मंगलवार, 28 जून 2011

मुंगेरीलाल के बदनसीब सपने

mungeri

मित्रों,आजकल अपने मुंगेरी भाई बहुत परेशान हैं.काजीजी तो सिर्फ शहर की चिंता में ही दुबले हो गए थे,मुंगेरी भाई के पास तो चिंताओं का अम्बार है.एक चिंता अभी खत्म भी नहीं हुई होती है कि दूसरी बेचारे के छिलपट मगज पर आकर सवार हो जाती है.चिंता से चतुराई का घटना सर्वज्ञात तथ्य है सो बेचारे चतुर से चतुरी चमार बनते जा रहे हैं.क्या करें और क्या न करें;क्या खरीदें और क्या न खरीदें;आज सिर्फ आम आदमी की ही समस्या नहीं है बल्कि इससे सपनों की दुनिया के बेताज बादशाह भी त्रस्त हैं.
       मित्रों,इन दिनों मुंगेरीलाल जी की सबसे बड़ी समस्या है महंगाई.अभी बेचारे खुश चल रहे थे कि सब्जियों के दाम गिर गए हैं.कई महीनों के बाद उनकी बेलगाम जीभ ने हरी-हरी सब्जियों का स्वाद चखा था.मुंगेरी लाल जी की तरंगित आँखें फिर से लखना डाकू को पकड़ने के सपने देखने लगी थीं कि नींद ही टूट गयी.इस बार उनके रिटायर्ड दारोगा ससुर ने स्वप्नभंग नहीं किया बल्कि उनका सपना टूटा रेडियो पर डीजल,किरासन और रसोई गैस के दाम बढ़ने की खबर को सुनकर.सुनते ही मानो बेचारे की जिंदगी का ही जायका बिगड़ गया.
          मित्रों,मुंगेरी भाई ने एक लम्बे समय से दाल का स्वाद नहीं चखा.और भी ऐसी कई खाने-पीने की चीजें हैं जो इस कृशकाय प्राणी की पहुँच से दूर हो चुकी हैं.मुंगेरी भाई अब चिंतित हैं कि पहले से ही मनमाना भाड़ा वसूलने वाले निजी वाहन मालिक अब न जाने कितना किराया बढ़ा दें.कहीं ऐसा न हो कि अब डीजल गाड़ियों की यात्रा भी दाल-सब्जियों की तरह मुगेरी भाई की पहुँच से दूर हो जाए.फिर बेचारे कहाँ तक बिना जूता-चप्पल वाले पैरों को घसीटते चलेंगे?बात इतनी ही हो तो खुदा खैर करे.डीजल का दाम बढ़ने का मतलब है मालवाहक के किराये में भी मनमानी बढ़ोतरी.फिर बेचारे किस-किस वस्तु के उपयोग का त्याग करते चलेंगे.अगर इसी तरह ज़िन्दगी के लिए जरुरी वस्तुओं का एक-एक कर त्याग करते रहे तो बहुत जल्दी जिंदगी ही उनका त्याग कर देगी.
             मित्रों,मुंगेरी भाई ने कई साल पहले बिजली का कनेक्शन लगवाने के लिए बिहार राज्य विद्युत् बोर्ड में आवेदन किया था.मीटर भी जमा करवाया था लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी बेचारे को विद्युत् बोर्ड के महा (ना) लायक कर्मचारियों के शुभ दर्शन नहीं प्राप्त हुए हैं.सो बेचारे रात में ढिबरी जलाते हैं और इस तरह तनहाई में रात को धोखा देने का प्रयास करते हैं.लेकिन अब क्या होगा रामा रे?अब राशन के साथ-साथ किरासन भी बेचारे की पहुँच से बाहर होती जा रही है.ढंग से उनका नाम तो बीपीएल सूची में होना चाहिए था लेकिन गाँव के मुआं निमुंछिये मास्टरों की भ्रष्ट करतूतों के कारण बेचारे एपीएल में पड़े हुए हैं.ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने इसे सुधरवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया लेकिन कई वर्षों तक प्रखंड कार्यालय के चक्कर काटने के बाद भी जब काम नहीं बना तो छोड़ दिया खुद को खुदा के भरोसे.
             मित्रों,मुंगेरी भाई को रसोई गैस का मूल्य बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि श्रीमान के पास कभी इतना पैसा नहीं रहा कि जगे हुए या सोए हुए में गैस कनेक्शन लेने की सोंचते भी.वैसे वे इसका दाम बढ़ने से जनता को होनेवाली दुश्वारियों से पूरी तरह अनजान हों ऐसा भी नहीं है.अपने दिल से जानिए औरों के दिल का हाल कहावत के अनुसार वे चिंतित हैं कि गैस कनेक्शन रखने वालों का क्या होगा.इस महंगाई में वैसे ही जीवन-रक्षा कठिन है;अब और भी मुश्किल हो जाएगी.
          मित्रों,मुंगेरी भाई हर चुनाव में नियमित तौर पर मतदान करते आ रहे हैं;इस उम्मीद में कि इस बार तो बदलाव आकर रहेगा.नेताजी ने अपने मुंह से जो कहा है.आज उन्होंने जब अख़बारों में पढ़ा कि शरद पवार नाम के एक सम्मानित व वरिष्ठ मंत्री ने खुद ही चीनी का दाम बढ़वा दिया तो उन्हें खुद के आदतन मतदान करने पर शर्म आने लगी और गुस्सा भी.आजादी के समय से ही बेचारे सपने देखते रहे हैं.आपने उन्हें दूरदर्शन पर सपने देखते हुए देखा भी है.लेकिन लखना डाकू को पकड़ने का उनका सपना तो उनकी सपनीली दुनिया का काफी छोटा भाग है.उन्होंने कई बार देश के बदलने के सपने अहले सुबह में देखे.इस उम्मीद में कि लोग कहते हैं कि सुबह का सपना सच हो जाता है परन्तु सब व्यर्थ.इसलिए मुंगेरी भाई नहीं चाहते अब कोई भी सपना देखना किन्तु यह तो ऐसी शह है जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं.स्वर्गीय पत्नी के प्यार में उन्होंने क्या-क्या नहीं छोड़ा?अब बेचारे अफीम और शराब को हाथ तक नहीं लगाते लेकिन पत्नी के लाख मना करने पर भी सपना देखना नहीं छोड़ पाए.अभी भी एक सपना देखने में लगे हैं.वे देख रहे हैं कि देश में राम-राज्य आ गया है.किसी को भी किसी प्रकार का दुःख नहीं है.सबके सब तन-मन से पवित्र हो गए हैं और उनका यानि मुंगेरी भाई का नाम बीपीएल में जुड़ गया है.मंत्रियों-अफसरों-भ्रष्ट कर्मचारियों ने अपनी सारी संपत्ति जनता में वितरित कर दी है और खुद दांतों के बीच में तिनका दबाकर वन को प्रस्थान कर गए हैं.चारों तरफ धर्म की ध्वजा फहराने लगी है.

