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मित्रों,वक़्त गुजरा और आज दिसंबर,२०११ चल रहा है.इन दिनों मैं एक बार फिर से परेशान हूँ अपने जिले में रोज-रोज घटनेवाली कुछ एक ही तरह की घटनाओं को लेकर.अब अख़बारों में वैध-अवैध प्रेम में घर छोड़कर भागने की ख़बरें नहीं आ रही बल्कि अब तो गणतंत्र की जननी वैशाली में तेजी से पसरते गनतंत्र की ख़बरें रोज-रोज आ रही हैं.लगता है जैसे हमारे जिले में इंसानों का नहीं बल्कि सिर्फ दरिंदों का निवास हो गया है.कुछ उदाहरण पेशे खिदमत है-पहली घटना ६ दिसंबर की है.बारात लगाने में हुए विवाद में पातेपुर थाने के बाजितपुर गाँव में लड़की का चाचा मदनमोहन मिश्र एक गाड़ी चालक टुनटुन राय की गोली मारकर हत्या कर देता है और हत्यारे लाश लेकर भी भाग जाते हैं.हद तो यह है कि हमारी काबिल पुलिस घटना के बाद ४८ घंटा बीत जाने के बाद भी इस मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं कर पाई है.फिर दूसरी स्तब्ध कर देनेवाली घटना को अंजाम दिया जाता है ७ दिसंबर को.इस घटना में सराय थाने के इनायतपुर प्रबोधी गाँव के दबंग और पूर्व मुखिया के बेटे एक वृद्ध धोबिन को कपड़ा धुलाई का मेहनताना मांगने पर गालियाँ देने लगते हैं.स्वाभाविक तौर पर उसका बेटा इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता और विरोध करने लगता है.फिर तो उस गुड्डू रजक नामक युवक की अखिलेश सिंह,मिथिलेश सिंह और मनोज सिंह वगैरह के द्वारा इतनी बेरहमी से धुलाई की जाती है कि गाँव के वर्तमान मुखिया और जिला पार्षद को उसकी बेबस माँ की गुहार पर हस्तक्षेप करना पड़ता है.जान बचने के लाख प्रयासों के बावजूद सदर अस्पताल के बेड पर वह मातृभक्त दम तोड़ देता है.बाद में जनता द्वारा दबाव बनाने पर ही उसका पोस्टमार्टम संभव हो पाता है.अभी मातृभक्त गुड्डू की चिता की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि ७ दिसंबर की रात को ही तीसरी मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना भी घट जाती है.थाना वही है सराय जहाँ कभी पूरी दुनिया को करूणा और अहिंसा का अमर सन्देश देने वाले वैशाली के ही बेटे,अंतिम जैन तीर्थंकर भगवान महावीर ने रिजुपलिका नदी के तट पर ज्ञान प्राप्त किया था.इस बार यमदूतों के भी रोंगटे खड़े कर देनेवाली घटना का गवाह बनता है सराय थाने का धरहरा गाँव.गाँव का एक दबंग मल्लाह परिवार जो अतिपिछड़े वर्ग से आता है गाँव के एक ब्राह्मण अशोक पांडे पर दबाव डालता है कि वो अपनी बेटी जूली का विवाह उसके लम्पट बेटे ज्योति सहनी के साथ कर दे.जैसा कि इस तरह के मामलों में होना चाहिए लड़की का पिता कमजोर होने पर भी ऐसा करने से इंकार कर देता है.फिर तो ७ दिसंबर की कोहरे भरी रात में उसकी नाबालिग बेटी को हथियारों के बल पर सहनी परिवार घर में से उठा लेता है और उसकी हत्या करके लाश को पास के ही बगीचे में पेड़ से लटका देता है.गाँव के जिस किसी की नजर लाश पर पड़ती है उसका मन इस जघन्य कृत्य पर भिनभिना उठता है.हत्या करने से पहले घटना में शामिल २ दर्जन दरिंदों ने उस मासूम के साथ बलात्कार भी किया था या नहीं अभी स्पष्ट नहीं है.
मित्रों,अभी-अभी अख़बार हाथ में आया है और अबोध जूली की नृशंस हत्या का यह समाचार पढ़ते ही मैं खुद के वैशाली जिले का होने को लेकर बहुत ही शर्मिंदा महसूस करने लगा हूँ.मैं डर रहा हूँ कि क्या कल फिर से मुझे अख़बार में अपने जिले में घटित इस तरह की घटना का समाचार पढना पड़ेगा?छिः,मैंने कैसे जिले में जन्म लिया है जिसका इतिहास तो गौरवमय है लेकिन वर्तमान कलंकित!!!जहाँ रोज-रोज इंसानों की पशुता उजागर हो रही है.जहाँ मानवता की और मानवों की जान की कौड़ी जितनी भी कीमत नहीं.मैं सोंचता हूँ कि मैं ऐसे बिगड़ते माहौल में कब तक अपनी निर्मल मनुष्यता की रक्षा कर पाऊँगा?वैशाली पुलिस की तो बात ही नहीं करिए.उसकी मनमानी कार्यप्रणाली और बेईमानी का ही तो यह प्रतिफल है कि पूरे वैशाली जिले में जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत सत्य साबित हो रही है.पूरे जिले के सभी थानों में सिर्फ और सिर्फ पैसे और पैसेवालों का बोलबाला है.शौक से हत्या करिए और थाने में उड़ेलकर पैसा दे दीजिए और फिर निश्चिन्त हो जाईए;आपका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा.तो क्या भविष्य में जिले के शरीफों की बहू-बेटियों को दबंग घर से उठा लिया करेंगे?क्या इसी तरह गुड्डू रजक नामक दलित मातृभक्त शहीद होता रहेगा??क्या इसी तरह हमें रोजाना बारात में गोली चलने से निर्दोष टुनटुन रायों की मौत की ख़बरें पढनी पड़ेगी???हमारा २१वीं सदी का समाज यह किस दिशा में अग्रसर हो गया है????क्या हमारी महान सभ्यता और संस्कृति सही दिशा में अग्रसर है?????हम जानते हैं कि वक़्त की और समाज की अपनी एक दिशा होती है,गति होती है.लेकिन जब दिशा और गति दोनों गलत हो जाए तो धरती पर रेंगनेवाला क्षुद्र कीड़ा इन्सान करे भी तो क्या करे?जब कोई पथभ्रष्ट समाज उसकी नेक सलाह को किसी पागल का प्रलाप समझकर अनसुना कर दे तब कोई पथप्रदर्शक सुकरात कर भी क्या सकता है सिवाय............?!अरे डरिए मत!मैं कोई सुकरात नहीं हूँ जो निराश होकर जहर पी लूँगा.मैं तो आल्हा-ऊदल का वंशज हूँ और मैं संघर्ष करूंगा,समझाता रहूँगा लोगों को और समाज को अंतिम साँस तक,रक्त की अंतिम बूँद के शरीर में शेष रहने तक;चाहे अंत में सफलता हाथ लगे या असफलता.न दैन्यं न पलायनम!
(मित्रों,यह लेख मैंने ९ दिसंबर को ही लिख लिया था.इस बीच वही हुआ है जिसका मुझे डर था.कल यानि १० दिसंबर को मेरे जिले के जुडावनपुर थाने के राघोपुर गाँव में जगदीश राय नामक वृद्ध की रस्सी से बांधकर चार नरपशुओं ने पिटाई कर दी जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गयी.साथ ही सच यह भी है कि मूल लेख में वर्णित तीनों मामलों में वैशाली पुलिस न तो अभी तक कोई गिरफ़्तारी ही कर पाई है और न ही अब तक टुनटुन राय का शव ही बरामद कर सकी है.एक सूचना और जो वैशाली पुलिस से ही सम्बद्ध है कि मेरे पडोसी और वैशाली पुलिस के जवान बालेश्वर साह ने अब चोरी की बिजली से मोटर चलाना भी शुरू कर दिया है.साथ ही अब उसके टेंट में रोजाना शाम में गाँजा का धुंआ भी उड़ने लगा है.)
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