पवार को हजारों करोड़ जनता को महँगी चीनी
मित्रों,यूँ तो वर्तमान केन्द्र सरकार आम आदमी की सरकार है लेकिन यह जब-न-तब तेल का दाम बढ़ाकर जनता का तेल निकालती रहती है। महँगाई से मर रही जनता को महँगाई बढ़ाकर राहत देकर इन दिनों सोनिया-मनमोहन सिंह की सरकार नवीन अर्थशास्त्र का निर्माण कर रही है। इसने पहले पेट्रोल और रासायनिक खाद को नियंत्रण मुक्त किया और अब चीनी को भी उद्योगपतियों के हवाले कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब पूरा-का-पूरा वतन उद्योगपतियों के हवाले करके यह सरकार गीत गाया करेगी कि अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों। आज से ही उद्योगपति बाजार में मांग और आपूर्ति के सिद्धांत के तहत अपने मनमाफिक दाम पर चीनी बेच सकेंगे। ऐसा भी नहीं है कि इससे सरकार पर सब्सिडी का बोझ कम होता हो बल्कि इससे चीनी उद्योग को जरूर 3000 करोड़ रुपये का सीधा लाभ हो जाएगा लेकिन केंद्र सरकार को 2600 करोड़ रुपये की सीधी क्षति ही होगी।
मित्रों,ऐसा क्यों हुआ कि केंद्र सरकार ने आर्थिक मंदी के संकट काल में खुद घाटा उठाकर चीनी उद्योग को मोटा लाभ देने का निर्णय किया? आर्थिक-दृष्टि से हो या वोट बैंक की दृष्टि से इस निर्णय को किसी भी तरह से बुद्धिमत्तापूर्ण तो नहीं कहा जा सकता है। मैं ठीक-ठीक तो नहीं जानता हूँ कि भारत के कृषि और खाद्य-आपूर्ति मंत्री शरद पवार की खुद की कितनी चीनी मिलें हैं लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि उनका कुछ-न-कुछ आर्थिक हित जरूर सीधे तौर पर चीनी से जुड़ा हुआ है। पवार ने जब नौ साल पहले केंद्रीय कृषि और खाद्य-आपूर्ति मंत्री का पदभार संभाला था तभी से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि उनके कार्यकाल में ही देर-सबेर चीनी को भी बाजार के हवाले कर दिया जाएगा। केंद्र सरकार में गलत सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी भरमाते हैं कि इस कदम से आम जनता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मगर उन्होंने यह नहीं बताया है कि कब तक? कब तक मुनाफाखोर-धनपशु चीनी मालिक सब्र रख सकेंगे? जब चीनी का मूल्य-निर्धारण उनको ही करना है तो फिर वे कब तक और क्यों ज्यादा लाभ के लालच से बचे रहेंगे?
मित्रों,क्या बिडंबना है कि जिस समय राजनीति के तालाब के नए मरमच्छ राहुल गांधी आम आदमी की समस्याओं के बारे में बातें करके घुटने से आँसू बहा रहा होता है ठीक उसी समय उसकी सरकार आम आदमी से सस्ती चीनी खाने का अधिकार छीन रही होती है?! हमारे देहात में कहावत हे कि बिल्ली को अगर दही की रखवाली का भार दे दिया जाए तो दही भला कब तक बचा रहेगा? फिर चाहे वो दही किसी व्यक्ति का हो या फिर पूरे समाज का। बिल्ली के लिए तो सारे दही एकसमान हैं। यह कितना हास्यास्पद है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले 9 सालों से चीनी उद्योग को एक ऐसे व्यक्ति के हवाले किया हुआ है जो खुद ही इस क्षेत्र का बहुत बड़ा माफिया है। आप ही बताईए कि फिर भारत और सोमालिया मे क्या मौलिक अंतर है जहाँ की सरकार में डाकू भी मंत्री हैं। कल राजा भैया को उत्तर प्रदेश का जेल मंत्री बना दिया गया था,ए. राजा को भारत का दूरसंचार मंत्री बना दिया गया था,आज शरद पवार कृषि और खाद्य-आपूर्ति मंत्री है और उनके साथ-साथ केंद्र और राज्यों की सरकारों में न जाने कितने माफिया मंत्री हैं तो कल को नवीन जिंदल इस्पात मंत्री होंगे,सुरेश कलमाडी खेल मंत्री,कनिष्क सिंह रक्षा मंत्री,मूकेश अंबानी पेट्रोलियम मंत्री और विजय माल्या नागरिक उड्डयन मंत्री। केंद्र और प्रदेशों के गृहमंत्री पद के तो हजारों योग्य खूनी-बलात्कारी उम्मीदवार टकटकी सालों से टकटकी लगाए बैठे हैं। फिर देश और उसके आम आदमी का क्या होगा?
मित्रों,वर्ष 1984 में मैंने अमिताभ बच्चन अभिनीत एक फिल्म देखी थी। नाम था इन्कलाब। उसमें भी शराब माफिया खुद को उत्पाद मंत्री,अनाज माफिया खाद्य-आपूर्ति मंत्री,हथियार तस्कर गृह मंत्री,सड़क माफिया सड़क परिवहन मंत्री आदि बनाने की मांग करते हैं। मुझे नहीं पता था कि 20-30 साल के बाद इस फिल्म की कहानी सच साबित हो जाएगी। फिल्म में तो मुख्यमंत्री पद के लिए नवनिर्वाचित अमिताभ बच्चन सारे माफियाओं को मंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही गोली मार देते हैं। काश,ऐसा केंद्र और राज्य सरकार में काबिज माफिया मंत्रियों के साथ सचमुच में हो जाता!!
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