गुरुवार, 23 जून 2011

बाबा आउट अन्ना अभी भी क्रीज पर

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मित्रों,यह लम्ब दंड गोल पिंड धर-पकड़ का खेल भी अजीब है.कोई नहीं जानता कि कब किस गेंद पर चौका-छक्का पड़ जाए या फिर कब किस गेंद पर कोई खिलाडी आउट हो जाए.अपने बाबा रामदेव को ही लीजिए.किस शानो-शौकत से ग्लब-पैड लगाकर मैदान पर आए थे.भारत सरकार के चार-चार मंत्रियों ने उनकी आरती उतारी थी.शुरू से आक्रामक बल्लेबाजी करके अपनी मंशा भी जाहिर कर दी लेकिन सरकारी गुगली के आगे उनकी एक न चली.थोड़े से असावधान क्या हुए खेल से संन्यास लेने की नौबत ही आ गयी.अब बेचारे घर (पतंजलि योगपीठ) में बैठकर सोंच रहे हैं कि हमसे क्या भूल हुई जिसकी सजा हमका मिली.बेचारे ने सोंचा था इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हो रहे राष्ट्रीय टूर्नामेंट में सरकार को हराकर ही दम लेंगे.शायद ऐसा हो भी जाता लेकिन तभी सरकारी सटोरिये जो टीम के अहम सदस्य भी थे बाबा को फिक्स करने के लिए सक्रिय हो उठे.बाबा उनकी नीयत को समझ नहीं सके और फिक्स हो भी गए.यही गलती उन पर भारी पड़ गयी और सटोरियों ने मामले को जगजाहिर कर दिया.इतना ही नहीं मैदान (रामलीला मैदान) से मारपीट कर बाहर भी निकाल दिया.इस तरह बेचारे रामदेव बिना पूरी पारी खेले ही बाहर कर हो गए.चूंकि आम आदमी की काठ की हांड़ी (नेताओं को इस मामले में अपवाद माना जा सकता है) आग पर दोबारा नहीं चढ़ती है इसलिए खेलप्रेमियों को निराशाजनक उम्मीद है कि बाबा फिर से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर होनेवाले किसी भी मैच में आगे से नहीं खेल पाएँगे.भौतिक जीवन से तो उन्होंने बहुत पहले ही संन्यास ले लिया था अब न चाहते हुए भी एंटी-करप्शन क्रिकेट से भी उन्हें संन्यास लेना पड़ रहा है.
         मित्रों,हालाँकि हम भ्रष्टाचार विरोधियों को बाबा के मैदान से बाहर हो जाने से काफी निराशा हुई है परन्तु हमारे लिए यह अब भी बड़े ही ख़ुशी की बात है कि हमारे सबसे अनुभवी खिलाड़ी मास्टर-ब्लास्टर हरफनमौला अन्ना हजारे ने बखूबी एक छोर को संभल रखा है.उनके अंदाज से लग रहा है कि वे लम्बी पारी खेलने के मूड में हैं और उन्हें कोई जल्दीबाजी नहीं है.सरकार ने अभी लोकपाल मसविदा के मुद्दे पर अन्ना और देश को अंगूठा दिखाकर एक यार्कर लेंथ की बहुत ही खतरनाक गेंद डाली है.गेंद पर तेज प्रहार करने के इरादे से अन्ना फ्रंट फुट पर आ गए हैं.बल्ला हवा में है.गेंद धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है.अन्ना ने इस समय फिर से अनशन की लकड़ी से बना बल्ला हाथों में ले रखा है.यह बल्ला उनके लिए पहले भी काफी भाग्यशाली रहा है.उन्होंने इसके बल पर कई बार धुआंधार पारियां खेली है.अन्ना अच्छे गेंदबाज भी हैं.उनकी गेंदबाजी के कई प्रत्यक्ष गवाह पूर्व मंत्री इस समय महाराष्ट्र में मौजूद हैं जिनको अन्ना ने आउट किया था.अब हमें देखना है कि इस गेंद पर छक्का पड़ता है या फिर अन्ना भी बाबा की तरह पेवेलियन में बैठे नजर आते हैं.बड़ा ही रोमांचक क्षण है.लेकिन इन क्षणों में भी दर्शकों की ख़ामोशी काट खाने को दौड़ रही है.सबकी धडकनें तेज हैं,सबकी निगाहें मैदान पर टिकी हैं लेकिन बदतमीज और बदमाश विरोधी टीम के डर से कुछेक को छोड़कर कोई अन्ना का प्रकट रूप में समर्थन नहीं कर पा रहा है.विपक्षी टीम के पास धूर्त गेंदबाजों की कोई कमी नहीं है.वहीं बल्लेबाज अन्ना को अपनी सच्चाई पर पूरा भरोसा है.सच और झूठ के इस टेस्ट मैच में पहली और ६० साल लम्बी पारी में अधर्म ने भारी बढ़त हासिल कर रखी है.देखना है कि अन्ना उस बढ़त को कम करते हुए कैसे अपनी टीम को जीत दिलवाते हैं.विपक्षी टीम के पास दिग्गी,सिब्बल,मुखर्जी और कप्तान सोनिया जैसे शातिर खिलाडी हैं इसलिए अन्ना को अपना प्रत्येक शॉट सोंच-समझकर खेलना होगा.
          मित्रों,जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया है कि मैच इस समय काफी रोमांचक स्थिति में है.अन्ना टीम असमंजस में है.समस्त रणनीतियों और संभावनाओं पर विचार-विमर्श का दौर जारी है.अभी कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी कि इस मैच का क्या परिणाम होगा.अन्ना और उनकी टीम को प्रत्येक शॉट को काफी संभलकर खेलना होगा.इस समय बाबा के मैदान और खेल से बाहर हो जाने के बाद अन्ना पूरे भारत की आशाओं के केंद्र बने हुए हैं.सबकुछ उनकी सूझबूझ और रणनीति पर निर्भर करता है.जीत इसलिए भी कठिन लग रही है क्योंकि विपक्षी टीम जीत के लिए बल-प्रयोग और धक्कामुक्की करने के लिए तैयार बैठी है.और इस खेल का सबसे निराशाजनक पहलू तो यह है कि अम्पायर (जो हम हैं) सारी सच्चाई जानते हुए भी मूकदर्शक और तटस्थ बना हुआ है और यही वो ख़ामोशी है जो बेईमानों के मनोबल को बढ़ा रही है.देखना है कि अम्पायर कब तक चुपचाप रहता है.मैच का परिणाम सबसे ज्यादा अम्पायर पर ही निर्भर करता है यह तो आपको भी पता है.

शनिवार, 18 जून 2011

राह बनी खुद मंजिल


A R. Rajput075

मित्रों,एक बार डॉ. बशीर बद्र के मुखारविंद से दूरदर्शन पर उनकी ही पंक्तियाँ सुनीं.पंक्तियाँ कुछ इस तरह से थीं-जबसे मैं चला हूँ मंजिल पर मेरी नजर है,रस्ते में मील का पत्थर मैंने नहीं देखा.ये पंक्तियाँ मुझे कुछ इस तरह पसंद आईं कि मैंने इन्हें अपने जीवन का वेदवाक्य ही बना लिया.कई उपलब्धियां प्राप्त कीं तो कई रेत की तरह मुट्ठी में आते-आते फिसल गईं.लेकिन मंजिल-दर-मंजिल ऊँचाइयां छूने के बावजूद मुझे ख़ुशी नहीं मिल सकी;सबकुछ महज एक औपचारिकता बनकर रह गयी.तब मैंने जाना कि सफ़र का असली मजा तो सफ़र में है न कि मकसद को प्राप्त करने में.रास्ते में अगर आप तन्हा हैं,अकेले हैं तो फिर आपके सफ़र का बेमजा होना और सजा बन जाना तय है.
              मित्रों,सफ़र का मजा तो तब है जब आपके साथ कदम-दर-कदम सुख-दुःख को बाँटने के लिए कोई हमसफ़र हो और अगर हमसफ़र तन और मन दोनों से खूबसूरत भी हो तो फिर कौन कमबख्त चाहेगा कि किसी मंजिल पर जाकर उसका सफ़र समाप्त हो जाए.मैं १२ जून को युवती ब्याहने गया था लेकिन साथ में जिसको लाया वह प्रेम था,खालिश प्रेम.प्रथम मुलाकात में ही आशंका संबल में बदल गयी.पिछले चार-पाँच दिन किस तरह गुजर गए मालूम ही नहीं चला.हम दोनों जो अब तक अजनबी थे एक-दूसरे में इस गहराई तक उतर चुके हैं कि लगता ही नहीं है कि हम अभी-अभी मिले हैं.बल्कि हमें तो लगता है कि हम जन्म-जन्मान्तर से एक-दूसरे को जानते हैं,एक-दूजे के लिए ही बने हैं.अब हम दोनों की काया एक है,दिल की धड़कन एक है;सुख-दुःख एक है.मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसा जादू है या चमत्कार है.
               मित्रों,इन दिनों मुझे मेरा जीवन स्वप्न जैसा लग रहा है.जब-जब अपनी आँखों पर यकीन नहीं होता दीवारों को छूकर तसल्ली कर लेता हूँ.अगर मुझे पहले से पता होता कि मेरी शादी कहाँ होने जा रही है तो आपकी कसम मैंने कई साल पहले ही शादी कर ली होती और अपने जीवन में खूबसूरत क्षणों को बढ़ा लेता.सूफी संत इश्के मजाजी (शारीरिक प्रेम) से इश्के हकीकी (ईश्वरीय प्रेम) तक के सफ़र की बात करते थे परन्तु मैंने तो सीधे इश्के हकीकी की उपलब्धि कर ली है.हम समय को रोकने के प्रयास में रात-रात भर जग रहे हैं लेकिन फिर भी वह ठहर नहीं रहा है.रात के बाद हमारे प्रबल विरोध के बावजूद जबरन दिन आ जा रहा है.
              मित्रों,हम (दरअसल अब मेरा स्वतंत्र अस्तित्व विगलित हो चुका है और मैं हम हो गया है) ईशावास्योपनिषद के अनुसार पूर्ण ब्रह्म भले ही न हो पाए हों हम पूर्णरूपेण एकाकार जरूर हो गए हैं.हम दोनों की काया में अब एक ही दिल धड़कता है.आश्चर्यजनक रूप से हमारी पसंद भी एक ही है.चाहे आराध्य की बात हो या फिर फिल्मों की.कल तलक जो एक-दूसरे से पूरी तरह अजनबी थे आज एक-दूसरे के लिए सबकुछ बन चुके हैं.आज हम एक-दूसरे एक बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते.अब मुझे न तो मंजिल की फिक्र है और न ही रास्ते की चिंता.हम दोनों ही एक-दूसरे की मंजिल हैं,सफ़र भी और बसेरा भी.मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो रास्ता चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो अब हमें वहां तक और फिर उससे भी आगे बढ़ जाने से कोई भी नहीं रोक सकता.

मंगलवार, 7 जून 2011

आईये आप भी लोकतंत्र की शवयात्रा में शामिल होईये

ram

मित्रों,भारतीय लोकतंत्र की स्थिति इसकी स्थापना के बाद से ही अत्यंत बिडम्बनापूर्ण रही है.जिस कांग्रेस पार्टी ने देश में लोकतान्त्रिक शासन की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई उसी ने लोकतंत्र को छठी से पहले ही मौत के मुंह में भी धकेल दिया.नेहरु युग में ही यह नवजात बीमार हो गया.लोहिया की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से परेशान होकर सरकारी खर्चे पर पंचसितारा जिन्दगी जीनेवाले नेहरु की कांग्रेस ने उन्हें जेल की अँधेरी कालकोठरी में इतने लम्बे समय तक और कुछ इस तरह से बंद रखा कि आम आमआदमी की उम्मीद लोहिया की मौत के साथ ही उसी समय लम्बी बेहोशी में चली गयी.कितनी बड़ी बिडम्बना है कि कुछ इसी तरह का व्यवहार पाकिस्तान की सरकार ने प्रख्यात शायर फैज अहमद फैज के साथ किया और उनकी कैदी जिंदगी को पाकिस्तान ही नहीं भारत के बुद्धिजीवी भी श्रद्धा के साथ प्रतिवर्ष याद करते हैं लेकिन भारत में ठीक उसी तरह के सरकारी दमन के शिकार डा.लोहिया को उनके घोषित अनुयायियों ने भी भुला दिया है.तभी से लोक पर तंत्र हावी हो गया और लोकशाही सिर्फ नाम की रह गयी.बाद में इस सुधरे बाप की बिगड़ी बेटी इंदिरा ने इस अचेत की १९७५ में बेवजह आतंरिक आपातकाल लगाकर हत्या कर दी.

