भारत पाकिस्तान से क्या सीख सकता है?
मित्रों,क्या आप शीर्षक देखकर हैरान हो रहे हैं? कहीं आप यह तो नहीं सोंच रहे कि पाकिस्तान तो हमारा चिरशत्रु देश है फिर उससे सीखना कैसा और वह हमें सिखा ही क्या सकता है? अगर ऐसा है तो फिर आप भूल रहे हैं कि रावण जब युद्ध-भूमि में घायल होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा था तब राम ने लक्ष्मण को उससे शिक्षा लेने के लिए भेजा था। बेशक आज के पाकिस्तान में रोजाना बहुत-कुछ ऐसा सकारात्मक घट रहा है जिससे हम भारतीय बहुत-कुछ सीख सकते हैं।
मित्रों,क्या आपने कभी अपने देश भारत में इस बात की कल्पना की है कि प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट आदेश न मानने पर पद के अयोग्य घोषित कर दे? नहीं न, लेकिन पाकिस्तान में ऐसा हो चुका है। जहाँ हमारे भारत के अब तक के सबसे बेकार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आये दिन न्यायपालिका को अपने दायरे में रहने की चेतावनी देते रहते हैं लेकिन खुद स्थितियों के सुधारने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाते वहीं पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को उच्चतम न्यायालय की अवमानना के अपराध के चलते 19 जून,2012 को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। जाहिर है पाकिस्तान की न्यायपालिका को भारत की न्यायपालिका की तुलना में ज्यादा व्यापक अधिकार दिए गए हैं। पाकिस्तान की न्यायपालिका किसी भी मुद्दे पर स्वतः संज्ञान ले सकती है।
मित्रों,पाकिस्तान के संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि आम चुनाव के समय वहाँ का चुनाव आयोग किसी निष्पक्ष और योग्य व्यक्ति को कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। इन्हीं प्रावधानों के तहत इन दिनों ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मीर हाजरखान खोसो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। वे अगले नियमित प्रधानमंत्री के चुने जाने तक इस पद पर रहेंगे। इतना ही नहीं पाकिस्तानी अखबार डेली टाइम्स और पत्रिका फ्राइडे टाइम्स के प्रधान संपादक एवं प्रकाशक नजम सेठी इन दिनों पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं। है न यह लाजवाब व्यवस्था? न तो चुनावी धांधली का भय और न ही सरकारी तंत्र के दुरूपयोग की आशंका ही,मतपेटियों में से जिन के निकलने का तो सवाल ही नहीं। सोंचिए अगर भारत में भी ऐसी व्यवस्था होती तो कुछ दिन के लिए ही सही हम भारतीयों को भी चुनावी जोड़-तोड़ से दूर रहनेवाले अच्छे शासन में रहने का मौका मिल जाता।
मित्रों,यह तो आप समझ ही गए होंगे कि पाकिस्तान में चुनाव आयोग हमारे चुनाव आयोग से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। जहाँ हमारा चुनाव आयोग छोटे-मोटे चुनाव-सुधार के लिए सरकार और संसद का मुँहतका बना रहता है वहीं पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए मतदाताओं को 11 मई को होनेवाले चुनाव में उम्मीदवारों को नकार देने का अधिकार प्रदान कर दिया है। इन चुनावों में अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र के 51 प्रतिशत मतदाता इस विकल्प पर मतदान करते हैं तो उस निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा मतदान करवाया जाएगा।
मित्रों,कहते हैं कि अच्छी चीजें जहाँ से मिले सीखनी चाहिए इसलिए अगर हम पाकिस्तान से शिक्षा लेकर अपने संविधान में सकारात्मक परिवर्तन करें तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं। भारत में संसदीय लोकतंत्र पर से जनता का विश्वास तेजी से उठता जा रहा है इसलिए ऐसा करना और भी आवश्यक है। भारत में भी जनता को राईट टू रिजेक्ट का अधिकार तो मिले ही न्यायपालिका और चुनाव आयोग को भी पाकिस्तान की तरह शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए। हमारे संविधान-निर्माताओं ने संसद को सर्वशक्तिमान बना देने की जो भूल की थी उसके दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। अगर संसद के अधिकारों में कुछ कटौती कर देने से तंत्र और व्यवस्था में सुधार आ सकता है तो ऐसा जरूर किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह हमारे देश में भी चुनावों के समय निष्पक्ष कार्यवाहक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नियुक्त करने की परंपरा को लागू करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें