मित्रों,क्या आपको मेरी बातें अटपटी लग रही हैं? हो भी सकता है लेकिन मैं किसी भी तरह का नशा नहीं करता हूँ और चौबीसों घंटे होशोहवाश में रहता हूँ। यह पूरी तरह से सच है कि चीन भारत पर हमला कर चुका है। इतना ही नहीं उसके आक्रमण का पहला चरण पूरा हो भी चुका है और उसका हमला अब दूसरे चरण में प्रवेश कर चुका है। पहले चरण में चीनी सेना बार-बार हमारे इलाके में घुसती थी और फिर वापस चली जाती थी। ऐसा वो बार-बार करती रही। दूसरे चरण में चीनी सेना जिस इलाके में दाखिल हो रही है उस पर कब्जा कर ले रही है और फिर हमारी सेना को उस इलाके में गस्त भी नहीं करने दे रही है। जब हम इसका विरोध करेंगे तो सैनिक झड़पें होंगी और फिर चीनी हमले का तीसरा और निर्णायक चरण शुरू होगा जिसमें वो हमारे खिलाफ इस आरोप के साथ पूर्ण युद्ध की घोषणा कर देगा कि हमने ही उनके इलाकों पर हमला किया है। अगर आपने पिछले दो दिनों के अखबार पढ़े हैं या समाचार चैनल देखे हैं तो आप इस बात से अच्छी तरह वाकिफ होंगे कि चीनी सेना ने लद्दाख में हमारे 640 वर्ग किमी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है और अब हमारे सैनिकों को वो उस इलाके में गस्त भी नहीं करने दे रही है। इस तरह मेरा यह कहना शत-प्रतिशत सही है कि चीन का हमारे देश पर हमला अब दूसरे चरण में पहुँच चुका है और आगे तीसरा चरण बेसब्री से हमारा इंतजार कर रहा है।
मित्रों,ऐसा मैं किसी स्वप्न के आधार पर नहीं कह रहा हूँ और न ही मैं कोई भविष्यवक्ता ही हूँ बल्कि ऐसा मैं 1962 के भारत-चीन युद्ध के आधार पर कह रहा हूँ। परन्तु हम इस बात से बेखबर हैं और हमारी केंद्र सरकार अगंभीर कि चीनी सेना धीरे-धीरे दिल्ली की तरफ बढ़ने लगी है। आपने कभी सोंचा है कि हमारी सरकार ऐसा क्यों कर रही है? जिस तरह से हमारी इस सरकार ने चीन की सारी गुस्ताखियों पर मिट्टी डालकर चीन के साथ रिश्ते प्रगाढ़ किए हैं और जिस तरह से इस सरकार के द्वारा पिछले सालों में सैन्य व्यय में चीन के समानुपात में भारी कटौती की गई और जिस तरह जानबूझकर हमारी तीव्रगामी अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया गया उससे तो एक अलग ही तरह का संदेह मेरे मन में पैदा हो रहा है। अभी भी जबकि चीन की हमारी सीमाओं पर आक्रामकता खुलकर सामने आ चुकी है तब भी हमारी केंद्र सरकार चीन को भारत में सड़कें और रेल फैक्ट्री बनाने का ठेका दे रही है। मैं देश के कथित प्रधानमंत्री जी से यह पूछना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री जी क्या दुनिया के किसी दूसरे देश में ऐसा होता है क्या? अभी-अभी कुछ ही दिन पहले बिहार के मधेपुरा में चीन को रेलवे फैक्ट्री बनाने का काम दिया गया है।
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि सीमांचल का वह इलाका जिसमें मधेपुरा आता है सामरिक दृष्टि से हमारे लिए काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किशनगंज के पास हमारा गलियारा मात्र 32 किमी चौड़ा है जिस पर अगर चीन कब्जा कर लेता है तो हमारा पूर्वोत्तर इलाका हमसे छिन जाएगा। फिर क्यों उस इलाके में चीनियों को आने-जाने के अवसर दिए जा रहे हैं? सवाल यह भी उठता है कि ऐसा हमारी केंद्र सरकार कहीं जानबूझकर तो नहीं कर रही है? मैं नहीं मानता कि हमारी सरकार के मंत्री इन तथ्यों से पूरी तरह से अनजान हैं और बच्चे हैं। आश्चर्य होता है कि हमारी सरकार को हो क्या गया है? क्यों उसे चीनी हमला नहीं दिखाई दे रहा? उसे तेल और सोने के आयात का बिल तो दिख रहा है लेकिन चीन-भारत के बीच लगातार बढ़ता और 2012-13 में 40.77 अरब डॉलर तक पहुँच गया व्यापार घाटा दिखाई नहीं दे रहा? आपको