              मित्रों,तभी से हम इस मरे हुए लोकतंत्र को उसी तरह सीने से लगाए घूम रहे हैं जैसे बंदरिया अपने मृत बच्चे को कलेजे से चिपकाकर इस उम्मीद में घूमती रहती है कि कदाचित उसके ऐसा करने से उसका बच्चा जीवित हो जाए.लेकिन ५ जून की आधी रात को सोनियानीत कांग्रेस ने लोकतंत्र के पुनर्जीवित होने की सारी संभावनाओं पर तुषारापात करते हुए इसकी शवयात्रा ही निकाल दी.इस रात कथित रूप से दुनिया के सबसे बड़े (मेरे अनुसार सबसे बुरे) लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली ने वही सब देखा जो १३ अप्रैल,१९१९ को जलियांवाला बाग़ ने देखा था.इस बार वायसराय भी अपना था और जनरल डायर भी.किससे करें शिकायत कहाँ जाकर रोयें;हाकिम के हम है मारे, काजी ने हमको लूटा.
                मित्रों,५ जून जो सम्पूर्ण क्रांति दिवस भी है;की आधी रात को नेहरु-इंदिरा के वारिशों के आदेश पर अचानक सत्ता ने एक साथ हजारों निहत्थे लोगों की अभिव्यक्ति और जीने के अधिकार पर हमला बोल दिया.अचानक आधी रात में रामलीला मैदान में बिना किसी पूर्व सूचना के निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी.वहां बेखबर हो सो रहे हजारों अनशनकारियों पर जिनमें वृद्ध,महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे को बिना बाखबर किए बेरहमी से मारा-पीटा गया जिनमें से कई लोककल्याणकारी लोकतंत्र के हाथों शायद कालकवलित भी हो चुके हैं.अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार बताए कि इस तालिबानी कार्रवाई के बाद लापता लोग कहाँ है?रहीम कवि ने १६वीं शताब्दी में ही ताकत के मद को सरल अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहा था-कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए;वा खाए बौराए नर वा पाए बौराए.गोया सत्ता की शराब का असर हर पार्टी पर होता है लेकिन कांग्रेस पर इसका असर कुछ ज्यादा ही होता है.कहने को तो यह दल हमेशा अपने आपको लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार बताती रहती है लेकिन इसको हमेशा से अपने अलावा कोई और विचारधारा बर्दाश्त ही नहीं होती.ये लोग देश में चीन की तरह एकदलीय शासन की स्थापना करना चाहते हैं.विपक्षी पार्टी की राज्य सरकार के खिलाफ धारा ३५६ का दुरुपयोग कर सरकार गिराने का मंत्र इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद गाँधी के सर्वश्रेष्ठ शिष्य नेहरु ने केरल की नम्बूदरीपाद की सरकार को अपदस्थ कर दिया था.उसके बाद उनकी लाडली बिटिया के समय तो यह केंद्र सरकार के लिए रोजमर्रा का काम ही हो गया.
          मित्रों,कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व चाहता है कि लोग अपने मुंह पर टेप लगा लें और न तो कोई उसकी आलोचना करे और न ही शांतिपूर्ण तरीके से भी विरोध ही करे.कोई बोले भी तो सिर्फ उसके सुर में बोले.उसने बाबा रामदेव को अनशन करने से डंडे,आंसूगैस,आगजनी और गोलियों के बल तो रोका ही अब अन्ना को भी आँखें दिखा रही है.उसकी सरकार के सबसे बडबोले और बदतमीज मंत्री कपिल सिब्बल ने अन्ना को चेतावनी दी है कि वे जनता को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जागृत करने की कोशिश हरगिज न करें अन्यथा उन्हें भी रामदेव की तरह कुटाई का शिकार होना पड़ेगा और आप जानते हैं कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं क्योंकि इनके पास शर्म नाम की चीज ही नहीं है.जब आदर्शवादी नेहरु ऐसा कर सकते हैं तो फिर सोनिया जी जो सत्ता नाम केवलम के बीजाक्षर मंत्र में अटूट विश्वास रखती हैं उनके लिए ऐसा करना कौन-सा मुश्किल है.आज के अघोषित आपातकाल के हालात को आप किस तरह से लेते हैं यह मैं नहीं जानता लेकिन मुझे तो परिस्थितियां फिर से १९७५-७७ वाली लग रही है.तब भी बापू के बंदरों ने सच बोलने,सुनने और देखने पर रोक लगा दी थी और आज भी ऐसा करके के प्रयास शुरू हो चुके हैं.अंतर सिर्फ इतना है कि इंदिरा ने सत्य का गला घोंटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से देश में आपातकाल लगा दिया था और सोनिया परोक्ष रूप से ऐसा करने के प्रयास कर रही है.हे,लोकतंत्र की देवी इन लोगों को कभी क्षमा नहीं करना क्योंकि ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं.
मित्रों,भारतीय लोकतंत्र की स्थिति इसकी स्थापना के बाद से ही अत्यंत बिडम्बनापूर्ण रही है.जिस कांग्रेस पार्टी ने देश में लोकतान्त्रिक शासन की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई उसी ने लोकतंत्र को छठी से पहले ही मौत के मुंह में भी धकेल दिया.नेहरु युग में ही यह नवजात बीमार हो गया.लोहिया की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से परेशान होकर सरकारी खर्चे पर पंचसितारा जिन्दगी जीनेवाले नेहरु की कांग्रेस ने उन्हें जेल की अँधेरी कालकोठरी में इतने लम्बे समय तक और कुछ इस तरह से बंद रखा कि आम आमआदमी की उम्मीद लोहिया की मौत के साथ ही उसी समय लम्बी बेहोशी में चली गयी.कितनी बड़ी बिडम्बना है कि कुछ इसी तरह का व्यवहार पाकिस्तान की सरकार ने प्रख्यात शायर फैज अहमद फैज के साथ किया और उनकी कैदी जिंदगी को पाकिस्तान ही नहीं भारत के बुद्धिजीवी भी श्रद्धा के साथ प्रतिवर्ष याद करते हैं लेकिन भारत में ठीक उसी तरह के सरकारी दमन के शिकार डा.लोहिया को उनके घोषित अनुयायियों ने भी भुला दिया है.तभी से लोक पर तंत्र हावी हो गया और लोकशाही सिर्फ नाम की रह गयी.बाद में इस सुधरे बाप की बिगड़ी बेटी इंदिरा ने इस अचेत की १९७५ में बेवजह आतंरिक आपातकाल लगाकर हत्या कर दी.
              मित्रों,तभी से हम इस मरे हुए लोकतंत्र को उसी तरह सीने से लगाए घूम रहे हैं जैसे बंदरिया अपने मृत बच्चे को कलेजे से चिपकाकर इस उम्मीद में घूमती रहती है कि कदाचित उसके ऐसा करने से उसका बच्चा जीवित हो जाए.लेकिन ५ जून की आधी रात को सोनियानीत कांग्रेस ने लोकतंत्र के पुनर्जीवित होने की सारी संभावनाओं पर तुषारापात करते हुए इसकी शवयात्रा ही निकाल दी.इस रात कथित रूप से दुनिया के सबसे बड़े (मेरे अनुसार सबसे बुरे) लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली ने वही सब देखा जो १३ अप्रैल,१९१९ को जलियांवाला बाग़ ने देखा था.इस बार वायसराय भी अपना था और जनरल डायर भी.किससे करें शिकायत कहाँ जाकर रोयें;हाकिम के हम है मारे, काजी ने हमको लूटा.
                मित्रों,५ जून जो सम्पूर्ण क्रांति दिवस भी है;की आधी रात को नेहरु-इंदिरा के वारिशों के आदेश पर अचानक सत्ता ने एक साथ हजारों निहत्थे लोगों की अभिव्यक्ति और जीने के अधिकार पर हमला बोल दिया.अचानक आधी रात में रामलीला मैदान में बिना किसी पूर्व सूचना के निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी.वहां बेखबर हो सो रहे हजारों अनशनकारियों पर जिनमें वृद्ध,महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे को बिना बाखबर किए बेरहमी से मारा-पीटा गया जिनमें से कई लोककल्याणकारी लोकतंत्र के हाथों शायद कालकवलित भी हो चुके हैं.अगर ऐसा नहीं है तो फिर सरकार बताए कि इस तालिबानी कार्रवाई के बाद लापता लोग कहाँ है?रहीम कवि ने १६वीं शताब्दी में ही ताकत के मद को सरल अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए कहा था-कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए;वा खाए बौराए नर वा पाए बौराए.गोया सत्ता की शराब का असर हर पार्टी पर होता है लेकिन कांग्रेस पर इसका असर कुछ ज्यादा ही होता है.कहने को तो यह दल हमेशा अपने आपको लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार बताती रहती है लेकिन इसको हमेशा से अपने अलावा कोई और विचारधारा बर्दाश्त ही नहीं होती.ये लोग देश में चीन की तरह एकदलीय शासन की स्थापना करना चाहते हैं.विपक्षी पार्टी की राज्य सरकार के खिलाफ धारा ३५६ का दुरुपयोग कर सरकार गिराने का मंत्र इसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद गाँधी के सर्वश्रेष्ठ शिष्य नेहरु ने केरल की नम्बूदरीपाद की सरकार को अपदस्थ कर दिया था.उसके बाद उनकी लाडली बिटिया के समय तो यह केंद्र सरकार के लिए रोजमर्रा का काम ही हो गया.
          मित्रों,कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व चाहता है कि लोग अपने मुंह पर टेप लगा लें और न तो कोई उसकी आलोचना करे और न ही शांतिपूर्ण तरीके से भी विरोध ही करे.कोई बोले भी तो सिर्फ उसके सुर में बोले.उसने बाबा रामदेव को अनशन करने से डंडे,आंसूगैस,आगजनी और गोलियों के बल तो रोका ही अब अन्ना को भी आँखें दिखा रही है.उसकी सरकार के सबसे बडबोले और बदतमीज मंत्री कपिल सिब्बल ने अन्ना को चेतावनी दी है कि वे जनता को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जागृत करने की कोशिश हरगिज न करें अन्यथा उन्हें भी रामदेव की तरह कुटाई का शिकार होना पड़ेगा और आप जानते हैं कि ये लोग ऐसा कर सकते हैं क्योंकि इनके पास शर्म नाम की चीज ही नहीं है.जब आदर्शवादी नेहरु ऐसा कर सकते हैं तो फिर सोनिया जी जो सत्ता नाम केवलम के बीजाक्षर मंत्र में अटूट विश्वास रखती हैं उनके लिए ऐसा करना कौन-सा मुश्किल है.आज के अघोषित आपातकाल के हालात को आप किस तरह से लेते हैं यह मैं नहीं जानता लेकिन मुझे तो परिस्थितियां फिर से १९७५-७७ वाली लग रही है.तब भी बापू के बंदरों ने सच बोलने,सुनने और देखने पर रोक लगा दी थी और आज भी ऐसा करके के प्रयास शुरू हो चुके हैं.अंतर सिर्फ इतना है कि इंदिरा ने सत्य का गला घोंटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से देश में आपातकाल लगा दिया था और सोनिया परोक्ष रूप से ऐसा करने के प्रयास कर रही है.हे,लोकतंत्र की देवी इन लोगों को कभी क्षमा नहीं करना क्योंकि ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं.

