़ रहा हो.अगर विकीलीक्स के खुलासों पर भरोसा करें तो ऐसा होना असंभव भी नहीं है.
मित्रों,अगर इन बातों में तनिक भी सच्चाई है तो इसका सीधा मतलब यह है कि हमारी धर्मनिरपेक्ष केंद्र सरकार को भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर भरोसा नहीं है और वह यह मानती है कि हमारे मुसलमान भाई हिंदुस्तान से ज्यादा पाकिस्तानपरस्त हैं.साथ ही अगर दूसरी आशंका सच है तो इसका अर्थ यह होगा कि हमारी विदेश-नीति सम्प्रभु नहीं है और हम अमेरिका के हाथों की एक कठपुतली-मात्र हैं.
मित्रों,पिछली बार जब भारत और पाकिस्तान दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भिड़े थे और भारत सरकार ने क्रिकेट कूटनीति का प्रयोग करते हुए पाकिस्तानी दर्शकों के लिए पलक-पांवड़े बिछा दिए थे तब भी मैंने कहा था की यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है और पाकिस्तानी आतंकवादी दर्शक के रूप में भारत में दाखिल हो सकते हैं और ऐसा हुआ भी.पाकिस्तान से आए सैकड़ों दर्शक भारत आकर गायब हो गए.फिर हुआ मुम्बई हमला.इस हमले से पहले और इसके बाद पकडे गए कई पाकिस्तानी आतंकियों ने यह स्वीकार किया है कि वे दिल्ली मैच देखने के बहाने भारत के घुसे थे.फिर से मैच के चलते पाकिस्तानियों को जल्दी में और धड़ल्ले से वीजा बांटा जा रहा है.इस समय भारत और पंजाब सरकार का एकमात्र लक्ष्य मोहाली मैच का शांतिपूर्वक आयोजन संपन्न करवाना है.इतनी जल्दीबाजी में तो किसी भारतीय दर्शक का रिकार्ड जांचना भी संभव नहीं है.हमारी सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियां अपने कर्तव्यों को लेकर कितनी तत्पर है इसे मैं एक उदाहरण द्वारा बताना चाहूँगा.अभी जब राष्ट्रमंडल खेल होने वाले थे तो संवाददाताओं को पास देने से पूर्व उनके आपराधिक रिकार्डों की जाँच होनी थी.ऐसा किए बिना ही पास बाँट दिए गए और खेल समाप्त भी हो गए.खेल की समाप्ति के कोई डेढ़-दो महीने बाद बीबीसी के एक संवाददाता जो बिहारी हैं के घर पुलिस पहुँच गयी और पूछताछ करने लगी.घरवाले डर गए और संवाददाता को बताया.पुलिस से पूछने पर पता चला कि राष्ट्रमंडल के पास को लेकर वह जाँच करने गयी थी.
मित्रों,तो क्या आप तैयार हैं मनमोहन सरकार की मूर्खता या धूर्तता के कारण अपने देश में निकट-भविष्य में होनेवाले आतंकी हमलों को अपने सीनों पर झेलने के लिए?अगर नहीं हैं तो तैयार हो जाइए क्योंकि इन्होने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है और इसलिए इतिहास फिर से खुद को दोहरानेवाला है.