यह जानकर अचरज होगा कि 2001-02 में भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा मात्र 1.08 अरब डॉलर था। हमारी कीमत पर चीन फल-फूल रहा है और हमारी सरकार कोई सार्थक कदम उठाने के बदले उसके साथ प्यार की पींगे पढ़ रही हैं? केंद्र सरकार ने अब तक क्यों चीन से आयात होनेवाले 30000 करोड़ रुपए के मोबाइलों और हजारों करोड़ रुपए के अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर रोक नहीं लगाई या आयात-कर नहीं बढ़ाया? कहीं हमारी केंद्र सरकार ने हमें और हमारे देश के हितों को चीन के हाथों बेच तो नहीं दिया है? जो लोग कागज के चंद टुकड़ों की खातिर भारत के पाताल,जमीन और आकाश पर अनगिनत घोटाले कर सकते हैं और फिर सबूत मिटाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय जैसे अतिसुरक्षित क्षेत्र से भी फाइलें चोरी करवा सकते हैं या कर सकते हैं वे क्या कुछ ज्यादा पैसा मिल जाने पर देश का ही एकमुश्त सौदा नहीं कर सकते? हमारे देश में कुछ लोग ईमान का सौदा करते हैं लेकिन जिनके पास ईमान है ही नहीं वे किसका सौदा करेंगे? क्या वो बेहिचक अपनी माँ और मातृभूमि को भी नहीं बेच डालेंगे?
मित्रों,याद कीजिए कि जब वर्ष 2004 में यूपीए की सरकार सत्ता में आई थी तब नेपाल में राजतंत्र हुआ करता था जो भारत के लिए मुफीद भी था परन्तु न जाने क्यों हमारी आत्मघाती सरकार ने सबकुछ समझते-बूझते हुए भी नेपाल में राजतंत्र का अंत हो जाने दिया और उसे थाली में सजाकर माओवादियों को उपहार में दे दिया। आज यह एक कटु सच्चाई है कि आज का नेपाल हमसे ज्यादा चीन के निकट है। इसी तरह से वर्ष 2004 में हम आर्थिक मोर्चे पर चीन से बहुत पीछे नहीं थे लेकिन आज हम उससे कई दशक पीछे हो चुके हैं। चीन जहाँ आज दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति है हम फिर से अंतर्राष्ट्रीय भिखारी बन गए हैं। आज हमारी हालत 1991 से भी कहीं ज्यादा खराब हो चुकी है। क्या हमारी केंद्र सरकार का पूरा-का-पूरा मंत्रीमंडल पिछले साढ़े चार सालों में देश को आर्थिक मोर्चे पर कमजोर करने में जानबूझकर नहीं लगा हुआ है? क्या गार (General Anti Avoidance Rules) कानून लाते समय हमारे तत्कालीन वित्त मंत्री और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पता नहीं था कि यह कानून विदेशी निवेशकों को बिदका देगा? क्या 2005 में मनरेगा लाते समय हमारे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम नहीं जानते थे कि इसके माध्यम से दोबारा सत्ता भले ही प्राप्त हो जाए देश की अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं होगा बल्कि उल्टे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा? जहाँ 1930 के दशक में अमेरिका में लागू किए गए न्यू डील से अमेरिका की सिंचाई-व्यवस्था को अभूतपूर्व लाभ हुआ मनरेगा से भारतीय अर्थव्यवस्था को सिर्फ हानि हुई लाभ कुछ भी नहीं हुआ और यह योजना राशि की बंदरबाँट बनकर रह गई।
मित्रों,क्या हमारी वर्तमान सरकार नहीं जानती है कि खाद्य सुरक्षा कानून से जहाँ गरीबों को मिलनेवाले खाद्यान्न में कमी आएगी वहीं सरकार का खर्च भी 30-40 हजार करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगा जिसके परिणामस्वरूप पहले राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और फिर बाद में महँगाई भी। इतना ही नहीं हमारी केंद्र सरकार यह भी भलीभाँति जानती है कि अभी संसद में विचाराधीन भूमि अधिग्रहण विधेयक के आने से अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के इस घनघोर संकट काल में नए उद्योग स्थापित करने में न केवल बाधा आएगी बल्कि नए उद्योगों की