शुक्रवार, 3 जून 2011

बाबा रामदेव की निंदा सूरज पर थूकने के समान


ramdev
मित्रों,हमारे गाँव में तरह-तरह के जीव निवास करते हैं,अजब भी और गजब भी.उन्हीं में से एक प्रजाति ऐसी है जिनके पास कोई काम ही नहीं है.अब जब काम नहीं है तो वो बेचारे करें तो क्या करें?इसलिए उन्होंने अपने जिम्मे छिद्रान्वेषण का काम ले लिया है.वे दुनिया की सबसे परेशान आत्माओं में से हैं और दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते हैं कि किसी और की धोती मेरे से ज्यादा उजली कैसे?कोई कितना भी अच्छा क्यों न हो ये लोग उसे नीचा दिखाने के लिए कोई-न-कोई सूटेबुल तर्क ढूंढ ही लेते हैं.
          मित्रों,कुछ ऐसा ही वर्तमान भारत ही नहीं विश्व के प्रखर योगी बाबा रामदेव के साथ हो रहा है.चूंकि वे एक हिन्दू संन्यासी हैं इसलिए उन पर हमले का अपना पहला अधिकार और कर्त्तव्य  मानते हुए सबसे पहले झूठे आरोप लगाए साम्यवादियों ने.कथित धर्मनिरपेक्षता के लाइलाज रोग से ग्रस्त इन लोगों ने अपना धर्मनिरपेक्ष कर्त्तव्य निभाते हुए बाबा पर इस बात का बेबुनियाद आरोप लगा दिया कि बाबा की आयुर्वेदिक दवाओं में मानव अंश मिलाया जाता है.कुछ दिनों तक के लिए सनसनी जरुर फ़ैल गयी लेकिन चूंकि झूठ के पांव नहीं होते बाद में वे हाथ-पैर और जीभ समेट कर बैठ गए.
        मित्रों,इसके बाद बारी थी कांग्रेस की जो भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा के बलिदानी तेवरों से इस समय भी घबराई हुई है.उसने बाबा पर चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक मदद करने का आरोप लगाया.बाबा के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने इस आरोपों को स्वीकार भी किया.लेकिन क्या इस आरोप के सच सिद्ध हो जाने से बाबा द्वारा उठाए गए मुद्दे एकबारगी अप्रासंगिक या निरर्थक हो गए हैं?क्या टाटा-अम्बानी-बिरला जैसे लोगों का उद्देश्य पूर्णतया पवित्र है जिनकी इस भ्रष्टतम पार्टी से गहरी छनती है और जो इसके पार्टी फंड में हर साल करोड़ों रूपये देते हैं.वर्तमान केंद्र सरकार जो अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार भी है को हरानेवाली पार्टी की मदद करने वाले की गिनती मैं नहीं समझता कि किसी भी तरह देशद्रोहियों में की जानी चाहिए और वो भी सिर्फ इसी एक कारण से.इस समय जो भी देशभक्त हैं,जिनके मन में देश के प्रति थोड़ा-सा भी अनुराग है उन्हें इस सरकार को हटाने के प्रयास करने ही चाहिए;नहीं तो जब देश ही नहीं रहेगा तो कोई कैसे किसी को देशभक्त या देशद्रोही का ख़िताब दे पाएगा?
                मित्रों,एक बार हम सभी देशप्रेमी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार से धोखा खा चुके हैं.सरकार अन्ना हजारे और उनकी टीम तथा देश के साथ किए वादे से मुकर चुकी है.सरकार चाहती है कि अन्ना टीम लंगड़ा लोकपाल बिल पर राजी हो जाए और देश जैसे चल रहा है या यूं कहें कि लुट रहा है लुटता रहे.चूंकि बाबा रामदेव के अनुयायी करोड़ों में हैं इसलिए इस बार सरकार पहले से ही डरी हुई है और उन्हें अनशन पर बैठने से रोकने के लिए साम,दाम,दंड और भेद सभी हथियारों का जमकर इस्तेमाल कर रही है.बाबा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी समर्थन प्राप्त हुआ है और मैं नहीं मानता कि इसमें नो थैंक्स कहने की कोई जरुरत भी है.बाबा ने तो किसी को समर्थन के लिए बाध्य नहीं किया है.कांग्रेस क्या कम्युनिस्ट भी अगर बाबा का समर्थन करते हैं तो उन्हें ख़ुशी ही होगी.
          मित्रों,बाबा द्वारा उठाए गए मुद्दे गंभीर हैं,आरोपों में दम है;बाबा का चरित्र भी अब तलक धवल और निष्कलंक है फिर भी निंदा रस का अस्वादन करने की आदत से लाचार लोग उनकी निंदा में लगे हैं.मैं ऐसा कुत्सित प्रयास करनेवाले नेताओं के साथ-साथ अपने पत्रकार मित्रों से भी दंडवत निवेदन करता हूँ कि आप ऐसा करके इस पवित्र जनयुद्ध को कदापि कमजोर न करें.तेल देखिए और तेल की धार देखिए.अभी जब अनशन प्रारंभ भी नहीं हुआ तभी से क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जल्दीबाजी बिलकुल न करें.एक तो कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आ नहीं रहा है और कोई अगर अपना सबकुछ दांव पर लगाकर इसकी हिम्मत कर भी रहा है तो बजाए उसे प्रोत्साहित करने के आप हतोत्साहित कर रहे हैं!यह न केवल निंदनीय कर्म है बल्कि अपराध भी है.जहाँ तक बाबा के राजनीतिक एजेंडा का सवाल है तो अभी तक तो बाबा ने इसका खंडन ही किया है फिर आप क्यों जबरदस्ती यह आरोप उनके मत्थे मढ़ने पर तुले हैं?

