बुधवार, 29 मई 2013

शिंदे तो नीरो का बाप निकला

मित्रों,आपने भी किताबों में पढ़ा होगा कि भारत में इस समय लोकतंत्र है और इस समय सुशील कुमार शिंदे भारत के गृह मंत्री हैं। आपको क्या लगता है कि किताबों में लिखी गई ये बातें सही हैं? मुझे तो लगता है कि भारत में इस समय भी राजतंत्र है और श्री शिंदे किसी लोकतांत्रिक सरकार के नहीं बल्कि किसी राजा या रानी के मंत्री हैं। देश के प्रति कोई जिम्मेदारी या वफादारी नहीं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर शिंदे किससे पूछकर इस संकट काल में अमेरिका में रूक गए? क्या गृह मंत्री होने के नाते यह उनका कर्त्तव्य नहीं था कि वे 25 मई को ही अमेरिका से भारत वापस आ जाते? कोई मामूली घटना नहीं घटी है देश पर हमला हुआ है बकौल सोनिया गांधी भारतीय लोकतंत्र पर हमला हुआ है और भारत का गृह मंत्री जिसके कंधों पर देश की आंतरिक सुरक्षा की महती जिम्मेदारी होती है विदेश में रंगरलियाँ मना रहा है?
                                     मित्रों,श्री शिंदे पहले भारत के गृह मंत्री हैं या किसी के भाई या बाप? प्रश्न यह भी उठता है कि क्या उनको सोनिया-राहुल ने वहाँ रूकने की अनुमति दी? मैं नहीं समझता कि बिना सोनिया-राहुल की रजामंदी के शिंदे संडास भी जा सकते हैं। तो क्या यह समझा जाना चाहिए कि शिंदे को खुद सोनिया-राहुल ने ही विदेश में रोक दिया? अगर हाँ तो इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? पहला कारण तो यह हो सकता है कि इन दोनों को शिंदे जी की योग्यता पर भरोसा नहीं है,उनको लगता है कि शिंदे स्थिति को संभाल नहीं पाएंगे और इसलिए उनको लगता हो कि ऐसे नाजुक समय में शिंदे देश से बाहर ही रहें तो अच्छा है वरना यहाँ आकर वे उटपटांग,पागलपन भरा बयान देकर रायता ही फैलाएंगे। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि ये माँ-बेटे समझते हों कि अंधा चाहे सोया रहे या जगा क्या फर्क पड़ता है। फिर प्रश्न यह भी उठता है कि तो फिर ऐसे काम के न काज के वाले व्यक्ति को क्यों केन्द्रीय सरकार में दूसरा सर्वोच्च पद दे रखा है?
                                                मित्रों,मैं न तो कभी केंद्रीय मंत्री रहा हूँ और न ही कभी अमेरिका तो क्या नेपाल भी गया हूँ जो बता सकूँ कि शिंदे जी ने अमेरिका में किस प्रकार छुट्टियाँ मनाई होंगी। गोरी-गोरी मेमों से मसाज करवाकर बुढ़ापे को मुँह चिढ़ाया होगा या डिस्को में बालाओं के साथ डांस किया होगा या फिर किसी बीच पर मुँह औंधे घंटों पड़े रहे होंगे। जो जी चाहे वे करें उनकी जिन्दगी है लेकिन उन्होंने इसके लिए समय जरूर गलत चुना। वे चाहते तो बाद में दोबारा-तिबारा भी अमेरिका जा सकते थे। अब उनसे गलती तो हो ही चुकी है सो लोग चुप तो रहेंगे नहीं और कहनेवाले तो चाहें तो उनकी तुलना मजे में रोम के नीरो से कर सकते हैं और कह सकते हैं कि भाइयों एवं उनकी बहनों निराश मत होईए कि आप रोम के नीरो को नहीं देख सके। आप उसको आज भी देख सकते हैं। मिलिए इनसे ये हैं 21वीं सदी के जीवित नीरो,दुनिया के कथित रूप से सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के गृह मंत्री श्री श्री अनंत सुशील कुमार शिंदे। भूल जाईए नीरो को और उस कहावत को भी आज से एक नई कहावत ने उसका स्थान ले लिया है और वो कहावत अब इस तरह से जाना जाएगा कि जब भारत नक्सली हिंसा की आग में जल रहा था तब भारत का गृह मंत्री शिंदे अमेरिका में छुट्टियाँ मना रहा था,ठंडी हवा खा रहा था।
                            

1 टिप्पणी:

rajeeva kumar ने कहा…

इतिहास गवाह है जो कुख्यात रहा है उसके सम्मान में एक और कु उपसर्ग जोड़ दिया जाता है और सुख्यात रहे हैं उनके सम्मान में अति,सु,वि और न जाने क्या - क्या जुड़ता जाता है । ये आसानी से समझा जा सकता है कि शिंदे नीरो का बाप ही है ।