स्थापना पूरी तरह से असंभव ही हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने जब सिर्फ गोवा में लौह-अयस्क की खुदाई पर रोक लगाई तो क्या कारण था कि भारत सरकार ने पूरे देश में इसकी खुदाई और निर्योत रोक दिया और व्यापार-घाटे को जान-बूझकर बढ़ जाने दिया? जबकि भारत में कोयले का अकूत भंडार है तब भी भारत सरकार ने कोयले के उत्पादन को क्यों नहीं बढ़ाया और उल्टे कोयले के आयात को क्यों प्रोत्साहित किया गया? आज हम बेवजह 20 हजार करोड़ रुपए का कोयला आयात करते हैं। हमारे रक्षा मंत्री किसी पेशेवर झूठे की तरह फरमा रहे हैं कि चीन सैन्य-मोर्चे पर हमसे डरने लगा है। क्या डरा हुआ पक्ष उल्टे जमीन पर कब्जा करता है?
मित्रों,अब तक आप यह अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि हमारी अर्थव्यवस्था की बदहाली के लिए अंतर्राष्ट्रीय हालात कतई जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि उसे तो षड्यंत्रपूर्वक हमारी केंद्र सरकार द्वारा बर्बाद किया गया है। हमारी सैन्य-क्षेत्र में आत्मनिर्भरता स्वतः नष्ट नहीं हुई है َऔर हम आज दुनिया के सबसे बड़े हथियार-आयातक यूँ ही नहीं बने हैं वरन् इन सबके पीछे कमीशनखोरी तो है ही कदाचित् हमारी सुरक्षा को हमें धोखा देकर हमारे नीति-निर्माताओं ने चीन के हाथों बेच दिया है। अगर ऐसा नहीं है और हमारी सरकार अभी से भी मुझे और मेरे आरोपों को गलत साबित करना चाहती है तो मैं उसे खुली चुनौती देता हूँ कि वो अविलंब चीन से भारत में होनेवाले आयात पर प्रभावी रोक लगाए। याद रहे कि आज हम चीन के हाथों जितने रुपए का सामान बेचते हैं वो हमारे हाथों उससे कहीं 8 गुना ज्यादा का बेचता है। इतना ही नहीं जिस तरह से चीनी सेना हमारे क्षेत्रों पर कब्जा कर रही है जैसे कि उसने अभी लद्दाख में किया है वैसे ही भारतीय सेना को भी चीनी कब्जेवाले क्षेत्रों पर कब्जा करने की छूट दी जानी चाहिए। सीमा पर हमारी तैयारियों को पुख्ता किया जाए और युद्ध-स्तर पर सड़कें और रेलवे-लाईन बिछाई जाए। इन सबके लिए अगर देश में वित्तीय आपातकाल भी लगाना पड़े तो वो भी लगाया जाए। इतना ही नहीं केंद्र सरकार को भारत में भी विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए। इसके लिए अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 100 प्रतिशत तक भी करना पड़े तो करना चाहिए।
मित्रों,मैं जानता हूँ कि हमारी वर्तमान सरकार कभी ऐसा नहीं करेगी। बल्कि मुझे तो यह भी लगता है कि आईएनएस सिंधुरक्षक दुर्घटना में भी चीन-पाक का हाथ है और हमारी सरकार मिलीभगत के चलते मामले को दबा रही है। हमारी सरकार बिक चुकी है और साथ ही हमें भी बेच चुकी है। अब तो इस सरकार ने एक घोटाला मास्टर को ही सीएजी बना दिया है। अब तो सीएजी कोई घोटाला उजागर करेगी ही नहीं। सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का? करो घोटाले,खूब करो,नंगा नृत्य करो देश की अर्थव्यवस्था के सीने पर क्योंकि अब घर की बात घर में ही रह जानेवाली है। भैया दाग अच्छे ही नहीं बहुत अच्छे हैं। ढूंढ़ों और दागियों को और बिठाओ सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर।
मित्रों,ऐसे में अगर 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी व पारिवारिक पार्टियाँ जिनमें जदयू,राजद,बसपा,सपा,सीपीएम,सीपीआई आदि शामिल हैं जीत जाती हैं तो यकीन मानिए कि हमारे प्यारे भारत को एक बार फिर से आर्थिक,भौगोलिक और राजनैतिक रूप से गुलाम होने से कोई नहीं बचा सकता है। फैसला आपके हाथों में हे कि आप एक आजाद देश का आजाद नागरिक बनकर रहना चाहते हैं या एक गुलाम राष्ट्र का गुलाम नागरिक बनकर?