बुधवार, 1 जून 2011

शादी का लड्डू खाया क्या

shadi ka laddu
मित्रों,पछताना हम नौजवानों की नियति में ही लिखा है.जिन्होंने शादी का लड्डू चाभ लिया है वे भी पछता रहे हैं और जिन्हें अभी इसका स्वाद नहीं चखा है वे भी पछ्ता रहे हैं.हममें से कुछ लोग अपवाद भी होंगे जिन्होंने इस लड्डू का स्वाद भी ले लिया है फिर भी मजे में हैं.इस समय मैं भी भयभीत और आशंकित हूँ.असल में बात यह है कि इसी १२ तारीख को मेरी शादी होने जा रही है.मैं अब तक इस क़यामत के दिन को टालता आ रहा था लेकिन क्या करूँ फिर भी वह दिन आ ही गया.
         मित्रों,सबकुछ पास में होते हुए भी मुझे अपने में कोई कमी-सी लग रही थी.लगता था जैसे मैं अधूरा हूँ.ऐसा भी नहीं है कि मेरी अब तक की जिंदगी पूरी तरह से इस खूबसूरत मामले में घटनाहीन हो.परन्तु फिर भी मैं अबसे पहले पूर्ण नहीं हो सका क्योंकि जिसको चाहा उसे अपना न सके;जो मिला उससे मुहब्बत न हुई.आजकल मेरे मन में अपने भावी जीवनसाथी के लिए प्यार का प्रशांत महासागर हिलोरें मार रहा है.यद्यपि कुछ साथियों की सलाह है कि कंट्रोल ब्रज कंट्रोल नहीं तो शादी का लड्डू कड़वे में बदल जाएगा.दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि पत्नी के दिल को प्रेम और सच्चाई से ही जीता जा सकता है.
           मित्रों,किसकी बात मानूँ और किसकी नहीं बड़ी विकट समस्या है.इसलिए मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया है.दिल तो बच्चा है जी इसलिए हो सकता है कि यह कुछ गलतियाँ कर जाए.मैंने फैसला किया है कि प्रेम और विश्वास हमारे दाम्पत्य जीवन की नींव होंगे और सादगी उसकी दीवारें.सत्य उसकी छत होती औ उसमें सामंजस्य की खिड़कियाँ लगी होंगी.हम दोनों में से सिर्फ एक को ही एक बार में नाराज होने की अनुमति होगी.एक जब क्रोधित होगा तो दूसरे को चुप्पी साध लेनी होगी.हम एक-दूसरे के प्रति अतिसंवेदनशील होंगे.जब एक को चोट लगेगी तो दर्द दूसरे को भी होगा.मैं नहीं मानता कि हमारा जीवन फूलों की सेज साबित होने जा रहा है.जब यह चमत्कार अबतक नहीं हुआ तो आगे ऐसा होने की उम्मीद ही क्यों करूँ?लेकिन अब मुझे न तो रास्ते की चिंता है और न ही मंजिल की.रास्ता चाहे कितना भी लम्बा और पथरीला हो;मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो जब दो लोग साथ-साथ चलते हैं तब थकान खुद-ब-खुद ऊर्जा में बदल जाती है.हमारे बीच मतभेद भी होंगे लेकिन मनभेद नहीं होगा.हम दोनों एक-दूसरे के प्रतियोगी नहीं होंगे वरन पूरक होंगे.कोई भी निर्णय उसका या मेरा नहीं होगा अपितु सारे निर्णय हमारे होंगे.
          मित्रों,मैं नहीं जानता और न ही यह जानना ही चाहता हूँ कि मेरे मित्रों में से जो मित्र विवाहित हैं उनका अनुभव कैसा रहा है.हो सकता है कि मेरा वैवाहिक जीवन ठीक वैसा नहीं हो जैसा कि मैंने सोंच रखा है लेकिन उसके ज्यादा-से-ज्यादा निकट जरूर होगा,ऐसा मेरा अटूट विश्वास है.आखिर सबकुछ सिर्फ मुझ पर ही तो निर्भर नहीं करेगा.आगे मेरी आराध्य भगवती दुर्गा की मर्जी जिनसे मैंने सिवाय इस बात के कभी कुछ नहीं मांगा-पत्नीं मनोरमाम देहि मनोवृत्तानुसारिणिम;तारिणीमदुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम.