मित्रों,मनमोहन जी के राजनैतिक गुरु पी.वी.नरसिंह राव भी बहुत कम बोलते थे लेकिन उन्हें कभी यह स्पष्ट नहीं करना पड़ा कि वे मजबूत प्रधानमंत्री हैं.उनके भ्रष्टाचारपूर्ण कार्यकाल में सत्ता का सिर्फ और सिर्फ एक ही केंद्र था और वह थे स्वयं पी.वी.नरसिंह राव.इसलिए राव साहब ने जो कुछ भी भला-बुरा किया उसकी एकमात्र जिम्मेदारी उनकी खुद की थी.लेकिन इस सरकार में तो सत्ता के बहुत-से केंद्र हैं और अगर कोई केंद्र नहीं है तो वह हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह.
मित्रों,कम बोलना अच्छा गुण माना जाता है परन्तु उस शासक के लिए जिस पर पूरे भारत का वर्तमान और भविष्य निर्भर करता है,का पूरी तरह से गूंगा बन जाना और देश में जान-बूझकर भ्रांतिपूर्ण वातावरण बन जाने देना गुण नहीं वरन अवगुण होता है.आखिर सरकार का नेतृत्व मनमोहन सिंह कर रहे हैं न कि कपिल सिब्बल या दिग्विजय सिंह.फिर मनमोहन सिंह ने क्यों नहीं खुद ही इस बात की घोषणा की कि अब सरकार सिविल सोसाईटी को भाव नहीं देगी और मसौदा कमिटी में नहीं रखेगी?क्यों नहीं मनमोहन सिंह ने आगे आकार स्पष्ट किया कि अप्रैल में उनकी सरकार अन्ना के आगे क्यों झुक गयी थी और अब ऐसी कौन-सी गंभीर गलती सिविल सोसाईटी वालों ने कर दी है कि उन्हें मसौदा कमिटी से अलग रखने की बात उनके मंत्री कर रहे हैं?
मित्रों,मनमोहन सिंह को जब-जब कुछ कहना होता है वे साल में एक-दो बार मीडियाकर्मियों से बात कर लेते हैं.उन्हें रोजाना मीडिया से बात करने में क्या परेशानी है?अगर वे पूरी तरह से स्वतंत्र और मजबूत हैं जैसा कि वे बार-बार बेवजह स्पष्ट भी कर रहे हैं तो फिर कंप्यूटरचालित आंसरिंग मशीन की तरह क्यों जवाब देते हैं?उनकी जुबान पर हमेशा रटा-रटाया जवाब क्यों रहता है?ऐसा क्यों होता है कि उनकी शारीरिक भाषा कुछ और कह रही होती है और जुबान कुछ और?
मित्रों,भाषण करना एक कला है,विज्ञान भी है.नेताओं को यह कला आनी ही चाहिए.द ग्रेट नेपोलियन की जीत के पीछे कोई चमत्कार का हाथ नहीं होता था बल्कि उसका पत्थर को भी जागृत कर देनेवाला भाषण होता था.प्रसाद,नेहरु और शास्त्री के भाषणों में भी काफी दम होता था.मनमोहन जी के पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी भी अपनी भाषण-कला के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते थे और भाषण द्वारा वातावरण को पूरी तरह से बदल डालने का माद्दा रखते थे.परन्तु हमारे मनमोहन सिंह साल में एक या दो दिन जब भी जनता को सीधे संबोधित करते हैं टाटा अग्नि चाय पिए हुए लोगों को भी जम्हाई आने लगती है.बोलते समय उनका चेहरा कभी कैमरा-फ्रेंडली नहीं होता.लगता है जैसे कोई ईन्सान नहीं रोबोट बोल रहा है और आप तो जानते हैं कि रोबोट को अपना दिल-दिमाग नहीं होता.जो आदमी अपनी मर्जी से दो-चार बातें तक नहीं बोल सकता उससे हम इस संक्रमण काल में जब देश ड्रैगन के जागने समेत अनगिनत बाह्य और आन्तरिक खतरों से घिरा है;कैसे देश को सफल और सक्षम नेतृत्व देने की उम्मीद कर सकते हैं?