मित्रों,ऐसा मैं किसी स्वप्न के आधार पर नहीं कह रहा हूँ और न ही मैं कोई भविष्यवक्ता ही हूँ बल्कि ऐसा मैं 1962 के भारत-चीन युद्ध के आधार पर कह रहा हूँ। परन्तु हम इस बात से बेखबर हैं और हमारी केंद्र सरकार अगंभीर कि चीनी सेना धीरे-धीरे दिल्ली की तरफ बढ़ने लगी है। आपने कभी सोंचा है कि हमारी सरकार ऐसा क्यों कर रही है? जिस तरह से हमारी इस सरकार ने चीन की सारी गुस्ताखियों पर मिट्टी डालकर चीन के साथ रिश्ते प्रगाढ़ किए हैं और जिस तरह से इस सरकार के द्वारा पिछले सालों में सैन्य व्यय में चीन के समानुपात में भारी कटौती की गई और जिस तरह जानबूझकर हमारी तीव्रगामी अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया गया उससे तो एक अलग ही तरह का संदेह मेरे मन में पैदा हो रहा है। अभी भी जबकि चीन की हमारी सीमाओं पर आक्रामकता खुलकर सामने आ चुकी है तब भी हमारी केंद्र सरकार चीन को भारत में सड़कें और रेल फैक्ट्री बनाने का ठेका दे रही है। मैं देश के कथित प्रधानमंत्री जी से यह पूछना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री जी क्या दुनिया के किसी दूसरे देश में ऐसा होता है क्या? अभी-अभी कुछ ही दिन पहले बिहार के मधेपुरा में चीन को रेलवे फैक्ट्री बनाने का काम दिया गया है।
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि सीमांचल का वह इलाका जिसमें मधेपुरा आता है सामरिक दृष्टि से हमारे लिए काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किशनगंज के पास हमारा गलियारा मात्र 32 किमी चौड़ा है जिस पर अगर चीन कब्जा कर लेता है तो हमारा पूर्वोत्तर इलाका हमसे छिन जाएगा। फिर क्यों उस इलाके में चीनियों को आने-जाने के अवसर दिए जा रहे हैं? सवाल यह भी उठता है कि ऐसा हमारी केंद्र सरकार कहीं जानबूझकर तो नहीं कर रही है? मैं नहीं मानता कि हमारी सरकार के मंत्री इन तथ्यों से पूरी तरह से अनजान हैं और बच्चे हैं। आश्चर्य होता है कि हमारी सरकार को हो क्या गया है? क्यों उसे चीनी हमला नहीं दिखाई दे रहा? उसे तेल और सोने के आयात का बिल तो दिख रहा है लेकिन चीन-भारत के बीच लगातार बढ़ता और 2012-13 में 40.77 अरब डॉलर तक पहुँच गया व्यापार घाटा दिखाई नहीं दे रहा? आपको यह जानकर अचरज होगा कि 2001-02 में भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा मात्र 1.08 अरब डॉलर था। हमारी कीमत पर चीन फल-फूल रहा है और हमारी सरकार कोई सार्थक कदम उठाने के बदले उसके साथ प्यार की पींगे पढ़ रही हैं? केंद्र सरकार ने अब तक क्यों चीन से आयात होनेवाले 30000 करोड़ रुपए के मोबाइलों और हजारों करोड़ रुपए के अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर रोक नहीं लगाई या आयात-कर नहीं बढ़ाया? कहीं हमारी केंद्र सरकार ने हमें और हमारे देश के हितों को चीन के हाथों बेच तो नहीं दिया है? जो लोग कागज के चंद टुकड़ों की खातिर भारत के पाताल,जमीन और आकाश पर अनगिनत घोटाले कर सकते हैं और फिर सबूत मिटाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय जैसे अतिसुरक्षित क्षेत्र से भी फाइलें चोरी करवा सकते हैं या कर सकते हैं वे क्या कुछ ज्यादा पैसा मिल जाने पर देश का ही एकमुश्त सौदा नहीं कर सकते? हमारे देश में कुछ लोग ईमान का सौदा करते हैं लेकिन जिनके पास ईमान है ही नहीं वे किसका सौदा करेंगे? क्या वो बेहिचक अपनी माँ और मातृभूमि को भी नहीं बेच डालेंगे?
मित्रों,याद कीजिए कि जब वर्ष 2004 में यूपीए की सरकार सत्ता में आई थी तब नेपाल में राजतंत्र हुआ करता था जो भारत के लिए मुफीद भी था परन्तु न जाने क्यों हमारी आत्मघाती सरकार ने सबकुछ समझते-बूझते हुए भी नेपाल में राजतंत्र का अंत हो जाने दिया और उसे थाली में सजाकर माओवादियों को उपहार में दे दिया। आज यह एक कटु सच्चाई है कि आज का नेपाल हमसे ज्यादा चीन के निकट है। इसी तरह से वर्ष 2004 में हम आर्थिक मोर्चे पर चीन से बहुत पीछे नहीं थे लेकिन आज हम उससे कई दशक पीछे हो चुके हैं। चीन जहाँ आज दुनिया की दूसरी आर्थिक महाशक्ति है हम फिर से अंतर्राष्ट्रीय भिखारी बन गए हैं। आज हमारी हालत 1991 से भी कहीं ज्यादा खराब हो चुकी है। क्या हमारी केंद्र सरकार का पूरा-का-पूरा मंत्रीमंडल पिछले साढ़े चार सालों में देश को आर्थिक मोर्चे पर कमजोर करने में जानबूझकर नहीं लगा हुआ है? क्या गार (General Anti Avoidance Rules) कानून लाते समय हमारे तत्कालीन वित्त मंत्री और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पता नहीं था कि यह कानून विदेशी निवेशकों को बिदका देगा? क्या 2005 में मनरेगा लाते समय हमारे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम नहीं जानते थे कि इसके माध्यम से दोबारा सत्ता भले ही प्राप्त हो जाए देश की अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं होगा बल्कि उल्टे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा? जहाँ 1930 के दशक में अमेरिका में लागू किए गए न्यू डील से अमेरिका की सिंचाई-व्यवस्था को अभूतपूर्व लाभ हुआ मनरेगा से भारतीय अर्थव्यवस्था को सिर्फ हानि हुई लाभ कुछ भी नहीं हुआ और यह योजना राशि की बंदरबाँट बनकर रह गई।
मित्रों,क्या हमारी वर्तमान सरकार नहीं जानती है कि खाद्य सुरक्षा कानून से जहाँ गरीबों को मिलनेवाले खाद्यान्न में कमी आएगी वहीं सरकार का खर्च भी 30-40 हजार करोड़ रुपए तक बढ़ जाएगा जिसके परिणामस्वरूप पहले राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और फिर बाद में महँगाई भी। इतना ही नहीं हमारी केंद्र सरकार यह भी भलीभाँति जानती है कि अभी संसद में विचाराधीन भूमि अधिग्रहण विधेयक के आने से अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के इस घनघोर संकट काल में नए उद्योग स्थापित करने में न केवल बाधा आएगी बल्कि नए उद्योगों की स्थापना पूरी तरह से असंभव ही हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने जब सिर्फ गोवा में लौह-अयस्क की खुदाई पर रोक लगाई तो क्या कारण था कि भारत सरकार ने पूरे देश में इसकी खुदाई और निर्योत रोक दिया और व्यापार-घाटे को जान-बूझकर बढ़ जाने दिया? जबकि भारत में कोयले का अकूत भंडार है तब भी भारत सरकार ने कोयले के उत्पादन को क्यों नहीं बढ़ाया और उल्टे कोयले के आयात को क्यों प्रोत्साहित किया गया? आज हम बेवजह 20 हजार करोड़ रुपए का कोयला आयात करते हैं। हमारे रक्षा मंत्री किसी पेशेवर झूठे की तरह फरमा रहे हैं कि चीन सैन्य-मोर्चे पर हमसे डरने लगा है। क्या डरा हुआ पक्ष उल्टे जमीन पर कब्जा करता है?
मित्रों,अब तक आप यह अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि हमारी अर्थव्यवस्था की बदहाली के लिए अंतर्राष्ट्रीय हालात कतई जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि उसे तो षड्यंत्रपूर्वक हमारी केंद्र सरकार द्वारा बर्बाद किया गया है। हमारी सैन्य-क्षेत्र में आत्मनिर्भरता स्वतः नष्ट नहीं हुई है َऔर हम आज दुनिया के सबसे बड़े हथियार-आयातक यूँ ही नहीं बने हैं वरन् इन सबके पीछे कमीशनखोरी तो है ही कदाचित् हमारी सुरक्षा को हमें धोखा देकर हमारे नीति-निर्माताओं ने चीन के हाथों बेच दिया है। अगर ऐसा नहीं है और हमारी सरकार अभी से भी मुझे और मेरे आरोपों को गलत साबित करना चाहती है तो मैं उसे खुली चुनौती देता हूँ कि वो अविलंब चीन से भारत में होनेवाले आयात पर प्रभावी रोक लगाए। याद रहे कि आज हम चीन के हाथों जितने रुपए का सामान बेचते हैं वो हमारे हाथों उससे कहीं 8 गुना ज्यादा का बेचता है। इतना ही नहीं जिस तरह से चीनी सेना हमारे क्षेत्रों पर कब्जा कर रही है जैसे कि उसने अभी लद्दाख में किया है वैसे ही भारतीय सेना को भी चीनी कब्जेवाले क्षेत्रों पर कब्जा करने की छूट दी जानी चाहिए। सीमा पर हमारी तैयारियों को पुख्ता किया जाए और युद्ध-स्तर पर सड़कें और रेलवे-लाईन बिछाई जाए। इन सबके लिए अगर देश में वित्तीय आपातकाल भी लगाना पड़े तो वो भी लगाया जाए। इतना ही नहीं केंद्र सरकार को भारत में भी विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए। इसके लिए अगर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 100 प्रतिशत तक भी करना पड़े तो करना चाहिए।
मित्रों,मैं जानता हूँ कि हमारी वर्तमान सरकार कभी ऐसा नहीं करेगी। बल्कि मुझे तो यह भी लगता है कि आईएनएस सिंधुरक्षक दुर्घटना में भी चीन-पाक का हाथ है और हमारी सरकार मिलीभगत के चलते मामले को दबा रही है। हमारी सरकार बिक चुकी है और साथ ही हमें भी बेच चुकी है। अब तो इस सरकार ने एक घोटाला मास्टर को ही सीएजी बना दिया है। अब तो सीएजी कोई घोटाला उजागर करेगी ही नहीं। सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का? करो घोटाले,खूब करो,नंगा नृत्य करो देश की अर्थव्यवस्था के सीने पर क्योंकि अब घर की बात घर में ही रह जानेवाली है। भैया दाग अच्छे ही नहीं बहुत अच्छे हैं। ढूंढ़ों और दागियों को और बिठाओ सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर।
मित्रों,ऐसे में अगर 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी व पारिवारिक पार्टियाँ जिनमें जदयू,राजद,बसपा,सपा,सीपीएम,सीपीआई आदि शामिल हैं जीत जाती हैं तो यकीन मानिए कि हमारे प्यारे भारत को एक बार फिर से आर्थिक,भौगोलिक और राजनैतिक रूप से गुलाम होने से कोई नहीं बचा सकता है। फैसला आपके हाथों में हे कि आप एक आजाद देश का आजाद नागरिक बनकर रहना चाहते हैं या एक गुलाम राष्ट्र का गुलाम नागरिक बनकर?
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