मित्रों,पिछले कुछ समय से पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति या महंगाई के ताप से जल रही है.जनता की थाली में से बारी-बारी से मांस,दाल और सब्जियों के छीने जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है.हमारे परम विद्वान व कथित अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जानबूझकर अनजान बन रहे हैं मानो उन्हें पता ही नहीं हो कि देश में महंगाई क्यों बढ़ रही है.बीमारी कुछ है और ईलाज कुछ और का ही किया जा रहा है.पहले तो सप्ताह-दर-सप्ताह ब्याज दर बढ़ा-बढ़ाकर महंगाई को कम करने की बेवकूफाना कोशिश की गयी और अब जो ईलाज पेश किया जा रहा है उससे तो देश की पूरी खाद्य-सुरक्षा ही खतरे में पड़ जानेवाली है.
मित्रों,मैं बात कर रहा हूँ भारत सरकार द्वारा देश के खुदरा व्यापार में ५१% विदेशी पूँजी निवेश करने की अनुमति देने की.हमारी अब तक की सबसे कमजोर-कामचोर जनमोहिनी-मनमोहिनी सरकार ने मानो ६ साल तक देश को शोधने के बाद महंगाई की असली जड़ का पता लगा लिया है.इस लाल बुझक्कड़ सरकार का मानना है कि किसानों अथवा उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच जो २२ करोड़ खुदरा व्यवसायी यानि बिचौलिए हैं वही महंगाई को बढ़ाते हैं.वरना महंगाई तो कब की कोसों दूर भाग चुकी होती.इसलिए हमारी सरकार ने महंगाई के चलते पतली हो चुकी हमारी हालत पर तरस खाते हुए दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अनुमति दे दी कि वे देश में आएं और अपनी दुकानें खोलें,शीतगृह स्थापित करें और किसानों से सीधे-सीधे अनाज खरीदें.मतलब यह कि २२ करोड़ छोटे व्यापारियों या बिचौलियों के बदले अब सिर्फ एक ही या कुछेक ही बिचौलिए होंगे.लेकिन बिचौलिए तो फिर भी होंगे;२२ करोड़ भुक्खड़ ब्लडी इंडियंस के बदले एक या दो-चार गोरे धनपति.इनके आने से २२ करोड़ भारतीय बेरोजगार हो जाएँ तो हो जाएँ,भूखो मरें तो मरें लेकिन देश का जीडीपी तो ऊपर चढ़ेगा.पूँजी आएगी तो शेयर बाजार का ग्राफ तो उर्ध्वगामी होगा और कुल जमा कुछेक लाख शेयरधारकों को तो भारी लाभ तो होगा.सुबह से शाम तक मुम्बई-दिल्ली की सड़कों पर अपने ठेले पर ३०० रूपए की सब्जी बेचकर ५० रूपया कमानेवाला गरीब भारतीय भले ही रोजगार खोकर भूख से मर जाए लेकिन अमेरिकन कंपनी वालमार्ट को तो अरबों-खरबों का फायदा होगा.
मित्रों,सोंचिए कि देश के खेतों से लेकर गोदामों,शीतगृहों और विक्रय-केन्द्रों तक पर अगर एक या कुछेक विदेशी कंपनी या कंपनियों का कब्ज़ा हो जाता है तो देश की खाद्य-सुरक्षा का क्या हाल होगा?वे जब चाहे तब देश में कृत्रिम अकाल जैसी हालत पैदा कर भरपुर मुनाफा कमा सकेंगी.वैसे भी घोर पूंजीवादी देशों की इन कंपनियों का एकमात्र धर्म और कर्म ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना ही तो है.केंद्र की वर्तमान सरकार की मूर्खताओं के चलते हमारी औद्योगिक सुरक्षा तो पहले से ही हमारे चिर शत्रु-देश चीन के हाथों गिरवी पड़ती जा रही है और अब खाद्य-सुरक्षा पर भी हमारी वही सरकार खुद ही तलवार लटकाने जा रही है.
मित्रों,आजकल में एक और अजीबोगरीब घटना हुई हैं जो हमारे देश की संप्रभुता के लिए है तो बहुत-ही महत्वपूर्ण लेकिन उसकी मीडिया में उतनी चर्चा हुई नहीं जितने की वो हकदार थी.हुआ यह है कि वालमार्ट के देश अमेरिका के भारत में राजदूत ने खुदरा क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने का पुरजोर समर्थन किया है.मैं पूछता हूँ ये अंकल सैम कौन होते हैं हमारे आतंरिक मामलों में दखल देनेवाले.परन्तु करें तो क्या करें?जब अपना ही सिक्का खोटा निकल जाए तब दूसरों पर दोषारोपण करने का क्या लाभ?अपने ही देश की सरकार जब २२ करोड़ जनता के रोजगार को समाप्त कर मौत के मुंह में धकेल देने और पूरे सवा सौ करोड़ जनता की रोटी की सुरक्षा को चंद विदेशियों के हाथों गिरवी रख देने पर उतारू हो,बेच देने पर आमादा हो तो फिर हम कहाँ-किसके पास जाकर रोयें और फ़रियाद करें?
मित्रों,सरकार कह रही है कि इससे १ करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन वालमार्ट जैसी कम्पनियाँ तो घंटे के हिसाब से पैसा देती हैं.जितना काम उतना पैसा और काम नहीं तो पैसा भी नहीं;चाहे मरो या जियो अपनी बला से.जहाँ तक किसानों को लाभ होने की बात है तो भारत के किसान एक बार फिर से निलहा खेती के ज़माने में जानेवाले हैं.अब फिर से हमारे गोरे साहब हमें आदेश देंगे कि खेतों में क्या उपजाना है और क्या नहीं?उनको जिस फसल को बेचने से ज्यादा फायदा होगा उसको छोड़कर वे देश को क्या उपजने से लाभ होगा थोड़े ही उपजाने देंगे.तो आईये मित्रों हम सब जश्न मनाएँ कि हम फिर से गुलामी की ओर बढ़ चले हैं;फिर से देश में स्वतंत्रता आन्दोलन होगा जिससे फिर से चोर मसीहा उत्पन्न होंगे और अंततः यह सिलसिला चलता जाएगा.
मित्रों,मैं बात कर रहा हूँ भारत सरकार द्वारा देश के खुदरा व्यापार में ५१% विदेशी पूँजी निवेश करने की अनुमति देने की.हमारी अब तक की सबसे कमजोर-कामचोर जनमोहिनी-मनमोहिनी सरकार ने मानो ६ साल तक देश को शोधने के बाद महंगाई की असली जड़ का पता लगा लिया है.इस लाल बुझक्कड़ सरकार का मानना है कि किसानों अथवा उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच जो २२ करोड़ खुदरा व्यवसायी यानि बिचौलिए हैं वही महंगाई को बढ़ाते हैं.वरना महंगाई तो कब की कोसों दूर भाग चुकी होती.इसलिए हमारी सरकार ने महंगाई के चलते पतली हो चुकी हमारी हालत पर तरस खाते हुए दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अनुमति दे दी कि वे देश में आएं और अपनी दुकानें खोलें,शीतगृह स्थापित करें और किसानों से सीधे-सीधे अनाज खरीदें.मतलब यह कि २२ करोड़ छोटे व्यापारियों या बिचौलियों के बदले अब सिर्फ एक ही या कुछेक ही बिचौलिए होंगे.लेकिन बिचौलिए तो फिर भी होंगे;२२ करोड़ भुक्खड़ ब्लडी इंडियंस के बदले एक या दो-चार गोरे धनपति.इनके आने से २२ करोड़ भारतीय बेरोजगार हो जाएँ तो हो जाएँ,भूखो मरें तो मरें लेकिन देश का जीडीपी तो ऊपर चढ़ेगा.पूँजी आएगी तो शेयर बाजार का ग्राफ तो उर्ध्वगामी होगा और कुल जमा कुछेक लाख शेयरधारकों को तो भारी लाभ तो होगा.सुबह से शाम तक मुम्बई-दिल्ली की सड़कों पर अपने ठेले पर ३०० रूपए की सब्जी बेचकर ५० रूपया कमानेवाला गरीब भारतीय भले ही रोजगार खोकर भूख से मर जाए लेकिन अमेरिकन कंपनी वालमार्ट को तो अरबों-खरबों का फायदा होगा.
मित्रों,सोंचिए कि देश के खेतों से लेकर गोदामों,शीतगृहों और विक्रय-केन्द्रों तक पर अगर एक या कुछेक विदेशी कंपनी या कंपनियों का कब्ज़ा हो जाता है तो देश की खाद्य-सुरक्षा का क्या हाल होगा?वे जब चाहे तब देश में कृत्रिम अकाल जैसी हालत पैदा कर भरपुर मुनाफा कमा सकेंगी.वैसे भी घोर पूंजीवादी देशों की इन कंपनियों का एकमात्र धर्म और कर्म ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना ही तो है.केंद्र की वर्तमान सरकार की मूर्खताओं के चलते हमारी औद्योगिक सुरक्षा तो पहले से ही हमारे चिर शत्रु-देश चीन के हाथों गिरवी पड़ती जा रही है और अब खाद्य-सुरक्षा पर भी हमारी वही सरकार खुद ही तलवार लटकाने जा रही है.
मित्रों,आजकल में एक और अजीबोगरीब घटना हुई हैं जो हमारे देश की संप्रभुता के लिए है तो बहुत-ही महत्वपूर्ण लेकिन उसकी मीडिया में उतनी चर्चा हुई नहीं जितने की वो हकदार थी.हुआ यह है कि वालमार्ट के देश अमेरिका के भारत में राजदूत ने खुदरा क्षेत्र को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने का पुरजोर समर्थन किया है.मैं पूछता हूँ ये अंकल सैम कौन होते हैं हमारे आतंरिक मामलों में दखल देनेवाले.परन्तु करें तो क्या करें?जब अपना ही सिक्का खोटा निकल जाए तब दूसरों पर दोषारोपण करने का क्या लाभ?अपने ही देश की सरकार जब २२ करोड़ जनता के रोजगार को समाप्त कर मौत के मुंह में धकेल देने और पूरे सवा सौ करोड़ जनता की रोटी की सुरक्षा को चंद विदेशियों के हाथों गिरवी रख देने पर उतारू हो,बेच देने पर आमादा हो तो फिर हम कहाँ-किसके पास जाकर रोयें और फ़रियाद करें?
मित्रों,सरकार कह रही है कि इससे १ करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा लेकिन वालमार्ट जैसी कम्पनियाँ तो घंटे के हिसाब से पैसा देती हैं.जितना काम उतना पैसा और काम नहीं तो पैसा भी नहीं;चाहे मरो या जियो अपनी बला से.जहाँ तक किसानों को लाभ होने की बात है तो भारत के किसान एक बार फिर से निलहा खेती के ज़माने में जानेवाले हैं.अब फिर से हमारे गोरे साहब हमें आदेश देंगे कि खेतों में क्या उपजाना है और क्या नहीं?उनको जिस फसल को बेचने से ज्यादा फायदा होगा उसको छोड़कर वे देश को क्या उपजने से लाभ होगा थोड़े ही उपजाने देंगे.तो आईये मित्रों हम सब जश्न मनाएँ कि हम फिर से गुलामी की ओर बढ़ चले हैं;फिर से देश में स्वतंत्रता आन्दोलन होगा जिससे फिर से चोर मसीहा उत्पन्न होंगे और अंततः यह सिलसिला चलता जाएगा.