मित्रों,श्रीमान मनमोहन जी से हमारा विनम्र निवेदन है कि आगे से वे प्रेस कांफेरेंस या एडिटर्स मीट का आयोजन करने की कृपा बिलकुल न करें.वे क्या बोलने वाले हैं यह सबको पहले से पता होता है.अगली बार जब कुछ अपने दिलो-दिमाग से बोलना हो तब जरुर वे ऐसी अहैतुकी कृपा कर सकते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस जन्म में वे अपने मन से बिना रिमोट कण्ट्रोल के आदेश के कुछ बोलने वाले हैं.
मित्रों,कम बोलना अच्छा गुण माना जाता है परन्तु उस शासक के लिए जिस पर पूरे भारत का वर्तमान और भविष्य निर्भर करता है,का पूरी तरह से गूंगा बन जाना और देश में जान-बूझकर भ्रांतिपूर्ण वातावरण बन जाने देना गुण नहीं वरन अवगुण होता है.आखिर सरकार का नेतृत्व मनमोहन सिंह कर रहे हैं न कि कपिल सिब्बल या दिग्विजय सिंह.फिर मनमोहन सिंह ने क्यों नहीं खुद ही इस बात की घोषणा की कि अब सरकार सिविल सोसाईटी को भाव नहीं देगी और मसौदा कमिटी में नहीं रखेगी?क्यों नहीं मनमोहन सिंह ने आगे आकार स्पष्ट किया कि अप्रैल में उनकी सरकार अन्ना के आगे क्यों झुक गयी थी और अब ऐसी कौन-सी गंभीर गलती सिविल सोसाईटी वालों ने कर दी है कि उन्हें मसौदा कमिटी से अलग रखने की बात उनके मंत्री कर रहे हैं?
मित्रों,मनमोहन सिंह को जब-जब कुछ कहना होता है वे साल में एक-दो बार मीडियाकर्मियों से बात कर लेते हैं.उन्हें रोजाना मीडिया से बात करने में क्या परेशानी है?अगर वे पूरी तरह से स्वतंत्र और मजबूत हैं जैसा कि वे बार-बार बेवजह स्पष्ट भी कर रहे हैं तो फिर कंप्यूटरचालित आंसरिंग मशीन की तरह क्यों जवाब देते हैं?उनकी जुबान पर हमेशा रटा-रटाया जवाब क्यों रहता है?ऐसा क्यों होता है कि उनकी शारीरिक भाषा कुछ और कह रही होती है और जुबान कुछ और?
मित्रों,भाषण करना एक कला है,विज्ञान भी है.नेताओं को यह कला आनी ही चाहिए.द ग्रेट नेपोलियन की जीत के पीछे कोई चमत्कार का हाथ नहीं होता था बल्कि उसका पत्थर को भी जागृत कर देनेवाला भाषण होता था.प्रसाद,नेहरु और शास्त्री के भाषणों में भी काफी दम होता था.मनमोहन जी के पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी भी अपनी भाषण-कला के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते थे और भाषण द्वारा वातावरण को पूरी तरह से बदल डालने का माद्दा रखते थे.परन्तु हमारे मनमोहन सिंह साल में एक या दो दिन जब भी जनता को सीधे संबोधित करते हैं टाटा अग्नि चाय पिए हुए लोगों को भी जम्हाई आने लगती है.बोलते समय उनका चेहरा कभी कैमरा-फ्रेंडली नहीं होता.लगता है जैसे कोई ईन्सान नहीं रोबोट बोल रहा है और आप तो जानते हैं कि रोबोट को अपना दिल-दिमाग नहीं होता.जो आदमी अपनी मर्जी से दो-चार बातें तक नहीं बोल सकता उससे हम इस संक्रमण काल में जब देश ड्रैगन के जागने समेत अनगिनत बाह्य और आन्तरिक खतरों से घिरा है;कैसे देश को सफल और सक्षम नेतृत्व देने की उम्मीद कर सकते हैं?
मित्रों,श्रीमान मनमोहन जी से हमारा विनम्र निवेदन है कि आगे से वे प्रेस कांफेरेंस या एडिटर्स मीट का आयोजन करने की कृपा बिलकुल न करें.वे क्या बोलने वाले हैं यह सबको पहले से पता होता है.अगली बार जब कुछ अपने दिलो-दिमाग से बोलना हो तब जरुर वे ऐसी अहैतुकी कृपा कर सकते हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस जन्म में वे अपने मन से बिना रिमोट कण्ट्रोल के आदेश के कुछ बोलने वाले हैं.
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