मित्रों,बिहार के शासन-प्रशासन की नजर में इन दिनों सूचना मांगने से बड़ा कोई अपराध नहीं है। आप अगर बिहार में सूचना का अधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं तो मेरी सलाह है कि ऐसा तभी करिए जब आप फुरसत में हों यानि जबकि आपको घर का कोई जरूरी काम निकट-भविष्य में नहीं करना हो। अगर सूचना देनेवाला अधिकारी/कर्मचारी दलित हुआ तब तो आपका जेल जाना लगभग निश्चित ही हो जाता है। तब आप सीधे भारतीय दंड संहिता की धारा 448/353/504/34 यथा अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत बिना पूर्व सूचना के कभी भी जेल भेजे जा सकते हैं। चरित्रवन,बक्सर के प्रतिभावान अधिवक्ता और भावी न्यायाधीश अनिल दूबे जी को ही कहाँ पता था कि सूचना मांगने के अपराध (बिहार सरकार इसे जनता को बरगलाने के लिए अधिकार कहती है) में जेल जाना पड़ सकता है। उन्होंने राजपुर (बक्सर) के अनुसूचित जाति से आने वाले अंचलाधिकारी रामभजन राम से सूचना मांगने की हिमाकत की थी और बेचारे पिछले कई दिनों से बक्सर केंद्रीय कारागार (बिहार सरकार के अनुसार नया नाम सुधार-गृह) की शोभा बढ़ा रहे हैं। उन सूचना का अधिकार के मारे पर भी अनुसूचित जाति के अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप हैं।
मित्रों,सूचना देने से बचने के कई तरीके अप्रतिम प्रतिभा के धनी बिहार में प्रचलन में आ चुके हैं जिनमें से हमारे सौभाग्य से 1 को छोड़कर सभी अहिंसक हैं। अर्थात् जब भी उनका उपयोग किया जाएगा सूचनार्थी को वांछित सूचना तो नहीं प्राप्त हो पाएगी लेकिन उनको कोई व्यक्तिगत क्षति या परेशानी भी नहीं होगी। इनके अंतर्गत हो सकता है कि उससे सूचना के ऐवज में भारी फीस की मांग की जाए। यह फीस करोड़ों में भी हो सकती है या फिर कोई जवाब ही नहीं दिया जाए। परन्तु एक फार्मूला जरूर ऐसा भी है जो आपको भारी और अप्रत्याशित परेशानी में डाल सकता है और आपको जेल भी भेजवा सकता है। इस ब्रह्मास्त्र के अंतर्गत आप पर अधिकारी/कर्मचारी झूठा मुकदमा कर या करवा सकता है। ऊपर आपने देखा कि कैसे हमारे एक भाई अनिल दूबे जी कई दिनों से जेल की चक्की पीस रहे हैं। बेचारे ने न तो खून किया, न तो रंगदारी ही मांगी और न तो अपहरण ही किया। करते तो शायद कानून उनको परेशान करने के बदले उनकी मदद ही करता। लेकिन भाई ने मुख्यमंत्री की आदमकद तस्वीरों वाले सूचना का अधिकार के इश्तेहारों पर विश्वास कर लिया और ऐसा अपराध कर दिया जिसे इन दिनों अघोषित रूप से बिहार में दुर्लभतम में भी दुर्लभ माना जाता है। पीसिए अब शौक से जेल में चक्की और आनंद लीजिए बक्सर जेल में स्थापित बिहार की पहली खुली जेल का।
मित्रों,सूचना देने से बचने के कई तरीके अप्रतिम प्रतिभा के धनी बिहार में प्रचलन में आ चुके हैं जिनमें से हमारे सौभाग्य से 1 को छोड़कर सभी अहिंसक हैं। अर्थात् जब भी उनका उपयोग किया जाएगा सूचनार्थी को वांछित सूचना तो नहीं प्राप्त हो पाएगी लेकिन उनको कोई व्यक्तिगत क्षति या परेशानी भी नहीं होगी। इनके अंतर्गत हो सकता है कि उससे सूचना के ऐवज में भारी फीस की मांग की जाए। यह फीस करोड़ों में भी हो सकती है या फिर कोई जवाब ही नहीं दिया जाए। परन्तु एक फार्मूला जरूर ऐसा भी है जो आपको भारी और अप्रत्याशित परेशानी में डाल सकता है और आपको जेल भी भेजवा सकता है। इस ब्रह्मास्त्र के अंतर्गत आप पर अधिकारी/कर्मचारी झूठा मुकदमा कर या करवा सकता है। ऊपर आपने देखा कि कैसे हमारे एक भाई अनिल दूबे जी कई दिनों से जेल की चक्की पीस रहे हैं। बेचारे ने न तो खून किया, न तो रंगदारी ही मांगी और न तो अपहरण ही किया। करते तो शायद कानून उनको परेशान करने के बदले उनकी मदद ही करता। लेकिन भाई ने मुख्यमंत्री की आदमकद तस्वीरों वाले सूचना का अधिकार के इश्तेहारों पर विश्वास कर लिया और ऐसा अपराध कर दिया जिसे इन दिनों अघोषित रूप से बिहार में दुर्लभतम में भी दुर्लभ माना जाता है। पीसिए अब शौक से जेल में चक्की और आनंद लीजिए बक्सर जेल में स्थापित बिहार की पहली खुली जेल का।
1 टिप्पणी:
सूचना मांगने वाले से कहिए की, "जेल के अंदर कई केदी होंगे जिनहोने कई अपराध किए होंगे, उनमे से ऐसे को ढूँढे जिसने किसी को लूटा हो या किसी पर हमला किया हो, या भारी गुंडा हो, ओर अब अगर पेसा कमाना चाहता हो, तो साले ने जिसने झूठी रिपोर्ट दर्ज करवायी है,सूचना मांगने वाले के खिलाफ, उस अपराधि कों पटा कर उसके खिलाफ ही बयान दे, अपने किसी भी मामले मे साले का नाम ले ले, की इसके कहने पर ह्त्या की या इसके कहने पर मारा या एसके कहने पर लूटा ओर लूट का माल एसे ही बेचा या एसे हथियार बेचे या ड्रग्स बेचे, साला 24 घंटे मे रिपोर्ट वापस ले लेगा, ओर साथ ही खर्चा भी देगा, झूठ का जवाब झूठ से ही देना हैं ओर उस से भी ज्यादा दमदार तरीके से देना हैं
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